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एडिटोरियल


भारतीय अर्थव्यवस्था

अनिवार्य लाइसेंसिंग की प्रासंगिकता

  • 19 May 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 18/05/2021 को 'द हिंदू' में प्रकाशित लेख “Walk the talk on TRIPS waiver” पर आधारित है। यह कोविड -19 हेतु टीके की कमी को पूरा करने के लिये विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के तहत अनिवार्य लाइसेंसिंग की आवश्यकता के बारे में बात करता है।

संदर्भ

हाल ही में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने कोविड-19 के टीकों, दवाओं, चिकित्सा विज्ञान और संबंधित प्रौद्योगिकियों पर ट्रिप्स समझौते के प्रमुख प्रावधानों को लचीला बनाने का प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव को अमेरिका ने भी अपना समर्थन दिया है।

  • उपर्युक्त प्रस्ताव सदस्य देशों को विश्व व्यापार संगठन में कानूनी संरक्षण प्रदान करेगा यदि उनके घरेलू बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Right- IPR) कानून इस विषय पर लागू नहीं होते हैं।
  • इस प्रस्ताव के पीछे मूल विचार यह सुनिश्चित करना है कि बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े कानून कोविड-19 से मुकाबला करने के लिये आवश्यक चिकित्सा उत्पादों के उत्पादन में बाधा न बने। हालाॅंकि, इस प्रस्ताव से भारत में कोविड-19 टीके की कमी की समस्या का समाधान होने की संभावना नहीं है।
  • टीके से जुड़े बौद्धिक संपदा अधिकार में छूट प्राप्त करने की कोशिश करने के बजाय भारत सरकार को टीका निर्माताओं को उत्पादन (अनिवार्य लाइसेंस के माध्यम से) का विस्तार करने तथा खरीद एवं वितरण में अक्षमताओं को कम कर चिकित्सा तंत्र को सक्षम बनाने की दिशा में अग्रसर होना चाहिये।

क्या है बौद्धिक संपदा अधिकार?

  • व्यक्तियों को उनके बौद्धिक सृजन के परिप्रेक्ष्य में प्रदान किये जाने वाले अधिकार ही बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाते हैं। वस्तुतः ऐसा समझा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का बौद्धिक सृजन (जैसे साहित्यिक कृति की रचना, शोध, आविष्कार आदि) करता है तो सर्वप्रथम इस पर उसी व्यक्ति का अनन्य अधिकार होना चाहिये। चूँकि यह अधिकार बौद्धिक सृजन के लिये ही दिया जाता है, अतः इसे बौद्धिक संपदा अधिकार की संज्ञा दी जाती है। 

ट्रिप्स समझौता और भारतीय कानून

  • विश्व व्यापार संगठन में वर्ष 1995 में ट्रिप्स समझौते पर वार्ता हुई थी। इसके तहत सभी हस्ताक्षरकर्त्ता देशों को इससे जुड़े घरेलू कानून बनाने की आवश्यकता है।
    • यह बौद्धिक संपदा हेतु सुरक्षा के न्यूनतम मानकों की गारंटी देता है।
    • इस तरह की कानूनी स्थिरता नवोन्मेषकों को कई देशों में अपनी बौद्धिक संपदा का मुद्रीकरण करने में सक्षम बनाती है।
  • वर्ष 2001 में, विश्व व्यापार संगठन द्वारा ‘दोहा घोषणा’ पर हस्ताक्षर किये गए। इसके तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में सरकारें कंपनियों एवं निर्माताओं को अपने पेटेंट लाइसेंस देने के लिये मजबूर कर सकती हैं, भले ही उन्हें नहीं लगता कि प्रस्तावित मूल्य स्वीकार्य है।
    • यह प्रावधान जिसे आमतौर पर "अनिवार्य लाइसेंसिंग" कहा जाता है, ट्रिप्स समझौते के तहत पहले से शामिल था किंतु, दोहा घोषणा ने इसके उपयोग को स्पष्ट किया था।
  • वर्ष 1970 के भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 92 के तहत, केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय आपातकाल या अत्यधिक आवश्यक परिस्थितियों के मामले में किसी भी समय अनिवार्य लाइसेंस जारी करने हेतु अनुमति देने की शक्ति है।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organisation- WIPO)

  • यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी एजेंसियों में से एक है।
  • इसका गठन वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है।
  • वर्तमान में 193 देश इस संगठन के सदस्य हैं।
  • भारत वर्ष 1975 में इस संगठन का सदस्य बना था।

ट्रिप्स के प्रावधानों में छूट का भारत में कोविड-19 की स्थिति पर प्रभाव

  • जटिल बौद्धिक संपदा तंत्र: टीके के विकास और निर्माण की प्रक्रिया में कई चरण होते हैं और इसमें एक जटिल बौद्धिक संपदा तंत्र शामिल होता है।
    • अलग-अलग चरणों में बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े अलग-अलग तरह के कानून लागू होते हैं।
    • टीके को बनाने के फॉर्मूले को एक ‘ट्रेड सीक्रेट’ (Trade Secret) के रूप में संरक्षित किया जा सकता है और नैदानिक ​​​​परीक्षणों के आँकड़ों को वैक्सीन सुरक्षा और प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिये कॉपीराइट नियमों के अंतर्गत संरक्षित किया जा सकता है।
  • जटिल निर्माण तंत्र: टीकों निर्माण प्रक्रिया के तहत समग्र प्रक्रिया को डिज़ाइन करने, आवश्यक कच्चा माल प्राप्त करने, उत्पादन सुविधाओं का निर्माण करने तथा नियामक अनुमोदन प्राप्त करने के लिये आवश्यक नैदानिक परीक्षण आयोजित करने की आवश्यकता होती है।
    • इस तरह स्वयं निर्माण प्रक्रिया में ही कई चरण होते हैं। अतः केवल पेटेंट में छूट प्राप्त कर लेने से निर्माताओं को तुरंत टीके का उत्पादन शुरू करने का अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता है।

आगे की राह: अनिवार्य लाइसेंसिंग की प्रासंगिकता

  • टीके की कमी को दूर करना: अमीर देशों ने अब तक लगभग 80 प्रतिशत टीके की आपूर्ति पर कब्ज़ा जमाया हुआ है।
    • जबकि भारत को अपनी 18 वर्ष से अधिक आयु की 900 मिलियन से अधिक की आबादी के लिये जल्द-से-जल्द लगभग 1.8 बिलियन खुराक सुनिश्चित करने हेतु अपने उत्पादन को तेज़ी से बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • इस प्रकार, अनिवार्य लाइसेंसिंग का उपयोग दवाओं और अन्य चिकित्सीय आपूर्ति को बढ़ाने के लिये किया जा सकता है।
  • स्वैच्छिक लाइसेंसिंग: कोविड-19 से संबंधित चिकित्सीय उपकरणों की तकनीक एवं दवाओं के अनिवार्य लाइसेंस के मुद्दे पर सकारात्मक रूप से चर्चा कर दवा कंपनियों को स्वेच्छा से लाइसेंस देने के लिये प्रेरित किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिये कोवैक्सिन (Covaxin) को व्यापक रूप से लाइसेंस प्रदान करने से भारत 'विश्व की फार्मेसी' होने की उम्मीद पर खरा उतरने में सक्षम होगा और इससे विकसित देशों पर अपनी वैक्सीन प्रौद्योगिकी को विकासशील देशों में स्थानांतरित करने हेतु भी दबाव पड़ेगा।
    • इस प्रकार सरकार को राष्ट्रीय आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिये न केवल कोवैक्सिन की तकनीक को घरेलू दवा कंपनियों को हस्तांतरित करना चाहिये साथ ही, इसे विदेशी निगमों को भी हस्तांतरित करना चाहिये।
  • अनुकूल नियामक वातावरण: भारत में टीकों की आपूर्ति से जुड़े नियामक संस्थाओं को अधिक भरोसेमंद एवं इससे जुड़ी मंज़ूरी प्रक्रिया को सुगम बनाने की आवश्यकता है। इससे भारत में टीके की आपूर्ति की कमी को जल्द-से-जल्द दूर करने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

भारत ने ऐतिहासिक रूप से विश्व व्यापार संगठन में अनिवार्य लाइसेंसिंग जैसे मुद्दे को मुख्यधारा में लाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। इस वैश्विक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में सरकार को अनिवार्य लाइसेंस को बढ़ावा देना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: पूरे विश्व की जनसंख्या को कोविड-19 महामारी के प्रति टीकाकरण की आवश्यकता है, किंतु यह टीके की कीमत में कमी एवं एक-दूसरे देशों के साथ तकनीक हस्तांतरण के बिना संभव नहीं है। चर्चा कीजिये।

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