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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट

  • 10 Apr 2023
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट, ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट, जीनोम मैपिंग, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड। 

मेन्स के लिये:

जैव प्रौद्योगिकी, कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट की क्षमता। 

चर्चा में क्यों?

सरकार का लक्ष्य जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) के तहत वर्ष 2023 के अंत तक 10,000 जीनोम का अनुक्रमण करना है।

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने लगभग 7,000 जीनोम का अनुक्रमण किया है और इनमें से 3,000 पहले से ही सार्वजनिक उपयोग के लिये उपलब्ध हैं। 

Road-to-future

जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट:  

  • आवश्यकता: 
    • भारत की 1.3 बिलियन की आबादी में 4,600 से अधिक विविध जनसंख्या समूह शामिल हैं, जिनमें से कई के बीच अंतर्विवाह (निकट जातीय समूहों में विवाह) की प्रथा है। इन समूहों में अद्वितीय आनुवंशिक विविधताएँ और बीमारी उत्पन्न करने वाले उत्परिवर्तन होते हैं जिनकी तुलना अन्य आबादी से नहीं की जा सकती है। भारतीय जीनोम का एक डेटाबेस बनाकर, शोधकर्त्ता इन अद्वितीय आनुवंशिक रूपों के बारे में जान सकते हैं तथा वैयक्तीकृत दवाओं और उपचारों को बनाने में इस जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। यूनाइटेड किंगडम, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका उन देशों में से हैं जिनके पास अपने जीनोम के कम-से-कम 1,00,000 अनुक्रमण के लिये कार्यक्रम हैं।
  • परिचय:  
    • यह ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट (HGP) से प्रेरित एक वैज्ञानिक पहल है, जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास है जिसने वर्ष 1990 और वर्ष 2003 के बीच पूरे मानव जीनोम को सफलतापूर्वक डिकोड किया।
    • इस परियोजना को वर्ष 2020 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय जनसंख्या के लिये विशिष्ट आनुवंशिक विविधताओं और रोग उत्पन्न करने वाले उत्परिवर्तनों को बेहतर ढंग से समझना है, जो कि विश्व में सबसे अधिक आनुवंशिक विविधताओं में से एक है। 
    • इन जीनोमों का अनुक्रमण और विश्लेषण करके शोधकर्त्ता रोगों के अंतर्निहित आनुवंशिक कारणों में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने और अधिक प्रभावी व्यक्तिगत चिकित्सा विकसित करने की उम्मीद करते हैं।  
    • इस परियोजना में भारत भर के 20 संस्थानों का सहयोग शामिल है और इसका नेतृत्त्व  बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र द्वारा किया जा रहा है। 

महत्त्व

  • सटीकता के साथ स्वास्थ्य देखभाल:  
    • GIP का उद्देश्य रोगियों के जीनोम के आधार पर वैयक्तीकृत दवा विकसित करना है ताकि बीमारियों का अनुमान लगाया जा सके और उन्हें नियंत्रित किया जा सके।
    • आनुवंशिक विविधताओं के लिये रोग प्रवृत्तियों की मैपिंग करके हस्तक्षेपों को अधिक प्रभावी ढंग से लक्षित किया जा सकता है और रोगों के विकसित होने से पहले ही उनका अनुमान लगाया जा सकता है।
      • उदाहरण के लिये जीनोम में भिन्नता से यह पता लगाया जा सकता है कि किस प्रकार हृदय रोग दक्षिण एशियाई लोगों में दिल के दौरे का कारण बनता है परंतु अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों में स्ट्रोक का कारण बनता है।
  • सतत् कृषि:  
    • यदि कीटों, कीड़ों और उत्पादकता को कम करने वाली अन्य समस्याओं के लिये पौधों की सुभेद्यता के आनुवंशिक आधार की समझ को बेहतर बनाया जाए तो कृषि क्षेत्र को भी समान रूप से लाभान्वित किया जा सकता है।
    • इससे रसायनों पर निर्भरता में कमी लाई जा सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:  
    • विविधता के उच्च स्तरीय जीन डेटाबेस में से एक, मैपिंग प्रोजेक्ट भी वैश्विक शोध के लिये फायदेमंद होगा।
    • इसके दायरे और विविधता के कारण इसका आनुवंशिक शोध में काफी योगदान होगा, विश्व में अपनी तरह की इस परियोजना को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

चुनौतियाँ: 

  • वैज्ञानिक नस्लवाद: 
    • GIP वैज्ञानिक नस्लवाद की संभावना और आनुवंशिकता तथा नस्लीय शुद्धता के आधार पर रूढ़िवादिता के सुदृढ़ीकरण संबंधी चिंता व्यक्त करता है। बीते समय में दासता एवं अन्य प्रकार के भेदभाव को सही ठहराने के लिये इसी प्रकार के वैज्ञानिक अध्ययनों का इस्तेमाल किया गया है।
    • जेनेटिक मैपिंग पहचान की राजनीति को और बढ़ावा सकती है जिसका पहले से ही भारत जैसे देश में विभाजनकारी प्रभाव रहा है।
  •  डेटा निजता: 
    • यह परियोजना डेटा गोपनीयता और भंडारण पर भी एक प्रश्नचिह्न है। भारत में व्यापक डेटा गोपनीयता विधेयक के अभाव में GIP द्वारा एकत्रित आनुवंशिक जानकारी के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताओं को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • नैतिक चिंताएँ: 
    • यह डॉक्टरों के निजी तौर पर जीन संशोधन अथवा चयनात्मक प्रजनन का अभ्यास करने की क्षमता पर नैतिक प्रश्न उठाता है।
    • इस तरह की प्रथाएँ हमेशा ही विवादास्पद रही हैं, वर्ष 2020 में दुनिया के पहले जीन-संपादित बच्चे का निर्माण करने वाले चीन के एक वैज्ञानिक को सज़ा सुनाई गई थी।

जीनोम:  

  • वर्ष 1953 में जेम्स वाटसन और फ्राँसिस क्रिक द्वारा "डबल हेलिक्स" के रूप में संरचित डीएनए की खोज की गई,जिससे यह समझने में मदद मिली कि जीन किस प्रकार जीवन, उसके लक्षणों एवं बीमारियों का कारण बनते हैं।  
  • किसी जीव का जीनोम उसकी आनुवंशिक सामग्री का संपूर्ण सेट होता है। इसमें जीव की वृद्धि और विकास से संबंधित सभी आवश्यक जानकारियाँ होती हैं।
  • मनुष्यों के जीनोम में 3 बिलियन से अधिक डीएनए बेस युग्म होते हैं जो एक डबल हेलिक्स संरचना में व्यवस्थित होते हैं।
  • जीनोमिक्स के अध्ययन (जिसमें जीनोम का विश्लेषण करना शामिल है) से रोग विज्ञान, दवा विकास, और फसलों तथा पशुधन के संबंध में नई अंतर्दृष्टि प्राप्त होने के साथ जैव प्रौद्योगिकी, चिकित्सा तथा कृषि सहित कई क्षेत्रों में क्रांति आई है।

जीनोम अनुक्रमण: 

  • जीनोम अनुक्रमण का आशय किसी जीनोम में डीएनए न्यूक्लियोटाइड्स या बेस युग्म के क्रम का पता लगाना है यानी एडेनिन (ए), थाइमिन (टी), साइटोसिन (सी) और गुआनिन (जी) का क्रम, जिससे किसी जीव के डीएनए का निर्माण होता है। 

आगे की राह 

  • GIP को पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ संचालित किया जाना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह परियोजना नैतिक दृष्टिकोण के साथ व्यक्तिगत गोपनीयता और मानवाधिकारों का सम्मान करने वाले तरीके से संचालित की जाए।
  • इस परियोजना में भारत के जैव प्रौद्योगिकी, कृषि और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को मज़बूत करने की क्षमता है। हालाँकि इसमें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि गोपनीयता संबंधी चिंताओं को दूर करने एवं डेटा के संभावित दुरुपयोग को रोकने के साथ चिकित्सा नैतिकता को बनाए रखा जाए।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले "जीनोम अनुक्रमण(जीनोम सिक्वेंसिंग)" की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017) 

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है। 
  2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है। 
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी रोगाणु-संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :   

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

  • चीनी वैज्ञानिकों ने वर्ष 2002 में चावल के जीनोम को डिकोड किया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने चावल की बेहतर किस्मों जैसे- पूसा बासमती-1 और पूसा बासमती -1121 को विकसित करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया, जिसने वर्तमान में भारत के चावल निर्यात में काफी हद तक वृद्धि की है। कई ट्रांसजेनिक किस्में भी विकसित की गई हैं, जिनमें कीट प्रतिरोधी कपास, शाकनाशी सहिष्णु सोयाबीन और वायरस प्रतिरोधी पपीता शामिल हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • पारंपरिक प्रजनन में पादप प्रजनक अपने खेतों की जाँच करते हैं और उन पौधों की खोज करते हैं जो वांछनीय लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ये लक्षण उत्परिवर्तन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, लेकिन उत्परिवर्तन की प्राकृतिक दर उन सभी पौधों में लक्षणों को उत्पन्न करने के लिये बहुत धीमी और अविश्वसनीय है जो कि प्रजनक चाहते हैं। हालाँकि जीनोम अनुक्रमण में कम समय लगता है, इस प्रकार यह अधिक बेहतर विकल्प है। अत:  कथन 2 सही है।
  • जीनोम अनुक्रमण एक फसल के संपूर्ण डीएनए अनुक्रम का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह रोगजनकों के अस्तित्व या प्रजनन क्षेत्र को समझने में सहायता प्रदान करता है। अत:  कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू

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