प्रारंभिक परीक्षा
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV)
- 10 Aug 2022
- 12 min read
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-02 और विद्यार्थियों द्वारा निर्मित उपग्रह आज़ादीसैट (AzaadiSAT) को लेकर लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की पहली उड़ान शुरू की थी।
- हालाँकि यह मिशन उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने में विफल रहा और उपग्रह जो कि पहले से ही प्रक्षेपण यान से अलग हो चुके थे, उनके मध्य संपर्क टूट गया।
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान:
- परिचय:
- लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) एक तीन चरण का प्रक्षेपण यान है जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक तरल प्रणोदन-आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) के साथ टर्मिनल चरण के रूप में कॉन्फ़िगर किया गया है।
- SSLV का व्यास 2 मीटर और लंबाई 34 मीटर है, जिसका भार लगभग 120 टन है।
- SSLV सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से 500 किमी. की ऊँचाई की समतल कक्षीय तल में 500 किलोग्राम उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है।
- लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) एक तीन चरण का प्रक्षेपण यान है जिसे तीन ठोस प्रणोदन चरणों और एक तरल प्रणोदन-आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) के साथ टर्मिनल चरण के रूप में कॉन्फ़िगर किया गया है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- निम्न लागत
- कम टर्न-अराउंड समय
- अनेक उपग्रहों को समायोजित करने में सक्षम
- लॉन्च मांग व्यवहार्यता
- न्यूनतम लॉन्च बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता
- महत्त्व:
- लघु उपग्रहों का युग:
- पूर्व में बड़े उपग्रह पेलोड को महत्त्व दिया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे इस क्षेत्र में विकास हुआ, इसमें कई निजी हितधारक जैसे- व्यवसाय क्षेत्र, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय और विभिन्न प्रयोगशालाएँ अपने उपग्रह भेजने लगे।
- ये सभी अधिकतर लघु उपग्रहों की श्रेणी में आते हैं।
- पूर्व में बड़े उपग्रह पेलोड को महत्त्व दिया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे इस क्षेत्र में विकास हुआ, इसमें कई निजी हितधारक जैसे- व्यवसाय क्षेत्र, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय और विभिन्न प्रयोगशालाएँ अपने उपग्रह भेजने लगे।
- मांग में वृद्धि:
- अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, निगरानी और वाणिज्य की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण पिछले आठ से दस वर्षों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
- लागत में कमी:
- उपग्रह निर्माताओं और संचालकों को अब महीनों इंतजार करने या अत्यधिक यात्रा शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।
- इसलिये ये संगठन तेज़ी से अंतरिक्ष में उपग्रहों का एक समूह विकसित कर रहे हैं।
- स्पेसएक्स के स्टारलिंक और वन वेब जैसी परियोजनाएँ सैकड़ों उपग्रहों के एक समूह को जोड़ने का कार्य कर रही हैं।
- उपग्रह निर्माताओं और संचालकों को अब महीनों इंतजार करने या अत्यधिक यात्रा शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।
- व्यवसाय के अवसर:
- मांग में वृद्धि के साथ रॉकेट को वहनीय लागत के साथ कई बार लॉन्च किया जा सकता है, यह इसरो जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों को इस क्षेत्र की क्षमता का दोहन करने हेतु एक व्यावसायिक अवसर प्रदान करता है क्योंकि इससे संबंधित अधिकांश मांग उन कंपनियों द्वारा की जाती है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये उपग्रह लॉन्च करते हैं।
- लघु उपग्रहों का युग:
लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान- D1/EOS -02 मिशन:
- इसका उद्देश्य लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान के बाज़ार में एक बड़ी भागीदारी हासिल करना था, क्योंकि यह उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में स्थापित कर सकता था।
- इस मिशन के तहत दो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की योजना थी-
- पहला EOS-2 पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह, यह एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है जिसे इसरो द्वारा डिज़ाइन और कार्यान्वित किया गया है।
- यह माइक्रोसैट उपग्रह शृंखला उच्च स्थानिक रिज़ॉल्यूशन के साथ इन्फ्रा-रेड बैंड में संचालित उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग प्रदान करती है।
- दूसरा, आज़ादीसैट छात्र उपग्रह, यह 8U क्यूबसैट है जिसका वज़न लगभग 8 किलोग्राम है।
- यह लगभग 50 ग्राम वज़न के 75 अलग-अलग पेलोड वहन करता है और फेमटो-एक्सपेरिमेंट करता है।
- इसने छोटे-छोटे प्रयोग किये जो अपनी कक्षा में आयनकारी विकिरण को माप सकते थे और ट्रांसपोंडर जो ऑपरेटरों को इसे पहुँच प्रदान करने में सक्षम बनाने हेतु हैम रेडियो फ्रीक्वेंसी में काम करता था।
- देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन पेलोड के निर्माण के लिये मार्गदर्शन प्रदान किया गया।
- पेलोड को "स्पेस किड्ज़ इंडिया" के विद्यार्थियों की टीम द्वारा एकीकृत किया गया है।
- यह लगभग 50 ग्राम वज़न के 75 अलग-अलग पेलोड वहन करता है और फेमटो-एक्सपेरिमेंट करता है।
- पहला EOS-2 पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह, यह एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह है जिसे इसरो द्वारा डिज़ाइन और कार्यान्वित किया गया है।
चुनौतियाँ:
- SSLV के टर्मिनल चरण में समस्या प्रतीत होती है, जिसे वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) कहा जाता है।
- लॉन्च प्रोफाइल के अनुसार, VTM को लॉन्च के बाद 653 सेकंड में से 20 सेकंड के लिये जलना चाहिये।
- हालाँकि यह केवल 0.1 सेकंड के लिये जला और रॉकेट को अपेक्षित ऊँचाई पर ले जाने में असफल हो गया।
- लॉन्च प्रोफाइल के अनुसार, VTM को लॉन्च के बाद 653 सेकंड में से 20 सेकंड के लिये जलना चाहिये।
- VTM के जलने के बाद दो उपग्रह वाहन से अलग हो गए, सेंसर की खराबी के परिणामस्वरूप उपग्रहों को वृत्ताकार कक्षा के बजाय दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया गया था।
- इसरो के अनुसार, सभी चरणों में सामान्य रूप से प्रदर्शन किया गया, दोनों उपग्रहों को इंज़ेक्ट किया गया लेकिन प्राप्त कक्षा अपेक्षा से कम थी, जो इसे अस्थिर बनाती है।
वृत्ताकार और दीर्घ वृत्ताकार कक्षाओं में अंतर:
- दीर्घ वृत्ताकार कक्षाएँ:
- ज़्यादातर वस्तुएँ जैसे उपग्रह और अंतरिक्ष यान केवल अस्थायी रूप से दीर्घ वृत्ताकार कक्षाओं में रखे जाते हैं।
- फिर उन्हें या तो अधिक ऊँचाई पर गोलाकार कक्षाओं में भेज दिया जाता है या त्वरण तब तक बढ़ा दिया जाता है जब तक कि प्रक्षेपवक्र दीर्घवृत्त से अतिपरवलय में परिवर्तित नहीं हो जाता है और अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में आगे बढ़ने के लिये पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से निकल जाता है - उदाहरण के लिये चंद्रमा या मंगल या उससे अधिक दूर।
- वृत्ताकार कक्षाएँ
- पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों को अधिकतर वृत्ताकार कक्षाओं में रखा जाता है।
- एक कारण यह है कि यदि उपग्रह का उपयोग पृथ्वी की इमेजिंग के लिये किया जाता है, तो पृथ्वी से एक निश्चित दूरी होने के कारण यह आसान हो जाता है।
- यदि दूरी एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा की तरह बदलती रहती है, तो कैमरों को केंद्रित करना जटिल हो सकता है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. भारत के उपग्रह प्रक्षेपण यान के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (A) सही उत्तर है। प्रश्न. भारत का अपना स्वयं का अंतरिक्ष केंद्र प्राप्त करने की क्या योजना है और हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम को यह किस प्रकार लाभ पहुँचाएगा? ( मुख्य परीक्षा 2019) |