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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत सुनामी के खतरे से ज्यादा सुरक्षित: INCOIS

  • 27 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय सुनामी सूचना प्रणाली केंद्र, भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र, IOC-UNESCO, सुनामी रेडी पहल

मेन्स के लिये:

भारतीय सुनामी सूचना प्रणाली

चर्चा में क्यों?

'भारतीय राष्ट्रीय सागरीय सूचना प्रणाली केंद्र' (Indian National Centre for Ocean Information System- INCOIS) के निदेशक के अनुसार, भारत वर्ष 2004 में आई सुनामी की तुलना में वर्तमान में ज्यादा सुरक्षित है।

प्रमुख बिंदु:

  • सुनामी एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है हार्बर वेव। सुनामी तथा ज्वार से उत्पन्न लहरों को कभी-कभी एक ही समझ लिया जाता है, लेकिन उनका दैनिक महासागरीय ज्वार से कोई संबंध नहीं है।
  • अधिकांश सुनामी, भूकंपों (रिक्टर स्केल पर 6.5 से अधिक परिमाण के) के कारण उत्पन्न होती हैं, हालाँकि सुनामी ज्वालामुखी प्रस्फुटन, भूस्खलन, परमाणु विस्फोट के कारण भी उत्पन्न हो सकती है।

भारत की सुनामी के प्रति सुभेद्यता:

  • भारतीय तट की सुनामी के प्रति सुभेद्यता की पहचान ऐतिहासिक सुनामी एवं भूकंप की आवृति, उनके परिमाण, प्लेटो में भ्रंश की सापेक्ष स्थिति और सुनामी मॉडलिंग द्वारा की गई है।
  • भारत के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों एवं द्वीप क्षेत्रों सहित निम्नलिखित पाँच संभावित सुनामी उत्पत्ति क्षेत्रों की पहचान की गई है:
    • अंडमान-निकोबार एवं सुमात्रा द्वीप आर्क;
    • इंडो-बर्मीज़ जोन;
    • नैसेंट सीमा (मध्य हिंद महासागर में);
    • चागोस द्वीपसमूह; 
    • मकरान अभिवाहित (Subduction) क्षेत्र।

भारत की INCOIS प्रणाली का विकास:

  • INCOIS की स्थापना वर्ष 1999 में सागरीय क्षेत्र में उपयोगकर्त्ताओं को कई प्रकार की निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। 
  • यह संस्थान, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ( Ministry of Earth Sciences) के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • यह मछुआरों से लेकर अपतटीय तेल अन्वेषण उद्योगों जैसे उपयोगकर्त्ताओं को अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।

भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र:

  • INCOIS, ‘भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र’ (Indian Tsunami Early Warning Centre- ITEWC) के माध्यम से सुनामी, तूफान की लहरों आदि पर तटीय आबादी के लिये निगरानी और चेतावनी संबंधी सेवाएँ प्रदान करता है।
  • ITEWC की स्थापना वर्ष 2004 की सुनामी के बाद वर्ष 2007 में की गई थी।
  • ITEWC केंद्र पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक महासागरों में होने वाली सुनामी हेतु उत्तरदायी भूकंपों का पता लगाने में सक्षम है।
  • ITWC प्रणाली के अवलोकन नेटवर्क, पूर्वानुमान मॉडल, संचार और कंप्युटेशनल सिस्टम का लगातार उन्नयन/अपग्रेडेशन किया जा रहा है। 

ITWC
हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली:

  • वर्ष 2004 की सुनामी के बाद ‘हिंद महासागर सुनामी चेतावनी और शमन प्रणाली’ (Indian Ocean Tsunami Warning and Mitigation System- IOTWMS) के लिये ‘अंतर सरकारी समन्वय समूह (Intergovernmental Coordination Group- ICG) का गठन किया गया था।   
  • यूनेस्को के 'अंतरसरकारी महासागरीय आयोग' (IOC-UNESCO) को ICG- IOTWMS के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय बैठकों के दौरान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच समन्वय के लिये मैंडेट/ जनादेश प्राप्त है।
  • वर्ष 2011 में IOC-UNESCO द्वारा  हिंद महासागर क्षेत्र के 28 देशों के लिये 'सुनामी सेवा प्रदाता' के रूप में 'भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र' को क्षेत्रीय चेतावनी केंद्र के रूप में मान्यता दी गई थी।

सुनामी रेडी पहल:

  • IOC-UNESCO द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन-आधारित सामुदायिक मान्यता के लिये पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ‘सुनामी रेडी पहल’ (TR-I) को प्रारंभ किया गया है।
  • सुनामी रेडी पहल’ (TR-I) में 11 महत्त्वपूर्ण संकेतकों के माध्यम से तटीय समुदायों की क्षमता निर्माण करने के लिये एक प्रभावी संरचित ढाँचे का निर्माण किया जाएगा।

 प्लेटों के ऊर्ध्वाधर विस्थापन का मापन:

  • अंडमान-निकोबार जैसे सुभेद्य क्षेत्रों में 10 मिनट से भी कम समय में सुनामी की चेतावनी जारी करने लिये ‘टेक्टोनिक प्लेटों’ के ऊर्ध्वाधर विस्थापन का मापन आवश्यक होता है। इसके लिये 35 स्टेशनों (जिनमें से 31 जीपीएस स्टेशन तैयार हैं) का एक नेटवर्क स्थापित किया जा रहा है। 

संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र:

  • INCOIS, हैदराबाद 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' के ओशनसैट सैटेलाइट के आँकड़ों का प्रयोग ‘संभाव्य मत्स्यन क्षेत्र’ (Potential Fishing Zone- PFZ) संबंधी एडवाज़री (Advisories) तैयार करने में किया जाता है।
  • इसके माध्यम से मत्स्य की प्रजातियों के विकास के विशिष्ट क्षेत्रों यथा येलोफिन, टूना आदि के संबंध में सलाह दी जाती है।
  • हाल ही में इस क्षेत्र में भूस्थैतिक उपग्रहों और संख्यात्मक मॉडलिंग के उपयोग के माध्यम से सुधार किया गया है।

SVAS प्रणाली:

  • लघु पोत सलाहकार और पूर्वानुमान सेवा प्रणाली (Small Vessel Advisory and Forecast Services System- SVAS) को विशेष रूप से मत्स्यन में प्रयुक्त जहाज़ों के परिचालन में सुधार करने के लिये शुरू किया गया है।

उपग्रह आधारित संदेश प्रसारण:

  • 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (ISRO) और 'भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण' (AAI) द्वारा 'स्वदेशी नौवहन उपग्रह संचार प्रणाली' नाविक (NAVIC) की साझेदारी से एक उपग्रह आधारित संदेश प्रसारण सेवाओं को विकसित किया जा रहा है।

निष्कर्ष:

  • भारतीय राष्ट्रीय सुनामी सूचना प्रणाली केंद्र (INCOIS)  द्वारा प्रारंभ विभिन्न पहलों का न केवल सुनामी के प्रबंधन में महत्त्व है अपितु इन सेवाओं के माध्यम से देश को ‘ब्लू इकॉनोमी' के लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा 'गहन सागरीय अर्थव्यवस्था' (Deep sea economy) पर भारत की समझ को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

स्रोत: द हिंदू

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