विश्व व्यापार संगठन

 Last Updated: July 2022 

विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) एकमात्र वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो राष्ट्रों के मध्य व्यापार नियमों से संबंधित है। WTO समझौते इसके मूल तत्त्व हैं जिन पर कई व्यापारिक देशों द्वारा बातचीत एवं हस्ताक्षर किये गए हैं और उन देशों की संसद में जिनकी पुष्टि की गई है।

विश्व व्यापार संगठन में 164 सदस्य (यूरोपीय संघ सहित) एवं 23 पर्यवेक्षक सरकारें (जैसे ईरान, इराक, भूटान, लीबिया आदि)  हैं।

WTO के लक्ष्य

  • WTO की वैश्विक प्रणाली बातचीत के माध्यम से व्यापार बाधाओं को कम करती है एवं भेदभाव रहित सिद्धांत के अंतर्गत कार्य करती है।
    • परिणामस्वरूप उत्पादन की लागत कम हो जाती है (क्योंकि उत्पादन में उपयोग किये जाने वाली आयातित वस्तुएँ सस्ती होती हैं), तैयार वस्तु एवं सेवाओं की कीमतें कम हो जाती हैं, अधिक विकल्प उपलब्ध होते हैं तथा इन सब के फलस्वरूप जीवन यापन पर खर्च में कमी आती है।
  • ऐसा करने हेतु WTO दो तरीके अपनाता है।
    • पहला बातचीत के जरिये: विभिन्न देश उन नियमों पर बातचीत करते हैं जो सभी को स्वीकार्य हैं।
    • दूसरा तरीका विवाद का समाधान करना है कि क्या देश उन सहमत नियमों पर चल रहे हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन आर्थिक विकास एवं रोज़गार को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • विश्व व्यापार संगठन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की लागत में कटौती कर सकता है।
  • विश्व व्यापार संगठन सुशासन को प्रोत्साहित कर सकता है। पारदर्शिता, साझा जानकारी एवं ज्ञान तथा निष्पक्ष वाणिज्यिक वातावरण तैयार कर सकता है।
    • नियमों से निरंकुशता एवं भ्रष्टाचार के अवसरों में कमी आती है।
  • WTO देशों को विकसित करने में मदद कर सकता है: WTO की व्यापार प्रणाली के अंतर्निहित को समझना इस तथ्य को दर्शाता है कि अधिक मुक्त व्यापार आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है तथा देशों को विकसित करने में सहायक हो सकता है।
    • इस मायने में वाणिज्य एवं विकास एक दूसरे के लिये अच्छे होते हैं।
    • इसके अतिरिक्त WTO समझौते ऐसे प्रावधानों से परिपूर्ण हैं जो विकासशील देशों के हितों को ध्यान में रखते हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन शक्तिहीन देशों की आवाज़ बन सकता है: छोटे देश विश्व व्यापार संगठन के बिना कमज़ोर होंगे। सहमत नियमों, सर्वसम्मति से निर्णय लेने एवं गठबंधन निर्माण से मोलभाव की शक्ति के अंतर कम हो जाते हैं।
    • गठबंधन समझौतों में विकासशील देशों की एक मज़बूत आवाज़ बनता है।
    • परिणामी समझौतों का अर्थ है कि सबसे शक्तिशाली देशों सहित सभी देशों को नियमों पर चलना होगा। शक्ति के शासन के बजाय कानून का शासन स्थान लेता है।
  • विश्व व्यापार संगठन पर्यावरण एवं स्वास्थ्य को प्रोत्साहित कर सकता है: व्यापार एक साधन से अधिक कुछ नहीं है। WTO समझौते व्यापार को प्रोत्साहित करने वाले हालात बनाने का प्रयास करते हैं जो हम वास्तव में चाहते हैं। इनमें एक स्वच्छ एवं सुरक्षित वातावरण तैयार करने तथा सरकारों को इन उद्देश्यों का उपयोग करके संरक्षणवादी उपाय पेश करने से रोकना शामिल हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन शांति एवं स्थिरता में योगदान दे सकता है: जब विश्व अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव होता है तो बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली स्थिरता में योगदान कर सकती है।
    • व्यापार नियम नीति निर्माण में अति मंद गति को हतोत्साहित करके एवं व्यापार नीति को और अधिक पूर्वानुमानित करके विश्व अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाते हैं। वे संरक्षणवाद को रोकते हैं एवं निश्चितता बढ़ाते हैं। व्यापार नियम विश्वास निर्माता होते हैं।

पृष्ठभूमि

सिल्क रोड की शुरुआत से लेकर प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade (General Agreement on Tariffs and Trade-GATT) के निर्माण तथा WTO के उद्भव के समय से व्यापार ने आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और राष्ट्रों के मध्य शांतिपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

  • प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) की शुरुआत वर्ष 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन हुई जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की वित्तीय प्रणाली की नींव रखी गई तथा दो प्रमुख संस्थानों अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) एवं विश्व बैंक की स्थापना की गई।
    • सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने एक पूरक संस्थान की स्थापना की सिफारिश की जिसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (International Trade Organization- ITO) के रूप में जाना जाता है जिसकी कल्पना उन्होंने वित्तीय प्रणाली के तृतीय स्तर के रूप में की थी।
    • वर्ष 1948 में हवाना में व्यापार एवं रोज़गार पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने ITO के लिये एक मसौदा चार्टर तैयार किया जिसे हवाना चार्टर के रूप में जाना जाता है जिसमें व्यापार, निवेश, सेवाओं एवं व्यापार और रोज़गार कार्यों को नियंत्रित करने वाले व्यापक नियम बनाए गए।
      • हवाना चार्टर कभी लागू नहीं हुआ इसकी मुख्य वजह अमेरिकी सीनेट द्वारा इसकी पुष्टि न करने की विफलता रही। परिणामस्वरूप ITO अस्तित्व में नहीं आ सका।
    • इसी दौरान वर्ष 1947 में जिनेवा में 23 देशों द्वारा हस्ताक्षरित GATT के रूप में एक समझौता 1 जनवरी, 1948 को निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ लागू हुआ:
      • आयात कोटा के उपयोग को समाप्त करने के लिये
      • तथा वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार पर शुल्क कम करने के लिये
  • GATT 1948 से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करने वाला एकमात्र बहुपक्षीय साधन (एक संस्था नहीं) बन गया जब तक कि वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना नहीं हुई।
  • अपनी संस्थागत कमियों के बावजूद GATT बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं के आठ चक्र (एक चक्र बहुपक्षीय वार्ताओं की एक शृंखला होती है) को प्रायोजित करते हुए एक वास्तविक संगठन के रूप में कार्य करने में सफल रहा।

वर्ष 

स्थान/नाम

उल्लेखनीय परिणाम

देश

1947

जिनेवा

45,000 प्रशुल्कों में कटौती- औसतन 35% कटौती

23

1949

टॉर्की 

प्रशुल्क में कमी

13

1951

अन्नेसी

प्रशुल्क में कमी

38

1956

जिनेवा

प्रशुल्क में कमी

26

1960-1961

जिनेवा डिलन राउंड

प्रशुल्क में कमी

26

1964-1967

जिनेवा कैनेडी राउंड

औद्योगिक वस्तुओं पर औसतन 35% प्रशुल्क कटौती; बाज़ार मूल्य अवमूल्यन रोधी कानूनों के उपयोग पर प्रतिबद्धता

62

1973-1979

जिनेवा टोक्यो राउंड

औद्योगिक वस्तुओं पर औसतन 34% प्रशुल्क कटौती; गैर प्रशुल्क उपायों पर प्रतिबद्धताएँ

102

1986-1994

जिनेवा उरुग्वे राउंड

सेवाओं के व्यापार एवं बौद्धिक संपदा को शामिल किया गया; कृषि पर बिल्ट-इन-एजेंडा; डब्ल्यूटीओ की स्थापना

123

  • अतः GATT 1948 से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संचालित करने वाला एकमात्र बहुपक्षीय साधन बन गया था जब तक कि वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना नहीं हुई।
  • उरुग्वे राउंड वर्ष 1987 से वर्ष 1994 तक आयोजित किया गया था जिसके परिणामस्वरूप मारकेश समझौता हुआ जिसके द्वारा विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई।
    • विश्व व्यापार संगठन GATT के सिद्धांतों को समाविष्ट करता है और उन्हें लागू करने एवं विस्तृत करने हेतु अधिक स्थायी संस्थागत ढाँचा प्रदान करता है।
    • GATT का समापन वर्ष 1947 में हुआ था और अब इसे GATT 1947 के रूप में संदर्भित किया जाता है। GATT 1947 को 1996 में समाप्त कर दिया गया एवं डब्ल्यूटीओ ने इसके प्रावधानों को GATT 1994 में एकीकृत कर दिया।
      • GATT 1994 सभी WTO सदस्यों पर बाध्य एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। यह केवल माल व्यापार से संबंधित है।

WTO ने GATT का स्थान क्यों लिया?

  • GATT  सिर्फ नियमों एवं बहुपक्षीय समझौतों का संग्रह था जिसमें संस्थागत ढाँचे का अभाव था।
    • GATT 1947 को समाप्त कर दिया गया और WTO ने GATT 1994 के रूप में इसके प्रावधानों को संरक्षित रखा तथा माल व्यापार संचालित करना जारी रखा।
  • सेवाओं के व्यापार एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों को सामान्य GATT  नियमों द्वारा कवर नहीं किया गया था।
  • GATT ने परामर्श एवं विवाद समाधान प्रदान किया। यदि कोई GATT पक्षकार यह माने कि किसी अन्य GATT पक्षकार ने उसे व्यापारिक क्षति पहुँचाई है तो यह उस पक्षकार को GATT विवाद निपटान का आह्वान करने की अनुमति प्रदान करता  था।
    • GATT ने व्यापक  विशिष्टताओं के साथ एक विवाद प्रक्रिया निर्धारित नहीं की थी जिसके परिणामस्वरूप इसमें समय सीमा, विवाद पैनल की स्थापना में शिथिलता तथा GATT पक्षकारों द्वारा किसी पैनल रिपोर्ट पर स्वीकृति संबंधी अभाव थे।
    • इसने GATT को एक कमज़ोर विवाद निपटान तंत्र के रूप में स्थापित कर दिया।

विश्व व्यापार संगठन एवं संयुक्त राष्ट्र 

  • यद्यपि विश्व व्यापार संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी नहीं है लेकिन इसकी स्थापना के बाद से ही इसने संयुक्त राष्ट्र एवं संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के साथ मज़बूत संबंध स्थापित किये हैं।
  • WTO-संयुक्त राष्ट्र संबंध 15 नवंबर 1995 को हस्ताक्षरित ‘विश्व व्यापार संगठन एवं अन्य अंतर-सरकारी संगठनों के साथ प्रभावी सहयोग की व्यवस्था-WTO एवं संयुक्त राष्ट्र के मध्य संबंध’ द्वारा संचालित होते हैं।
  • विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक मुख्य कार्यकारी बोर्ड में भाग लेते हैं जो संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का समन्वयक अंग है।

संचालन

मंत्रालयिक सम्मेलन

  • विश्व व्यापार संगठन का सर्वोच्च निर्णायक निकाय मंत्रालयिक सम्मेलन होता है जो आमतौर पर द्विवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है।
  • यह विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्यों को एक साथ लाता है ये सब देश अथवा सीमा शुल्क संघ होते हैं।
  • मंत्रालयिक सम्मेलन किसी भी बहुपक्षीय व्यापार समझौते के तहत सभी मामलों पर निर्णय ले सकता है।

महापरिषद

  • महापरिषद WTO का सर्वोच्च-स्तरीय निर्णायक निकाय होता है जो कि जिनेवा में स्थित है। WTO के कार्यों को पूरा करने के लिये नियमित रूप से इसकी बैठकें आयोजित की जाती हैं।
  • इसमें सभी सदस्य सरकारों के प्रतिनिधि (आमतौर पर राजदूत या उनके समकक्ष) होते हैं तथा उन्हें मंत्रालयिक सम्मेलन की ओर से कार्य करने का अधिकार होता है जो सिर्फ प्रति दो वर्ष में आयोजित किया जाता है।
  • महापरिषद की बैठक विभिन्न नियमों के तहत भी होती है जैसे-
    • व्यापार नीति समीक्षा निकाय

    • और विवाद समाधान निकाय 

  • प्रत्येक तीन परिषदें व्यापार के विभिन्न व्यापक क्षेत्रों को संभालती हैं, महापरिषद को रिपोर्ट करती हैं:
    • वस्तु व्यापार परिषद (माल परिषद)
    • सेवा व्यापार परिषद (सेवा परिषद)
    • बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार से संबंधित पहलुओं के लिये परिषद (TRIPS काउंसिल) 
    • जैसा कि इनके नाम दर्शाते हैं तीनों ही व्यापार के संबंधित क्षेत्रों जिनमें ये कार्य करती हैं, में WTO समझौतों के कामकाज़ के प्रति ज़िम्मेदार हैं।
    • इनमें भी विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य होते हैं।

व्यापार नीति समीक्षा निकाय

  • व्यापार नीति समीक्षा निकाय (The Trade Policy Review Body- TPRB) के अंतर्गत सदस्यों की व्यापार नीति पर समीक्षा करने एवं व्यापार नीति विकास पर महानिदेशक की नियमित रिपोर्टों पर विचार करने के लिये TPRB के रूप में विश्व व्यापार संगठन महासभा की बैठक आयोजित की जाती है।
  • फरवरी 2021 में, नगोजी ओकोंजो इवेला को विश्व व्यापार संगठन की पहली महिला महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया। वह नाइजीरिया की रहने वाली है। ओकोंजो-इवेला ने 1 मार्च 2021 को पदभार ग्रहण किया, और इस पद को धारण करने वाली पहली महिला और पहली अफ्रीकी दोनों बनीं।
  • इस प्रकार TPRB सभी WTO सदस्यों के लिये खुला होता है।

विवाद समाधान निकाय

  • विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों के मध्य विवादों को निपटाने के लिये महापरिषद विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body- DSU) के रूप में बैठकें आयोजित की जाती है।
  • इस तरह के विवाद उरुग्वे राउंड के अंतिम अधिनियम में निहित किसी भी समझौते के संबंध में उत्पन्न हो सकते हैं जो विवाद निपटान संचालित करने वाली प्रक्रियाओं एवं नियमों की समझ के अधीन हैं।
  • विवाद समाधान निकाय के पास निम्नलिखित अधिकार हैं:
    • विवाद समाधान पैनल स्थापित करना,
    • मध्यस्थता संबंधी मामलों को देखना,
    • पैनल, अपीलीय निकाय एवं मध्यस्थता रिपोर्टों को अपनाना
    • ऐसी रिपोर्टों में शामिल सिफारिशों एवं फैसलों के कार्यान्वयन पर निगरानी बनाए रखना,
    • और उन सिफारिशों एवं फैसलों के अनुपालन न होने की स्थिति में रियायतों के निलंबन को अधिकृत करना।

अपीलीय निकाय

  • अपीलीय निकाय की स्थापना वर्ष 1995 में अनुच्छेद 17 के विवाद निपटान संचालित करने वाली प्रक्रियाओं एवं नियमों की समझ के तहत की गई थी।
  • विवाद समाधान निकाय अपीलीय निकाय में सेवाएँ देने हेतु चार साल की अवधि के लिये व्यक्तियों की नियुक्ति करता है।
  • यह सात व्यक्तियों का एक स्थायी निकाय है जो WTO के सदस्यों द्वारा लाए गए विवादों में पैनलों द्वारा जारी की गई रिपोर्टों की अपील पर सुनवाई करता है।
  • अपीलीय निकाय एक पैनल के कानूनी निर्णयों एवं निष्कर्षों को बरकरार रख सकता है, संशोधित कर सकता है अथवा पलट सकता है। अपीलीय निकाय की रिपोर्ट को एक बार विवाद निपटान निकाय द्वारा अपनाये जाने के बाद विवाद का सामना करने वाले पक्षों को अपनाना होता है।
  • अपीलीय निकाय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।

वस्तु व्यापार महापरिषद (वस्तु परिषद)

  • प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (GATT) में अंतर्राष्ट्रीय माल व्यापार शामिल होता है।
    • GATT समझौते के कामकाज की ज़िम्मेदारी माल व्यापार महापरिषद (माल परिषद) की होती है जिसमें सभी WTO सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं।
  • माल व्यापार परिषद की विशिष्ट विषयों से संबंधित समितियाँ होती हैं: (1) कृषि, (2) बाज़ार पहुँच, (3) स्वच्छता एवं पादप संबंधी स्वच्छता (विशेषकर कृषि में पौधों की बीमारियों के नियंत्रण के उपाय) उपाय, (4) व्यापार में तकनीकी बाधाएँ, (5) सब्सिडी जैसे उपाय, (6) मूल के नियम, (7) बाज़ार अवमूल्यन रोधी उपाय, (8) आयात लाइसेंस, (9) व्यापार से संबंधित निवेश के उपाय, (10) सुरक्षा उपाय, (11) व्यापार सुविधा, (12) सीमा शुल्क मूल्यांकन।
    • इन समितियों में सभी सदस्य देश होते हैं।

सेवा व्यापार महापरिषद (सेवा परिषद)

  • यह महापरिषद के मार्गदर्शन में संचालित होती है एवं सेवा व्यापार में सामान्य समझौते (General Agreement on Trade in Services- GATS) के कार्यों के संचालन तथा अपने अन्य उद्देश्यों प्रति ज़िम्मेदार होती है।
  • यह सभी WTO सदस्यों के लिये खुली होती है एवं आवश्यकतानुसार सहायक निकाय बना सकती है।
  • वर्तमान में परिषद ऐसे चार सहायक निकायों के कामकाज की देखरेख करती है:
    • वित्तीय सेवाओं के व्यापार पर समिति
      • यह वित्तीय सेवाओं में व्यापार से संबंधित मामलों पर चर्चा करती है एवं परिषद द्वारा विचार करने हेतु प्रस्ताव या सिफारिशें तैयार करती है।
    • विशिष्ट प्रतिबद्धताओं पर समिति।
    • घरेलू विनियमन पर काम करने वाला पक्ष।
    • GATS नियमों पर काम करने वाला पक्ष।

बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार-संबंधित पहलुओं के लिये परिषद  (ट्रिप्स परिषद)

  • यह बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं पर समझौते (ट्रिप्स समझौते) के कार्यान्वयन की निगरानी करती है।
  • यह एक ऐसा मंच प्रदान करता है जिसमें विश्व व्यापार संगठन के सदस्य बौद्धिक संपदा मामलों पर परामर्श कर सकते हैं एवं ट्रिप्स समझौते में परिषद को सौंपी गई विशिष्ट उत्तरदायित्वों का वहन करते हैं।
  • ट्रिप्स समझौता
    • कॉपीराइट एवं संबंधित अधिकारों, ट्रेडमार्क, भौगोलिक संकेतों (Geographical Indications- GI), औद्योगिक डिजाइन, पेटेंट, एकीकृत सर्किट ले आउट डिज़ाइन तथा अप्रकाशित जानकारी सुरक्षा हेतु न्यूनतम मानक निर्धारित करता है।
    • बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights- IPR) के प्रवर्तन हेतु इनके उल्लंघन होने पर नागरिक कार्यों के माध्यम से सीमा पर कार्रवाई, न्यूनतम मानक स्थापित करता है।
    • और कॉपीराइट चोरी एवं ट्रेडमार्क चोरी के संबंध में आपराधिक कार्रवाई।

WTO मंत्रालयिक सम्मेलन

प्रथम मंत्रालयिक सम्मेलन (अर्थात् MC1) वर्ष 1996 में सिंगापुर में आयोजित किया गया था और आखिरी सम्मेलन (MC11) वर्ष 2017 में ब्यूनस आयर्स में आयोजित किया गया था। इन सभी मंत्रालयिक सम्मेलनों में मौजूदा वैश्विक व्यापार प्रणाली विकसित हुई है।

सिंगापुर, 9-13 दिसंबर 1996 (MC1)

  • विश्व व्यापार संगठन के 120 से अधिक सदस्यों तथा जो WTO में सम्मिलित होने की प्रक्रिया में थे, की सरकारों के व्यापार, विदेश, वित्त एवं कृषि मंत्रियों ने इसमें भाग लिया था।
  • निम्नलिखित चार मुद्दों को सिंगापुर मुद्दे नाम दिया गया, ये पहले चार मुद्दे थे जिन पर बहुपक्षीय निकाय वार्ता शुरू कर सकता था:
    • व्यापार एवं निवेश 
    • व्यापार सरलीकरण
    • सरकारी खरीद में पारदर्शिता
    • व्यापार एवं प्रतियोगिता

जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड 18-20 मई 1998 (MC2)

  • मंत्रालयिक घोषणा पत्र में निम्नलिखित कार्यक्रम शामिल थे:
    • सदस्यों द्वारा सामने लाए गए मौजूदा समझौतों एवं निर्णयों के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों सहित मुद्दे;
    • मारकेश में किये गए अन्य मौजूदा समझौतों एवं निर्णयों के तहत पहले से तय किये गये भविष्य के कार्य;
    • सिंगापुर में शुरू किये गए कार्यक्रम के आधार पर भविष्य के संभावित कार्य;
    • कृषि पर व्यापक वार्ता के अगले चरण के लिये प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में बाज़ार पहुँच, निर्यात सब्सिडी आदि शामिल हैं।

सीएटल (Seattle), संयुक्त राज्य अमेरिका 30 नवंबर-3 दिसंबर, 1999 (MC3)

  • इसमें दो प्रमुख मुद्दे थे:
    • पहला मुद्दा यह था कि उरुग्वे राउंड जैसी नई व्यापक वार्ता शुरू की जाए अथवा अंतिम मंत्रालयिक बैठक में अधिदिष्ट कृषि एवं सेवाओं की तथाकथित ‘बिल्ट इन एजेंडा’ वार्ता को सीमित करना हो।
    • दूसरी बात यह है कि वार्ता किस पर होनी चाहिये, विशेष रूप से वार्ता के दौरान बैठक के एजेंडे में क्या शामिल होना चाहिये।
  • बैठक दोनों मुद्दों को हल करने में असमर्थ रही एवं गतिरोध में ही समाप्त हो गई।
  • नये चरण की वार्ता के समझौते के बिना एवं मंत्रालयिक घोषणा पर समझौते के बिना विचार-विमर्श समाप्त कर दिया गया था।

दोहा, कतर 9-13 नवंबर 2001 (MC4)

  • कृषि: विकासशील देशों को प्रभावी ढंग से खाद्य सुरक्षा एवं ग्रामीण विकास सहित उनकी विकास ज़रूरतों को पूर्ण करने में सक्षम बनाने के लिये विकासशील देशों हेतु विशेष एवं अंतर संबंधी उपाय वार्ता के सभी तत्त्वों के एक अभिन्न अंग होंगे।
  • सेवाएँ: सभी व्यापारिक भागीदारों की आर्थिक वृद्धि और विकासशील एवं अल्प विकसित देशों के विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सेवाओं के व्यापार पर वार्ता आयोजित की जाएंगी।
    • जनवरी 2000 में सेवाओं के व्यापार पर सामान्य समझौते के अनुच्छेद 19 (GATS) के तहत की गई वार्ताओं में पहले से ही शुरू किये गए काम को इसमें मान्यता दी गई। WTO के सदस्यों द्वारा कई क्षेत्रों एवं समस्तरीय मुद्दों से संबंधित बड़ी संख्या में प्रस्ताव दिये गए।
  • गैर-कृषि उत्पादों की बाज़ार तक पहुँच:
    • वार्ता में विकासशील एवं अल्प विकसित देश प्रतिभागियों की विशेष ज़रूरतों और हितों का ध्यान रखा जाएगा जिसमें GATT 1994 के अनुच्छेद 28 के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार पूर्ण प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं।
  • सरकारी खरीद में पारदर्शिता:
    • सरकारी खरीद में पारदर्शिता पर एक बहुपक्षीय समझौते एवं इस क्षेत्र में तकनीकी सहायता में वृद्धि और क्षमता निर्माण की आवश्यकता को मान्यता देते हुए यह सहमति व्यक्त की गई कि समझौते सर्वसम्मति से किये जाने वाले निर्णय के आधार पर होंगे।

कान्कुन, मेक्सिको 10-14 सितंबर 2003 (MC5)

  • इसका मुख्य कार्य दोहा विकास एजेंडा के तहत वार्ता एवं अन्य कार्यों में प्रगति का जायजा लेना था।

होंगकोंग, 13-18 दिसंबर 2005 (MC6)

  • WTO की सदस्य अर्थव्यवस्थाओं ने सब्सिडी को कम करके कृषि व्यापार के उदारीकरण पर प्रारंभिक समझौते पर पहुँचने का लक्ष्य रखा एवं बैठक में अन्य मुद्दों को संबोधित किया जिसका उद्देश्य वर्ष 2006 में दोहा राउंड का सफल समापन था।
  • एक गहन बातचीत के बाद विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने दोहा राउंड वार्ता के लिये प्रस्तावों एवं शर्तों का एक अंतरिम समूह तैयार किया:
    • कृषि निर्यात सब्सिडी (2013) एवं कपास निर्यात सब्सिडी (2006) के उन्मूलन की समय सीमा,
    • और यह प्राधिकृत किया कि अल्प विकसित देशों (Least Developed Countries- LDC) में बनने वाले कम से कम 97% उत्पादों को वर्ष 2008 तक शुल्क एवं अंश मुक्त पहुँच प्रदान की जाएगी।
    • गैर-कृषि बाज़ार पहुँच (NAMA) के लिये सदस्यों ने ‘स्विस सूत्र’ को अपनाया जिसमें उच्च प्रशुल्क में बड़ी कटौती की बात की गई थी और यह तय किया कि 30 अप्रैल 2006 तक प्रशुल्क में कटौती हेतु तौर-तरीके स्थापित किये जाएँ।
      • स्विस सूत्र (स्विस प्रतिनिधि मंडल द्वारा WTO के लिये) दोनों विकसित एवं विकासशील देशों द्वारा गैर कृषि वस्तुओं (NAMA) पर प्रशुल्क को कम करने के लिये सुझाया गया एक तरीका है।
      • यह विकसित एवं विकासशील देशों के लिये अलग-अलग गुणांक तैयार करता है।
      • यहाँ प्रशुल्क कटौती को इस तरह समझा जाना चाहिये कि यह कम प्रशुल्क की तुलना में अधिक प्रशुल्क में ज़्यादा कटौती करता है।
  • यह बैठक वर्ष 2001 में शुरू की गई दोहा व्यापार वार्ता का अंतिम चरण हो सकती है।

जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड 30 नवंबर - 2 दिसंबर 2009 (MC7)

  • सम्मेलन का विषय “विश्व व्यापार संगठन, बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली एवं वर्तमान वैश्विक आर्थिक वातावरण” था।
  • पिछले सम्मेलनों के विपरीत यह बैठक दोहा राउंड का सत्र नहीं थी बल्कि मंत्रियों के लिये डब्ल्यूटीओ के काम के सभी तत्त्वों को प्रतिबिंबित करने, विचारों का आदान-प्रदान करने एवं आने वाले वर्षों में आगे बढ़ने हेतु सर्वोत्तम मार्गदर्शन का अवसर था।

जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड 15-17 दिसंबर 2011 (MC8)

  • सम्मेलन ने रूसी संघ, समोआ एवं मोंटेनेग्रो के प्रवेश को मंज़ूरी प्रदान की।
  • इसने बौद्धिक संपदा, इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य, लघु अर्थव्यवस्थाएँ, अल्प विकसित देशों के प्रवेश, अल्प विकसित देशों को सेवाओं की छूट एवं व्यापार नीति की समीक्षा पर कई निर्णय अपनाए।
  • इसने विश्व व्यापार संगठन के समझौतों एवं दोहा अधिदेश को पूरा करने तथा उन्हें और अधिक सटीक, प्रभावी व क्रियाशील बनाने की दृष्टि से समीक्षा करने के उनके संकल्प को पूरा करने हेतु विशेष और अंतर संबंधी व्यवहार प्रावधानों के एकीकरण की पुष्टि की।

बाली, इंडोनेशिया 3-6 दिसंबर 2013 (MC9)

  • सम्मेलन में ‘बाली पैकेज’ अपनाया गया जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर लक्षित निर्णयों की एक शृंखला थी:
    • व्यापार को सुव्यवस्थित करना,
    • खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये विकासशील देशों को अधिक विकल्प प्रदान करना,
    • अल्प विकसित देशों के व्यापार को बढ़ावा देना एवं विकास में अधिक व्यापक रूप से सहायता करना।
  • बाली पैकेज में व्यापक दोहा राउंड वार्ता के चयनित मुद्दे हैं।
  • सम्मेलन ने विश्व व्यापार संगठन के नए सदस्य के रूप में यमन के प्रवेश को भी मंज़ूरी प्रदान की।

नैरोबी, केन्या 15-19 दिसंबर 2015 (MC10)

    • कृषि, कपास एवं अल्प विकसित देशों (LDC) से संबंधित मुद्दों पर निर्णयों की शृंखला ‘नैरोबी पैकेज’ को अपनाने के परिणामस्वरूप इसका आयोजन किया गया।
    • कृषि
      • सदस्य विकासशील के लिये विशेष सुरक्षा तंत्र;
      • खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिये सार्वजनिक हिस्सेदारी;
      • निर्यात प्रतियोगिता;
    • कपास: कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं एवं विशेष रूप से उनमें से कई अल्प विकसित देशों के लिये कपास के महत्त्व पर ध्यान देते हुए;
      • ऐसा करने की घोषणा करने वाले सदस्य विकसित देश एवं सदस्य विकासशील देश 1 जनवरी 2016 से अल्प विकसित देशों के पक्ष में अधिमान्य व्यापार व्यवस्था प्रदान कर रहे हैं एवं अल्प विकसित देशों द्वारा उत्पादित एवं निर्यात किये जाने वाले कपास उत्पादों को कोटा मुक्त एवं शुल्क मुक्त बाज़ार तक पहुँच प्रदान कर रहे हैं।

    अल्प विकसित देशों के मुद्दे 

    • अल्प विकसित देशों के लिये उत्पत्ति के अधिमान्य नियम;
    • अल्प विकसित देशों की सेवाओं एवं सेवा आपूर्तिकर्ताओं के पक्ष में अधिमान्य उपचार का कार्यान्वयन;
    • और सेवाओं के व्यापार में अल्प विकसित देशों की भागीदारी में वृद्धि;
    • नैरोबी निर्णय वर्ष 2013 के LDC के लिये उत्पत्ति के अधिमान्य नियमों पर बाली मंत्रालयिक निर्णय पर आधारित है।
    • "नैरोबी पैकेज" संगठन के सबसे निर्धनतम सदस्यों को लाभान्वित करने वाली प्रतिबद्धताएँ प्रदान करके सम्मेलन के मेजबान, केन्या को पारितोषिक प्रदान करता है।

    ब्यूनस आयर्स, अर्जेंटीना 10-13 दिसंबर 2017 (MC11)

    • सम्मेलन मत्स्य पालन सब्सिडी और ई-वाणिज्य शुल्कों एवं सभी क्षेत्रों में वार्ता जारी रखने के लिये प्रतिबद्धता सहित कई मंत्रालयिक निर्णयों के साथ समाप्त हुआ।

    जिनेवा, स्विट्रज़लैंड 12-17 जून 2022 (MC12)

    • हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) का 12वांँ मंत्रिस्तरीय सम्मेलन संपन्न हुआ।
      • कज़ाखस्तान मूल रूप से जून 2020 में MC12 की मेज़बानी करने वाला था, लेकिन कोविड -19 महामारी के कारण सम्मेलन को स्थगित कर दिया गया था।
    • चर्चा के प्रमुख क्षेत्रों में महामारी पर डब्ल्यूटीओ की प्रतिक्रिया, मत्स्य पालन सब्सिडी वार्ता, खाद्य सुरक्षा के लिये सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग सहित कृषि मुद्दे, डब्ल्यूटीओ सुधार और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर कस्टम ड्यूटी पर अधिस्थगन शामिल थे।

    नूर-सुल्तान, कजाकिस्तान, 8-11 जून 2020 (MC12)

    • विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने सहमति व्यक्त की है कि संगठन का 12वाँ मंत्रालयिक सम्मेलन (MC12) जून 2020 में कजाकिस्तान में होगा, जो वर्ष 2015 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ था।

    दोहा राउंड

    • दोहा राउंड WTO सदस्यों के मध्य व्यापार वार्ता का नवीनतम दौर है। इसका उद्देश्य व्यापार बाधाओं को निम्न करके और संशोधित व्यापार नियमों की शुरुआत के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में अहम सुधार करना है।
    • दोहा राउंड को अर्द्ध-आधिकारिक तौर पर दोहा विकास एजेंडा के रूप में भी जाना जाता है जैसा कि इसका एक मौलिक उद्देश्य विकासशील देशों की व्यापारिक संभावनाओं में सुधार करना है।
    • दोहा राउंड को आधिकारिक तौर पर नवंबर 2001 में दोहा, कतर में WTO के चतुर्थ मंत्रालयिक सम्मेलन (MC4) में शुरू किया गया था।
    • दोहा मंत्रालयिक घोषणा ने वार्ता के लिये अधिदेश प्रदान किया जिसमें निम्नलिखित विषय शामिल हैं:
      • कृषि: अधिक बाज़ार पहुँच, निर्यात सब्सिडी को खत्म करना, विकृत घरेलू समर्थन को कम करना, विकासशील देशों के मुद्दों को श्रेणीबद्ध करना एवं गैर व्यापारिक मुद्दों जैसे खाद्य सुरक्षा एवं ग्रामीण विकास पर बात करना।
      • गैर-कृषि बाज़ार पहुँच (NAMA): प्रशुल्कों का उन्मूलन अथवा उनमें तर्कसंगत कटौती, अधिकतम प्रशुल्क एवं प्रशुल्क वृद्धि (प्रसंस्करण में बाधक उच्च प्रशुल्क, कच्चे माल पर निम्न प्रशुल्क) को कम करने के साथ-साथ गैर प्रशुल्क बाधाओं को कम करना विशेष रूप से विकासशील देशों के निर्यातित उत्पादों पर।
      • सेवाएँ: बाज़ार पहुँच में सुधार करना और नियमों को मज़बूत करना।
        • प्रत्येक सरकार को यह तय करने का अधिकार है कि वह किन क्षेत्रों को विदेशी कंपनियों के लिये खोलना चाहती है और किस सीमा तक खोलना चाहती है, इनमें  विदेशी स्वामित्व पर प्रतिबंध भी शामिल है।
        • कृषि एवं NAMA के विपरीत, सेवा समझौते "तौर-तरीकों" के निश्चित कलेवर पर आधारित नहीं है। वे अपरिहार्य रूप से दो प्रकार से संचालित किये जा रहे हैं:
          (a) द्विपक्षीय और/या बहुपक्षीय समझौते (केवल कुछ WTO सदस्यों को शामिल करते हुए)।
          (b) किन्हीं भी आवश्यक नियमों एवं विनियमों को स्थापित करने के लिये सभी WTO सदस्यों के मध्य बहुपक्षीय वार्ता।
      • व्यापार सरलीकरण: सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को आसान बनाने और माल की आवाजाही, रिलीज एवं निकासी की सुविधा के लिये।
        • यह समग्र वार्ता में एक महत्त्वपूर्ण संयोजन है क्योंकि यह सीमा शुल्क प्रक्रियाओं में नौकरशाही एवं भ्रष्टाचार में कमी लाएगा और व्यापार को गति प्रदान करेगा तथा व्यापारिक प्रक्रिया कम खर्चीली हो जाएगी।
      • नियम: इनमें एंटी-डंपिंग, सब्सिडी और प्रतिकारी उपाय, मत्स्य पालन सब्सिडी और क्षेत्रीय व्यापार समझौते शामिल हैं।
        • एंटी-डंपिंग एवं सब्सिडी समझौतों के तहत ‘स्पष्टीकरण एवं नियमों में सुधार’।
        • विकासशील देशों के लिये इस क्षेत्र के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन एवं सब्सिडी पर WTO नियमों को स्पष्ट करना एवं उनमें सुधार करना।
      • पर्यावरण:  ये GATT/WTO में व्यापार एवं पर्यावरण पर प्रथम महत्त्वपूर्ण समझौते हैं। इनके दो प्रमुख घटक हैं:
        • पर्यावरणीय वस्तुओं का मुक्त व्यापार-विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित उत्पादों में शामिल हैं: पवन टर्बाइन, कार्बन कैप्चर भंडारण प्रौद्योगिकियाँ और सौर पैनल।
        • पर्यावरणीय समझौते-बहुपक्षीय पर्यावरणीय समझौतों के सचिवालय के साथ सहयोग में सुधार और व्यापार एवं पर्यावरण नियमों के बीच अधिक सामंजस्य स्थापित करना।
      • भौगोलिक संकेत: मदिरा एवं स्प्रिट के लिये बहुपक्षीय रजिस्टर
        • भौगोलिक संकेतक स्थानों के नाम होते हैं (कुछ देशों में किसी स्थान से संबंधित शब्द) जो इन स्थानों से आने वाले उत्पादों की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाते हैं और इनमें विशिष्ट स्थानिक विशेषताएँ होती हैं (उदाहरण के लिये, शैम्पेन, टकीला या रोक्फोर्ट)। ट्रिप्स समझौते  (अनुच्छेद 22) के अंतर्गत लोगों को गुमराह करने एवं अनुचित प्रतिस्पर्धा को रोकने के लिये सभी भौगोलिक संकेतों को संरक्षित किया जाना चाहिए।
        • बौद्धिक संपदा से संबंधित यह एकमात्र मुद्दा है जो दोहा वार्ता का भाग है।
        • इसका उद्देश्य भाग लेने वाले देशों में मदिरा एवं स्प्रिट के व्यापार को संरक्षण प्रदान करना है है। इसको लेकर वार्ताएँ वर्ष 1997 में शुरू हुईं तथा वर्ष 2001 में दोहा राउंड में इन पर अमल किया गया।
      • बौद्धिक संपदा से संबंधित अन्य मुद्दे: कुछ सदस्य दो अन्य विषयों पर बातचीत करना चाहते हैं और उन्हें मदिरा एवं स्प्रिट के रजिस्टर से जोड़ना चाहते हैं। अन्य सदस्य इससे सहमत नहीं हैं। इन दो विषयों पर चर्चा की जाती है:
        • भौगौलिक संकेतक विस्तार-मदिरा एवं स्प्रिट के अतिरिक्त भौगोलिक संकेतकों के उच्च स्तरीय संरक्षण में वृद्धि।
        • बायोपाइरेसी, लाभ साझा करने एवं पारंपरिक ज्ञान का उपयोग।
        • विवाद निपटान: विवाद निपटान को बेहतर बनाने और स्पष्ट करने के लिये, कानूनी विवादों के निपटान हेतु डब्ल्यूटीओ समझौता।
        • ये वार्ताएँ विवाद निपटान निकाय (DSB) के विशेष सत्रों में संपन्न होती हैं।
    • दोहा राउंड दिशाहीन प्रतीत होता है, वर्ष 2008 की दूसरी छमाही में शुरू हुई वैश्विक महामंदी ने आशंकाओं को जन्म दिया कि विश्व संरक्षणवाद की एक लहर का सामना कर सकता है जिसे रोकने में WTO शक्तिहीन होगा। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद कम आशंकाओं के साथ वार्ताएँ जारी रहीं।
    • वर्ष 2013 में इंडोनेशिया के बाली में मंत्रालयिक सम्मेलन (MC9) ने पहले बहुपक्षीय समझौते के रूप में विश्व व्यापार संगठन के निर्माण के बाद से एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल हुई।
      • यह व्यापार सुविधा समझौता (Trade Facilitation Agreement- TFA) था जिसका उद्देश्य सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को गति देना एवं व्यापार को सुगम, तीव्र एवं सस्ता बनाना है।
      • TFA सिर्फ वृहद दोहा एजेंडे का एक छोटा भाग था लेकिन सफल समझौता आशावाद का कारण रहा।
      • वार्ताएँ ‘सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग’ पर एक अंतरिम समझौते (एक शांति चरण) तक पहुँच गई जिनमें ऐसे अपवाद शामिल हैं जो विकासशील देशों को खाद्य पदार्थों की कमी से बचाने के लिये कृषि उत्पादों को भंडारित करने की अनुमति प्रदान करते हैं।
    • वर्ष 2015 मंत्रालयिक सम्मेलन नैरोबी, केन्या (MC10) में एक चयनित संख्या नें मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जो कि दोहा विकास एजेंडा (Doha Development Agenda- DDA) का हिस्सा हैं। DDA के निम्नलिखित मुद्दों पर समझौता हुआ:
      • कृषि निर्यात को अनुचित ढंग से  समर्थन देने वाली सब्सिडी के उपयोग एवं अन्य योजनाओं को रोकना
      • यह सुनिश्चित करना कि विकासशील देशों के लिये खाद्य सहायता इस प्रकार प्रदान की जाए जिससे स्थानीय बाज़ारों विकृत नहीं हों
      • निर्धनतम देशों के निर्यातकों द्वारा पूरी की जाने वाली शर्तों को आसान बनाने का प्रयास करना ताकि उन्हें व्यापार समझौतों से लाभ हो (तथाकथित मूल स्थान के नियम) 
      • विश्व व्यापार संगठन के 164 सदस्य देशों में सेवाएँ प्रदान करने के लिये निर्धनतम देशों को व्यवसायों के लिये अधिक अवसर प्रदान करना
    • हालाँकि कई समीक्षकों के अनुसार नैरोबी सम्मेलन ने दोहा वार्ता के अंत का संकेत दिया है, यह विचार वर्ष 2016 में डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने के पश्चात् मज़बूत हुआ है।
      • राष्ट्रपति ट्रंप ने पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद 12-देशीय ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TTP) से अलग होकर द्विपक्षीय व्यापार के लिये अपनी प्राथमिकता स्पष्ट कर दी।
    • वर्ष 2017 के मंत्रालयिक सम्मेलन ब्यूनस आयर्स (MC11) में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने बहुपक्षवाद के प्रति संशय को प्रतिबिंबित किया जब इसने एक मंत्रालयिक घोषणा मसौदे पर समझौते को अवरुद्ध कर दिया जिससे "बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की केंद्रीयता और संगठन के कार्य के विकास आयाम की पुन: पुष्टि होती।"
      • इस बीच यदि विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने खाद्य सुरक्षा के लिये सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग पर भारत की माँगों को स्वीकार नहीं करते हैं तो भारत ने बार-बार विश्व व्यापार संगठन के समझौतों (व्यापार सुगम समझौते सहित) को अवरुद्ध करने की चेतावनी दी है। भारत ने ई-कॉमर्स एवं निवेश सुविधा सहित नए मुद्दों पर भी अपना सख्त रुख अपनाया है।
      • अंत में, यह कई पक्षों के लिये राहत की बात थी कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने सक्रिय रूप से विश्व व्यापार संगठन को नष्ट करने का प्रयास नहीं किया जो कि कुछ पक्षों ने आशंका जताई थी लेकिन अपनी पारंपरिक नेतृत्व भूमिका को छोड़ देने से कुछ ऐसे ही परिणाम प्राप्त होंगे सिर्फ उनकी गति मंद होगी।

    WTO का विश्व के लिये योगदान

    • विश्व व्यापार संगठन उन तीन अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक है (अन्य दो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक समूह हैं) जो विश्व आर्थिक नीति का निर्माण एवं समन्वय करते हैं। यह निम्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है:
      • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार,
      • वैश्विक अर्थव्यवस्था,
      • एवं वैश्वीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में उत्पन्न होने वाले राजनीतिक और कानूनी मुद्दे।
    • यह देशों के मध्य व्यापार संबंधी बाधाओं को कम करने एवं नए बाज़ार खोलने के लिये विश्व की सबसे शक्तिशाली संस्था के रूप में उभरा है।
    • यह वैश्विक आर्थिक नीतियों को बनाने में सामंजस्य स्थापित करने हेतु IMF एवं विश्व बैंक के साथ सहयोग करता है।
    • व्यापार संबंधी विवादों को सुलझाने के माध्यम से विश्व व्यापार संगठन को अपने सदस्य देशों के मध्य बातचीत, परामर्श एवं मध्यस्थता के ज़रिये विश्व शांति तथा द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखने की क्षमता हासिल हुई है।
    • वैश्विक व्यापार नियम: विश्व व्यापार संगठन में निर्णय सामान्यतः सभी सदस्यों के बीच आम सहमति से लिया जाते हैं और उनकी सदस्यों की सभा द्वारा पुष्टि की जाती है। इससे एक अधिक समृद्ध, शांतिपूर्ण एवं जवाबदेह आर्थिक विश्व का निर्माण होता है।
    • व्यापार वार्ता: GATT और WTO ने अभूतपूर्व वृद्धि में योगदान देने वाली एक मज़बूत एवं समृद्ध व्यापार प्रणाली बनाने में मदद की है।
    • इस प्रणाली को GATT के तहत आयोजित व्यापार वार्ता या राउंड्स की एक शृंखला के माध्यम से विकसित किया गया था। 1986-94 राउंड - उरुग्वे राउंड से विश्व व्यापार संगठन का निर्माण हुआ।
      • वर्ष 1997 में, दूरसंचार सेवाओं पर एक समझौता हुआ जिसमें 69 सरकारें व्यापक उदारीकरण उपायों पर सहमत हुईं यह उरुग्वे राउंड में सहमत होने वाली सरकारों के अतिरिक्त थीं।
      • इसके अतिरिक्त वर्ष 1997 में 40 सरकारों ने सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों में प्रशुल्क मुक्त व्यापार के लिये सफलतापूर्वक वार्ताएँ संपन्न की और 70 सदस्यों ने वित्तीय सेवाओं का समझौता संपन्न किया जिसमें बैंकिंग, बीमा, प्रतिभूतियों और वित्तीय जानकारी में 95% से अधिक व्यापार शामिल था।
      • वर्ष 2000 में, कृषि और सेवाओं पर नई वार्ताएँ शुरू हुईं। इन्हें व्यापक कार्य कार्यक्रम दोहा विकास एजेंडा में शामिल किया गया था जो नवंबर 2001 में दोहा, कतर में चौथे विश्व व्यापार संगठन मंत्रालयिक सम्मेलन (MC4) में शुरू किया गया।
      • वर्ष 2013 में बाली में 9वें मंत्रलायिक सम्मेलन (MC9) में, विश्व व्यापार संगठन के सदस्यों ने व्यापार सुगमता समझौते को प्रारंभ किया जिसका उद्देश्य लालफीताशाही को कम करके सीमा विलंब को कम करना है।
      • सूचना प्रौद्योगिकी समझौते का विस्तार वर्ष 2015 में नैरोबी में 10 वें मंत्रलायिक सम्मेलन (MC10) में संपन्न हुआ, इसने 200 अतिरिक्त IT उत्पादों पर प्रति वर्ष 1.3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के शुल्क को समाप्त कर दिया।
      • हाल ही में, WTO के बौद्धिक संपदा समझौते में एक संशोधन वर्ष 2017 में लागू हुआ, जिससे कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं की किफायती दवाओं तक पहुँच आसान हो गई।
        • इसी वर्ष व्यापार सुगमता समझौता लागू हुआ।
    • विश्व व्यापार संगठन के समझौते
      • विश्व व्यापार संगठन के नियम, समझौते सदस्यों के मध्य वार्ताओं का परिणाम हैं।
        • वर्तमान संग्रह काफी हद तक 1986- 94 के उरुग्वे राउंड की वार्ता का परिणाम है, जिसमें मूल प्रशुल्क एवं व्यापार सामान्य समझौते (GATT) का पुनरीक्षण शामिल था।
      • वस्तु: वर्ष 1947 से वर्ष 1994 तक, गैट निम्न प्रशुल्क एवं अन्य व्यापार बाधाओं पर बातचीत करने के लिये एक मंच था; GATT ने महत्त्वपूर्ण नियमों की व्याख्या की विशेष रूप से गैर-भेदभाव वाले नियमों की। वर्ष 1994 के बाद WTO ने GATT 1994 के रूप में नए, व्यापक, एकीकृत GATT की पुष्टि की।

    विश्व व्यापार संगठन एवं भारत

    • भारत प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) 1947 और इसकी जगह लेने वाले संगठन, डब्ल्यूटीओ का एक संस्थापक सदस्य है।
    • नियम के आधार पर भारत की बढ़ती भागीदारी से व्यापार एवं समृद्धि में वृद्धि होगी।
    • सेवाओं का निर्यात भारत में वस्तु एवं सेवाओं के कुल निर्यात का 40% है। भारत की GDP में सेवाओं का योगदान 55% से अधिक है।
      • यह क्षेत्र (घरेलू एवं निर्यात) लगभग 142 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है, जिसमें देश का 28% श्रमबल शामिल है।
      • भारत के निर्यात मुख्य रूप से IT और IT सक्षम क्षेत्रों, यात्रा एवं परिवहन तथा वित्तीय क्षेत्र में हैं।
      • इन सेवाओं के मुख्य उपभोक्ताओं में अमेरिका (33%), यूरोपीय संघ (15%) और अन्य विकसित देश हैं।
      • सेवाओं के व्यापार के उदारीकरण में भारत की स्पष्ट रुचि है और भारत चाहता है कि विकसित देशों द्वारा व्यावसायिक रूप से सार्थक पहुँच प्रदान की जाए।
      • उरुग्वे राउंड के बाद से, भारत ने स्वायत्त रूप से अपनी सेवा व्यापार प्रणाली को उदार बनाया है।
    • खाद्य एवं आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर भारत जैसी बड़ी कृषि अर्थव्यवस्था के लिये।
      • भारत विश्व व्यापार संगठन में सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग सब्सिडी पर स्थायी समाधान की माँग कर रहा है।
      • वर्ष 2013 बाली मंत्रालयिक सम्मेलन (MC9) में ‘सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग’ पर एक अंतरिम समझौता (एक शांति उपनियम) किया गया था इस अपवाद के साथ जो विकासशील देशों को खाद्य पदार्थों की कमी से बचाने के लिये कृषि उत्पादों का भंडार करने की अनुमति प्रदान करता है।
    • भारत बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय एवं अल्फांसो आम जैसे उत्पादों के लिये भौगोलिक संकेतों के संरक्षण के उच्च स्तर पर विस्तार का पक्षधर है, जो कि बौद्धिक संपदा अधिकार (TRIPS) समझौते के अंतर्गत वाइन तथा स्प्रिट को प्रदान किये गए हैं।
    • विश्व व्यापार संगठन के समझौतों में श्रम मानकों, पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकारों, निवेश के नियमों, प्रतिस्पर्द्धा नीति जैसे गैर-व्यापार मुद्दों को शामिल करने पर विकसित देश दबाव डाल रहे हैं।
      • भारत गैर-व्यापार मुद्दों को शामिल करने के विरुद्ध है जो लंबे समय से संरक्षणवादी उपायों को लागू करने के लिये निर्देशित हैं (गैर-व्यापार मुद्दों के आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देश कुछ वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे वस्त्र, प्रसंस्कृत भोजन आदि), विशेष रूप से विकासशील देशों से।
    • भारत जून 2022 से शुरू होने वाले विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC12) में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन (ई-ट्रांसमिशन) पर सीमा शुल्क को लेकर अधिस्थगन का विरोध करेगा क्योंकि इसके प्रावधान केवल विकसित देशों के पक्ष में हैं।
      • भारत और दक्षिण अफ्रीका ने कई अवसरों पर संगठन से इस मुद्दे पर फिर से विचार करने के लिये कहा है और विकासशील देशों पर स्थगन के प्रतिकूल प्रभाव को उजागर किया है।
      • भारत चाहता है कि विश्व व्यापार संगठन ई-कॉमर्स क्षेत्र पर वर्क प्रोग्राम को तेज़ करे।
      • भारत ने यह भी कहा है कि काउंसिल फॉर ट्रेड इन गुड्स, काउंसिल फॉर ट्रेड इन सर्विसेज़, काउंसिल फॉर ट्रिप्स (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधित पहलू-TRIPS) तथा व्यापार और विकास समिति को मूल रूप से निर्धारित अपने संबंधित जनादेश के अनुसार ई-कॉमर्स पर चर्चा करनी चाहिये।

    विश्व व्यापार संगठन की चुनौतियाँ

    • वर्ष 2001 में WTO सदस्यों ने ‘दोहा विकास एजेंडा’ शुरू किया जो व्यापारिक नियमों के अद्यतन के लिये एक बड़ा प्रयास था। इसमें भाग लेने वाले देशों ने एक समझौते पर पहुँचने के लिये कई वर्ष बिता दिये तथा असफल रहे।
      • वार्ता में एक मुख्य समस्या एक आम सहमति तक पहुँचने के लिये 150 से अधिक देशों में सहमति होने की कठिनाई थी।
      • पिछले वार्ता दौर (वर्ष 1987 से वर्ष 1994 तक आयोजित उरुग्वे राउंड) में संभावित प्रतिरोधक देशों को नव निर्मित विश्व व्यापार संगठन से निष्कासित करने की चुनौती दी जा सकती थी।
        • एक बार सदस्य बन जाने के पश्चात् इस युक्ति को दोहराया नहीं जा सकता था।
    • वर्ष 2017 विश्व व्यापार संगठन मंत्रालायिक सम्मेलन (MC11) ब्यूनस आयर्स किसी भी सारभूत परिणाम के बिना समाप्त हो गया क्योंकि 164 सदस्यीय निकाय आम सहमति बनाने में विफल रही।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका ने खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिये सरकारी स्टॉकहोल्डिंग पर एक स्थायी समाधान अवरुद्ध कर दिया जिसके परिणामस्वरूप ई-कॉमर्स एवं निवेश सुविधा सहित नए मुद्दों पर भारत ने सख्त रुख अपनाया है।
      • अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में विकसित देशों ने डब्ल्यूटीओ में बड़े पैमाने पर दबाव समूह बनाकर WTO में गतिरोध का रास्ता तलाशने का प्रयास किया, जिसमें WTO में प्रत्येक फॉर्मूलेशन में 70 से अधिक सदस्यों के साथ MSME शामिल हैं।
      • यद्यपि WTO सर्वसम्मति से संचालित होता है यहाँ तक कि एक बहुपक्षीय समझौते के लिये सभी सदस्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है, इन समूहों का गठन WTO को बहुपक्षवाद पर अपना ध्यान केंद्रित करने से दूर करने के प्रयास के रूप में है।
    • इसके व्यापार से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIP) के पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क का संरक्षण क्रूर एवं अमानवीय है जो स्वास्थ्य एवं मानव जीवन के मूल्य की अवहेलना करता है।
      • WTO ने फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिये ‘लाभ के अधिकार’ का संरक्षण किया  है, जो उप-सहारा अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में जहाँ एचआईवी/एड्स से प्रतिदिन हज़ारों लोगों की मृत्यु हो जाती है। यह उन देशों के अपने लोगों के स्वास्थ्य के लिये जीवन रक्षक दवाईयाँ प्राप्त करने हेतु प्रयासों के विरुद्ध  हैं।
    • यू.एस.ए. ने जानबूझ कर (अथवा नहीं) अत्यधिक माँगों से जिन्हें पूरा करने के लिये कोई भी देश तैयार नहीं था, व्यापार वार्ता प्रक्रिया के दोहा राउंड को नष्ट कर दिया।
    • ओबामा प्रशासन की प्राथमिकता एक कमज़ोर होते हुए विश्व व्यापार संगठन की वार्ता को पुनर्जीवित करना नहीं बल्कि अपने प्रतिद्वंद्वियों यूरोप और चीन को नियंत्रित करने के लिये अपने नए बनाए गए विकल्प, TPP (ट्रांस-पैसिफिक-पार्टनरशिप) पर ध्यान केंद्रित करना था।
    • कई वर्षों से व्यापार विवाद के निपटारे के लिये बहुपक्षीय प्रणाली गहन जाँच एवं निरंतर आलोचना के अधीन है।
      • अमेरिका ने नए अपीलीय निकाय सदस्यों (न्यायाधीशों) की नियुक्ति को व्यवस्थित रूप से अवरुद्ध कर दिया है और इसने डब्ल्यूटीओ अपील तंत्र के काम में बाधा डाली है।
    • चीनी व्यापारवाद (व्यापार को प्रभावित करने की कोशिश करता है विशेष रूप से निर्यात को प्रोत्साहित करने और आयात पर सीमाएँ लगाकर)। संयुक्त राज्य अमेरिका के एकतरफा प्रशुल्क उपायों का आक्रामक उपयोग और विश्व व्यापार संगठन के अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण आधुनिक क्षेत्रों में अपने विनियमों का विस्तार करने पर आम सहमति प्राप्त होने में असमर्थता विश्व व्यापार संगठन की आलोचना को सुदृढ़ करती है।
    • पारदर्शिता का अभाव:
      • WTO की वार्ताओं के संदर्भ में एक समस्या यह है कि WTO में शामिल विकसित या विकासशील देशों के संगठन की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है।
      • वर्तमान में सदस्य देशों द्वारा WTO से विशेष रियायत प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वयं को विकासशील देशों के रूप में पदांकित किया जा रहा है।
      • उदाहरण के लिये, चीन को डब्ल्यूटीओ में 'विकासशील देश' का दर्जा मिला, जो एक विवादास्पद मुद्दा बन गया और कई देशों ने इस फैसले के खिलाफ चिंता जताई।

    WTO का भविष्य

    चूँकि WTO सर्वसम्मति आधारित है, इसलिये सभी 164 सदस्यों के मध्य सुधारों पर एक समझौता करना बेहद मुश्किल होता है। इसके लिये एक संभावित तरीका नियमों के एक नए संग्रह पर समान विचार वाले देशों के समूह के साथ एक बहुपक्षीय समझौता करना हो सकता है जो व्यापक WTO के लिये एक परिशिष्ट (पूरक) के रूप में कार्य करता है।

    निष्कर्ष

    आज विश्व संरक्षणवाद, व्यापार युद्ध (जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन) से गुजर रहा है, ब्रेक्जिट वैश्विक अर्थव्यवस्था को संकुचित कर रहा है। भविष्य में विश्व व्यापार संगठन की भूमिका द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद विकसित वैश्विक उदारीकृत आर्थिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।

    यह वह समय है जब संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश WTO से अलग होने की धमकी दे रहे हैं जो WTO को निष्क्रिय बना रहा है जिससे भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएँ जैसे ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका आदि विकासशील देशों के हितों की रक्षा कर मज़बूत WTO के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान कर सकते हैं।