कृषि
नई कृषि निर्यात-आयात नीति की आवश्यकता
- 27 May 2024
- 21 min read
प्रिलिम्स के लिये:कृषि निर्यात प्रवृति, अनाज, चीनी, प्याज, कृषि निर्यात नीति (AEP), बाज़ार पहुँच समझौते, कृषि निर्यात नीति 2018, खाद्य तेल और दलहन मेन्स के लिये:कृषि निर्यात में गिरावट के कारण, कृषि निर्यात नीति (AEP), निर्यात सब्सिडी, दर में कटौती, गुणवत्ता मानक, बाज़ार पहुँच समझौते, कृषि निर्यात नीति 2018, निगरानी ढाँचा, उपभोक्ता खाद्य सुरक्षा और बुनियादी ढाँचा विकास। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य विभाग के आँकड़ों से पता चला है कि वर्ष 2023-24 में भारत के कृषि निर्यात में 8.2% की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण विभिन्न वस्तुओं पर सरकारी प्रतिबंधों का लगना है। इस बीच, खाद्य तेल की कम कीमतों के कारण कृषि आयात में 7.9% की गिरावट आई है।
- ये प्रवृतियाँ कृषि क्षेत्र को स्थिर करने तथा घरेलू उपलब्धता एवं बाज़ार वृद्धि, दोनों को सुनिश्चित करने के लिये एक संतुलित कृषि निर्यात-आयात नीति की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं।
भारतीय कृषि निर्यात एवं आयात की वर्तमान स्थिति क्या है?
- कृषि निर्यात:
- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कृषि निर्यात में 8.2% की भारी गिरावट देखी गई, जिससे यह 48.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- यह गिरावट वित्तीय वर्ष 2022-23 में 53.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड-तोड़ स्थिति के बाद देखी गयी।
- अस्वीकृत वस्तुएँ:
- चीनी निर्यात: अक्तूबर 2023 से चीनी निर्यात की अनुमति नहीं दी गई, जिससे 2023-24 में निर्यात पिछले वर्ष के 5.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
- गैर-बासमती चावल निर्यात: घरेलू उपलब्धता और खाद्य मुद्रास्फीति पर चिंताओं के कारण जुलाई 2023 से सभी प्रकार के सफेद गैर-बासमती चावल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- वर्तमान में गैर बासमती वाले क्षेत्र में केवल उबले हुए अनाज के नौवहन (Shipments) की अनुमति है, जिस पर 20% शुल्क लगता है।
- इन प्रतिबंधों ने कुल गैर-बासमती निर्यात को वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड 6.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटाकर वर्ष 2023-24 में 4.57 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है।
- गेहूँ निर्यात: मई, 2022 में गेहूँ का निर्यात बंद हो गया, जो 2021-22 में 2.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2023-24 में 56.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
- प्याज निर्यात: मई 2024 में केंद्र ने प्याज के निर्यात से प्रतिबंध हटा दिया। इसके साथ ही 550 अमेरिकी डॉलर प्रतिटन का न्यूनतम मूल्य (जिसके नीचे कोई निर्यात नहीं हो सकता) और 40% शुल्क निर्धारित किया गया।
- आधिकारिक आँकड़ों से ज्ञात होता है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान प्याज का कुल निर्यात केवल 17.08 लाख टन हुआ, जिसका मूल्य 467.83 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 25.25 लाख टन था, जिसका मूल्य लगभग 561.38 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- हालाँकि, बासमती चावल और मसालों के निर्यात में वृद्धि देखी गई, बासमती चावल 5.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और मसालों के निर्यात ने पहली बार 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आँकड़ा पार कर लिया।
- समुद्री उत्पादों, अरंडी का तेल (Castor Oil) और अन्य अनाज (मुख्य रूप से मक्का) के निर्यात में भी वृद्धि दर्ज़ की गई, जिसने समग्र निर्यात के बास्केट की वृद्धि में योगदान दिया।
- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कृषि निर्यात में 8.2% की भारी गिरावट देखी गई, जिससे यह 48.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- कृषि आयात:
- वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कृषि आयात में 7.9% की गिरावट देखी गई, जो वैश्विक बाज़ार स्थितियों और घरेलू मांग के प्रभाव को स्पष्ट करती है।
- खाद्य तेल आयात में कमी:
- समग्र कृषि आयात में उल्लेखनीय गिरावट मुख्यतः एक ही वस्तु के कारण थी: खाद्य तेल।
- रूस-यूक्रेन युद्ध के ठीक एक वर्ष बाद 2022-23 में भारत में वनस्पति वसा का आयात 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जबकि इस दौरान वनस्पति तेलों की वैश्विक कीमतें अपने चरम पर थीं।
- हालाँकि, वर्ष 2023-24 में औसत FAO वनस्पति तेल उप-सूचकांक घटकर 123.4 अंक हो गया, जो न्यूनतम वैश्विक कीमतों का संकेत देता है।
- परिणामस्वरूप, पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान वनस्पति तेल का आयात 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम हुआ।
- समग्र कृषि आयात में उल्लेखनीय गिरावट मुख्यतः एक ही वस्तु के कारण थी: खाद्य तेल।
- दलहन आयात में वृद्धि:
- वर्ष 2023-24 में दलहन आयात लगभग दोगुना होकर 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो वर्ष 2015-16 और वर्ष 2016-17 के क्रमशः 3.90 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा 4.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर के बाद सर्वाधिक है।
- दलहन आयात में वृद्धि इस आवश्यक वस्तु की घरेलू मांग की पूर्ति करने के लिये विदेशी स्रोतों पर निरंतर निर्भरता को उजागर करती है।
भारत के कृषि निर्यात और आयात को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक क्या हैं?
- निर्यात प्रतिबंध: सरकार ने घरेलू उपलब्धता और खाद्य मुद्रास्फीति पर चिंताओं के कारण चावल, गेहूँ, चीनी और प्याज़ जैसी वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- इन प्रतिबंधों के कारण इन वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
- वैश्विक कीमतों में उतार चढ़ाव: संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के खाद्य मूल्य सूचकांक (आधार: 2014-16= 100) का उपयोग वैश्विक कृषि-वस्तु कीमतों को ट्रैक करने के लिये एक संदर्भ के रूप में किया जाता है।
- FAO खाद्य मूल्य सूचकांक वर्ष 2013-14 में औसतन 119.1 अंक से गिरकर वर्ष 2013-14 और वर्ष 2019-20 के बीच 96.5 अंक हो गया, जो वैश्विक कृषि-वस्तु कीमतों में गिरावट को प्रदर्शित करता है।
- वैश्विक कीमतों में इस गिरावट ने भारत के कृषि निर्यात की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर दिया।
- हालाँकि, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक मूल्य सुधार के कारण वर्ष 2022-23 में FAO सूचकांक 140.8 अंक तक बढ़ गया।
- वैश्विक कीमतों में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 में भारत का कृषि निर्यात और आयात वित्तीय वर्ष 2023-24 में गिरावट से पहले, अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया।
- वर्ष 2023-24 में औसत FAO सूचकांक घटकर 121.6 अंक हो गया, जबकि वनस्पति तेल उप-सूचकांक घटकर 123.4 अंक हो गया, जिससे भारत के खाद्य तेल आयात बिल में गिरावट आई।
- सरकारी नीतियाँ: दालों और खाद्य तेलों पर कम अथवा शून्य आयात शुल्क को बनाए रखने का सरकार का निर्णय घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के उसके लक्ष्य के विपरीत है।
- यह नीति घरेलू कृषि के बजाय आयात को बढ़ावा देती है, जिससे संभावित रूप से किसानों को फसलों में विविधता लाने के प्रति हतोत्साहित किया जा सकता है। अंततः यह दीर्घकालिक कृषि विकास और आत्मनिर्भरता को कमज़ोर करता है।
कृषि निर्यात नीति क्या है?
- परिचय: एक कृषि निर्यात नीति में सरकारी नियमों, कार्यों और प्रोत्साहनों का एक संग्रह होता है जिसका उद्देश्य एक विशिष्ट राष्ट्र से कृषि वस्तुओं के निर्यात को विनियमित करना तथा बढ़ावा देना होता है।
- इस नीति में कृषि उत्पादकों और निर्यातकों की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँच को बढ़ावा देने तथा उनकी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिये निर्यात सब्सिडी, शुल्क में कमी, गुणवत्ता मानक, बाज़ार पहुँच समझौते, वित्तीय प्रोत्साहन एवं व्यापार संवर्द्धन पहल शामिल हैं।
- भारत की कृषि निर्यात नीति, 2018: दिसंबर 2018 में सरकार ने भारत को वैश्विक कृषि में अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिये उचित नीतिगत उपायों का उपयोग करके भारत की कृषि निर्यात क्षमता का लाभ उठाने के उद्देश्य से, एक व्यापक कृषि निर्यात नीति लागू की।
- उद्देश्य: इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को 30 अरब डॉलर से दोगुना करके 60 अरब डॉलर से अधिक करना है।
- नीति में यह उम्मीद की जा रही थी कि किसानों को विदेशी बाज़ार में निर्यात के अवसरों को बढ़ावा मिलेगा।
- यह जातीय, जैविक, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देगा।
- कृषि निर्यात नीति के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक निगरानी ढाँचा स्थापित किया जाएगा।
- घटक:
- रणनीतिक: नीतिगत उपाय, बुनियादी ढाँचा और रसद; निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण का समर्थन; कृषि निर्यात में राज्य सरकारों की अधिक भागीदारी को सुनिश्चित करना।
- क्रियाशील: समूहों पर ध्यान केंद्रित करना, मूल्यवर्द्धित निर्यात को बढ़ावा देना, "ब्रांड इंडिया" का विपणन और प्रचार करना, उत्पादन एवं प्रसंस्करण में निजी निवेश को आकर्षित करना तथा एक मज़बूत गुणवत्ता व्यवस्था स्थापित करके अनुसंधान एवं विकास सुनिश्चित करना।
- उद्देश्य: इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक कृषि निर्यात को 30 अरब डॉलर से दोगुना करके 60 अरब डॉलर से अधिक करना है।
भारत की कृषि-निर्यात नीति की चुनौतियाँ क्या हैं?
- नीति अस्थिरता और दोहरे मानक: निर्यात नियमों में बार-बार होने वाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप किसानों और व्यापारियों को आर्थिक हानि हो सकती है, जो अक्सर घरेलू ग्राहकों को मूल्य वृद्धि से बचाने के लिये लागू किये जाते हैं। प्याज़ और गेहूँ पर अचानक लगाए गए प्रतिबंध और सीमाएँ बाज़ार के संतुलन को प्रभावित करती हैं और दीर्घकालिक वाणिज्यिक संबंधों को बाधित करते हैं।
- परस्पर विरोधी लक्ष्य: खाद्य तेलों पर सरकार के न्यूनतम टैरिफ और दालों पर न्यूनतम आयात शुल्क का उद्देश्य उपभोक्ता सामर्थ्य की गारंटी सुनिश्चित करना होता है, लेकिन वे कम जल-गहन एवं आयात-प्रतिस्थापन वाली फसलों में घरेलू फसल विविधीकरण को हतोत्साहित करने का कार्य करते हैं।
- सब्सिडी केंद्रित योजनाएँ: चुनावी मौसमों के दौरान लोकलुभावन उपाय, जैसे कि उपभोक्ता खाद्य और किसान उर्वरक सब्सिडी में वृद्धि, कृषि ऋण माफी एवं मुफ्त बिजली, हालाँकि राजनीतिक रूप से लोकप्रिय हैं, राजकोषीय अनुशासन तथा कृषि क्षेत्र की वित्तीय स्थिति को कमज़ोर करते हैं।
- अनुसंधान एवं विकास पर अपर्याप्त निवेश: कृषि अनुसंधान एवं विकास पर भारत का निवेश कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.5% तक सीमित है, जो किसी महत्त्वपूर्ण वृद्धि को प्रेरित करने के लिये अपर्याप्त है और उत्पादन व निर्यात बढ़ाने के लिये इसे दोगुना या तिगुना करने की आवश्यकता है।
- गुणवत्ता और मानक: आयातक देशों के SPS उपायों (Sanitary and Phytosanitary Measures) का अनुपालन करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत को वैश्विक कृषि बाज़ार में अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है और इसलिये मूल्य निर्धारण एवं गुणवत्ता के मामले में उसका प्रतिस्पर्द्धी होना आवश्यक है। विनिमय दर में उतार-चढ़ाव भारतीय कृषि निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर सकता है।
भारत में कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी योजनाएँ:
- ऑपरेशन ग्रीन्स
- मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव (MAI)
- राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM)
- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA)
- कृषि निर्यात क्षेत्रों की स्थापना
भारत में स्थिर कृषि-निर्यात नीति के लिये आगे की राह क्या हैं?
- हितों और दीर्घकालिक लक्ष्यों को संतुलित करना: अर्थशास्त्री अचानक हुए नुकसान के बिना निर्यात का प्रबंधन करने के लिये अस्थायी टैरिफ जैसी अधिक पूर्वानुमानित और नियम-आधारित नीतियों का सुझाव देते हैं।
- रणनीतिक बफर स्टॉक और बाज़ार हस्तक्षेप: सरकार को मूल्य अस्थिरता को कम करने तथा बाज़ार स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक वस्तुओं का बफर स्टॉक बनाए रखना चाहिये। यह दृष्टिकोण अधिक नियंत्रित एवं कम विघटनकारी बाज़ार हस्तक्षेप की अनुमति देता है, जिससे अचानक होने वाले नीतिगत बदलावों को नियंत्रित किया जा सकता है जो कृषि क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं।
- किसान कल्याण: किसानों के कल्याण को प्राथमिकता दी जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त कृषि निर्यात की सफलता से कृषक समुदाय को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होना चाहिये।
- घरेलू उपभोक्ताओं के लिये समर्थन: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये घरेलू उपभोक्ताओं हेतु नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है, जो विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों पर लक्षित घरेलू आय नीति के माध्यम से क्रियान्वित होना चाहिये।
- उत्पादकता में वृद्धि लाना: प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये कृषि उत्पादकता में वृद्धि आवश्यक है। इसके लिये अनुसंधान एवं विकास, बीज, सिंचाई, उर्वरक और बेहतर कृषि पद्धतियों में निवेश की आवश्यकता होगी।
- निर्यात टोकरी में विविधता लाना: कृषि निर्यात टोकरी में विविधता लाई जाए, मूल्यवर्द्धित उत्पादों पर बल दिया जाए, कुछ चुनिंदा पण्यों पर निर्भरता को कम किया जाए और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की एक विस्तृत शृंखला को लक्षित किया जाए।
- अवसंरचना विकास: फसलोत्तर हानियों को कम करने और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये कोल्ड स्टोरेज, प्रसंस्करण सुविधाओं, परिवहन एवं लॉजिस्टिक्स सहित आधुनिक अवसंरचना में निवेश किया जाए।
- सर्वोत्तम अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों से सीखना: अन्य देशों की सफल कृषि निर्यात नीतियों और उनसे संबंधित सर्वोत्तम अभ्यासों से सीखने की ज़रूरत है। अनुकूल व्यापार समझौते संपन्न करने के राजनयिक प्रयासों को मज़बूत किया जान चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक बेहतर पहुँच प्राप्त करने के लिये व्यापार बाधाओं को कम किया जान चाहिये।
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