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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह

  • 01 Feb 2019
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?


हाल ही में भारत के परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में प्रवेश को लेकर चीन ने अपना पुराना राग अलापा है। चीन का कहना है कि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में प्रवेश लेने के लिये भारत को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर करना होगा।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council-UNSC) के स्थायी सदस्यों (जिन्हें P5 देश भी कहा जाता है) चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने परमाणु नि:शस्त्रीकरण, परमाणु अप्रसार तथा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिये बीजिंग में अपनी दो बैठकें संपन्न की हैं।
  • इसी बैठक के निष्कर्ष स्वरूप चीन का यह रुख सामने आया है। परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Supplier Group-NSG) में प्रवेश हेतु भारत के आवेदन पर विचार के संदर्भ में कहा गया कि P5 देश परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty-NPT) तंत्र को बनाए रखने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • चीन का कहना है कि परमाणु अप्रसार संधि परमाणु संबंधी अंतर्राष्ट्रीय अप्रसार प्रणाली की आधारशिला है।
  • भारत परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है, इसलिये चीन 48-सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) में भारत के प्रवेश का विरोध करता रहा है। हालाँकि भारत के परमाणु अप्रसार रिकॉर्ड के आधार पर अमेरिका और रूस सहित अन्य P5 सदस्यों ने भारत का समर्थन किया है।

क्यों भारत के खिलाफ है चीन ?

  • दरअसल, परमाणु अप्रसार संधि पर भारत द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये जाने का मामला उठाकर चीन, पाकिस्तान के साथ गठजोड़ में निहित अपने हितों का पालन करता है।
  • पिछले कुछ दिनों से परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में भारत के शामिल होने की संभावना जताई जा रही है क्योंकि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह के सदस्य देशों को नया मसौदा प्रस्ताव दिया गया है, जिससे भारत के इस विशिष्ट समूह का सदस्य बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

क्या है NSG?

  • परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) 48 देशों का समूह है। NSG की स्थापना 1975 में की गई थी।
  • परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की आपूर्ति से लेकर नियंत्रण तक इसी के दायरे में आता है।
  • भारत में इस समय परमाणु संयंत्र लगाए जाने का काम तेज़ी से चल रहा है।
  • भारत सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि उसका उद्देश्य बिजली तैयार करना है और NSG की सदस्यता मिलने से उसकी राह आसान हो जाएगी। लेकिन NSG की सदस्यता के लिये भारत को कई शर्तों को भी मंज़ूर करना होगा, जैसे कि परमाणु परीक्षण न करना आदि।

क्या है परमाणु अप्रसार संधि ?

  • परमाणु अप्रसार संधि जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु टेक्नोलॉजी के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। इस संधि की घोषणा 1970 में की गई थी।
  • अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के 188 सदस्य देश इसके पक्ष में हैं। इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते।
  • हालाँकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इसकी निगरानी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के पर्यवेक्षक करेंगे।

भारत के लिये क्यों ज़रूरी है NSG की सदस्यता?

  • गौरतलब है कि भारत ने अमेरिका और फ्राँस के साथ परमाणु करार किया है तथा कई अन्य देशों से भी करार की संभावनाएँ बनी हुई हैं।
  • फ्राँसीसी परमाणु कंपनी अरेवा जैतापुर, महाराष्ट्र में परमाणु बिजली संयंत्र लगा रही है। वहीं, अमेरिकी कंपनियाँ गुजरात के मिठी वर्डी और आंध्र प्रदेश के कोवाडा में संयंत्र लगाने की तैयारी में हैं।
  • NSG की सदस्यता हासिल करने से भारत बिना किसी विशेष समझौते के परमाणु तकनीक और यूरेनियम हासिल कर सकेगा।
  • परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले कचरे का निस्तारण करने में भी सदस्य राष्ट्रों से मदद मिलेगी। देश की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये यह ज़रूरी है कि भारत को NSG में प्रवेश मिले।

परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT)

  • परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) को एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।
  • यह 18 मई, 1974 को तब सामने आया जब भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया ।
  • भारत का मानना है कि 1 जुलाई, 1968 को हस्ताक्षरित तथा 5 मार्च, 1970 से लागू परमाणु अप्रसार संधि भेदभावपूर्ण है, साथ ही यह असमानता पर आधारित एकपक्षीय व अपूर्ण है।
  • भारत का मानना है कि परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहियें।  
  • परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढाँचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के हितों का पोषण करता है।
  • यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है।
  • भारत के अनुसार, वे कारण आज भी बने हुए हैं जिनकी वज़ह से भारत ने अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
  • कह सकते हैं कि परमाणु अप्रसार संधि पर भारत का रुख बेहद स्पष्ट है। वह किसी की देखा-देखी या दबाव में इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।  
  • इस पर हस्ताक्षर करने से पहले भारत अपने हितों और अपने भविष्य को सुरक्षित रखते हुए मामले के औचित्य पर पूरी तरह से विचार करेगा।
  • भारत इस अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा है।  

इसके लिये भारत दो तर्क देता है:

  • इस संधि में इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि चीन की परमाणु शक्ति से भारत की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित हो सकेगी।
  • इस संधि पर हस्ताक्षर करने का अर्थ है कि भारत अपने विकसित परमाणु अनुसंधान के आधार पर परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग नहीं कर सकता।

स्रोत-द हिंदू

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