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कृषि

कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग

  • 31 Jan 2023
  • 20 min read

यह एडिटोरियल 28/01/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “How prepared is the agriculture sector in carbon trading?” लेख पर आधारित है। इसमें ‘कार्बन ट्रेडिंग’ के विषय में कृषि क्षेत्र की क्षमता पर विचार किया गया है।

संदर्भ

कृषि क्षेत्र कार्बन व्यापार या ‘कार्बन ट्रेडिंग’ (Carbon Trading) में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है क्योंकि इसमें कार्बन के उत्सर्जन (Emission) और प्रच्छादन (Sequestration: वनस्पति और मृदा में कार्बन भंडारण की प्रक्रिया) दोनों की क्षमता निहित है। खेती, उर्वरक उपयोग और पशुधन उत्पादन जैसी कृषि गतिविधियाँ वातावरण में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कर सकती हैं, तो दूसरी ओर, कृषि वानिकी, संरक्षण खेती और मृदा कार्बन प्रच्छादन (soil carbon sequestration) जैसे अभ्यास कार्बन को वातावरण से जब्त करते हुए इसे मृदा में संग्रहित कर सकते हैं।

  • भारत ने अगस्त 2022 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCC) के लिये अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution- NDCs) को अद्यतन किया है। अद्यतन किये गए NDCs में वर्ष 2030 तह 50% संचयी विद्युत शक्ति गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करना और वन एवं वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5-3 बिलियन टन CO2 समतुल्य का एक अतिरिक्त कार्बन सिंक स्थापित करना शामिल है।
  • अद्यतन किये गए NDCs लक्ष्य में वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% तक कम करना भी निर्धारित किया गया है। इसमें जलवायु परिवर्तन से मुकाबले की एक कुंजी के रूप में ‘पर्यावरण के लिये जीवन शैली (LiFE – ‘Lifestyle for Environment’) हेतु एक जन आंदोलन छेड़ने के साथ ही एक स्वस्थ एवं संवहनीय जीवन शैली को प्रोत्साहन देने की भी बात की गई है।
  • संसद द्वारा ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया गया है जो गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा स्रोतों की खोज एवं उपयोग तथा एक राष्ट्रीय कार्बन बाज़ार के निर्माण का उपबंध करता है। यह विधेयक वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन (Net Zero Emission) के लक्ष्य को प्राप्त करने का भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण भी रखता है।

कार्बन ट्रेडिंग क्या है?

  • कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग या कार्बन व्यापार कार्बन क्रेडिट की खरीद एवं बिक्री को संदर्भित करता है। यह कार्बन क्रेडिट उन अभ्यासों से सृजित होता है जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हैं या खेतों में और अन्य कृषि भूमि पर कार्बन प्रच्छादन की वृद्धि करते हैं।
    • इन अभ्यासों में संरक्षण खेती (Conservation Tillage), कृषि वानिकी (Agroforestry) और अन्य स्थायी भूमि प्रबंधन तकनीकों जैसे कई विषय शामिल हैं।
  • कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग की अवधारणा को किसानों को पर्यावरण अनुकूल अभ्यासों को अपनाने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है।

कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग कौन-से अवसर प्रस्तुत करता है?

  • अतिरिक्त राजस्व:
    • कार्बन ऑफसेट परियोजनाओं में भाग लेने से किसानों को कार्बन क्रेडिट की बिक्री के माध्यम से अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन:
    • कार्बन उपशमन संबंधी कृषि अभ्यासों (Carbon Abatement Farming Practices) को अपनाने से मृदा में कार्बन प्रच्छादन करने में मदद मिल सकती है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में योगदान दे सकती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती है।
  • मृदा स्वास्थ्य सुधार:
    • संरक्षण खेती एवं कृषि वानिकी जैसी विभिन्न कार्बन उपशमन कृषि पद्धतियाँ मृदा स्वास्थ्य में सुधार ला सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप फसल की पैदावार में वृद्धि हो सकती है और जल प्रतिधारण में सुधार आ सकता है।
  • जैव विविधता संरक्षण:
    • कृषि वानिकी जैसी कुछ कार्बन उपशमन कृषि पद्धतियाँ जैव विविधता को बढ़ावा देने और जंगली प्रजातियों के अस्तित्व का समर्थन करने में भी मदद कर सकती हैं।
  • सतत् भूमि उपयोग:
    • कार्बन ऑफसेट परियोजनाएँ किसानों को सतत/संवहनीय भूमि-उपयोग अभ्यासों को अपनाने के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर सकती हैं, जो फिर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती हैं।
  • ग्रामीण विकास:
    • कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार एवं आय-सृजन के अवसर पैदा करके और इस क्षेत्र में लघु एवं मध्यम उद्यमों के विकास का समर्थन करके ग्रामीण विकास को भी बढ़ावा दे सकता है।

कृषि द्वारा प्रच्छादित कार्बन के व्यापार से संबद्ध चुनौतियाँ

  • कार्बन प्रच्छादन के परिशुद्ध मापन एवं सत्यापन की कठिनाई:
    • मृदा में कार्बन चक्र की जटिल प्रकृति और मौसम एवं मृदा के प्रकार जैसे अन्य कारकों से विशिष्ट कृषि पद्धतियों के प्रभावों को पृथक कर सकने की जटिलता से यह कठिनाई उत्पन्न होती है।
  • राजस्व का मुद्दा:
    • कार्बन उपशमन अभ्यासों को अपनाने के परिणामस्वरूप अपेक्षित अतिरिक्त राजस्व और फसल की उपज पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार किया जाना चाहिये।
    • कोई किसान कार्बन उपशमन अभ्यासों को तभी अपनाएगा जब उसे उम्मीद हो कि कार्बन क्रेडिट की बिक्री से प्राप्त राजस्व इसे अपनाने से फसल उपज में होने वाली किसी हानि की भरपाई कर देगा।
  • विश्वसनीय डेटा का अभाव:
    • कृषि अभ्यासों द्वारा कार्बन प्रच्छादन पर सटीक एवं सुसंगत डेटा की कमी है, जिससे कार्बन क्रेडिट की मात्रा निर्धारित करना और इसका व्यापार करना कठिन हो जाता है।
  • जटिल विनियमन:
    • भारत में कार्बन ट्रेडिंग के लिये मौजूद नियामक ढाँचा जटिल है और अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ है, जिससे किसानों एवं अन्य हितधारकों के लिये कार्बन बाज़ारों में भाग लेना कठिन हो जाता है।
  • लेनदेन की उच्च लागत:
    • कार्बन क्रेडिट के मापन, सत्यापन और व्यापार से संबद्ध लागतें उच्च हो सकती हैं, जिससे छोटे किसानों एवं अन्य हितधारकों के लिये कार्बन बाज़ारों में भागीदारी दुरूह बन सकती है।
  • सीमित मांग:
    • वर्तमान में कृषि क्षेत्र से कार्बन क्रेडिट की मांग सीमित है, जिससे किसानों एवं अन्य हितधारकों के लिये अपने क्रेडिट हेतु खरीदार ढूँढ़ना कठिन हो जाता है।
  • जागरूकता की कमी:
    • भारत में किसानों और अन्य हितधारकों की एक बड़ी संख्या कार्बन ट्रेडिंग से जुड़े अवसरों एवं लाभों और कार्बन बाज़ारों में भागीदारी के तरीके के बारे में जागरूकता की कमी रखती है।

आगे की राह

  • मापन और सत्यापन की एक पारदर्शी प्रक्रिया विकसित करना:
    • प्रच्छादित कार्बन के लिये एक बाज़ार निर्माण की दिशा में पहला कदम यह होगा कि विभिन्न कृषि अभ्यासों द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त कार्बन के मापन और सत्यापन की एक पारदर्शी प्रक्रिया विकसित की जाए।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और रिमोट सेंसिंग का उपयोग कर कार्बन प्रच्छादन की मात्रा का आकलन करना संभव है।
  • कार्बन ट्रेडिंग में भागीदारी को सुविधाजनक बनाना:
    • स्वैच्छिक कार्बन बाज़ार में कार्बन क्रेडिट की व्यक्तिगत रूप से बिक्री करना किसानों के लिये एक दुरूह प्रक्रिया है।
    • इस दृष्टिकोण से, कार्बन ट्रेडिंग में उनकी भागीदारी को किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और सहकारी समितियों जैसे सामूहिक प्रयासों द्वारा सुगम बनाया जा सकता है। ये समूह किसानों को कार्बन उपशमन अभ्यासों को अपनाने हेतु संगठित करने और उनकी ओर से अर्जित कार्बन क्रेडिट की बिक्री करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
      • ‘Boomitra’ और ‘Nurture.Farm’ जैसी कुछ एग्रो-टेक कंपनियाँ स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों में किसानों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये बिचौलियों के माध्यम से उन्हें संगठित करती हैं।
  • कृषक समुदायों के बीच जागरूकता का प्रसार करना:
    • उन्नत कृषि अभ्यासों को अपनाने और कार्बन बाज़ारों में भागीदारी करने से संबद्ध लाभों के बारे में कृषक समुदायों के बीच जागरूकता का प्रसार करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और सतत कृषि अभ्यासों को बढ़ावा देने के लिये कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग को किस प्रकार प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है? चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

Q1. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है?  (वर्ष 2009)

 (A) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो
 (B) क्योटो प्रोटोकॉल
 (C) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
 (D) जी-8 शिखर सम्मेलन, हेलीजेंडम

उत्तर: (B)

व्याख्या:

  • वर्ष 1997 में अपनाया गया क्योटो प्रोटोकॉल वर्ष 2005 में लागू हुआ। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो वर्ष 1992 के संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) को विस्तारित करती है जो पार्टियों को वैज्ञानिक सहमति के आधार पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध करती है।
    • उत्सर्जन व्यापार, जैसा कि क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 17 में निर्धारित किया गया है, उन देशों को इसके व्यापार करने की अनुमति देता है जिनके पास और अधिक उत्सर्जन का अधिकार है किंतु उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया हैं। इस अतिरिक्त उत्सर्जन क्षमता को उन देशों को बेच सकते हैं जो अपने लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं।
    • कार्बन क्रेडिट माप की एक इकाई है, यह किसी व्यक्ति या किसी इकाई/कंपनी या देश को दिया गया क्रेडिट है यदि वे अपने GHG उत्सर्जन (CO2 समतुल्य) को 1 यूनिट कम कर देते हैं। यह क्योटो प्रोटोकॉल के तहत स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के माध्यम से प्रदान किया जाता है, जो "कार्बन बाज़ार" की सुविधा प्रदान करता है।
  • रियो डी जनेरियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन या रियो शिखर सम्मेलन, जून 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित एक प्रमुख संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन था।
    • यह शिखर सम्मेलन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पर एक समझौते के साथ संपन्न हुआ जिसके परिणामस्वरूप क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता हुआ।
    • एक अन्य समझौता "मूल निवासियों की भूमि पर ऐसी कोई भी गतिविधि नहीं करने के लिए था जिससे पर्यावरण का क्षरण हो या जो सांस्कृतिक रूप से अनुपयुक्त हो"।
    • शिखर सम्मेलन में शामिल दस्तावेज़ हैं; पर्यावरण और विकास पर रियो घोषणा, एजेंडा 21, वन सिद्धांत।
  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए वियना कन्वेंशन का एक प्रोटोकॉल है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे ओज़ोन क्षरण के लिए उत्तरदायी माने जाने वाले कई पदार्थों के उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करके ओज़ोन परत की रक्षा के लिए बनाया गया है।
  • हेलीगेंडम में आयोजित 33वें जी8 शिखर सम्मेलन का परिणाम हेइलीगेंडम प्रक्रिया थी। यह प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रासंगिक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने के लिए थी।

फोकस के चार क्षेत्र

  • नवाचार को बढ़ावा देना और उसकी रक्षा करना;
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के सिद्धांतों को मज़बूत करने सहित खुले निवेश के माहौल के माध्यम से निवेश की स्वतंत्रता को मजबूत करना;
  • विशेष रूप से अफ्रीका पर ध्यान केंद्रित करते हुए, विकास के लिए संयुक्त उत्तरदायित्वों का निर्धारण;
  • CO2 उत्सर्जन को कम करने में योगदान देने के उद्देश्य से ऊर्जा दक्षता और प्रौद्योगिकी सहयोग में सुधार के बारे में जानने के लिए संयुक्त पहुँच।

अतः विकल्प (B) सही उत्तर है


Q2.  "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?  (वर्ष 2011)

(A) क्योटो प्रोटोकॉल के साथ कार्बन क्रेडिट सिस्टम की पुष्टि की गई थी।
(B) कार्बन क्रेडिट उन देशों या समूहों को दिया जाता है जिन्होंने ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अपने उत्सर्जन कोटा से कम कर दिया है।
(C) कार्बन क्रेडिट सिस्टम का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वृद्धि को सीमित करना है।
(D) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर निर्धारित मूल्य पर कार्बन क्रेडिट का कारोबार किया जाता है।

उत्तर: (D)

व्याख्या:

  • उत्सर्जन व्यापार, जैसा कि क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 17 में निर्धारित किया गया है, उन देशों को इसके व्यापार करने की अनुमति देता है जिनके पास और अधिक उत्सर्जन का अधिकार है किंतु उन्होंने इसका उपयोग नहीं किया हैं। इस अतिरिक्त उत्सर्जन क्षमता को उन देशों को बेच सकते हैं जो अपने लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन कर रहे हैं।
  • यदि कोई देश हाइड्रोकार्बन की लक्षित मात्रा से कम का उत्सर्जन करता है तो वह अपने अधिशेष क्रेडिट को उन देशों को बेच सकता है जो उत्सर्जन कटौती खरीद समझौते (ERPA) के माध्यम से अपने क्योटो स्तर के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं करते हैं।
  • प्रमाणित उत्सर्जन कटौती (CER) सीडीएम परियोजनाओं द्वारा प्राप्त उत्सर्जन में कमी के लिए स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के कार्यकारी बोर्ड द्वारा जारी उत्सर्जन इकाइयों (या कार्बन क्रेडिट) का एक प्रकार है।
    • यह क्योटो प्रोटोकॉल के नियमों के तहत एक DOE (नामित परिचालन इकाई) द्वारा सत्यापित है।
    • उपयोग की सतत् प्रथाओं और पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग कार्बन-क्रेडिट उत्पन्न करते हैं जिनका व्यापार किया जा सकता है। इस प्रकार यह जीएचजी उत्सर्जन में कमी लाता है क्योंकि यह एक प्रतिस्पर्द्धि और लाभकारी बाज़ार विकसित करता है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (IPCC) ने कार्बन क्रेडिट व्यवस्था को "बाज़ार उन्मुख तंत्र" के रूप में विकसित किया।

 अतः विकल्प (D) सही उत्तर है


मुख्य परीक्षा

Q1. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद UNFCCC के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र की खोज को बनाए रखा जाना चाहिये?  आर्थिक विकास के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा करें।  (वर्ष 2014)

 Q2. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा करें और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख करें। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिए नियंत्रण उपायों की व्याख्या करें। (वर्ष 2022)

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