सामाजिक न्याय
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- 18 Feb 2023
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:विशेष विवाह अधिनियम 1954, यूनाइटेड किंगडम का विवाह अधिनियम 1949, विरासत अधिकार, मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955। मेन्स के लिये:विशेष विवाह अधिनियम के मूल प्रावधान, विशेष विवाह अधिनियम से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
भारत में, धर्मनिरपेक्ष पर्सनल लॉ जिसे विशेष विवाह अधिनियम (SMA) 1954 के रूप में जाना जाता है, अंतर्धार्मिक युगलों को विवाह के लिये धार्मिक कानूनों का एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954
- परिचय:
- विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954 एक भारतीय कानून है जो विभिन्न धर्मों अथवा जातियों के लोगों के विवाह के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- यह नागरिक विवाह को नियंत्रित करता है जिसमे राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंज़ूरी एवं वरीयता प्रदान करता है।
- भारतीय प्रणाली, जिसमे नागरिक और धार्मिक दोनों तरह के विवाहों को मान्यता दी जाती है, ब्रिटेन के 1949 के विवाह अधिनियम के कानूनों के समान है।
- मूल प्रावधान:
- प्रयोज्यता:
- इस अधिनियम की प्रयोज्यता पूरे भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, सिखों, जैनियों और बौद्धों सहित सभी धर्मों के लोगों पर लागू है।
- विवाह की मान्यता:
- यह अधिनियम विवाहों के पंजीकरण का प्रावधान करता है, जो विवाह को कानूनी मान्यता देता है और विवाहित जोड़े को कई कानूनी लाभ और सुरक्षा जैसे कि विरासत का अधिकार, उत्तराधिकार संबंधी अधिकार और सामाजिक सुरक्षा लाभ, प्रदान करता है।
- यह बहुविवाह को प्रतिबंधित करता है, तथा विवाह को अमान्य घोषित करता है यदि विवाह के समय किसी भी पक्ष का पति या पत्नी जीवित था या यदि उनमें से कोई भी मानसिक विकार के कारण विवाह के लिये वैध सहमति देने में असमर्थ था।
- लिखित सूचना:
- अधिनियम की धारा 5 निर्दिष्ट करती है कि पक्षों को ज़िले के विवाह अधिकारी को लिखित सूचना देनी चाहिये तथा इस तरह की अधिसूचना की तारीख से ठीक पूर्व कम से कम 30 दिनों से कम से कम एक पक्ष ज़िले में रह रहा हो।
- अधिनियम की धारा 7 किसी भी व्यक्ति को सूचना के प्रकाशन की तारीख से 30 दिनों की समाप्ति से पूर्व विवाह पर आपत्ति जताने की अनुमति देती है।
- आयु सीमा:
- SMA के तहत विवाह करने की न्यूनतम आयु पुरुषों के लिये 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष है।
- प्रयोज्यता:
- पर्सनल लॉ से भिन्नता:
- मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 जैसे पर्सनल लॉ में पति या पत्नी को विवाह से पूर्व दूसरे के धर्म में परिवर्तित होने की आवश्यकता होती है।
- हालाँकि, SMA अपनी धार्मिक पहचान को छोड़े बिना या धर्म परिवर्तन का सहारा लिये बिना अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय जोड़ों के बीच विवाह को सक्षम बनाता है।
- हालाँकि, SMA के अनुसार, एक बार विवाह करने के पश्चात, व्यक्ति को विरासत के अधिकार के संदर्भ में परिवार से अलग मान लिया जाता है।
- हालाँकि, SMA अपनी धार्मिक पहचान को छोड़े बिना या धर्म परिवर्तन का सहारा लिये बिना अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय जोड़ों के बीच विवाह को सक्षम बनाता है।
- मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 जैसे पर्सनल लॉ में पति या पत्नी को विवाह से पूर्व दूसरे के धर्म में परिवर्तित होने की आवश्यकता होती है।
- SMA से संबंधित मुद्दे:
- विवाह पर आपत्तियाँ: विशेष विवाह अधिनियम के साथ मुख्य मुद्दों में से विवाह के खिलाफ उठाई जाने वाली आपत्तियों का प्रावधान है।
- इसका उपयोग अक्सर सहमति देने वाले युगलों को परेशान करने और उनके विवाह में देरी करने या विवाह होने से रोकने के लिये किया जा सकता है।
- जनवरी 2021 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जो युगल विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को रद्द करना चाहते हैं, वे विवाह करने के अपने निर्णय के 30 दिनों के अनिवार्य नोटिस को प्रकाशित नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं।
- गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: नोटिस प्रकाशित करने की आवश्यकता को गोपनीयता के उल्लंघन के रूप में भी देखा जा सकता है, क्योंकि यह युगल की व्यक्तिगत जानकारी और विवाह करने की उनकी योजनाओं का खुलासा कर सकता है।
- सामाजिक कलंक: अंतर-जाति या अंतर-धार्मिक विवाह अभी भी भारत के कई हिस्सों में व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किये जाते हैं, और जो युगल विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करना चाहते हैं, उन्हें अपने परिवारों और समुदायों से सामाजिक कलंक और भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- विवाह पर आपत्तियाँ: विशेष विवाह अधिनियम के साथ मुख्य मुद्दों में से विवाह के खिलाफ उठाई जाने वाली आपत्तियों का प्रावधान है।
आगे की राह
- प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना: सरकार इस कानून के तहत शादी करना आसान बनाने हेतु प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाने के लिये काम कर सकती है।
- चूँकि 30-दिन की नोटिस अवधि की आवश्यकता एक विवादास्पद मुद्दा रहा है क्योंकि इससे तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप या उत्पीड़न हो सकता है।
- सरकार इस आवश्यकता को हटाने या कुछ मामलों में इसे वैकल्पिक बनाने पर विचार कर सकती है।
- जागरूकता बढ़ाना: भारत में बहुत से लोग विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों से अवगत नहीं हैं या यह नहीं जानते हैं कि उनके पास इस कानून के तहत किसी अलग धर्म या जाति से शादी करने का विकल्प है।
- इस कानून और इसके लाभों के बारे में खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ जागरूकता का भाव है सरकार जागरूकता बढ़ाने हेतु काम कर सकती है।