जैव विविधता और पर्यावरण
कार्बन सीमा समायोजन तंत्र
- 11 May 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, कार्बन ट्रेड, कार्बन उत्सर्जन, ETS, ग्रीन एनर्जी, डीकार्बोनाइज़ेशन मेन्स के लिये:कार्बन सीमा समायोजन तंत्र और भारत पर इसका प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
यूरोपीय संघ (European Union- EU) ने घोषणा की है कि कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM), जो गैर-हरित या पर्यावरणीय रूप से अस्थिर प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके बनाए गए सामानों के आयात पर कार्बन टैक्स लगाएगा, को अक्तूबर 2023 से संक्रमणकालीन चरण में पेश किया जाएगा।
- CBAM 1 जनवरी, 2026 से यूरोपीय संघ में चुनिंदा आयातों पर 20-35% कर आरोपित करेगा।
कार्बन सीमा समायोजन तंत्र:
- परिचय:
- CBAM "फिट फॉर 55 इन 2030 पैकेज" का एक घटक है, जो वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कम-से-कम 55% की कटौती करके यूरोपीय जलवायु कानून का पालन करने की यूरोपीय संघ की रणनीति है।
- CBAM नीति उपकरण है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करके कार्बन उत्सर्जन को कम करना है कि आयातित सामान यूरोपीय संघ के भीतर उत्पादित उत्पादों के समान कार्बन लागत के अधीन हैं।
- कार्यान्वयन:
- CBAM को वार्षिक आधार पर आयातकों को यूरोपीय संघ में आयातित वस्तुओं की मात्रा के साथ-साथ उनके निहित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की घोषणा करने पर लागू किया जाएगा।
- इन उत्सर्जन को ऑफसेट करने हेतु आयातकों को CBAM प्रमाणपत्रों की एक समान संख्या को सरेंडर करने की आवश्यकता होगी, जिसकी कीमत EU एमिशन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS) भत्ते के साप्ताहिक औसत नीलामी मूल्य प्रति टन यूरो CO2 उत्सर्जन पर आधारित होगी।
- उद्देश्य:
- CBAM यह सुनिश्चित करेगा कि इसके जलवायु लक्ष्य कार्बन-गहन आयात के संकट में न पड़ें और शेष विश्व में स्वच्छ उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा सके।
- महत्त्व:
- यह गैर-यूरोपीय संघ के देशों को और अधिक कड़े पर्यावरणीय नियमों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है जिससे वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की संभावना है।
- यह कंपनियों को पर्यावरण संबंधी कम सख्त नियमों वाले देशों में स्थानांतरित होने से रोक कर कार्बन उत्सर्जन को रोक सकता है।
- CBAM से उत्पन्न राजस्व का उपयोग यूरोपीय संघ की जलवायु नीतियों का समर्थन करने के लिये किया जाएगा, इससे अन्य देश भी हरित ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
भारत पर प्रभाव:
- भारत के निर्यात पर प्रभाव:
- इसका भारत द्वारा यूरोपीय संघ को किये जाने वाले लौह, इस्पात और एल्युमीनियम जैसे उत्पादों के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इस प्रणाली के तहत इन्हें अतिरिक्त जाँच का सामना करना पड़ेगा।
- भारत द्वारा यूरोपीय संघ को लौह अयस्क और इस्पात का निर्यात किया जाता है, इन पर 19.8% से लेकर 52.7% तक कार्बन कर लगाए जाने से व्यापार पर काफी प्रभावित होने की संभावना है।
- 1 जनवरी, 2026 से यूरोपीय संघ इस्पात, एल्युमिनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और विद्युत की हर खेप पर कार्बन कर वसूलना शुरू कर देगा।
- कार्बन तीव्रता और उच्च शुल्क:
- भारतीय उत्पादों की कार्बन तीव्रता यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है क्योंकि ऊर्जा खपत में कोयले का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है।
- भारत में कोयले से उत्पन्न होने वाली विद्युत का अनुपात 75% के करीब है जो कि यूरोपीय संघ (15%) और वैश्विक औसत (36%) से काफी अधिक है।
- अतः लौह और इस्पात तथा एल्युमीनियम का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष उत्सर्जन भारत के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय है क्योंकि उच्च उत्सर्जन के कारण यूरोपीय संघ को उच्च कर का भुगतान करना पड़ेगा।
- भारतीय उत्पादों की कार्बन तीव्रता यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है क्योंकि ऊर्जा खपत में कोयले का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धा के लिये खतरा:
- यह प्रारंभ में कुछ क्षेत्रों को प्रभावित करेगा, लेकिन आने वाले समय में अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित कर सकता है, जैसे कि परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद, जैविक रसायन, फार्मा दवाएँ और वस्त्र, जो यूरोपीय संघ द्वारा भारत से आयात किये जाने वाले शीर्ष 20 उत्पादों में शामिल हैं।
- चूँकि भारत में कोई स्वदेशी कार्बन मूल्य निर्धारण योजना नहीं है, इससे प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ने का जोखिम होता है, क्योंकि कार्बन मूल्य निर्धारण प्रणाली वाले अन्य देशों को न्यूनतम कार्बन कर का भुगतान करना पड़ सकता है अथवा उन्हें छूट भी मिल सकती है।
CBAM के प्रभाव को कम करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- डीकार्बोनाइज़ेशन सिद्धांत:
- सरकार के पास राष्ट्रीय इस्पात नीति जैसी योजनाएँ हैं, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का उद्देश्य भारत की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है, लेकिन वह कार्बन दक्षता ऐसी योजनाओं के उद्देश्यों से परे है।
- सरकार इन योजनाओं को डीकार्बोनाइज़ेशन सिद्धांत के साथ शामिल कर सकती है।
- डीकार्बोनाइज़ेशन का तात्पर्य परिवहन, विद्युत उत्पादन, निर्माण और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कम करने या समाप्त करने की प्रक्रिया से है।
- कर कटौती के लिये यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता:
- भारत अपने ऊर्जा करों को कार्बन मूल्य के समतुल्य मानने के लिये यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता कर सकता है, जो इसके निर्यात को CBAM के प्रति कम संवेदनशील बनाएगा।
- उदाहरण के लिये भारत यह तर्क दे सकता है कि कोयले पर उसका कर, कार्बन उत्सर्जन की आंतरिक लागत को निर्मित करने का एक उपाय है, जो कार्बन कर के समकक्ष है।
- स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण:
- भारत के उत्पादन क्षेत्र को अधिक कार्बन कुशल बनाने में सहायता के लिये भारत को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और वित्तपोषण तंत्र को स्थानांतरित करने हेतु यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता करनी चाहिये।
- इसे वित्तपोषित करने का एक तरीका यह है कि भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं का समर्थन करने के लिये यूरोपीय संघ को अपने CBAM राजस्व का एक हिस्सा अलग रखने का प्रस्ताव दिया जाए।
- साथ ही भारत को भी नई व्यवस्था के लिये उसी तरह तैयारी प्रारंभ कर देनी चाहिये जैसे चीन और रूस कार्बन ट्रेडिंग सिस्टम स्थापित कर कर रहे हैं।
- भारत के उत्पादन क्षेत्र को अधिक कार्बन कुशल बनाने में सहायता के लिये भारत को स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और वित्तपोषण तंत्र को स्थानांतरित करने हेतु यूरोपीय संघ के साथ समझौता वार्ता करनी चाहिये।
- हरित उत्पादन को प्रोत्साहन:
- भारत तैयारी प्रारंभ करने के साथ-साथ स्वच्छ उत्पादन को प्रोत्साहित करके उसे हरा-भरा और सतत् बनाने का अवसर हासिल कर सकता है, जो भविष्य में अधिक कार्बन के प्रति जागरूक और प्रतिस्पर्द्धी दोनों रूप से भारत को लाभान्वित करेगा।
- अपने विकासात्मक लक्ष्यों एवं आर्थिक आकांक्षाओं से समझौता किये बिना अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली और इसके शुद्ध शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त करना है।
- यूरोपीय संघ का टैक्स फ्रेमवर्क:
- भारत को G-20, 2023 के नेता के रूप मे अन्य देशों की वकालत करने के लिये अपनी स्थिति का उपयोग करना चाहिये और उनसे यूरोपीय संघ के कार्बन टैक्स ढाँचे का विरोध करने का आग्रह करना चाहिये।
- भारत को न केवल अपने हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये बल्कि इसके नकारात्मक प्रभाव पर भी विचार करना चाहिये क्योंकि CBAM का प्रभाव उन गरीब देशों पर पड़ेगा जो खनिज संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
निष्कर्ष:
- CBAM आयातित वस्तुओं से कार्बन उत्सर्जन को कम करने और एक निष्पक्ष-व्यापार वातावरण बनाने की नीति है।
- यह अन्य देशों को सख्त पर्यावरणीय नियमों और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न 1. निम्नलिखित में से किसने अपने नागरिकों के लिये डेटा संरक्षण (डेटा प्रोटेक्शन) और प्राइवेसी के लिये 'सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन)' नामक एक कानून अप्रैल 2016 में अपनाया और उसका 25 मई, 2018 से कार्यान्वयन शुरू कर दिया? (2019) (a) ऑस्ट्रेलिया उत्तर: (c) प्रश्न 2. 'व्यापक-आधारयुक्त व्यापार और निवेश करार (ब्रॉड-बेस्ड ट्रेड एंड इनवेस्टमेंट एग्रीमेंट/BTIA)' कभी-कभी समाचारों में भारत एवं निम्नलिखत में से किस के बीच बातचीत के संदर्भ में दिखाई पढ़ता है। (2017) (a) यूरोपीय संघ उत्तर: (a) |