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डेली न्यूज़

  • 26 Aug, 2024
  • 87 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंतरिक्ष मिशनों का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड, IN-SPACe, अंतरिक्ष विभाग, ISRO

मेन्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, निजी क्षेत्र का महत्त्व, नीति में खामियाँ, अंतरिक्ष क्षेत्र से संबंधित FDI नीति में प्रमुख संशोधन

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा यूरोपीय अंतरिक्ष परामर्शदाता नोवास्पेस (Novaspace) के सहयोग से कराए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि ISRO के अंतरिक्ष मिशनों के परिणामस्वरूप मछुआरों, कृषि, फसल पूर्वानुमान, प्राकृतिक संसाधन नियोजन एवं आपदा निवारण के लिये सहायता प्रणालियों का विकास हुआ है और इसके अतिरिक्त लाखों लोगों के लिये रोज़गार के अवसरों का भी सृजन हुआ है।

ISRO के अंतरिक्ष कार्यक्रमों और अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश से समाज को किस प्रकार लाभ हुआ है?

  • रोज़गार सृजन: ISRO ने वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों को प्रत्यक्ष रूप से नौकरियाँ उपलब्ध कराते हुए अनेक रोज़गार सृजित किये हैं तथा उपग्रह निर्माण एवं डेटा विश्लेषण जैसे संबंधित उद्योगों में अप्रत्यक्ष रूप से अवसर उत्पन्न किये हैं।
  • अन्य आर्थिक लाभ: ISRO के अनुमान के अनुसार, अंतरिक्ष मिशनों में निवेश करने से व्यय की गई राशि का लगभग 2.54 गुना लाभ प्राप्त हुआ है।
    • नोवास्पेस की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2014 और 2024 के बीच भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये 60 बिलियन अमरीकी डॉलर उत्पन्न किये हैं, 4.7 मिलियन रोज़गार उत्पन्न किये और कर राजस्व में 24 बिलियन अमरीकी डॉलर का योगदान दिया है।
    • ISRO के उपग्रह संचार, मौसम पूर्वानुमान एवं नेविगेशन में सहायता प्रदान करते हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों को लाभ मिलता है और आर्थिक उत्पादकता बढ़ती है।
  • कृषि विकास: ISRO के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, जैसे रिसोर्ससैट और कार्टोसैट फसल स्वास्थ्य, मृदा की नमी तथा भूमि उपयोग की निगरानी करके कृषि विकास को बढ़ावा देते हैं, जिससे किसानों को उचित निर्णय लेने एवं उत्पादकता में सुधार करने में सहायता मिलती है।
  • आपदा प्रबंधन और संसाधन नियोजन: उपग्रह आपदा प्रबंधन हेतु  महत्त्वपूर्ण डेटा प्रदान करते हैं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं के लिये समय पर प्रतिक्रिया संभव हो पाती है। वे प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी, ​​सतत् प्रबंधन और कृषि नियोजन में भी सहायता करते हैं।
    • ISRO ने प्रतिदिन लगभग 8 लाख मछुआरों और 1.4 अरब भारतीयों को उपग्रह आधारित मौसम पूर्वानुमान का लाभ दिलाने में सहायता की है।
  • शहरी नियोजन और बुनियादी अवसरंचना का विकास: उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली सैटेलाइट इमेजरी शहरी मानचित्रण, यातायात प्रबंधन और बुनियादी अवसरंचना की निगरानी में सहायता करती है। यह डेटा शहरों को भूमि उपयोग को अनुकूलित करने और सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाने में सहायता करता है, जिससे सतत् शहरी विकास में योगदान मिलता है।
  • युवाओं को प्रेरित करना और शिक्षा: चंद्रयान और मंगलयान जैसी ISRO की उपलब्धियाँ छात्रों को प्रेरित करती हैं तथा STEM क्षेत्रों में कॅरियर को बढ़ावा देती हैं। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबंधित शैक्षिक पहल विज्ञान और प्रौद्योगिकी में रुचि को और बढ़ाती हैं।
  • चंद्र अन्वेषण और वैज्ञानिक उन्नति: चंद्रयान मिशन ने चंद्र अन्वेषण को आगे बढ़ाया और अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की क्षमताओं को प्रदर्शित किया, राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा दिया तथा वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण प्रयासों में योगदान दिया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सॉफ्ट पावर: 300 से अधिक विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में ISRO की सफलता ने इसे वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी संस्था के रूप में स्थापित कर दिया है, जिससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और सॉफ्ट पावर में वृद्धि हुई है तथा वैश्विक सहयोग को बढ़ावा मिला है।
    • मंगलयान जैसे अंतरिक्ष मिशनों के लिये ISRO का कम लागत वाला दृष्टिकोण भारत को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये एक आकर्षक भागीदार बनाता है
    • अंतरिक्ष से संबंधित स्टार्टअप की वृद्धि नवाचार को बढ़ावा देती है और आर्थिक विकास में योगदान देती है

अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • वर्ष 2024 तक भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य लगभग 6,700 करोड़ रुपए (8.4 बिलियन अमरीकी डॉलर) हो गया है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2%-3% का योगदान देता है, जिसके वर्ष 2025 तक 6% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि (CAGR) के साथ 13 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • ISRO के नए अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2014 से 2023 के दौरान भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र ने 60 बिलियन अमरीकी डॉलर का सकल मूल्य संवर्द्धन किया है, जो आगामी 10 वर्षों में 89 बिलियन अमरीकी डॉलर से लेकर 131 बिलियन अमरीकी डॉलर तक जा सकता है।
    • भारत का लक्ष्य अगले दशक तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 10% हिस्सेदारी प्राप्त करना है।
  • ISRO विश्व की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है और इसके लॉन्च मिशनों की सफलता दर बहुत अधिक है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका की NASA, चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (CNSA), यूरोपीयन स्पेस एजेंसी (ESA), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) और रसियन फेडरल स्पेस एजेंसी (Roscosmos) अन्य पाँच प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियाँ हैं।
  • भारत में 400 से अधिक निजी अंतरिक्ष कंपनियाँ हैं। भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की स्थापना के साथ वर्ष 2020 में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप की संख्या 54 से बढ़कर वर्तमान में 200 से अधिक हो गई

अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये संशोधित FDI नीति

  • परिचय
  • अंतरिक्ष क्षेत्र के लिये FDI नीति में संशोधन:
    • 100% FDI की अनुमति: हाल ही में किये गए संशोधन के बाद अंतरिक्ष क्षेत्र में 100% FDI की अनुमति है, जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष कंपनियों के लिये संभावित निवेशकों को आकर्षित करना है।
    • उदारीकृत प्रवेश मार्ग: विभिन्न अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये प्रवेश मार्ग इस प्रकार हैं:
      • स्वचालित मार्ग के तहत 74% तक: उपग्रह-विनिर्माण और संचालन, उपग्रह डेटा उत्पाद, ग्राउंड सेगमेंट और यूज़र सेगमेंट।
        • 74% से अधिक पर सरकारी मार्ग लागू होता है।
      • स्वचालित मार्ग के तहत 49% तक: लॉन्च वाहन, संबंधित सिस्टम या सब-सिस्टम, स्पेसपोर्ट का निर्माण।
        • 49% से अधिक पर सरकारी मार्ग लागू होता है।
      • स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक: उपग्रहों, ग्राउंड सेगमेंट और उपयोगकर्त्ता सेगमेंट के लिये घटकों तथा प्रणालियों/उप-प्रणालियों का विनिर्माण।

भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 क्या है?

  • ISRO की भूमिका में बदलाव: भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023, पारंपरिक रूप से ISRO द्वारा प्रबंधित अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिये 4 प्रमुख संस्थाओं की स्थापना करती है:
    • ISRO को नियमित कार्यों से हटकर अनुसंधान और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने, अंतरिक्ष अवसंरचना, परिवहन, अनुप्रयोग, क्षमता निर्माण एवं मानव अंतरिक्ष उड़ान में भारत के नेतृत्व को बनाए रखने के लिये उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का विकास करने का निर्देश दिया गया है।
      • ISRO ने वर्ष 2034 तक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% से बढ़ाकर 10% करने के अपने दृष्टिकोण की घोषणा की है।
    • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (InSPACe): अंतरिक्ष गतिविधियों को अधिकृत करने और उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सिंगल विंडो एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL): इसे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों और प्लेटफॉर्मों का व्यावसायीकरण करने, अंतरिक्ष घटकों का निर्माण, पट्टे पर देने या खरीद करने तथा वाणिज्यिक सिद्धांतों पर अंतरिक्ष-आधारित आवश्यकताओं की सेवा करने का काम सौंपा गया है।
    • अंतरिक्ष विभाग: नीतियों को लागू करता है और सुरक्षित अंतरिक्ष संचालन सुनिश्चित करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का समन्वय करता है।
  • निजी भागीदारी को प्रोत्साहन: निजी कंपनियों, जिन्हें गैर-सरकारी संस्थाएँ कहा जाता है, को संपूर्ण अंतरिक्ष गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति दी गई, जिसमें उपग्रहों का प्रक्षेपण और संचालन, रॉकेट विकसित करना, स्पेसपोर्ट्स का निर्माण करना तथा घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संचार, सुदूर संवेदन व नेविगेशन जैसी सेवाएँ प्रदान करना शामिल है।

भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रमुख विकास

  • हाल के प्रमुख सफल मिशन:
    • आदित्य L1 
    • चंद्रयान 3

    • मंगल ऑर्बिटर मिशन (मंगलयान)

  • प्रक्षेपण वाहनों में प्रगति:

  • अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के लिये मिशन:

    • TeLEOS-2 (2023): सिंगापुर का पृथ्वी अवलोकन उपग्रह

    • PSLV-C51 (2021): ब्राजील के अमेजोनिया-1 उपग्रह और 18 छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया गया।
  • अन्य प्रमुख घटनाक्रम:

भारत अर्थव्यवस्था में अंतरिक्ष क्षेत्र की हिस्सेदारी कैसे बढ़ा सकता है?

  • कौशल विकास: नवोन्मेषी अंतरिक्ष परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए उच्च कुशल कार्यबल तैयार करने हेतु अंतरिक्ष-संबंधी शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना आवश्यक है।
    • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेशन केंद्रों की स्थापना से प्रतिभा को पोषित करने और उन्नत अनुसंधान को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: अंतरिक्ष प्रक्षेपण सुविधाओं और अनुसंधान केंद्रों का उन्नयन यह सुनिश्चित करता है कि भारत के पास अधिक महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष अभियानों के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा है।
    • विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में वर्चुअल लॉन्च कंट्रोल सेंटर (Virtual Launch Control Center- VLCC) का विकास सही दिशा में उठाया गया एक अच्छा कदम है, जो परिचालन क्षमताओं को बढ़ाएगा।
  • सरकार-उद्योग के बीच सहयोग: सरकारी एजेंसियों और निजी उद्यमों के बीच साझेदारी को सुदृढ़ करने से दोनों क्षेत्रों की क्षमता का लाभ उठाया जा सकता है। सहयोगात्मक प्रयास अंतरिक्ष अन्वेषण तथा प्रौद्योगिकी में प्रगति को गति दे सकते हैं, नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं एवं क्षमताओं का विस्तार कर सकते हैं।
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना: स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास को प्रोत्साहित करने से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा तथा अंतरिक्ष हार्डवेयर के लिये बाहरी स्रोतों पर निर्भरता कम होगी। स्वदेशी अनुसंधान और विनिर्माण में निवेश करने से भारत की उन्नत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की डिज़ाइन एवं उत्पादन करने की क्षमता बढ़ेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में वृद्धि के प्रमुख चालक के रूप में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। भारत इस क्षेत्र में वैश्विक नेता बनने के लिये अपनी क्षमता का लाभ कैसे उठा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान

  1. को मंगल ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है। 
  2. के कारण अमेरिका के बाद मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला भारत दूसरा देश बना
  3. ने भारत को अपने अंतरिक्ष यान को अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की परिक्रमा करने में सफल होने वाला एकमात्र देश बना दिया।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a)केवल 1
(b)केवल 2 और 3
(c)केवल 1 और 3
(d)1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. भारत का अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की क्या योजना है और इससे हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को क्या लाभ होगा? (2019)

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस तकनीक के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की? (2016)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

दोहरे उपयोग वाली रक्षा प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी, SCOMET आइटम, स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान (SIPRI), यूरोपीय यूनियन (EU), ग्लोबल पोजिशनिंग सैटेलाइट्स, वासेनार अरेंजमेंट (WA), परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG), परमाणु अप्रसार संधि, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR), राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण सूची, रासायनिक हथियार कन्वेंशन (CWC), जैविक और विषाक्त हथियार सम्मेलन (BWC)

मेन्स के लिये:

दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों के व्यापार तथा  निर्यात से संबंधित भारत की स्थिति और इसे राष्ट्रीय हितों के साथ संतुलित करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका (US) सरकार के अधिकारी भारतीय कंपनियों और निर्यातकों को रूस को दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकी की आपूर्ति करने से रोकने के लिये जागरूक कर रहे हैं।

  • रक्षा उपकरणों में उपयोग किये जा सकने वाले रसायनों, वैमानिकी भागों और घटकों के निर्यात पर पश्चिमी प्रतिबंध लग सकते हैं।

दोहरे उपयोग वाली वस्तुएँ/प्रौद्योगिकियाँ क्या हैं?

  • दोहरे उपयोग वाले सामान के बारे में:
    • दोहरे उपयोग वाली वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं, जिनका उपयोग नागरिक और सैन्य दोनों के लिये किया जा सकता है।
    • दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं और प्रौद्योगिकी के उदाहरणों में ग्लोबल पोजिशनिंग सैटेलाइट्स, मिसाइल, परमाणु प्रौद्योगिकी, रासायनिक और जैविक उपकरण, रात्रि दृष्टि प्रौद्योगिकी, थर्मल इमेजिंग, ड्रोन आदि शामिल हैं।
  • दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों के उदाहरण:
    • हाइपरसोनिक्स: हाइपरसोनिक सिस्टम ध्वनि की गति से 5 गुना या उससे अधिक गति से उड़ते हैं। इनका उपयोग कम लागत वाले उपग्रह प्रक्षेपणों के लिये और उपग्रहों के विफल होने पर बैकअप के रूप में किया जा सकता है
    • एकीकृत नेटवर्क सिस्टम-ऑफ-सिस्टम्स: यह सरकारों को कई विविध मिशन प्रणालियों को बेहतर ढंग से एकीकृत करने और पूरी तरह से नेटवर्कयुक्त कमांड, नियंत्रण और संचार प्रदान करने की अनुमति देता है जो सक्षम, लचीला तथा सुरक्षित है।
    • माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स: प्रत्येक सैन्य और वाणिज्यिक प्रणाली व्यक्तिगत कंप्यूटर, सेल फोन एवं रक्षा उपकरणों के निर्माण के लिये माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स पर निर्भर करती है।
  • दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं/प्रौद्योगिकियों से संबंधित निर्यात नियंत्रण प्रावधान: उनके व्यापार और निर्यात को बहुपक्षीय दोहरे उपयोग वाले निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं द्वारा विनियमित किया जाता है।
    • वासेनार व्यवस्था (WA): इसका उद्देश्य पारंपरिक हथियारों और दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं एवं प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण में पारदर्शिता व अधिक ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता में योगदान करना है।
    • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG): NSG परमाणु ईंधन/प्रौद्योगिकी आपूर्तिकर्त्ता देशों का एक समूह है, जो परमाणु हथियारों के अप्रसार में योगदान करता है।
    • ऑस्ट्रेलिया ग्रुप: यह देशों का एक अनौपचारिक मंच है, जिसका उद्देश्य निर्यात नियंत्रणों के सामंजस्य के माध्यम से यह सुनिश्चित करना है कि निर्यात द्वारा रासायनिक या जैविक आयुध के विकास में योगदान न हो।
    • मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR): MTCR 35 देशों के बीच एक अनौपचारिक और स्वैच्छिक साझेदारी है, जिसका उद्देश्य 300 किलोमीटर से अधिक दूरी तक 500 किलोग्राम से अधिक पेलोड ले जाने में सक्षम मिसाइल एवं अनमैन्ड एरियल व्हीकल प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना है।
      • भारत को वर्ष 2016 में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में शामिल किया गया था।
    • CWC तथा BWC: भारत निरस्त्रीकरण और अप्रसार पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय अर्थात् रासायनिक हथियार कन्वेंशन (CWC) तथा जैविक और विषाक्त हथियार संधि (BWC) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प, 1540: संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से उन वस्तुओं/रसायनों के निर्यात को नियंत्रित करने की अपेक्षा करता है, जो मानवता और वैश्विक शांति के उद्देश्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

रूस के संबंध में दोहरे उपयोग वाली रक्षा प्रौद्योगिकी में प्रमुख घटनाक्रम क्या हैं?

  • प्रतिबंधों का डर: भारतीय कंपनियों को काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरिज़ थ्रू सेंक्शंस एक्ट (CAATSA) के तहत अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों का सामना करने का खतरा है।
  • वित्तीय पहुँच को सीमित करना: अमेरिकी ट्रेज़री अधिकारियों ने भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों को सलाह दी है कि रूस के सैन्य-औद्योगिक बेस के साथ व्यापार करने से अमेरिकी वित्तीय प्रणाली तक उनकी पहुँच खतरे में पड़ सकती है। 
  • दोहरे उपयोग वाले निर्यात पर भारत की स्थिति: अमेरिका द्वारा अभिनिर्धारित की गई वस्तुएँ विशेष रसायन, जीव, सामग्री, उपकरण और प्रौद्योगिकियाँ (SCOMET) वस्तुओं की श्रेणी में नहीं आते हैं, जिसके व्यापार के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
    • भारत में दोहरे उपयोग वाले सामान SCOMET सूची के अंतर्गत वर्गीकृत किये गए हैं।
  • भारत की भूमिका और अमेरिकी चिंताएँ: अमेरिका का मानना ​​है कि कुछ SCOMET वस्तुएँ रूसी रक्षा विनिर्माण प्रणाली में प्रवेश कर रही हैं।
    • वर्ष 2023 में रूस को भारत का निर्यात 40% बढ़कर 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया। इंजीनियरिंग वस्तुओं ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, निर्यात वर्ष 2022 में 680 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023 में 1.32 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • चीन की भूमिका और अमेरिका की  चिंताएँ: अमेरिका ने कहा कि चीन मशीन टूल्स, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और नाइट्रोसेल्यूलोज का शीर्ष आपूर्तिकर्त्ता है, जो युद्ध सामग्री एवं रॉकेट प्रणोदक के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अमेरिका ने 300 से अधिक कंपनियों को काली सूची में डाल दिया है तथा दावा किया है कि चीन रूस को प्रमुख दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।
    • ईरान ने रूस को गोला-बारूद, तोप के गोले और ड्रोन की आपूर्ति की है।

नोट:

भारत की सामरिक व्यापार नियंत्रण प्रणाली क्या है?

निष्कर्ष

दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं के निर्यात नियंत्रण को राष्ट्रीय हितों के साथ संतुलित करना भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय नियमों का पालन करना और प्रतिबंधों से बचना आवश्यक है, विशेष रूप से रूस से जुड़े संवेदनशील भू-राजनीतिक संदर्भों मेंभारत को अपने आर्थिक हितों की रक्षा भी करनी चाहिये तथा सामरिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिये। निगरानी और उद्योग जागरूकता को मज़बूत करना यह सुनिश्चित करता है कि निर्यात नीतियाँ अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों, जिससे नवाचार और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को बढ़ावा मिले।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. दोहरे उपयोग वाली वस्तुएँ और प्रौद्योगिकियाँ क्या हैं? दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं तथा प्रौद्योगिकियों के अप्रसार में भारत की राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही मेंयूएसए ने "ऑस्ट्रेलिया समूह" और "वासेनार व्यवस्था" नामक बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत की सदस्यता का समर्थन करने का निर्णय लिया। उनके बीच क्या अंतर है?

  1. ऑस्ट्रेलिया समूह एक अनौपचारिक व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य निर्यात करने वाले देशों को रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रसार में सहायता करने के जोखिम को कम करने की अनुमति देना है, जबकि वासेनार अरेंजमेंट OECD के तहत एक समान उद्देश्य रखने वाला एक औपचारिक समूह है।
  2. ऑस्ट्रेलिया समूह में मुख्य रूप से एशियाई, अफ्रीकी और उत्तरी अमेरिकी देश शामिल हैं, जबकि वासेनार अरेंजमेंट के सदस्य देश मुख्य रूप से यूरोपीय संघ तथा अमेरिकी महाद्वीपों से हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2008)

  1. परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह के 24 देश सदस्य हैं।
  2. भारत परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह का सदस्य है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. किसी देश के 'नाभिकीय पूर्तिकर्त्ता समूह' के सदस्य बनने का/के क्या परिणाम है/हैं? (2018)

  1. इसकी पहुँच नवीनतम और सबसे कुशल परमाणु प्रौद्योगिकियों तक हो जाएगी।
  2. यह स्वमेव "नाभिकीय आयुध अप्रसार संधि" (एन.पी.टी.) का सदस्य बन जाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (a)


कृषि

ई-प्रौद्योगिकी द्वारा फसल डेटा संग्रह में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल फसल सर्वेक्षण और डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES), रिमोट सेंसिंग, फसल मानचित्र, फसल सर्वेक्षण, कृषि क्षेत्र, जियोटैगिंग, GPS, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय, डिजिटल कौशल, NGO, विश्व कृषि जनगणना (WCA), खाद्य और कृषि संगठन (FAO)

मेन्स के लिये:

नीति निर्माण में अद्यतन फसल अनुमान डेटा का महत्त्व और आवश्यकता।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्यों से कृषि उत्पादन अनुमानों में सुधार और डेटा सटीकता बढ़ाने के लिये डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES), डिजिटल फसल सर्वेक्षण और संशोधित FASAL कार्यक्रम को तेज़ी से अपनाने तथा इसे लागू करने का आग्रह किया।

  • इसका उद्देश्य कृषि सांख्यिकी की सटीकता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता को बढ़ाना है, जिससे नीति निर्माण, व्यापार एवं कृषि नियोजन में मदद मिलेगी।

फसल डेटा संग्रह को बेहतर बनाने के लिये शुरू की गईं नई पहल क्या हैं?

  • डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (DGCES): यह एक राष्ट्रव्यापी पहल है, जो फसल की पैदावार का आकलन करने और भारत में कृषि पद्धतियों को बेहतर बनाने के लिये एक मोबाइल ऐप तथा वेब पोर्टल पर आधारित है।
    • इसका उद्देश्य देशभर में सभी प्रमुख फसलों के लिये वैज्ञानिक रूप से विकसित किये गए फसल कटाई अनुप्रयोगों के आधार पर उपज की गणना करना है। 
    • इसमें पारदर्शिता और सटीकता बढ़ाने के लिये GPS-सक्षम फोटो कैप्चर, स्वचालित प्लॉट चयन तथा जियो-रेफरेंसिंग जैसी सुविधाएँ शामिल हैं।
  • डिजिटल फसल सर्वेक्षण: यह एक प्रौद्योगिकी-संचालित पहल है, जिसे डिजिटल माध्यमों से विस्तृत और सटीक फसल डेटा प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • इसका उद्देश्य फसल क्षेत्र अनुमान और अन्य संबंधित कृषि सांख्यिकी की सटीकता को बढ़ाना है।
    • मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:
      • जियोटैग्ड डेटा: फसल के भू-खंडों के सटीक स्थानों को रिकॉर्ड करने के लिये जियोटैगिंग का उपयोग करता है, जिससे सटीक क्षेत्र माप सुनिश्चित होता है। 
      • डिजिटल दस्तावेज़ीकरण: डेटा संग्रह के लिये डिजिटल टूल और प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है, जिससे मैन्युअल तरीकों पर निर्भरता कम होती है। 
      • रियल-टाइम अपडेट: फसल क्षेत्रों के संदर्भ में लगभग रियल-टाइम सुचना/जानकारी प्रदान करता है, जिससे समय पर और सटीक आकलन संभव हो पाता है।
  • संशोधित फसल कार्यक्रम: अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान और भूमि आधारित टिप्पणियों (FASAL) का उपयोग करके कृषि उत्पादन का पूर्वानुमान लगाना, प्रमुख फसलों के लिये सटीक फसल मानचित्र और क्षेत्र अनुमान तैयार करने हेतु सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
    • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC) नियमित रूप से प्रमुख फसलों के लिये ज़िला/राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर फसल पूर्वानुमान तैयार करता है।
  • कृषि सांख्यिकी के लिये एकीकृत पोर्टल (UPAg पोर्टल): UPAg पोर्टल फसल उत्पादन, बाज़ार के रुझान, मूल्य निर्धारण और अन्य महत्त्वपूर्ण कृषि आँकड़ों पर लगभग वास्तविक समय की जानकारी के लिये एक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
    • यह विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों के परस्पर सत्यापन की अनुमति देता है, जिससे सुदृढ़ कृषि सांख्यिकी सुनिश्चित होती है।
  • उपज पूर्वानुमान मॉडल: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय उपज पूर्वानुमान मॉडल विकसित करने के लिये  अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान सहित विभिन्न संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है।
  • पर्यवेक्षण: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय  राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा फसल कटाई प्रयोगों के पर्यवेक्षण को बढ़ाने के लिये सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के साथ मिलकर कार्य कर रहा है।

फसल संबंधी आँकड़े एकत्र करने हेतु नए तंत्र की क्या आवश्यकता है?

  • वास्तविक समय निगरानी: पारंपरिक विधियाँ  फसल की स्थिति और उत्पादन अनुमान के विषय में समय पर अद्यतन जानकारी उपलब्ध नहीं करा पातीं।  
    • अप्रत्याशित मौसम की स्थिति या कीट प्रकोप की स्थिति में समय पर हस्तक्षेप और सटीक आकलन के लिये वास्तविक समय का डेटा महत्त्वपूर्ण होता है।
  • उन्नत प्रौद्योगिकियों का एकीकरण: आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकरण का अभाव वर्तमान डेटा संग्रहण विधियों की प्रभावशीलता को सीमित करता है।
  • डेटा विश्वसनीयता में वृद्धि: रिमोट सेंसिंग का उपयोग करने वाली पहल और कार्यक्रम सटीक फसल मानचित्र बना सकते हैं, जिससे मैन्युअल डेटा संग्रह पर निर्भरता कम हो सकती है तथा डेटा की स्थिरता बढ़ सकती है।
  • नीति-निर्माण में सुविधा: डिजिटल फसल सर्वेक्षण जैसी नई पहलों से प्राप्त सटीक और समय पर आँकड़े नीति-निर्माताओं को संसाधन आवंटन तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्य सुरक्षा आदि जैसे सहायक उपायों के विषय में उचित निर्णय लेने में मदद करते हैं।
  • जलवायु प्रभावों पर ध्यान देना: जलवायु परिवर्तन से फसल उत्पादन प्रभावित होता है और पारंपरिक प्रणालियाँ बदलती परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में विफल हो सकती हैं।
    • सैटेलाइट इमेजरी जैसी उन्नत तकनीकें खेती के तरीकों को समायोजित करने हेतु बेहतर डेटा प्रदान कर सकती हैं, जैसे कि टिड्डियों के हमले के मामले में पूर्व चेतावनी। 
  • बड़े पैमाने पर डेटा को संभालना: भारत में डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग करके विशाल और विविध कृषि क्षेत्रों में फसल उत्पादन का अनुमान लगाना आसान हो सकता है।

कृषि जनगणना और पशुधन जनगणना

  • कृषि जनगणना: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय कृषि क्षेत्र पर महत्त्वपूर्ण आँकड़े एकत्र करने के लिये कृषि जनगणना आयोजित करता है।
    • यह जनगणना संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा निर्धारित दशकीय विश्व कृषि जनगणना (WCA) दिशानिर्देशों का पालन करती है। डेटा को विभिन्न वर्गों (सीमांत, लघु, अर्ध-मध्यम, मध्यम एवं बड़े) और अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों सहित सामाजिक समूहों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
    • कृषि जनगणना पाँच वर्ष में एक बार की जाती है। 
      • वर्ष 1970-71 से अब तक देश में दस कृषि जनगणनाएँ की जा चुकी हैं और संदर्भ वर्ष 2021-22 के साथ वर्तमान कृषि जनगणना इस शृंखला की ग्यारहवीं जनगणना है।
  • पशुधन जनगणना: मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय प्रत्येक 5 वर्ष में एक बार पशुधन जनगणना करता है। 
    • पशुधन जनगणना में सभी पालतू पशु शामिल होते हैं। 
    • यह वर्ष 1919-20 से समय-समय पर आयोजित की जाती रही है। अब तक ऐसी 20 जनगणनाएँ की जा चुकी हैं, जिनमें से 20वीं जनगणना वर्ष 2019 में की गई थी।

कृषि डेटा संग्रहण के लिये नई तकनीकी पहलों को अपनाने में क्या चुनौतियाँ शामिल हैं?

  • डिजिटल अवसंरचना का अभाव: सरकारी अधिकारियों के डेटा भंडारण और डेटा प्रसंस्करण कौशल के लिये क्लाउड जैसे अपर्याप्त अवसंरचना कृषि में डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग में बाधा डालती है।
  • प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच: छोटे किसानों के पास अक्सर प्रौद्योगिकी और आवश्यक डिजिटल कौशल तक पहुँच की कमी होती है, जो डिजिटल उपकरणों को अपनाने में बाधा डालती है एवं डेटा उत्पादन को सीमित करती है।
  • डेटा सटीकता और विश्वसनीयता: नई प्रौद्योगिकियों के माध्यम से एकत्र किये गए डेटा की सटीकता और विश्वसनीयता के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं।
  • गलत डेटा संग्रह उपकरण खराब निर्णय लेने और डिजिटल प्रणालियों में विश्वास को कम करने का कारण बन सकते हैं।
  • मौजूदा सिस्टम के साथ एकीकरण: नए डेटा संग्रह उपकरण पारंपरिक सिस्टम के साथ सहजता से एकीकृत नहीं हो सकते हैं, जिससे डेटा प्रबंधन संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। यह अपनाने की प्रक्रिया को जटिल बना सकता है और अक्षमताओं को जन्म दे सकता है। 
    • पारंपरिक सिस्टम में फसल डेटा क्षेत्रीय भाषा और स्थानीय लिपि में होता है। सार्वभौमिक पहुँच के लिये उन्हें कई भाषाओं में परिवर्तित करना तथा उन्हें क्लाउड स्टोरेज पर सही तरीके से अपलोड करना एक थकाऊ प्रक्रिया है।

आगे की राह

  • तकनीकी कौशल में सुधार करना: प्रशिक्षण देने के लिये कृषि विस्तार सेवाओं जैसे कि कृषि विज्ञान केंद्र (Krishi Vigyan Kendras- KVK), गैर सरकारी संगठनों और तकनीकी कंपनियों के साथ साझेदारी करना। कार्यशालाएँ, ऑनलाइन पाठ्यक्रम और व्यावहारिक प्रदर्शन प्रदान करें।
  • मौजूदा प्रणालियों के साथ एकीकरण को सुगम बनाना: सुनिश्चित करना कि नई प्रौद्योगिकियाँ उपयोगकर्ताओं के लिये निर्बाध अनुभव हेतु मौजूदा कृषि प्रबंधन प्रणालियों के साथ संगत हों।
  • नियमित ऑडिट और सत्यापन: विसंगतियों की पहचान करने और इसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये एकत्रित आँकड़ों की आवधिक ऑडिट तथा क्रॉस-चेक आयोजित करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: अर्थव्यवस्था में वास्तविक समय फसल डेटा आकलन की क्या आवश्यकता है? फसल आकलन के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों को अपनाने में मौजूद चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित में से किस/किन पद्धति/यों को पारितंत्र-अनुकूली कृषि माना जाता है? (2020)

  1. फसल विविधीकरण
  2. शिंब आधिक्य (Legume Intensification)
  3. टेंसियोमीटर का प्रयोग
  4. ऊर्ध्वाधर कृषि 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 3
(c) केवल 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का उद्देश्य देश के चिह्नित ज़िलों में स्थायी तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से कुछ फसलों के उत्पादन में वृद्धि करना है। वे फसलें कौन-सी हैं? (2010)

(a) केवल चावल और गेहूँ
(b) केवल चावल, गेहूँ और दालें
(c) केवल चावल, गेहूँ, दालें और तिलहन
(d) चावल, गेहूँ, दालें, तिलहन और सब्जियाँ

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021)

प्रश्न. क्या कारण है कि भारत में हरित क्रांति पूर्वी प्रदेश में उर्वरक मृदा और जल की बढ़िया उपलब्धता के बावजूद, असलियत में उससे बच कर आगे निकल निकल गई? (2014)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वर्ष 2030 तक भारत का लक्ष्य अफ्रीका के साथ व्यापार दोगुना करना

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय उद्योग परिसंघ, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, PM गति शक्ति, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र, विश्व व्यापार संगठन, अफ्रीकी संघ, भूमध्य सागर

मेन्स के लिये:

भारत-अफ्रीका व्यापार साझेदारी: उपलब्धियाँ, चुनौतियाँ, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नई दिल्ली में भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) द्वारा आयोजित 19वें भारत-अफ्रीका व्यापार सम्मेलन में भारत ने 2030 तक अफ्रीकी देशों को अपने निर्यात को दोगुना करके 200 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाने की महत्त्वाकांक्षी योजना का अनावरण किया है।

  • इस रणनीतिक प्रयास का उद्देश्य आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करना तथा पारस्परिक चुनौतियों और अवसरों का समाधान करना है।

भारत अफ्रीकी देशों को अपना निर्यात कैसे दोगुना करेगा?

  • उच्च विकास वाले क्षेत्रों को लक्ष्य बनाना:
    • कृषि और कृषि उत्पाद: भारतीय कंपनियाँ उन्नत बीज प्रौद्योगिकियों, कृषि प्रसंस्करण विधियों को साझा करके और इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना करके अफ्रीका की खाद्य उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद करने के लिये तैयार हैं।
      • भारत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार करके अफ्रीका की खाद्य सुरक्षा को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है, जो वर्ष 2022 तक 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
    • फार्मास्यूटिकल्स: वर्ष 2023 में अफ्रीका को फार्मास्यूटिकल निर्यात पहले से ही 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच चुका है, इसमें वृद्धि की महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं, क्योंकि भारत सस्ती दवाएँ और स्वास्थ्य देखभाल समाधान प्रदान कर सकता है।
    • ऑटोमोबाइल: भारत का लक्ष्य अफ्रीका में वाहनों, विशेषकर दोपहिया और किफायती कारों की बढ़ती मांग का लाभ उठाकर अपने ऑटोमोबाइल निर्यात का विस्तार करना है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत और अफ्रीका नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी होने की अनूठी स्थिति में हैं। "एक विश्व, एक ग्रिड" की परिकल्पना का उद्देश्य भूमि और जल के ऊपर ऊर्जा ग्रिड को जोड़ना है।
      • सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ऊर्जा-कुशल समाधानों में भारत की विशेषज्ञता ने अफ्रीका में संधारणीय ऊर्जा स्रोतों की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • 20 से अधिक अफ्रीकी देश अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में भाग ले रहे हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • रसद और परिवहन: रसद और परिवहन बुनियादी ढाँचे में सुधार को भारत तथा अफ्रीकी देशों के बीच सुचारू व्यापार प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • भारत कुशल लॉजिस्टिक्स अवसंरचना और मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी के विकास में सहायता के लिये अपने पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान और यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस पोर्टल (Unified Logistics Interface Portal- ULIP) को अफ्रीका के साथ साझा करने की योजना बना रहा है।
    • अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area- AfCFTA) ने ऑटोमोबाइल और लॉजिस्टिक्स को भारत तथा अफ्रीका के बीच सहयोग की पर्याप्त संभावना वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाना है।
      • AfCFTA एक ​​मुक्त व्यापार समझौता है जिसे अफ्रीका के भीतर शुल्क मुक्त व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म करना है साथ ही वस्तुओं, सेवाओं तथा लोगों की मुक्त आवाजाही को बढ़ावा देना है।
      • यह पहल अफ्रीका के विकास एजेंडा 2063 का हिस्सा है, जो पूरे महाद्वीप में एकीकृत आर्थिक बाज़ार की परिकल्पना करता है।
      • अफ्रीका के साथ भारत के मौजूदा व्यापार में कच्चे तेल से लेकर रसायन और वस्त्र तक कई तरह के उत्पाद शामिल हैं। AfCFTA द्वारा व्यापार विविधीकरण तथा मूल्य संवर्द्धन की दिशा में उठाए गए कदम भारत के निर्यात हितों एवं निवेश रणनीतियों के साथ अच्छी तरह से सुमेलित हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन सुधारों के लिये एकीकृत दृष्टिकोण: भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) सुधारों, विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा, कृषि और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे क्षेत्रों में एकीकृत अफ्रीकी रुख का आह्वान किया है।
    • वैश्विक व्यापार वातावरण में आवश्यक बदलावों को आगे बढ़ाने के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण आवश्यक है, जो तेज़ी से संरक्षणवादी बन गया है।
  • ड्यूटी-फ्री टैरिफ वरीयता और FTA: भारत ने गैर-पारस्परिक आधार पर अफ्रीका के 27 सबसे कम विकसित देशों (LDC) को ड्यूटी-फ्री टैरिफ वरीयता (DFTP) प्रदान की है।
    • भारत द्वारा DFTP योजना LDC से भारत को आयात पर टैरिफ वरीयता प्रदान करती है, जो सबसे कम सामाजिक-आर्थिक संकेतकों वाले विकासशील देश हैं।
    • इसके अतिरिक्त भारत व्यापार की मात्रा को बढ़ाने और वस्तुओं के आदान-प्रदान की सीमा में विविधता लाने के लिये दक्षिण अफ्रीका सहित अफ्रीकी देशों के साथ नए मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) की संभावना तलाशने का इच्छुक है।
  • सामरिक सहयोग: 
    • अफ्रीकी संघ के लिये समर्थन: भारत ने अफ्रीकी संघ की G-20 में पूर्ण सदस्यता का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे वैश्विक मंच पर अफ्रीकी आवाज़ को बुलंद करने की उसकी प्रतिबद्धता और प्रबल हुई है। 
    • विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ): भारत अपने निवेशकों को अफ्रीका के विनिर्माण क्षेत्रों में स्थायी उपस्थिति बनाने के लिये प्रोत्साहित करता है और आर्थिक संबंधों को गहरा करने के साधन के रूप में SEZ का विस्तार करने पर विचार करता है। 
    • ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व: भारत का लक्ष्य ग्लोबल साउथ के लिये एक अग्रणी आवाज़ बनना है, जो बहुपक्षीय मंचों पर समान और समावेशी विकास का समर्थन करता है, जो अफ्रीका सहित विकासशील देशों की भू-राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के व्यापक लक्ष्य के साथ संरेखित होता है।

भारत-अफ्रीका व्यापार में वर्तमान रुझान क्या हैं?

  • व्यापार के आँकड़े: वित्त वर्ष 2022-23 में भारत और अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार 9.26% बढ़कर लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। निर्यात का मूल्य 51.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात का मूल्य 46.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • वित्त वर्ष 24 में भारत ने अफ्रीकी देशों को 38.17 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वस्तु निर्यात की, जिसमें नाइज़ीरिया, दक्षिण अफ्रीका और तंजानिया जैसे प्रमुख गंतव्य शामिल थे। 
    • प्रमुख निर्यातों में पेट्रोलियम उत्पाद, इंजीनियरिंग सामान, फार्मास्यूटिकल्स, चावल और वस्त्र शामिल थे। 
    • अफ्रीकी संघ संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात के बाद भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। 
      • अफ्रीकी संघ के भीतर नाइज़ीरिया भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार है, जिसका व्यापार में 20.91% हिस्सा है।
  • आयात संरचना: अफ्रीका से भारत के आयात में प्राथमिक उत्पादों और प्राकृतिक संसाधनों का प्रभुत्व है। शीर्ष आयातों में शामिल हैं:
    • ईंधन: आयात का 61% हिस्सा, मुख्य रूप से नाइजीरिया, अंगोला और अल्जीरिया से कच्चा तेल।
    • कीमती पत्थर और काँच: 20% हिस्सा, घाना, दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना से प्राप्त।
    • सब्जियाँ, धातुएँ और खनिज: बेनिन, सूडान, जाम्बिया, दक्षिण अफ्रीका, मोरक्को और कोटे डी आइवर सहित विभिन्न अफ्रीकी देशों से प्राप्त।
  • निर्यात संरचना:
    • ईंधन: 20%, जिसमें मोज़ाम्बिक, टोगो, तंज़ानिया, केन्या और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को गैर-कच्चा पेट्रोलियम तेल शामिल है।
    • रसायन: 18.5%, जिसमें नाइजीरिया, मिस्र और केन्या को फार्मास्यूटिकल्स शामिल हैं।
    • मशीनें और इलेक्ट्रिकल्स: 12.59%, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और मिस्र को निर्यात किये गए।
  • आर्थिक निवेश: भारत ने 43 अफ्रीकी देशों में 206 बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में 12.37 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिसका लाखों लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

अफ्रीका के बारे में मुख्य तथ्य

  • भूगोल: अफ्रीका भूमध्य सागर (उत्तर), लाल सागर (उत्तर-पूर्व), हिंद महासागर (पूर्व) और अटलांटिक महासागर (पश्चिम) से घिरा हुआ है, और भूमध्य रेखा द्वारा लगभग समान रूप से विभाजित है।
    • इसमें सहारा, साहेल, इथियोपियाई हाइलैंड्स, सवाना, स्वाहिली तट, वर्षावन, अफ्रीकी महान झीलें और दक्षिणी अफ्रीका जैसे आठ प्रमुख भौतिक क्षेत्र हैं।
  • जनसंख्या: अफ्रीका एशिया के बाद दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप है।
  • अर्थव्यवस्था: कृषि अफ्रीका के 65-70% श्रम बल को रोज़गार प्रदान करती है और इसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 30-40% हिस्सा कृषि से आता है। इस महाद्वीप का आर्थिक आधार विविधतापूर्ण है, जिसमें खनन और पर्यटन जैसे क्षेत्रों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • जनसांख्यिकी: अनुमान है कि वर्ष 2034 तक अफ्रीका में विश्व की सबसे अधिक कार्यशील आयु वाली जनसंख्या (1.1 बिलियन) होगी। अगले 35 वर्षों में महाद्वीप की जनसंख्या दोगुनी होकर लगभग 2.4 बिलियन लोगों तक पहुँचने का अनुमान है, जिसमें 18 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि शामिल है।
  • जलवायु: अफ्रीका विश्व का सबसे गर्म महाद्वीप है। इसमें सहारा की शुष्क परिस्थितियों से लेकर हरे-भरे वर्षावनों तक की विविध जलवायु है।
  • उच्चतम बिंदु: किलिमंजारो, तंज़ानिया।
  • व्यापार: चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है तथा चीन-अफ्रीकी व्यापार वार्षिक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब है। अकेले अंगोला में ही बड़ी संख्या में चीनी लोग रहते हैं।
  • सोना और खनिज: अफ्रीका को सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाले खनिज स्रोत सोना और हीरे हैं। वर्ष 2021 में अफ्रीका ने 680.3 मीट्रिक टन सोना उत्पादित किया (विटवाटरसैंड, दक्षिण अफ्रीका, एक प्रमुख सोना उत्पादक क्षेत्र है) और वैश्विक हीरा बाज़ार को नियंत्रित किया, जहाँ प्रत्येक वर्ष विश्व के लगभग 65% हीरे उत्पादित होते हैं।
    • अफ्रीका के 54 देशों में से 22 देशों में पेट्रोलियम और कोयला सबसे प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले खनिजों में से हैं।

भारत-अफ्रीका व्यापार के लिये चुनौतियाँ क्या हैं?

  • गैर-टैरिफ बाधाओं का समाधान: यूरोपीय संघ के कड़े खाद्य सुरक्षा मानकों के कारण भारत के कृषि निर्यात को महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो मिर्च, चाय, बासमती चावल और अन्य जैसे उत्पादों के निर्यात को सीमित करते हैं।
    • ये विनियम न केवल यूरोपीय संघ के साथ भारत के व्यापार को प्रभावित करते हैं, बल्कि अफ्रीकी देशों, विशेषकर उन देशों के साथ भारत के व्यापार को भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं जो यूरोपीय संघ के मानकों के अनुरूप हैं।
    • मानकों में ढील का समर्थन करके भारत व्यापार प्रवाह को सुगम बना सकता है, अनुपालन लागत को कम कर सकता है तथा यूरोपीय और अफ्रीकी दोनों बाज़ारों में अपने कृषि निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकता है।
  • विकासशील देशों के लिये विश्व व्यापार संगठन सुधार: 13वें विश्व व्यापार संगठन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में कृषि, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और खाद्य सुरक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों पर आम सहमति बनाने में असमर्थता पर प्रकाश डाला गया।
    • इस समझौते की कमी वैश्विक व्यापार नीतियों और वार्ताओं को प्रभावित करती है, जिसका सीधा असर अफ्रीका सहित विकासशील देशों पर पड़ता है।
    • विश्व व्यापार संगठन में कृषि सब्सिडी एवं टैरिफ में सुधार करने में विफलता अफ्रीकी देशों की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता को बाधित करती है और निष्पक्ष व्यापार को सीमित करती है, जिससे अफ्रीका को कृषि निर्यात पर बाधाएँ उत्पन्न होने के कारण भारत एक प्रमुख व्यापार भागीदार के रूप में प्रभावित होता है।
      • इसके अतिरिक्त गुणवत्ता मानकों एवं व्यापार पद्धतियों पर अनसुलझे WTO मुद्दे अफ्रीकी बाज़ारों में भारतीय उत्पादों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे चीन की तुलना में उनकी धारणा और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
  • ऋण संबंधी चिंताएँ: उप-सहारा अफ्रीका में बढ़ते ऋण अनुपात पिछले दशक में लगभग दोगुना हो गया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने इन चिंताओं को उजागर करते हुए कहा है कि बढ़ते ऋण के बोझ से क्षेत्र में आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो रही है।
    • अपनी ऋणग्रस्त अर्थव्यवस्था के कारण, उप-सहारा अफ्रीका के कई निम्न आय वाले राष्ट्र वर्ष 2022 तक ऋण संकट का उच्च जोखिम झेल रहे हैं या पहले ही इसका अनुभव कर चुके हैं, जिससे भारत-अफ्रीका व्यापार के लिये एक बड़ी बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • चीन का प्रभाव: उप-सहारा अफ्रीका के लिये सबसे बड़े एकल-देशीय व्यापारिक साझेदार के रूप में चीन की भूमिका अतिरिक्त चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
    • क्षेत्र के निर्यात का एक बड़ा हिस्सा खरीदने तथा विनिर्मित वस्तुएँ और मशीनरी उपलब्ध कराने में चीन के प्रभुत्व ने महत्त्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति स्थापित कर दी है।
      • हालाँकि यह संबंध ऋण जाल कूटनीति के उपयोग और सार्वजनिक ऋण दस्तावेज़ीकरण में मानकीकरण की कमी से संबंधित आलोचना से प्रभावित है।
    • ये कारक भारत जैसे अन्य व्यापार साझेदारों के लिये असमान अवसर उत्पन्न करते हैं, जिससे भारत-अफ्रीका व्यापार की गतिशीलता प्रभावित होती है।

आगे की राह

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वर्ष 2030 तक अफ्रीका को अपने निर्यात को दोगुना करने की भारत की योजना के संभावित लाभों और चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। यह पहल वैश्विक स्तर पर भारत की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित कर सकती है?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) 

  1. भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन (इंडिया-अफ्रीका सम्मिट)
  2. जो 2015 में हुआ, तीसरा सम्मेलन था
  3. की शुरुआत वास्तव में 1951 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो-1, न ही 2

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन भारत और अफ्रीकी देशों के बीच संबंधों को फिर से शुरू करने का एक मंच है।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 2008 में नई दिल्ली में हुई थी। तब से शिखर सम्मेलन प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी-बारी से भारत और अफ्रीका में आयोजित किया जाता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • दूसरा शिखर सम्मेलन वर्ष 2011 में अदीस अबाबा में आयोजित किया गया था। तीसरा शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में होने वाला था लेकिन इबोला के प्रकोप के कारण स्थगित कर दिया गया था तथा अक्तूबर 2015 में नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। अत: कथन 1 सही है।
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स

प्रश्न. भारत में एक मध्यम-वर्गीय कामकाज़ी महिला की अवस्थिति को पितृतंत्र (पेट्रिआर्की) किस प्रकार प्रभावित करता है? (2014)

प्रश्न. अफ्रीका में भारत की बढ़ती हुई रूचि के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष हैं। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये। (2015)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

रूस-यूक्रेन संघर्ष, भारत हेल्थ इनिशिएटिव फॉर सहयोग, हित एंड मैत्री- BHISHM, मोबाइल अस्पताल, प्रोजेक्ट आरोग्य मैत्री, भारत की विदेश नीति, सूरजमुखी तेल, तलवार श्रेणी फ्रिगेट, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), अनुच्छेद 370

मेन्स के लिये:

भारत-यूक्रेन संबंधों का महत्त्व और रूस एवं पश्चिमी देशों के बीच संबंधों में संतुलन

स्रोत: द हिंदू

भारत के प्रधानमंत्री ने यूक्रेन के राष्ट्रपति के निमंत्रण पर यूक्रेन का दौरा किया। वर्ष 1991 में यूक्रेन की स्वतंत्रता के बाद से यह यूक्रेन का दौरा करने वाला पहला भारतीय राष्ट्राध्यक्ष था।

  • यह यात्रा रक्षा क्षेत्र में सहयोग पर केंद्रित थी क्योंकि भारत के पास यूक्रेनी मूल के सैन्य उपकरणों का विशाल भंडार है।

भारत के प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा से मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख का स्पष्टीकरण: भारत के प्रधानमंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत कभी भी तटस्थ नहीं रहा है और हमेशा शांति के पक्ष में खड़ा रहा है।
    • भारत संघर्ष के शीघ्र समाधान के लिये व्यावहारिक समाधान खोजने हेतु सभी हितधारकों से भागीदारी का आग्रह करता है।
  • अंतर-सरकारी आयोग का गठन: भारत और यूक्रेन के बीच द्विपक्षीय वाणिज्यिक एवं आर्थिक संबंधों को पूर्व-संघर्ष स्तर पर बहाल करने तथा प्रगाढ़ करने के लिये एक अंतर-सरकारी आयोग का गठन किया गया है।
    • वर्ष 2021-22 में द्विपक्षीय व्यापार 3.386 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
  • चार प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर: दोनों देशों ने कृषि, खाद्य उद्योग, चिकित्सा उत्पाद विनियमन और सांस्कृतिक सहयोग जैसे क्षेत्रों को शामिल करने वाले चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
    • समझौतों का उद्देश्य कृषि और खाद्य उद्योग में सहयोग को बढ़ावा देना, चिकित्सा उत्पादों को विनियमित करना, मानवीय अनुदान सहायता प्रदान करना तथा दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करना है।
  • यूक्रेन को भीष्म क्यूब उपहार में दिये: भारत ने यूक्रेन को चार भारत हेल्थ इनिशिएटिव फॉर सहयोग, हित एंड मैत्री (BHISHM) क्यूब उपहार में दिये, जिन्हें मोबाइल अस्पतालों के माध्यम से आपातकालीन चिकित्सा देखभाल प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • ये क्यूब्स प्रोजेक्ट आरोग्य मैत्री का हिस्सा हैं, जो महत्त्वपूर्ण चिकित्सा आपूर्ति प्रदान करने और संकट की स्थितियों में चिकित्सा सुविधाओं की तेज़ी से तैनाती सुनिश्चित करने का एक कार्यक्रम है।
  • शहीदों के प्रति मार्मिक समैक्य/एकजुटता: प्रधानमंत्री ने कीव में यूक्रेन के राष्ट्रीय इतिहास संग्रहालय में शहीद बच्चों की स्मृति में आयोजित मल्टीमीडिया प्रदर्शनी का दौरा किया। युद्ध में अपनी जान गँवाने वाले बच्चों की याद में आयोजित मार्मिक प्रदर्शनी से अत्यधिक मर्माहत हुए। 
    • उन्होंने बच्चों की दु:खद मृत्यु पर दु:ख व्यक्त किया और सम्मान के तौर पर उनकी स्मृति में एक खिलौना अर्पित किया।
  • राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को आमंत्रण: भारत के प्रधानमंत्री ने यूक्रेनी राष्ट्रपति को भारत यात्रा के लिये आमंत्रित किया, जो वर्ष 1991 के बाद से यूक्रेन की उनकी पहली यात्रा के दौरान एक महत्त्वपूर्ण संकेत था।

भारत-यूक्रेन संबंधों की गतिशीलता क्या है?

  • ऐतिहासिक यात्रा: श्री नरेंद्र मोदी वर्ष 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित होने के बाद से यूक्रेन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधान मंत्री हैं। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत उसे मान्यता देने वाले देशों में से एक था।
  • पारंपरिक विदेश नीति से प्रस्थान: ऐतिहासिक रूप से भारत ने सोवियत संघ (रूस के पूर्ववर्ती) के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे और यूक्रेन के साथ उसका कम जुड़ाव था।
    • यह यात्रा यूरोप के साथ संबंधों को बढ़ाने की भारत की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जो यूरोप के चार बड़े देशों यानी रूस, जर्मनी, फ्राँस और ब्रिटेन के साथ संबंधों पर केंद्रित विगत संकीर्ण फोकस से परे आगे बढ़ रही है।
    • यह यात्रा भारत की विदेश नीति में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, जो मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ व्यापक जुड़ाव को दर्शाती है।
  • द्विपक्षीय संबंधों में नए अवसर: विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के यूक्रेनी समकक्षों के साथ उच्च स्तरीय वार्ता में वृद्धि हुई है। 
  • सामरिक हित: गैस टर्बाइन और विमान जैसी रक्षा प्रौद्योगिकी में यूक्रेन की विशेषज्ञता भारत में सहयोग एवं संयुक्त विनिर्माण के अवसर प्रदान करती है।
  • आर्थिक अवसर: विश्व की कृषि शक्तियों में से एक के रूप में यूक्रेन की शक्ति से आने वाले वर्षों में इसकी सामरिक प्रमुखता में वृद्धि होगी।
  • युद्ध-पूर्व यूक्रेन भारत के लिये सूरजमुखी तेल के सबसे बड़े स्रोतों/निर्यातकों में से एक था।
  • स्वतंत्र विदेश नीति: यूक्रेन के साथ भारत का समन्वय रूस के साथ उसके संबंधों को कमज़ोर नहीं करती है, जो भारत की तटस्थ नीति को दर्शाती है।

भारत के रक्षा क्षेत्र के लिये यूक्रेन क्यों महत्त्वपूर्ण है? 

  • सोवियत युग के उपकरण: भारत के पास सोवियत युग के रक्षा उपकरणों का एक महत्त्वपूर्ण भंडार है जिनका अभी भी परिचालन हो रहा है, जिसमें भारतीय नौसेना के युद्धपोतों के लिये गैस टरबाइन इंजन और भारतीय वायु सेना (IAF) द्वारा संचालित An-32 विमान शामिल हैं।
  • भारतीय वायु सेना: जून 2009 में भारत ने यूक्रेन के स्पेट्सटेक्नोएक्सपोर्ट (STE) के साथ 105 AN-32 विमानों के अपने बेड़े को अपग्रेड करने, उनके जीवनकाल को 40 वर्ष तक बढ़ाने और उनके एवियोनिक्स में सुधार करने के लिये 400 मिलियन अमरीकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
    • भारतीय वायुसेना हमारी उत्तरी सीमा पर तैनात सेना के जवानों के हवाई रखरखाव, एयर कार्गो ड्रॉप-ऑफ और पैरा ड्रॉप-ऑफ के लिये AN-32 पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • भारतीय नौसेना: यूक्रेन गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) में दो एडमिरल ग्रिगोरोविच-क्लास फ्रिगेट के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण घटकों की आपूर्ति कर रहा है।
    • इसका प्रभाव विशेष रूप से भारतीय नौसेना पर पड़ा है, क्योंकि इसके 30 से अधिक अग्रणी युद्धपोत यूक्रेन की ज़ोर्या मैशप्रोएक्ट (Zorya-Mashproekt) द्वारा निर्मित इंजनों से संचालित होते हैं। 
    • यूक्रेन की सरकारी स्वामित्व वाली ज़ोर्या मैशप्रोएक्ट तलवार श्रेणी के फ्रिगेट/युद्धपोतों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले गैस टर्बाइनों के संयुक्त निर्माण के लिये भारतीय निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ वार्ता कर रही है।
  • रक्षा व्यापार: वर्ष 2019 में बालाकोट हवाई हमले के बाद IAF ने अपने SU-30MKI लड़ाकू विमानों के लिये यूक्रेन से R-27 एयर-टू-एयर मारक मिसाइलों की आपातकालीन खरीद की।
    • फरवरी 2021 में एयरो इंडिया में यूक्रेन ने 70 मिलियन अमरीकी डॉलर के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिसमें नए आयुधों की बिक्री के साथ-साथ भारतीय सैन्य सेवा में मौजूदा आयुधों का रखरखाव और उन्नयन शामिल है।
  • भारतीय रक्षा उद्योग को बढ़ावा: भारतीय रक्षा उपकरण बाज़ार में अपनी उपस्थिति को प्रबल करने के प्रयासों के अलावा यूक्रेन का लक्ष्य भारत से कुछ सैन्य हार्डवेयर खरीदना है।

भारत-यूक्रेन संबंधों में क्या समस्याएँ हैं?

  • रूस-यूक्रेन युद्ध: चल रहा रूस-यूक्रेन युद्ध यूक्रेन और उसके पश्चिमी भागीदारों के साथ भारत के संबंधों में लगातार समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है।
    • भारत ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर तटस्थ रुख बनाए रखा है, कूटनीति और संवाद का समर्थन करते हुए मास्को की सीधी निंदा से परहेज़ किया है।
    • भारत ने रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों में शामिल होने से मना कर दिया है और रियायती मूल्य पर रूसी ईंधन खरीदना शुरू कर दिया है।
    • भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव पर मतदान से काफी हद तक परहेज़ किया है, जिसमें यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा की गई थी।
  • आपूर्ति शृंखला में रुकावटें: युद्ध ने महत्त्वपूर्ण रक्षा उपकरणों की आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया। उदाहरण के लिये, यूक्रेनी कारखानों पर संघर्ष के प्रभाव के कारण भारतीय वायु सेना के An-32 विमान के उन्नयन में देरी हुई है। 
    • रूस ने भारत को एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणाली के शेष दो स्क्वाड्रन की डिलीवरी अगस्त 2026 तक के लिये टाल दी है। 
  • कश्मीर पर यूक्रेन का रुख: कश्मीर मुद्दे पर यूक्रेन की सामयिक टिप्पणियाँ और रुख दोनों देशों के बीच टकराव का स्रोत रहे हैं। 
    • वर्ष 2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद यूक्रेन ने जम्मू और कश्मीर की स्थिति पर चिंता व्यक्त की, जिसे भारत ने अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा।
  • कूटनीतिक विसंगतियाँ: विदेश नीति प्राथमिकताओं और वैश्विक संरेखण में अंतर ने कभी-कभी भारत-यूक्रेन संबंधों में घर्षण उत्पन्न किया है। 
    • रूस के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी यूक्रेन के रूसी कार्यों के विरोध के विपरीत है, जिससे कूटनीतिक संतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है, जो द्विपक्षीय संबंधों को जटिल बनाती है।

आगे की राह

  • रूस-यूक्रेन संघर्ष पर संतुलित दृष्टिकोण: भारत को रूस-यूक्रेन संघर्ष पर अपना रुख सावधानीपूर्वक बनाए रखना चाहिये। 
    • रूस के साथ अपने सामरिक संबंध बनाए रखते हुए, भारत को यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति भी चिंता व्यक्त करनी चाहिये।
  • सामरिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता: भारत को अपनी सामरिक स्वायत्तता और गुटनिरपेक्षता की नीति पर ज़ोर देना जारी रखना चाहिये।
    • ऐसा करने से वह ऐसे भू-राजनीतिक संघर्षों में फँसने से बच सकता है जो सीधे तौर पर उसके राष्ट्रीय हितों की पूर्ति नहीं करते।
  • मानवीय सहायता एवं समर्थन: भारत मानवीय सहायता एवं समर्थन प्रदान करके यूक्रेन के साथ अपने संबंधों को बढ़ा सकता है।
    • इसमें चिकित्सा सहायता, पुनर्निर्माण सहायता और युद्धग्रस्त क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिये तकनीकी विशेषज्ञता शामिल हो सकती है।
  • मध्यस्थता और शांति पहल: यदि अवसर मिला तो भारत रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता की पेशकश कर सकता है, क्योंकि दोनों देशों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं।
    • इससे भारत एक ज़िम्मेदार वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होगा और संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान खोजने में मदद मिलेगी।
  • वैश्विक दक्षिण एकजुटता का लाभ उठाना: भारत को अन्य ग्लोबल साउथ देशों के साथ मिलकर एक गठबंधन बनाना चाहिये जो यूक्रेन जैसे संघर्ष क्षेत्रों में शांति और विकास को बढ़ावा देना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. रूस-यूक्रेन युद्ध के आलोक में भारत और यूक्रेन के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों की जाँच कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. बुल्गारिया
  2. चेक रिपब्लिक 
  3. हंगरी
  4. लातविया
  5. लिथुआनिया
  6. रोमानिया

उपरोक्त में से कितने देशों की सीमाएँ यूक्रेन की सीमा के साथ स्थलीय साझी हैं?

(a) केवल दो
(b) केवल तीन
(c) केवल चार
(d) केवल पाँच

उत्तर: (a) 


प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा देश मोल्दोवा के साथ सीमा साझा करता है? (2008)

  1. यूक्रेन
  2. रोमानिया
  3. बेलारूस

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


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