भारतीय समाज
भारत में समलैंगिक विवाह
- 17 Oct 2023
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:समलैंगिक विवाह, धारा 377, भारतीय दंड संहिता (IPC), समलैंगिकता, LGBTQ समुदाय, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, संविधान पीठ मेन्स के लिये:समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सामाजिक ताने-बाने और भारतीय समाज की प्रगति पर प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की याचिकाओं को खारिज़ करते हुए अपना लंबे समय से प्रतीक्षित निर्णय सुनाया है और इस मुद्दे की पूरी तरह से जाँच करने के लिये विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों पर गहनता से विचार किया है, जिनका समलैंगिकता के साथ अभिसरण एवं अंतर्संबंध है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी:
- संवैधानिक वैधता के विरुद्ध:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को संवैधानिक वैधता की अनुमति देने के खिलाफ 3:2 से मतदान किया।
- संसद का डोमेन:
- CJI ने अपनी राय में निष्कर्ष दिया कि न्यायालय SMA 1954 के दायरे में समलैंगिक सदस्यों को शामिल करने के लिये विशेष विवाह अधिनियम (SMA) 1954 को न तो अमान्य कर सकता है और न ही इसमें प्रावधान जोड़े जा सकते हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस पर कानून बनाना संसद और राज्य विधानमंडल का दायित्व है।
- अन्य टिप्पणियाँ:
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि वैवाहिक संबंध स्थायी नहीं है।
- SC का मानना है कि समलैंगिक व्यक्तियों को "संघ" में प्रवेश करने का समान अधिकार और स्वतंत्रता है।
- पीठ के सभी पाँच न्यायाधीश इस बात पर भी सहमत थे कि संविधान के तहत विवाह करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
CJI और न्यायमूर्ति कौल (अल्पसंख्यक राय): समलैंगिक जोड़ों के लिये सिविल यूनियन के विस्तार का समर्थन किया:
- 'सिविल यूनियन' उस कानूनी स्थिति को संदर्भित करता है जो समलैंगिक जोड़ों को विशिष्ट अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ प्रदान करती है, ये सामान्यतः विवाहित जोड़ों को प्रदान की जाती हैं। हालाँकि एक नागरिक संघ एक विवाह जैसा प्रतीत होता है, लेकिन पर्सनल लॉ में इसे विवाह के समान मान्यता प्राप्त नहीं है।
भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता:
- विवाह करने के अधिकार को भारतीय संविधान के तहत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता नहीं दी गई है, बल्कि यह एक वैधानिक अधिकार है।
- हालाँकि विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है, लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है। कानून की ऐसी घोषणा संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत पूरे भारत में सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी है।
- समलैंगिक विवाह पर सर्वोच्च न्यायलय के पूर्व विचार:
- मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहां बनाम अशोकन के.एम. और अन्य 2018):
- मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 16 और पुट्टास्वामी मामले की चर्चा करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- अनुच्छेद 16(2) के अनुसार, धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी भी आधार पर विभेद नहीं किया जाएगा।
- विवाह का अधिकार उस स्वतंत्रता में अंतर्निहित है जिसमे प्रत्येक व्यक्ति की खुशी के लिये केंद्रीय मामलों पर निर्णय लेने की क्षमता के रूप में संविधान एक मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी देता है। आस्था और विश्वास संबंधी मामले, जिसमें यह भी शामिल है कि किसी पर विश्वास करना चाहिये अथवा नहीं, संवैधानिक स्वतंत्रता के अधिकार क्षेत्र में हैं।
- मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 16 और पुट्टास्वामी मामले की चर्चा करते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
- LGBTQ समुदाय सभी संवैधानिक अधिकारों का हकदार है (नवतेज़ सिंह जौहर और अन्य बनाम भारत संघ 2018):
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि LGBTQ समुदाय के सदस्य, "अन्य सभी नागरिकों की तरह, संविधान द्वारा संरक्षित स्वतंत्रता के साथ संवैधानिक अधिकारों की पूरी शृंखला के हकदार भी हैं" और समान नागरिकता तथा "कानून के समान संरक्षण" के भी हकदार हैं।
- मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहां बनाम अशोकन के.एम. और अन्य 2018):
विशेष विवाह अधिनियम (SMA) 1954:
- परिचय:
- भारत में विवाह संबंधित व्यक्तिगत कानून हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन अधिनियम, 1937 या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत किये जा सकते हैं।
- यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका का कर्त्तव्य है कि पति और पत्नी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में भारत के लोगों और विदेशों में रहने वाले सभी भारतीय नागरिकों के लिये नागरिक विवाह का प्रावधान है, चाहे दोनों में से कोई भी पक्ष किसी भी धर्म या आस्था का हो।
- जब कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह संपन्न करता है, तो विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होता है।
- विशेषताएँ:
- यह दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को विवाह के बंधन में एक साथ आने की अनुमति देता है।
- यह विवाह के अनुष्ठापन और पंजीकरण दोनों के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है, जहाँ पति या पत्नी या दोनों हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं हैं।
- एक धर्मनिरपेक्ष अधिनियम होने के नाते यह व्यक्तियों को विवाह की पारंपरिक आवश्यकताओं से मुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
समलैंगिक विवाह के पक्ष में तर्क:
- कानून के तहत समान अधिकार और सुरक्षा: सभी व्यक्तियों को उनके यौन रुझान की परवाह किये बिना विवाह करने और परिवार बनाने का अधिकार है।
- समान-लिंग वाले जोड़ों को विपरीत-लिंग वाले जोड़ों के समान कानूनी अधिकार और सुरक्षा मिलनी चाहिये।
- समलैंगिक विवाह को मान्यता न मिलना भेदभाव के समान है जो LBTQIA+ जोड़ों की गरिमा पर गहरा आघात है।
- परिवारों और समुदायों को मज़बूत बनाना: विवाह, जोड़ों एवं उनके परिवारों को सामाजिक तथा आर्थिक लाभ प्रदान करता है जिससे समान-लिंग वाले लोगों को भी लाभ होगा।
- मौलिक अधिकार के रूप में सहवास: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने स्वीकार किया कि सहवास एक मौलिक अधिकार है और ऐसे रिश्तों के सामाजिक प्रभाव को कानूनी रूप से पहचानना सरकार का दायित्व है।
- जैविक लिंग ‘पूर्ण’ अवधारणा नहीं है: भारत के सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि जैविक लिंग पूर्ण अवधारणा नहीं है और यह किसी के जननांगों से भी अधिक जटिल है। इसमें पुरुष या महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं है।
- वैश्विक स्वीकृति: विश्व भर के कई देशों में समलैंगिक विवाह वैधानिक है और लोकतांत्रिक समाज में व्यक्तियों को इस अधिकार से वंचित करना वैश्विक सिद्धांतों के विरुद्ध है।
- 32 देशों में समलैंगिक विवाह वैध है।
समलैंगिक विवाह के विपक्ष में तर्क:
- धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ: कई धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों का मानना है कि विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच ही होना चाहिये।
- उनका तर्क है कि विवाह की पारंपरिक परिभाषा को बदलना उनकी मान्यताओं और मूल्यों के मूलभूत सिद्धांतों के विरुद्ध होगा।
- प्रजनन: कुछ लोगों का तर्क है कि विवाह का प्राथमिक उद्देश्य प्रजनन है और समान-लिंग वाले जोड़े जैविक रूप से जनन नहीं कर सकते।
- इसलिये उनका मानना है कि समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये क्योंकि यह संसार के प्राकृतिक व्यवस्था के विरुद्ध है।
- कानूनी मुद्दे: ऐसी चिंताएँ हैं कि समलैंगिक विवाह की अनुमति देने से वैधानिक समस्याएँ उत्पन्न होंगी, जैसे- विरासत, कर और संपत्ति के अधिकार के मुद्दे।
- कुछ लोगों का तर्क है कि समलैंगिक विवाह को समायोजित करने के लिये सभी कानूनों और विनियमों को बदलना बहुत कठिन होगा।
- बच्चों को गोद लेने से संबंधित मुद्दे: जब असामान्य जोड़े बच्चों को गोद लेते हैं, तो इससे सामाजिक कलंक, भेदभाव और बच्चे के भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर भारतीय समाज में जहाँ LGBTQIA+ समुदाय की स्वीकृति सार्वभौमिक नहीं है।
आगे की राह
- जागरूकता बढ़ाना: जागरूकता अभियानों का उद्देश्य किसी भी प्रकार के यौन रुझानों की समानता और स्वीकृति को बढ़ावा देना तथा LGBTQIA+ समुदाय के बारे में आमजन की राय में विविधता लाना है।
- कानूनी सुधार: समलैंगिक जोड़ों को कानूनी रूप से विवाह करने और विपरीत-लिंग वाले जोड़ों के समान अधिकार तथा लाभ प्रदान करने की अनुमति देने के लिये विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करना।
- साथ ही समलैंगिकों को समान अधिकार प्रदान करने वाला एक समान समझौता अनुबंध प्रस्तुत किया जा सकता है।
- संवाद और जुड़ाव: धार्मिक नेताओं और समुदायों के बीच संवाद स्थापित करने से समलैंगिक संबंधों के प्रति पारंपरिक मान्यताओं एवं आधुनिक दृष्टिकोण के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है।
- कानूनी चुनौतियाँ: भारतीय LGBTQIA+ समुदाय समलैंगिक विवाह को प्रतिबंधित करने वाले मौजूदा कानूनों की संवैधानिकता को न्यायालय में चुनौती दे सकता है। इस प्रकार कानूनी चुनौतियाँ एक मिसाल बन सकती हैं जो आने वाले समय में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
- सहयोग: समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिये LGBTQIA+ समुदाय, सरकार, नागरिक समाज और धार्मिक नेताओं सहित सभी हितधारकों द्वारा सामूहिक रूप से ठोस प्रयास किये जाने आवश्यकता है।
- एकजुट होकर हम एक अधिक समावेशी समाज का निर्माण कर सकते हैं जहाँ हर किसी को अपनी पसंद के अनुसार प्रेम करने और शादी करने का अधिकार हो।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019) (a) अनुच्छेद 19 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017) |