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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WTO का 13वाँ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन

  • 08 Mar 2024
  • 30 min read

यह एडिटोरियल 05/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Tepid trade-offs: On the WTO 13th Ministerial Conference (MC13) in Abu Dhabi” लेख पर आधारित है। इसमें हाल ही में अबू धाबी में आयोजित WTO के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC) से उभरे महत्त्वपूर्ण परिणामों और संबंधित चुनौतियों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन, WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन, ट्रिप्स समझौता, कोविड‑19, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) व्यवस्था, मात्स्यिकी सब्सिडी पर समझौता (AFS), विशेष और विभेदक उपचार (S&D), अल्प विकसित देश (LDC), हरित जलवायु कोष

मेन्स के लिये:

13वें WTO] मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के मुख्य परिणाम, विश्व व्यापार संगठन (WTO) की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाली चुनौतियाँ, विश्व व्यापार संगठन के संबंध में भारत की चिंताएँ।

हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) का 13वाँ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC13) संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में संपन्न हुआ। इस अवसर पर विभिन्न देशों के मंत्रियों ने विकास के विभिन्न स्तरों और अलग-अलग भू-राजनीतिक दृष्टिकोणों से महत्त्वपूर्ण विषयों की एक विस्तृत शृंखला—जिनमें खाद्य सुरक्षा, ई-कॉमर्स, मात्यिसिकी सब्सिडी, WTO सुधार, सेवाओं के घरेलू विनियमन एवं निवेश को सुविधाजनक बनाने सहित विभिन्न विषय शामिल थे—को संबोधित करने के लिये बैठकें कीं। 

वैश्विक व्यापार संबंधी चुनौतियों से निपटने के प्रयासों और इस क्रम में सुदीर्घ चर्चाओं के बावजूद इस दिशा में न्यूनतम प्रगति के साथ सम्मेलन का समापन हुआ।

WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन क्या है?

  • परिचय:
    • WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन है।
    • यह विश्व व्यापार संगठन के सर्वोच्च निर्णयकारी निकाय के रूप में कार्य करता है और इसका आयोजन आम तौर पर प्रत्येक दो वर्ष पर किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • WTO की गतिविधियों एवं वार्ताओं के लिये एजेंडा निर्धारित करना
    • बाज़ार पहुँच, सब्सिडी और विवाद समाधान जैसे विभिन्न व्यापार-संबंधित विषयों पर चर्चा एवं वार्ता का आयोजन करना
    • वैश्विक व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये नीतियाँ बनाना
    • व्यापार नियमों और विनियमों पर सदस्य देशों के बीच समझौतों को सुविधाजनक बनाना
    • सम्मेलन में ऐसे समझौते संपन्न हो सकते हैं या ऐसी घोषणाएँ की जा सकती हैं जो सदस्य देशों की व्यापार नीतियों का मार्गदर्शन करती हैं
    • सम्मेलन के दौरान चिह्नित विशिष्ट चुनौतियों के समाधान के लिये कार्ययोजनाओं का विकास करना।

WTO के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या रहीं?

  • सदस्यता ग्रहण:
    • भागीदार मंत्रियों ने दो सबसे कम विकसित देशों- कोमोरोस और तिमोर-लेस्ते के लिये विश्व व्यापार संगठन में सदस्यता का समर्थन किया। उनके शामिल होने के साथ इससे संगठन की सदस्य संख्या अब 166 हो गई है, जो विश्व व्यापार के 98% भाग का प्रतिनिधित्व करती है।
  • विचार-विमर्श और समझौता वार्ता कार्यकरण में सुधार:
    • MC13 में मंत्रियों ने निम्नलिखित विषयों में हुए कार्यों का स्वागत किया:
      • WTO परिषदों, समितियों और वार्ता समूहों की कार्यप्रणाली में सुधार;
      • संगठन की दक्षता एवं प्रभावशीलता को बढ़ाना; और
      • विश्व व्यापार संगठन के कार्य में सदस्यों की भागीदारी को सुगम बनाना।
    • उन्होंने अधिकारियों को ‘रिफॉर्म बाय डूइंग’ (reform by doing) प्रक्रिया को जारी रखने और 14वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC14) में इसकी प्रगति रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया।
    • MC13 में मंत्रियों ने वर्ष 2024 तक सभी सदस्यों के लिये सुलभ एक पूर्ण कार्यात्मक विवाद निपटान प्रणाली प्राप्त कर लेने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
  • ई-कॉमर्स:
    • MC13 में मंत्रियों ने ई-कॉमर्स मोरेटोरियम (e-commerce moratorium) को MC14 या 31 मार्च 2026 तक (इनमें जो भी पहले हो) नवीनीकृत करने का निर्णय लिया।
  • ट्रिप्स ग़ैर-उल्लंघन और परिदृश्य शिकायतें (TRIPS Non-Violation and Situation Complaints):
    • एक निर्णय में, जिसे प्रायः ई-कॉमर्स मोरेटोरियम (e-commerce moratorium) से जोड़ा गया है, मंत्रियों ने ट्रिप्स समझौते (TRIPS Agreement) के तहत तथाकथित ‘ग़ैर-उल्लंघन’ और ‘परिदृश्यशिकायतों पर मोरेटोरियम का विस्तार करने का भी निर्णय लिया।
    • ऐसी शिकायतें अन्यथा सदस्यों को WTO विवाद निपटान तंत्र में ऐसे IP संबधी उपायों को चुनौती देने की अनुमति देंगी जो ट्रिप्स दायित्वों के साथ असंगत नहीं हैं, लेकिन फिर भी समझौते से अपेक्षित लाभ को कम कर देते हैं।
  • कोविड-19 से संबंधित ट्रिप्स छूट:
    • MC12 में मंत्रियों ने विशेष नियम अपनाए थे जिससे कोविड-19 टीकों के उत्पादन के लिये अनिवार्य लाइसेंस की उपलब्धता का विस्तार हुआ। उन्होंने इस बात पर भी वार्ता का अधिदेश दिया कि इन विशेष नियमों के उत्पाद कवरेज को कोविड-19 डायग्नोस्टिक्स एवं थेरेप्यूटिक्स तक विस्तारित किया जाए या नहीं।
    • MC13 में मंत्रियों ने संपन्न हुए कार्यों और उत्पाद के दायरे के विस्तार पर आम सहमति की कमी पर भी ध्यान दिया। तदनुसार, ये विशेष नियम कोविड 19 डायग्नोस्टिक्स एवं थेरेप्यूटिक्स के उत्पादन के लिये अनिवार्य लाइसेंसिंग पर लागू नहीं होंगे।
  • विशेष एवं विभेदक उपचार:
  • बहुपक्षीय समझौते एवं पहलें:
    • WTO की बहुपक्षीय पहलें (Plurilateral Initiatives) संगठन में आयोजित वे विचार-विमर्श हैं जिनमें केवल सदस्यों का एक उपसमूह भागीदारी करता है। वे नए नियमों के निर्माण, टैरिफ के पारस्परिक उदारीकरण को सुनिश्चित करने, एक नई प्रक्रिया का निर्माण करने या बातचीत शुरू करने पर लक्षित हो सकते हैं।
    • MC13 में ऐसे कई बहुपक्षीय पहलों पर समझौते संपन्न हो गए या उन्होंने महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपने कार्य के परिणामों पर रिपोर्ट सौंपी।
    • इनमें एक महत्त्वपूर्ण बहुपक्षीय पहल विकास के लिये निवेश सुविधा (Investment Facilitation for Development- IFD) से संबंधित है।
  • सेवाओं का घरेलू विनियमन:
    • घरेलू विनियमन के लिये नए विषयों को लागू करने और उन्हें WTO ढाँचे में एकीकृत करने पर हुए समझौते को MC13 की एक व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा गया है।
    • इन विषयों को नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और सरल बनाकर सेवाओं में व्यापार को सुगम बनाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • संवहनीयता-संबंधी पहल:
    • सदस्य देश संवहनीयता-संबंधी पहलों (Sustainability-Related Initiatives) की एक शृंखला पर कार्य करने के लिये विभिन्न समूहों के रूप में एक साथ आए हैं।
    • 78 सदस्यों की एक पहल ‘प्लास्टिक प्रदूषण और पर्यावरण की दृष्टि से संवहनीय प्लास्टिक व्यापार पर संवाद’ (Dialogue on Plastics Pollution and Environmentally Sustainable Plastics Trade) ने प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये व्यापार और व्यापार से संबंधित उपायों एवं नीतियों की पहचान की। 
    • 48 सदस्यों ने जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार की दिशा में प्रगति पर रिपोर्ट सौंपी।
  • मात्स्यिकी सब्सिडी:
    • MC12 में सदस्यों ने मात्स्यिकी सब्सिडी पर समझौता (Agreement on Fisheries Subsidies- AFS) संपन्न किया, जो अवैध, असूचित एवं अनियमित (illegal, unreported, and unregulated- IUU) मत्स्य ग्रहण या ओवरफिश्ड स्टॉक के मत्स्य ग्रहण से संलग्न निकायों को सब्सिडी अनुदान प्रदान करने या इसे बनाए रखने पर रोक लगाता है।
    • MC13 में मंत्रियों ने AFS के लागू होने की दिशा में पिछले 20 माहों में हुई प्रगति का स्वागत किया। 1 मार्च 2024 तक 71 सदस्यों ने इस समझौते की पुष्टि कर दी है।

वर्तमान में कौन-सी चुनौतियाँ WTO की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रही हैं?

  • बहुपक्षीयता का क्षरण:
    • हाल के वर्षों में व्यापार विवादों में वृद्धि और एकतरफा व्यापार कार्रवाइयों के उभार के साथ बहुपक्षीयता (multilateralism) का उल्लेखनीय क्षरण हुआ है।
    • यह प्रवृत्ति व्यापार संघर्षों को सुलझाने और व्यापार समझौतों पर वार्ता के सार्थक मंच के रूप में WTO की प्रभावशीलता को कमज़ोर करती है।
    • MC13 मात्स्यिकी सब्सिडी जैसे प्रमुख मुद्दों पर भी प्रगति करने में विफल रहा, जो 166 सदस्य देशों के बीच गंभीर मतभेद को दर्शाता है।
  • संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध:
    • टैरिफ, कोटा एवं अन्य व्यापार बाधाओं का प्रसार मुक्त व्यापार के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है तथा नियम-आधारित व्यापार प्रणाली के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार विवाद ने बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को तनावपूर्ण बना दिया है और WTO की मध्यस्थता तथा ऐसे संघर्षों को हल कर सकने की क्षमता को चुनौती दी है।
  • विवाद निपटान तंत्र संकट:
    • WTO का विवाद निपटान तंत्र (Dispute Settlement Mechanism), जिसे प्रायः संगठन का ‘मुकुट रत्न’ माना जाता है, को हाल के वर्षों में संकट का सामना करना पड़ा है।
    • व्यापार विवादों पर निर्णय लेने के लिये ज़िम्मेदार अपीलीय निकाय, निकाय में नई नियुक्तियों पर अमेरिका के व्यवधान के कारण निष्क्रिय हो गया है।
    • एक कार्यशील विवाद निपटान तंत्र की अनुपस्थिति बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में भरोसे को कम करती है और एकपक्षीयता को प्रोत्साहित करती है।
  • विकास अंतराल और विशेष एवं विभेदक व्यवहार:
    • विकासशील देशों को लचीलापन एवं सहायता प्रदान करने पर लक्षित विशेष एवं विभेदक उपचार (S&D) के सिद्धांत के बावजूद, व्यापार वार्ता में प्रभावी ढंग से भाग लेने और व्यापार-संबंधी सुधारों को लागू करने की उनकी क्षमता में असमानताएँ बनी हुई हैं।
    • अल्प-विकसित देशों ((LDCs) के पास प्रायः व्यापार के अवसरों का लाभ उठाने के लिये आवश्यक संसाधनों एवं तकनीकी सहायता की कमी होती है, जिससे वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगातार हाशिये पर बने रहते हैं।
  • डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स:
    • डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स की तीव्र वृद्धि WTO के लिये अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करती है। जबकि डिजिटल प्रौद्योगिकियों में व्यापार दक्षता बढ़ाने और आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाने की क्षमता है, वे ऐसे नए नियामक एवं नीतिगत मुद्दे भी खड़े करते हैं जो पारंपरिक व्यापार समझौतों के दायरे से बाहर हैं।
    • WTO को सभी सदस्य देशों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करते हुए डिजिटल व्यापार की उभरती प्रकृति को समायोजित करने के लिये अपने नियमों एवं समझौतों को अनुकूलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
  • पर्यावरण और संवहनीयता संबंधी चिंताएँ:
    • WTO को अपने व्यापार नियमों और समझौतों में पर्यावरण एवं संवहनीयता संबंधी विचारों को शामिल करने के लिये लगातार बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों का वैश्विक व्यापार स्वरूपों एवं अभ्यासों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
    • व्यापार उदारीकरण लक्ष्यों के साथ पर्यावरणीय उद्देश्यों को संतुलित करने के लिये आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संवहनीयता दोनों को बढ़ावा देने वाले नियम विकसित करने के लिये WTO सदस्यों के बीच नवोन्मेषी दृष्टिकोण एवं सहयोग की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और दवाओं तक पहुँच:
    • कोविड-19 महामारी ने व्यापार नीति में सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी विचारों के महत्त्व को उजागर किया। सस्ती दवाओं और चिकित्सा आपूर्ति तक पहुँच अब एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये जो आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों की खरीद में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
    • WTO को विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान सभी के लिये दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों के बीच सामंजस्य बिठाने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • कृषि एवं खाद्य सुरक्षा:
    • हालाँकि कृषि पर WTO विषयों को अद्यतन करना वर्ष 2000 से ही सदस्यों के एजेंडे में रहा है, लेकिन इस दिशा में बहुत कम प्रगति हुई है। MC13 में कृषि वार्ता के दायरे, संतुलन और समयसीमा पर आम सहमति तक पहुँचने में सदस्य देश एक बार फिर विफल रहे।
    • यह विफलता विशेष रूप से ‘खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिये सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग’ (public stockholding for food security purposes) के मुद्दे पर व्यापक असहमति के परिणामस्वरूप हाथ लगी।

विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत भारत की प्राथमिक चिंताएँ क्या हैं?

  • कृषि सब्सिडी और खाद्य सुरक्षा:
    • भारत अपने किसानों की आजीविका एवं खाद्य सुरक्षा पर विकसित देशों द्वारा अपनाई गई कृषि सब्सिडी और घरेलू सहायता उपायों के प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता रखता है।
    • भारत खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिये सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग पर स्थायी समाधान की आवश्यकता के बारे में मुखर रहा है, ताकि विकासशील देशों को व्यापार प्रतिबंधों का सामना किये बिना कृषि उत्पादन पर सब्सिडी देने की अनुमति मिल सके।
    • कृषि समझौते (Agreement on Agriculture) पर WTO की समझौता वार्ता के दौरान इस मुद्दे को प्रमुखता मिली, जहाँ भारत अपने खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को WTO नियमों के तहत उत्पन्न चुनौती से बचाने की इच्छा रखता है।
  • बाज़ार पहुँच और ग़ैर-टैरिफ बाधाएँ:
    • भारत विकसित देशों में अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये बेहतर बाज़ार पहुँच चाहता है। इसके साथ ही भारत ग़ैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करने के उपाय भी चाहता है जो उसके निर्यात के लिये बाधाकारी हैं।
      • ग़ैर-टैरिफ बाधाएँ—जैसे तकनीकी नियम, स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता उपाय और प्रतिबंधात्मक लाइसेंसिंग प्रक्रियाएँ, भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती हैं।
    • भारत ने व्यापार वार्ताओं में एक सतर्क एवं अंशशोधित दृष्टिकोण पर बल दिया है जहाँ यूरोपीय संघ (EU) के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism) जैसे ग़ैर-व्यापार मुद्दों के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए WTO सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित किया जाए।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights- IPR) व्यवस्था:
    • भारत WTO ढाँचे के भीतर एक संतुलित एवं विकासोन्मुख बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था की वकालत करता है। यह सस्ती दवाओं तक पहुँच को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने और पारंपरिक ज्ञान एवं जैव विविधता की रक्षा करने की अपनी क्षमता की रक्षा करना चाहता है।
    • इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण ट्रिप्स समझौते (TRIPS agreement) पर भारत का रुख है, जहाँ उसने अपनी आबादी के लिये आवश्यक दवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये लचीलेपन एवं सुरक्षा उपायों की वकालत की है।
  • अमेरिका द्वारा भारत की पहलों में बाधा:
    • वे विवाद जिनमें भारत एक शिकायतकर्ता या वादी पक्ष है:
      • भारतीय इस्पात उत्पादों पर अमेरिका द्वारा प्रतिकारी शुल्क लगाना
      • गैर-आप्रवासी वीज़ा के संबंध में अमेरिका के उपाय
      • अमेरिका के नवीकरणीय ऊर्जा कार्यक्रम
      • अमेरिका द्वारा इस्पात और एल्यूमीनियम उत्पादों पर आयात शुल्क का अधिरोपण
    • विश्व व्यापार संगठन के वे विवाद जिनमें भारत एक प्रतिवादी पक्ष है:
      • पोल्ट्री और पोल्ट्री उत्पादों के आयात पर भारत द्वारा प्रतिबंध पर अमेरिका द्वारा दर्ज शिकायत
      • कुछ सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी वस्तुओं पर भारत के आयात शुल्क पर यूरोपीय संघ, जापान और ताइवान द्वारा दर्ज शिकायत।
  • विशेष एवं विभेदक उपचार (S&D):
    • भारत WTO समझौतों के सभी क्षेत्रों में S&D प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन पर बल देता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकासशील देश बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली से पूरी तरह से लाभान्वित हो सकें।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने वैश्विक व्यापार संबंधों में विषमताओं को दूर करने के लिये टैरिफ कटौती प्रतिबद्धताओं, व्यापार सुविधा उपायों और विवाद निपटान प्रक्रियाओं जैसे क्षेत्रों में विभेदक उपचार की वकालत की है।

विश्व व्यापार संगठन (WTO) में कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  • विवाद निपटान तंत्र को पुनर्जीवित करना :
    • व्यापार विवादों का समय पर और प्रभावी समाधान सुनिश्चित करने के लिये अपीलीय निकाय की कार्यक्षमता को पुनर्बहाल करना अत्यंत आवश्यक है।
    • अपीलीय निकाय में नए सदस्यों की नियुक्ति में गतिरोध को दूर करने और WTO के विवाद निपटान तंत्र की अखंडता को बनाए रखने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • दंड के लिये उपयुक्त प्रावधान:
    • यदि किसी देश ने कुछ गलत किया हो तो उसे शीघ्रता से अपनी गलतियों को सुधारना चाहिये। यदि वह किसी समझौते का उल्लंघन जारी रखता है तो उसे मुआवजे की पेशकश करनी चाहिये या ऐसी उचित प्रतिक्रिया का सामना करना चाहिये जिसमें कुछ उपचार (remedy) शामिल हो। यह वस्तुतः दंड नहीं है, बल्कि एक ‘उपचार’ है, जहाँ अंतिम लक्ष्य यह है कि संबद्ध देश निर्णय का पालन करे।
    • ऐसे दोषी देशों को हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund) में अनिवार्य रूप से एक विशेष राशि जमा करने के लिये बाध्य किया जा सकता है।
  • आधुनिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिये व्यापार नियमों को अद्यतन करना:
    • डिजिटल व्यापार, ई-कॉमर्स और पर्यावरणीय संवहनीयता जैसे उभरते मुद्दों के को संबोधित करने के लिये WTO के नियमों और समझौतों को अद्यतन करने की आवश्यकता है।
    • यहाँ तात्कालिक सुधारों को नई प्रौद्योगिकियों को समायोजित करने, सतत विकास को बढ़ावा देने और समावेशी आर्थिक विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये व्यापार नियमों को आधुनिक बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • S&D प्रावधानों को सुदृढ़ करना:
    • विकासशील और अल्प-विकसित देशों के विकास उद्देश्यों का समर्थन करने के लिये S&D प्रावधानों की प्रभावशीलता को बढ़ाना आवश्यक है।
    • यहाँ तात्कालिक सुधारों का लक्ष्य S&D प्रावधानों को विकासशील देशों के समक्ष विद्यमान विशिष्ट आवश्यकताओं एवं चुनौतियों (विशेष रूप से कृषि, IPR एवं सेवा व्यापार जैसे क्षेत्रों में) के प्रति अधिक क्रियाशील एवं उत्तरदायी बनाना होना चाहिये।
  • व्यापार विकृतियों और सब्सिडी को संबोधित करना:
    • व्यापार-विकृतिकारी अभ्यासों—जिसमें सब्सिडी भी शामिल है जो बाज़ार प्रतिस्पर्द्धा को विकृत करती है और निष्पक्ष व्यापार को कमज़ोर करती है, को संबोधित करने के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, 
    • यहाँ सुधारों को WTO के सभी सदस्यों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये सब्सिडी और सरकारी समर्थन के अन्य रूपों पर नियंत्रण मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • समावेशी निर्णयन को बढ़ावा देना:
    • WTO के भीतर समावेशी निर्णयन प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करना इसकी वैधता एवं प्रभावशीलता को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक है।
    • यहाँ तत्काल सुधारों को WTO वार्ताओं, समितियों और निर्णयकारी निकायों में विकासशील एवं अल्प-विकसित देशों सहित सभी सदस्य देशों की अधिक भागीदारी एवं प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

निष्कर्ष

तेज़ी से विकसित हो रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी वैधता और केंद्रीय भूमिका को बनाए रखने के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) को दूरदर्शी सुधार करने चाहिये। इसमें सभी सदस्य देशों की आवाज़ के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिये समावेशिता को प्राथमिकता देना, आधुनिकीकरण एवं नवाचार के माध्यम से उभरती चुनौतियों एवं अवसरों के प्रति तेज़ी से अनुकूलित होना और हितधारकों के बीच भरोसा निर्माण के लिये पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बनाए रखना शामिल है।

अभ्यास प्रश्न: विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की उपलब्धियों एवं विफलताओं पर विचार कीजिये। उभरते वैश्विक परिदृश्य में इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिये WTO सुधार हेतु रणनीतियों के प्रस्ताव कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'एग्रीमेंट ओन एग्रीकल्चर', 'एग्रीमेंट ओन द एप्लीकेशन ऑफ सेनेटरी एंड फाइटोसेनेटरी मेज़र्स और 'पीस क्लाज़' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं; (2015)

(a) खाद्य और कृषि संगठन
(b) जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का रुपरेखा सम्मेलन
(c) विश्व व्यापार संगठन
(d) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस संदर्भ में कभी-कभी समाचारों में 'एम्बर बॉक्स, ब्लू बॉक्स और ग्रीन बॉक्स' शब्द देखने को मिलते हैं? (2016)

(a) WTO मामला
(b) SAARC मामला
(c) UNFCCC मामला
(d) FTA पर भारत-EU वार्ता

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. “विश्व व्यापार संगठन के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन एवं प्रोन्नति करना है। लेकिन वार्ताओं की दोहा परिधि मृत्योन्मुखी प्रतीत होती है, जिसका कारण विकसित तथा विकासशील देशों के बीच मतभेद है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पर चर्चा कीजिये। (2016)

प्रश्न. यदि 'व्यापार युद्ध' के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन को जिंदा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (2018)

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