भारत में वनों के प्रकार
परिचय
वन की परिभाषा:
- वर्तमान में ‘वन’ की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया हो।
- राज्यों को वनों की अपनी परिभाषा निर्धारित करने के लिये अधिकार दिया गया है।
- वर्ष 1996 से भूमि को वन के रूप में परिभाषित करने का विशेषाधिकार राज्य का रहा है और इसकी उत्पत्ति उच्चतम न्यायालय के आदेश, जिसे टी.एन. गोडावरमन थिरुमुल्कपाद बनाम भारतीय संघ (T.N. Godavarman Thirumulkpad vs the Union of India) निर्णय के नाम से जाना जाता है, से हुई है।
- इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘वन’ शब्द को इसके ‘शब्दकोश के अर्थ’ के अनुसार समझा जाना चाहिये।
- इसमें सभी वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त वन शामिल हैं, चाहे उन्हें आरक्षित, संरक्षित या अवर्गीकृत श्रेणी के रूप में रखा गया हो।
संवैधानिक प्रावधान:
- जंगल' या 'वन' (Forests) भारतीय संविधान की सातवीं अनूसूची में वर्णित 'समवर्ती सूची’ में सूचीबद्ध हैं।
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन और वन्यजीवों और पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया।
- संविधान के अनुच्छेद 51 क (जी) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं संवर्द्धन करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के अनुच्छेद 48क में यह कहा गया है कि राज्य, देश के पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्द्धन के साथ-साथ वन तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
कानून:
- वर्तमान में भारत में राष्ट्रीय वन नीति, 1988 लागू है जिसके केंद्र में पर्यावरण संतुलन एवं आजीविका है।
वानिकी रिपोर्ट:
भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2019 (ISFR, 2019) के अनुसार, देश में वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल 8,07,276 वर्ग किमी. है जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 24.56% है।
देश के 33% भौगोलिक क्षेत्र को वन और वृक्ष आच्छादित क्षेत्र के अंतर्गत रखने के लक्ष्य की परिकल्पना की गई है।
वनों का वर्गीकरण
प्रशासनिक आधार पर
आरक्षित वन (Reserved Forests) |
संरक्षित वन (Protected Forests) |
असुरक्षित वन (Unprotected Forests) |
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भारतीय संविधान के अनुसार वर्गीकरण
राज्य वन |
वाणिज्यिक वन |
निजी वन |
देश के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण वन क्षेत्र शामिल जो सरकार (राज्य/केंद्र) के पूर्ण नियंत्रण में हैं। |
स्थानीय निकायों (नगर निगमों, ग्राम पंचायतों, ज़िला बोर्डों आदि) के स्वामित्व और प्रशासन वाले वन क्षेत्र। |
निजी स्वामित्व् के तहत शामिल वन क्षेत्र । |
कुल वन क्षेत्र (TFA) का लगभग 94% हिस्सा आच्छादित। |
कुल वन क्षेत्र (TFA) का लगभग 5% हिस्सा आच्छादित। |
कुल वन क्षेत्र (TFA) का 1 % से थोड़ा अधिक हिस्सा आच्छादित। |
व्यावसायिकता के आधार पर
व्यापारिक (Merchantable) |
गैर-व्यापारिक (Non- Merchantable) |
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बनावट के आधार पर
शंकुधारी वन (Coniferous Forests) |
चौड़ी पत्ती वाले वन (Broad-Leaf Forests) |
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औसत वार्षिक वर्षा के आधार पर
भारत में वनों को विस्तृत रूप से औसत वार्षिक वर्षा के आधार पर पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
आर्द्र उष्णकटिबंधीय वन:
- क्षेत्र: इस प्रकार के वन पश्चिमी घाट, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के साथ दक्षिणी भारत में पाए जाते हैं।
- जलवायु : इस प्रकार के वन 200 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा और 22 डिग्री सेल्सियस से अधिक औसत वार्षिक तापमान वाले गर्म और आर्द्र क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- वृक्ष: इन वनों में 60 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाले वृक्ष पाए जाते हैं।
- इस प्रकार के वनों में वृक्षों से पत्तों के गिरने, फूल और फल लगने का कोई निश्चित समय नहीं है; ये वन वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं।
- इन वनों में पाई जाने वाली प्रजातियों में रोजवुड, महोगनी, ऐनी, इबोनी आदि शामिल हैं।
- यहाँ सामान्य तौर पाए जाने वाले वृक्षों में कटहल, सुपारी, जामुन, आम और होलक शामिल हैं।
अर्द्ध-सदाबहार वन :
- क्षेत्र: इस प्रकार के वन उस क्षेत्र की कम वर्षा वाले भागों में पाए जाते हैं जहाँ आर्द्र-सदाबहार वन पाए जाते हैं जैसे-पश्चिमी घाट, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा पूर्वी हिमालय।
- वृक्ष : इन वनों में आर्द्र सदाबहार तथा आर्द्र पर्णपाती वृक्षों का मिश्रण पाया जाता है।
- न्यून पर्वतारोहण गतिविधियाँ इन वनों को सदाबहार चरित्र प्रदान करती हैं।
- इन वनों की मुख्य प्रजातियाँ सफेद देवदार, होलॉक और कैल हैं।
शुष्क-सदाबहार वन:
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन उत्तर दिशा में शिवालिक पहाड़ियों और हिमालय की तलहटी में 1000 मी. की ऊँचाई तक पाए जाते हैं।
- ये दक्षिण में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- जलवायु : इस क्षेत्र में सामान्यतौर पर दीर्घकालीन ग्रीष्म ऋतु और शुष्क मानसून तथा भीषण ठंड पड़ती है।
- वृक्ष : यहाँ मुख्यतः सुगंधित फूलों के साथ कठोर पत्तों वाले सदाबहार वृक्ष हैं, साथ ही कुछ पर्णपाती वृक्ष भी पाए जाते हैं।
- यहाँ के वृक्ष पालिशदार (varnished) होते है।
- अनार, जैतून और ओलियंडर कुछ अधिक सामान्य हैं।
- यहाँ सामान्य तौर पाए जाने वाले वृक्षों में अनार, जैतून और ओलियंडर शामिल हैं।
उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन (मानसून वन)
नम पर्णपाती वन:
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन उत्तर-पूर्वी राज्यों के साथ-साथ हिमालय की तलहटी, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढलानों और ओडिशा में पाए जाते हैं।
- वर्षा : इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में अधिक पाए जाते है जहाँ 100-200 सेमी. के बीच वर्षा दर्ज की जाती है।
- वृक्ष : इसमें ऊँचे वृक्षों के साथ विस्तृत शाखाओं के आवरण पाए जाते हैं।
- इन वनों में कुछ ऊँचे वृक्ष शुष्क मौसम में अपने पत्ते गिरा देते हैं।
- सागौन, साल, शीशम, हुर्रा, महुआ, आँवला, सेमूल, कुसुम और चंदन आदि इन वनों की प्रमुख प्रजातियाँ हैं।
शुष्क पर्णपाती वन:
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन देश के पूरे उत्तरी भाग (उत्तर-पूर्व क्षेत्र को छोड़कर) में पाए जाते हैं।
- ये मध्य प्रदेश , गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी पाए जाते हैं।
- वर्षा : ये वन देश के विस्तृत क्षेत्रों को कवर करते हैं, जहाँ वर्षा की दर 70-100 सेमी. के बीच होती है।
- नमी वाले क्षेत्रों में आर्द्र पर्णपाती के लिये एक संक्रमणकाल है, जबकि शुष्क क्षेत्रों पर कांटेदार वन पाए जाते है।
- वृक्ष : शुष्क मौसम की शुरुआत में वृक्ष अपने पत्ते पूरी तरह से गिरा देते है और वन एक विशाल घास के मैदान की तरह दिखाई देता है जिसके चारों ओर नग्न पेड़ होते हैं।
- तेंदू, पलास, अमलतास, बेल, खैर, धावा (Axle-wood) आदि वृक्ष इन वनों में सामान्य तौर पर पाए जाते हैं।
कांटेदार वन
- वर्षा : ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेमी. से कम होती है।
- क्षेत्र: इस प्रकार के वन काली मिट्टी वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं जैसे-उत्तर, पश्चिम, मध्य और दक्षिण भारत।
- इसमें दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र शामिल हैं।
- वृक्ष: यहाँ के वृक्षों की ऊँचाई 10 मीटर से अधिक नहीं होती है और इसमें विभिन्न प्रकार की घास और झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इस क्षेत्र में आमतौर पर स्परेज, कापर और कैक्टस पाए जाते हैं।
- इन वनों में पौधे लगभग पूरे वर्ष पर्णरहित रहते हैं।
- इनमें पाई जाने वाली मुख्य प्रजातियाँ बबूल, कोक्कोस, बेर, खजूर, खैर, नीम, खेजड़ी और पलास इत्यादि हैं।
पर्वतीय वन
पर्वतीय आर्द्र समशीतोष्ण वन:
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन उत्तरी और दक्षिणी भारत में पाए जाते हैं।
- उत्तर भारत में यह नेपाल के पूर्वी क्षेत्रों से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 1800-3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के साथ 200 सेमी. की न्यूनतम वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- दक्षिण भारत में यह नीलगिरि पहाड़ियों के कुछ हिस्सों में तथा केरल के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- वृक्ष : उत्तरी क्षेत्र के वनों की तुलना में दक्षिणी क्षेत्र के वन सर्वाधिक घने हैं।
- इसका प्रमुख कारण यह है कि समय के साथ मूल वृक्षों की जगह यूकेलिप्टस जैसी तेजी से बढ़ने वाली प्रजातियों ने स्थान ले लिया है।
- रोडोडेंड्रोन, चंपा और विभिन्न प्रकार के ग्राउंड फ्लोरा यहाँ पाए जा सकते हैं।
पर्वतीय उपोष्णकटिबंधीय वन:
- जलवायु : ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वर्षा 100-200 सेमी. होती है और तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 22 डिग्री सेल्सियस के मध्य होता है।
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन उत्तर-पश्चिमी हिमालय (लद्दाख और कश्मीर को छोड़कर), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पाए जाते हैं।
- वृक्ष : चीड़ (pine) इस वन का मुख्य वृक्ष है इसके अतिरिक्त ओक, जामुन और रोडोडेंड्रोन भी इन वनों में पाए जाते हैं।
हिमालयी वन:
- हिमालयी आर्द्र वन:
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा बंगाल के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते है।
- ऊँचाई: ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते है जहाँ ऊँचाई 1000-2000 मीटर के मध्य होती है।
- वृक्ष : इन वनों में ओक, चेस्टनट, चीड़, साल, झाड़ियाँ और पौष्टिक घास आदि पाए जाते हैं।
- हिमालयी शुष्क शीतोष्ण:
- क्षेत्र : इस प्रकार के वन जम्मू-कश्मीर, चंबा, लाहौल और किन्नौर ज़िले (हिमाचल प्रदेश) तथा सिक्किम में पाए जाते हैं।
- वृक्ष : इन वनों में मुख्य रूप से शंकुधारी; देवदार, ओक, चिलगोजा, मेपल, जैतून, शहतूत और विलो आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
अल्पाइन और अर्द्ध-अल्पाइन वन:
- ऊँचाई: ये वन ऊँचाई वाले क्षेत्रों, अल्पाइन वनों और 2,500-4,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित चरागाह क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- अर्द्ध-अल्पाइन वन कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक 2900 से 3500 मीटर की ऊँचाई के मध्य विस्तृत हैं।
- वृक्ष : इन वनों में पश्चिमी हिमालय की वनस्पति में मुख्य रूप से जुनिफर, रोडोडेंड्रोन, विलो और काली किशमिश होती है।
- पूर्वी हिमालय की प्रमुख वनस्पतियों में लाल देवदार, काला जुनिफर, भूर्ज (Birch) और लार्च हैं।
तटीय/दलदली वन
- क्षेत्र: ये वन अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में महानदी, गोदावरी और कृष्णा डेल्टा हैं।
- वृक्ष : इनमें से कुछ वन घने और अभेद्य हैं। इन सदाबहार वनों में सीमित संख्या में ही पौधे पाए जाते हैं।
- उनकी जड़ें मुलायम ऊतक से बनी होती हैं ताकि पौधे पानी में साॅस ले सकें।
- इसमें मुख्य रूप से खोखले पाइन, मैंग्रोव खजूर, ताड़ और बुलेटवुड शामिल हैं।
- भारत में मैंग्रोव वन : भारत में मैंग्रोव वन 6,740 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत हैं जो विश्व के कुल मैंग्रोव वनों का 7% हिस्सा कवर करता है।
- ये वन तट रेखा को सुव्यवस्थित करते हैं और तटीय क्षेत्रों को कटाव या अपरदन से संरक्षण प्रदान करते हैं।
- गंगा डेल्टाई क्षेत्रों में सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा ज्वारीय वन है।