भारत-विश्व
परमाणु हथियार पर नियंत्रण (nuclear arms control)
- 06 Nov 2018
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संदर्भ
पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की थी कि अमेरिका मध्यवर्ती रेंज परमाणु बल (INF) संधि छोड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने वर्ष 1987 में रूस के साथ इस द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। दरअसल, अमरिकी राष्ट्रपति का यह निर्णय अप्रत्याशित नहीं था क्योंकि अमेरिका लंबे समय से आरोप लगाता रहा है कि रूस तथा अन्य देशों इस संधि के नियमों के उल्लंघन कर अमेरिका को नुकसान पहुँचाते हैं।
मध्यवर्ती रेंज परमाणु बल (INF) संधि
- INF संधि को अमेरिका और रूस के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण हथियार नियंत्रण समझौतों में से एक माना जाता है। वर्ष 1987 में अमेरिका और रूस ने इस द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- INF संधि के तहत यू.एस. और यू.एस.एस.आर. 500-5,500 किलोमीटर की सीमा के सभी ग्राउंड-लॉन्च-मिसाइलों को तीन साल के भीतर खत्म करने पर सहमत हुए और भविष्य में इनके विकास, उत्पादन या तैनाती न करने का फैसला किया गया था।
- 1980 के दशक में यूरोप में रूस ने SS-20 बैलिस्टिक मिसाइलों की तैनाती और पर्सिंग -2 रॉकेट के साथ अमेरिकी प्रतिक्रिया पर यूरोप में भारी सार्वजनिक विरोध के चलते यह समझौता किया था।
- यू.एस. ने 846 पर्सिंग -2 और ग्राउंड लॉन्च क्रूज़ मिसाइल (GLCM) और यू.एस.एस.आर. ने 1,846 मिसाइलों (SS-4 AS, SS-5s और SS-20 S) को इस समझौते के तहत नष्ट किया था
- इस संधि ने केवल एक ही सीमा तक एयर-लॉन्च और समुद्र आधारित मिसाइल सिस्टम को छूट दी।
वार्ता की राजनीति
- आईएनएफ संधि का विशेष रूप से यूरोप में व्यापक स्तर पर स्वागत किया गया, क्योंकि इन मिसाइलों को यूरोप में तैनात किया गया था और 8 दिसंबर, 1987 को अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन तथा सोवियत महासचिव मिखाइल गोर्बाचेव ने वाशिंगटन में संधि पर हस्ताक्षर किये थे।
- रीगन द्वारा पहले घोषणा की गई थी कि "एक परमाणु युद्ध कभी जीता नहीं जा सकता है और कभी भी लड़ा नहीं जाना चाहिये" जो शीतयुद्ध के तनावों को कम करने का संकेत देता है।
- उल्लेखनीय है कि 1980 के दशक के आरंभ तक यू.एस.एस.आर. ने अमेरिकी शस्त्रागार से अधिक, लगभग 40,000 परमाणु हथियारों को जमा किया था।
संधि का प्रभाव
- यूरोप में रूस ने सिंगल वॉरहेड SS-4 S और SS-5 S को अधिक सटीक 3 - वारहेड SS-20 मिसाइलों में परिवर्तित किया जिसने चिंता को और बढ़ा दिया।
- यू.एस. ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के अपने परमाणु सहयोगियों को आश्वस्त करने के लिये बेल्जियम, इटली और पश्चिम जर्मनी में पर्सिंग-2 और GLCM को तैनात करना शुरू कर दिया, जिससे हथियारों की एक नई होड़ शुरू हो गई।
- इसके बाद यूरोप को यह एहसास हुआ कि यूरोपीय ज़मीन पर किसी भी प्रकार का परमाणु संघर्ष और अधिक यूरोपीय हताहतों का कारण बन जाएगा।
- परिणामतः 1980 के दशक में यू.एस. और यू.एस.एस.आर. ने समानांतर बातचीत के तीन सेट शुरू किए जिसमें सामरिक शस्त्र कटौती संधि (START), मध्यवर्ती रेंज परमाणु बल (INF) संधि और रीगन के नए लॉन्च 'अंतरिक्ष युद्ध' कार्यक्रम (सामरिक रक्षा पहल) को शामिल किया गया था।
- उल्लेखनीय है कि INF वार्ता मूल रूप से दोनों पक्षों पर समान रूप से प्रतिबंधों को आरोपित करती है। INF संधि ने यूरोप पर मंडरा रहे परमाणु युद्ध के डर को दूर करने में मदद की।
- इसने वाशिंगटन और मॉस्को के बीच कुछ हद तक विश्वास भी बनाया और शीत युद्ध को खत्म करने में योगदान दिया।
- लेकिन संधि में कुछ कमज़ोरियाँ थीं जैसे-इसने ग्राउंड-आधारित इंटरमीडिएट रेंज बलों को विकसित करने के लिये अन्य परमाणु हथियार संपन्न शक्तियों को मुक्त कर दिया।
- तब से भारत, पाकिस्तान और उत्तरी कोरिया समेत कई देशों ने 500 से 5,500 किमी की रेंज वाली मिसाइलों का विकास किया है।
- लेकिन चीन ने पिछले तीन दशकों में नाटकीय रूप से अपने मिसाइल शस्त्रागार का विस्तार किया है।
- अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार चीन के लगभग 90% विशाल मिसाइल शस्त्रागार में अनुमानित 2,000 रॉकेट है, जो मध्यवर्ती रेंज के है और यदि चीन INF संधि का हिस्सा बनना चाहे तो भी संधि के अनुरूप अवैध होगा।
राजनीतिक दाँव-पेंच
- अमेरिका ने यह संदेह व्यक्त किया है कि रूस ने नोवेटर 9 M729 मिसाइल का परीक्षण करके इस संधि का उल्लंघन किया है और इसके अलावा, वर्ष 2014 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने औपचारिक रूप से रूस पर INF संधि के उल्लंघन करने का आरोप लगाया था।
- वहीं दूसरी तरफ, रूस ने आरोप लगाया कि यू.एस. ने मिसाइल रक्षा इंटरसेप्टर के लिये क्षमता वाले लॉन्चर्स को पोलैंड और रोमानिया में तैनात किया है जो कि इस संधि का उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त रूस ने एक नए परमाणु टारपीडो और परमाणु संचालित क्रूज मिसाइल विकसित करने की योजना का अनावरण किया है।
- इसके साथ ही चीन के पास पहले से ही 500-5,500 किलोमीटर की रेंज वाली कई मिसाइलें हैं, लेकिन इसकी आधुनिकीकरण की योजनाएँ जिनमें DF-26 को अधिकृत किया गया है, जो आज अमेरिका की चिंता को और बढ़ाते हैं।
- चीन को पहली बार भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय प्रभुसत्ता स्थापित करने वाले रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में पहचाना गया है जो 'भविष्य में वैश्विक रूप से पूर्व-प्रभुसत्ता वाले अमेरिका के विस्थापन' का कार्य करेगा।
- अतः इस प्रकार के हथियारों की होड़ परंपरागत हथियारों और परमाणु हथियारों के बीच सीमा रेखा को धुंधला बनाता है।
- अंतरिक्षआधारित और साइबर सिस्टम पर बढ़ती निर्भरता, जैसे असम्मिति दृष्टिकोण केवल आकस्मिक और अनजान परमाणु वृद्धि के जोखिम को बढ़ाता है।
परमाणु निषिद्ध देशों को संरक्षण
- INF संधि शीतयुद्ध की राजनीतिक वास्तविकता को दर्शाती है जहाँ दो परमाणु महाशक्तियाँ थी किंतु वर्तमान विश्व बहु-ध्रुवीय शक्तियों का केंद्र है जो परमाणु दुनिया के अनुरूप नहीं है।
- वर्तमान में विश्व में कई परमाणु समीकरण हैं यथा- यू.एस.-रूस, यू.एस.-चीन, यू.एस.-उत्तरी कोरिया, भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन, लेकिन कोई भी खुद को साबित करने की स्थिति में नहीं है।
- अतः बड़ी चुनौती इस बात की है कि यदि ये नई वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हैं तो मौजूदा परमाणु हथियार नियंत्रण उपकरणों को केवल संरक्षित किया जा सकता है।
- INF संधि परमाणु हथियारों पर नियंत्रण की समस्या को सुलझाने के लिये पहली संधि नहीं है इससे पूर्व दिसंबर 2001 में, यू.एस.एस.आर. के साथ संयुक्त राष्ट्र ने 1972 की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (ABM) संधि से एकतरफा वापसी की थी।
- वहीं इस घटना की अगली कड़ी नए स्टार्ट समझौते के रद्द होने की भी संभावना है जो दोनों देशों को 700 इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBM), पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) और भारी बमवर्षक तथा 1,550 वारहेड को सीमित करता है।
- परमाणु हथियार अप्रसार संधि (NPT) में राजनीतिक विवाद भी स्पष्ट हैं, जो बहुपक्षीय हथियार नियंत्रण का सबसे सफल उदाहरण है।
- दरअसल, यह न तो इसके बाहर के चार देशों (भारत, इज़राइल, उत्तरी कोरिया और पाकिस्तान) को समायोजित कर सकता है ( क्योंकि सभी चार परमाणु हथियार संपन्न देश हैं) और न ही यह परमाणु निरस्त्रीकरण पर कोई प्रगति पंजीकृत कर सकता है।
निष्कर्ष
- हमें यह समझना होगा कि अब विश्व बहु-ध्रुवीय शक्तियों का केंद्र है, जो परमाणु दुनिया के अनुरूप नहीं है अर्थात् एक भूल संपूर्ण दुनिया के विनाश का कारण बन सकती है।
- वहीं भारत की समस्या हथियार नियंत्रण कूटनीति के साथ अपने मिसाइल कार्यक्रम की प्रकृति को कम करने से जुड़ी है।
- चूँकि रूस के साथ अमेरिकी संघर्ष बढ़ गया है, इसलिये उन्नत सैन्य प्रणालियों पर रूस के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी पर भी दबाव बढ़ेगा।
- इसके बाद, भारत को घरेलू प्रयासों को बढ़ाने के लिये तत्काल अपनी आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- साथ ही भारत को हाइपरसोनिक हथियारों को लेकर अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को विविधता देने और मिसाइल कार्यक्रम के बारे में लंबे समय तक गहराई से विचार करना होगा।