भारत-विश्व
विशेष/इन-डेप्थ: चीन- पाकिस्तान और भारत की परमाणु नीति
- 24 May 2018
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संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
हाल ही में जब उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु परीक्षण स्थलों को नष्ट करने की बात कही तो इसे कुछ इस तरह पेश किया गया जैसे विश्व से परमाणु हथियारों का खतरा पूरी तरह खत्म हो गया हो। उत्तर कोरिया के बदले रवैये से राहत अवश्य मिली है, लेकिन यह कहना सही नहीं है कि विश्व परमाणु हथियारों के खतरे से उबर गया है।
भारत के पड़ोस में स्थित चीन तथा हमारा एक अन्य पड़ोसी पाकिस्तान भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है और दोनों ही के साथ हमारे मधुर सैन्य संबंध नहीं हैं। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत अपनी न्यूनतम सुरक्षा आवश्यकताओं के तहत परमाणु नीति की समय-समय पर समीक्षा करे तथा उसे अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप बनाए।
भारत की परमाणु नीति के प्रमुख बिंदु
इस परिप्रेक्ष्य में भारत की परमाणु नीति पर नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि इसका ताना-बाना देश की विदेश नीति, ऊर्जा आवश्यकताओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को पूरा करने का रहा है।
- भारत ने 2003 में अपनी परमाणु नीति घोषित की जिसमें सुरक्षा के लिये न्यूनतम परमाणु क्षमता के विकास की बात कही गई।
- भारत की परमाणु नीति का आधार 'नो फर्स्ट यूज़' यानी परमाणु अस्त्रों का पहले उपयोग नहीं करने का रहा है, लेकिन हमला होने की स्थिति में कड़ा जवाब दिया जाएगा।
- भारत किसी दूसरे परमाणु शक्ति वाले राष्ट्र के खिलाफ अपने परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल कब करेगा, इसको लेकर पूर्ण स्पष्टता नहीं है।
- कभी परिस्थितियां ऐसा मोड़ भी ले सकती हैं जिनमें कुछ मामलों में भारत को इसका पहला इस्तेमाल उपयोगी लग सकता है।
बदलाव की ज़रूरत है या नहीं?
- परमाणु नीति का मामला इतना संवेदनशील है कि इस पर सार्वजनिक चर्चा किसी भी देश में नहीं की जाती और यह वैसे भी नीतिगत स्तर पर चर्चा का मुद्दा है।
- बदलाव की चर्चा इसलिये भी समय-समय पर उठती है कि अस्थिर पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों का जखीरा लगातार बढाता जा रहा है और उसका घोषित लक्ष्य भारत है।
- भारत का घोषित परमाणु सिद्धांत विशिष्ट तौर पर परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये उसकी प्रतिबद्धता को प्रकट करता है।
- दरअसल, भारत को शांतिकाल और युद्धकाल दोनों के लिये दो अलग-अलग परमाणु सिद्धांतों की ज़रूरत है।
- भारत पहले ही ऐसा सिद्धांत तैयार कर चुका है, जो युद्धकाल में उसकी परमाणु सीमाओं, स्थिति और तैनाती को परिभाषित करता है।
- भारत द्वारा घोषित परमाणु सिद्धांत एक शांतिकालीन दस्तावेज है, लेकिन ऐसा नहीं है कि उसने युद्धकाल के लिये अपने विकल्पों का आकलन नहीं किया होगा।
- पाकिस्तान द्वारा सामरिक परमाणु हथियार बनाने तथा चीन द्वारा त्वरित सैन्य आधुनिकीकरण और विस्तार किये जाने जैसे घटनाक्रम के चलते युद्धकाल के लिये अलग परमाणु सिद्धांत होना बेहद महत्त्वपूर्ण है।
- भारत की परमाणु नीति जैसे बेहद अहम मुद्दे पर केवल प्रधानमंत्री ही अधिकारपूर्वक कुछ कह सकते हैं।
- फिलहाल भारत सरकार या प्रधानमंत्री कार्यालय ने ऐसा कोई संकेत कभी नहीं दिया है जिससे लगे कि देश की परमाणु नीति में कोई बदलाव आने वाला है।
- 2003 में सामने आई भारत की परमाणु नीति 1999 में तय हुई थी और अब इसकी समीक्षा बेहद जरूरी हो गई है।
किसी भी महत्त्वपूर्ण नीति की नियमित रूप से समीक्षा करना बहुत ज़रूरी होता है और भारत की परमाणु नीति को भी मौजूदा समकालीन चुनौतियों (यदि कोई हैं तो) से निपटने के लिये स्वयं को तैयार करना होगा।
भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम
- विश्व परमाणु उद्योग स्थिति रिपोर्ट (World Nuclear Industry Status Report) 2017 से पता चलता है कि स्थापित किये गए परमाणु रिएक्टरों की संख्या के मामले में भारत का विश्व में तीसरा स्थान है।
- भारत अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तहत 2024 तक 14.6 गीगावाट बिजली का उत्पादन करेगा, जबकि वर्ष 2032 तक बिजली उत्पादन की यह क्षमता 63 गीगावाट हो जाएगी।
- फिलहाल भारत में 21 परमाणु रिएक्टर सक्रिय हैं, जिनसे लगभग 7 हज़ार मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है।
- इनके अलावा 11 अन्य रिएक्टरों पर विभिन्न चरणों में काम चल रहा है और इनके सक्रिय होने के बाद 8 हज़ार मेगावाट अतिरिक्त बिजली का उत्पादन होने लगेगा।
- भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2050 तक देश के 25% बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का ही योगदान हो।
- चूँकि भारत अपने हथियार कार्यक्रम के कारण परमाणु अप्रसार संधि में शामिल नहीं है। अतः 34 वर्षों तक इसके परमाणु संयंत्रों अथवा पदार्थों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिस कारण यह वर्ष 2009 तक अपनी सिविल परमाणु ऊर्जा का विकास नहीं कर सका।
- पूर्व के व्यापार प्रतिबंधों और स्वदेशी यूरेनियम के अभाव में भारत थोरियम के भंडारों से लाभ प्राप्त करने के लिये परमाणु ईंधन चक्र का विकास कर रहा है।
- भारत का प्राथमिक ऊर्जा उपभोग वर्ष 1990 और 2011 के मध्य दोगुना हो गया था।
परमाणु हथियार ले जाने का तंत्र
- भारत अपने परमाणु हथियारों को आधुनिक बनाने के साथ ही उन्हें शत्रु के ठिकाने तक प्रहार करने वाले तंत्र का भी विकास कर रहा है।
- भारत के पास जो परमाणु अस्त्र हैं उन्हें ले जाने में सक्षम रॉकेट और मिसाइलें भी हैं।
- कुछ रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत के पास कम-से-कम सात ऐसे सिस्टम हैं जिनसे इन परमाणु हथियारों को ढोया जा सकता है।
- इनमें चार लड़ाकू विमान, एक पनडुब्बी, चार सतह से मार करने वाली मिसाइलें और एक पानी से मार करने वाली मिसाइल शामिल है।
- इन विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत ऐसे चार तंत्र और तैयार कर रहा है।
न्यूनतम परमाणु सुरक्षा तंत्र का होना बेहद ज़रूरी
- चीन और पाकिस्तान दोनों ही देशों के परमाणु शक्ति संपन्न होने के कारण भारत के सामने न्यूनतम सुरक्षा तंत्र विकसित करने की बड़ी चुनौती है।
- चीन बड़ी परमाणु शक्ति वाला देश है और भारत के लिये पाकिस्तान से कहीं बड़ी सुरक्षा चुनौती पेश कर सकता है।
- पाकिस्तान के खिलाफ भारत को जितनी परमाणु क्षमता की ज़रूरत है, उससे कहीं ज़्यादा चीन के विरुद्ध है और पाकिस्तान के मुकाबले चीन के विरुद्ध भारत को बेहतर परमाणु तैयारी की ज़रूरत है।
- इसी के मद्देनज़र माना यह जाता है कि भारत अपनी परमाणु शक्ति का एक हिस्सा हमेशा तैयार रखता है और इसे किसी भी समय ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल के लिये तैयार रखा जाता है।
- भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु क्षमता में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ रहती है और माना यह जाता है कि पाकिस्तान दुनिया के उन देशों में है जिसके परमाणु हथियारों के जखीरे में दुनिया में सबसे तेज़ बढ़ोतरी हुई है।
- इसके अलावा पिछले एक दशक में पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों की संख्या तीन गुना बढ़ा ली है।
- पाकिस्तान के मामले में अतिरिक्त सतर्कता बरतना भारत के हित में है, क्योंकि पाकिस्तानी सत्ताधारी वर्ग के लिये परमाणु शक्ति हमेशा से भारत की राजनीतिक और सैन्य शक्ति का जवाब है।
- ऐसे में देशों के बीच परस्पर अविश्वास और युद्ध के इतिहास से मामला और अधिक संवेदनशील बन जाता है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
भारत के परमाणु कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता
- मई 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण करने के बाद परमाणु हथियारों का पहले प्रयोग न करने की नीति अपनाई थी।
- इसके कुछ ही दिनों बाद पड़ोसी पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था, लेकिन उसने पहले प्रयोग न करने की ऐसा कोई बात नहीं कही थी।
- उल्लेखनीय है परमाणु हथियारों का पहले प्रयोग न करने की भारत की नीति की वज़ह से ही परमाणु के शांतिपूर्ण प्रयोग को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देश उसे यूरेनियम की आपूर्ति कर रहे हैं।
- भारत ने परमाणु हथियारों का पहले प्रयोग न करने की नीति अपनाकर दुनिया को यह दिखाया है कि वह आक्रामक देश नहीं है।
उल्लेखनीय है कि सभी परमाणु शक्ति संपन्न देशों ने विध्वंसक हथियारों का निर्माण करने में अपनी शक्ति का उपयोग किया, परंतु भारत किसी भी स्थिति में शस्त्र निर्माण के लिये परमाणु शक्ति का उपयोग करने के पक्ष में नहीं है।
नहीं किये NPT और CTBT पर हस्ताक्षर
परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के प्रति भारत का दृष्टिकोण प्रारंभ से ही स्पष्ट रहा है और इसे संयुक्त राष्ट्र संघ सहित विभिन्न मंचों पर समय-समय पर स्पष्ट किया जाता रहा है ।
- NPT: परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज मानी जाती है, लेकिन भारत इस अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता रहा है।
इसके लिये भारत दो तर्क देता है:
1. इस संधि में इस बात की कोई व्यवस्था नहीं की गई है कि चीन की परमाणु शक्ति से भारत की सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित हो सकेगी।
2. इस संधि पर हस्ताक्षर करने का अर्थ यह है कि भारत अपने विकसित परमाणु अनुसंधान के आधार पर परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण उपयोग नहीं कर सकता था।
- यह 18 मई, 1974 को तब सामने आया, जब भारत ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया ।
- भारत मानता है कि 1 जुलाई, 1968 को हस्ताक्षरित तथा 5 मार्च, 1970 से लागू परमाणु अप्रसार संधि भेदभावपूर्ण है, असमानता पर आधारित तथा एकपक्षीय और अपूर्ण है।
- भारत का मानना है कि परमाणु आयुधों के प्रसार को रोकने और पूर्ण निरस्त्रीकरण के उद्देश्य की पूर्ति के लिये क्षेत्रीय नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये जाने चाहिये।
- परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढाँचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्तियों के हितों का पोषण करता है। यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है ।
- भारत के अनुसार वे कारण आज भी बने हुए हैं जिनकी वजह से भारत ने अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
- कह सकते हैं कि परमाणु अप्रसार संधि पर भारत का रुख बेहद स्पष्ट है। वह किसी की देखा-देखी या दबाव में इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।
- इस पर हस्ताक्षर करने से पहले भारत अपने हितों और अपने भविष्य को सुरक्षित रखते हुए मामले के औचित्य पर पूरी तरह से विचार करेगा।
New CTBT: नई व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Test Ban Traty-CTBT) पर भी हस्ताक्षर करने से भारत ने स्पष्ट इनकार कर दिया है। भारत के अनुसार यह संधि अपने वर्तमान स्वरूप में भेदभावपूर्ण, खामियों से भरी व नितांत अपूर्ण है।
- जुलाई 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु हथियारों के निषेध से संबंधित इस नई संधि को अपनाया था, जो परमाणु हथियारों के उपयोग, उत्पादन, हस्तांतरण, अधिग्रहण, संग्रहण व तैनाती को अवैध करार देती है।
- भारत अपने स्पष्टीकरण में कह चुका था कि वह इस बात से सहमत नहीं है कि यह नई व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि परमाणु निरस्त्रीकरण पर समग्र व्यवस्था कायम करने में सफल हो पाएगी।
- भारत ने इस संधि की सार्वभौमिक नाभिकीय निरस्त्रीकरण की एक क्रमिक प्रक्रिया के रूप में कल्पना की थी, जिससे एक समयबद्ध रूपरेखा के भीतर सभी नाभिकीय हथियारों के पूर्णत: नष्ट होने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
- भारत का यह भी मानना रहा है कि इस व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि का उद्देश्य मात्र परमाणु विस्फोटों के परीक्षण को बंद करना नहीं था, अपितु परमाणु हथियारों के गुणात्मक विकास और उनके परिष्करण को विस्फोट अथवा अन्य माध्यमों से रोकना था।
- इससे भारत के व्यापक राष्ट्रीय व सुरक्षा हितों की पुष्टि नहीं होती और उसके रुख से स्पष्ट है कि वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा हितों में अपने एटमी विकल्प को खुला रखेगा।
(टीम दृष्टि इनपुट)
निष्कर्ष: दुनिया के 90 प्रतिशत परमाणु हथियार रूस और अमेरिका के पास हैं, लेकिन आज शीतयुद्ध जैसी कोई परिस्थिति नहीं है, जो इन्हें लेकर चिंता का कारण बना रहता था। लेकिन भारत का अस्थिर पड़ोसी पाकिस्तान चिंता का एक बड़ा कारण है और यह कोई आज की बात नहीं है, बल्कि अपने जन्म के समय से ही उसकी हरकतें भारत को परेशान करने वाली रही हैं। इस कड़ी में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा था, कि पाकिस्तान घास की रोटी खाकर गुज़ारा कर लेगा, लेकिन परमाणु बम ज़रूर बनाएगा। उसने बना भी लिया और उसका एकमात्र लक्ष्य भारत है, लेकिन यह भी सच है कि यदि वह ऐसा सोचता है कि परमाणु हमला करके भारत को बर्बाद कर देगा, तो यह उसके लिये कुल्हाड़ी पर पैर मारने जैसा होगा।
इसके अलावा पाकिस्तान और चीन की गहराती दोस्ती भी भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा देती है। चीन भी परमाणु हथियार बनाने के लिये पाकिस्तान की मदद करता रहा है, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसे स्वीकार नहीं करता। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत-पाकिस्तान के बीच यदि परमाणु युद्ध की स्थिति आती भी है, तो इसके भयंकर परिणाम कुछ वैसे ही हो सकते हैं, जैसे जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में देखने को मिले थे, बल्कि उससे कई गुना अधिक भयंकर हो सकते हैं। लेकिन यह भी सच है कि भारत से परमाणु टकराव के बाद पाकिस्तान का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।