शासन व्यवस्था
कृषि जनगणना
- 29 Jul 2022
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:कृषि जनगणना, किसानों के लिये तकनीक, संबंधित सरकारी पहल मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का महत्त्व, किसानों की सहायता में तकनीक की भूमिका, सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने "ग्यारहवीं कृषि जनगणना (2021-22)" की शुरुआत की।
- इस गणना से भारत जैसे विशाल और कृषि प्रधान देश को व्यापक पैमाने पर लाभ होगा।
कृषि जनगणना:
- परिचय:
- कृषि जनगणना प्रत्येक 5 वर्ष में आयोजित की जाती है, जिसका आयोजन कोविड - 19 महामारी के कारण इस बार देर से किया जा रहा है।
- संपूर्ण जनगणना का संचालन तीन चरणों में किया जाता है और डेटा संग्रह के लिये परिचालन स्वामित्त्व को सूक्ष्म स्तर पर एक सांख्यिकीय इकाई के रूप में देखा जाता है।
- तीन चरणों में एकत्रित कृषि जनगणना के आँकड़ों के आधार पर, विभाग अखिल भारतीय और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्तर पर विभिन्न मापदंडों पर रुझानों का विश्लेषण करते हुए तीन विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- ज़िला/तहसील स्तर की रिपोर्ट संबंधित राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा तैयार की जाती है।
- तीन चरणों में एकत्रित कृषि जनगणना के आँकड़ों के आधार पर, विभाग अखिल भारतीय और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्तर पर विभिन्न मापदंडों पर रुझानों का विश्लेषण करते हुए तीन विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- कृषि जनगणना अपेक्षाकृत छोटे स्तर पर विभिन्न कृषि मापदंडों पर जानकारी का मुख्य स्रोत है, जैसे कि परिचालन जोतों की संख्या और क्षेत्र, उनका आकार, वर्ग-वार वितरण, भूमि उपयोग, किरायेदारी तथा फसल पैटर्न आदि।
- ग्यारहवीं जनगणना:
- कृषि जनगणना कार्य अगस्त 2022 में शुरू होगा।
- यह पहली बार है कि कृषि जनगणना के लिये डेटा संग्रह स्मार्टफोन और टैबलेट पर किया जाएगा, ताकि डेटा समय पर उपलब्ध हो सके।
- इसमे समाविष्ट हैं:
- भूमि शीर्षक रिकॉर्ड और सर्वेक्षण रिपोर्ट जैसे डिजिटल भूमि अभिलेखों का उपयोग।
- स्मार्टफोन/टैबलेट का उपयोग करके एप/सॉफ्टवेयर के माध्यम से डेटा का संग्रह।
- चरण-I के दौरान गैर-भूमि रिकॉर्ड वाले राज्यों के सभी गाँवों की गणना, जैसा कि भूमि रिकॉर्ड वाले राज्यों में किया गया है।
- प्रगति और प्रसंस्करण की वास्तविक समय की निगरानी।
- अधिकांश राज्यों ने अपने भूमि अभिलेखों और सर्वेक्षणों को डिजिटल कर दिया है, जिससे कृषि जनगणना के आँकड़ों के संग्रह में और तेज़ी आएगी।
- डिजिटल भूमि अभिलेखों के उपयोग और डेटा संग्रह के लिये मोबाइल एप के उपयोग से देश में परिचालन जोतों का एक डेटाबेस तैयार किया जा सकेगा।
डिजिटल कृषि:
- परिचय:
- डिजिटल कृषि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तथा डेटा पारिस्थितिकी तंत्र है जो सभी के लिये सुरक्षित, पौष्टिक और किफायती भोजन प्रदान करते हुए खेती को लाभदायक, टिकाऊ बनाने के लिये समय पर लक्षित सूचना एवं सेवाओं के विकास और वितरण का समर्थन करता है।
- उदाहरण:
- जैव प्रौद्योगिकी कृषि पारंपरिक प्रजनन तकनीकों सहित उपकरणों की एक शृंखला है, जो उत्पादों को बनाने या संशोधित करने के लिये जीवित जीवों, या जीवों के कुछ हिस्सों को संशोधित कर देती है; इसमें पौधों या जानवरों में सुधार या विशिष्ट कृषि उपयोगों के लिये सूक्ष्मजीवों का विकास शामिल है।
- परिशुद्ध कृषि (PA) एक ऐसा दृष्टिकोण है जहाँ कृषि वानिकी, अंतर - फसल, फसल चक्र इत्यादि जैसी पारंपरिक खेती तकनीकों की तुलना में बढ़ी हुई औसत उपज प्राप्त करने के लिये कृषि निर्गतों का सटीक मात्रा में उपयोग किया जाता है। यह डिजिटल कृषि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करने पर आधारित है।
- डेटा मापन, मौसम निगरानी, रोबोटिक्स/ड्रोन प्रौद्योगिकी आदि के लिये डिजिटल और वायरलेस प्रौद्योगिकियाँ।
- लाभ:
- कृषि मशीनरी स्वचालन:
- यह आदानों को ठीक करने की अनुमति देता है और शारीरिक श्रम की मांग को कम करता है।
- रिमोट सैटेलाइट डेटा:
- रिमोट सैटेलाइट डेटा और इन-सीटू सेंसर सटीकता में सुधार करते हैं तथा फसल की वृद्धि एवं भूमि या पानी की गुणवत्ता की निगरानी की लागत को कम करते हैं।
- स्वतंत्र रूप से उपलब्ध और उच्च गुणवत्ता वाली उपग्रह इमेजरी कई कृषि गतिविधियों की निगरानी की लागत को नाटकीय रूप से कम करती है। यह सरकारों को अधिक लक्षित नीतियों की ओर बढ़ने की अनुमति दे सकती है जो किसानों को पर्यावरणीय परिणामों के आधार पर भुगतान (या दंडित) करती है।
- ट्रैसेबिलिटी टेक्नोलॉजीज़ एंड डिजिटल लॉजिस्टिक्स:
- ये सेवाएँ उपभोक्ताओं को विश्वसनीय जानकारी प्रदान करते हुए कृषि-खाद्य आपूर्ति शृंखला को सुव्यवस्थित करने की क्षमता प्रदान करती हैं।
- प्रशासनिक उद्देश्य:
- पर्यावरण नीतियों के अनुपालन की निगरानी के अलावा डिजिटल प्रौद्योगिकियाँ कृषि के लिये प्रशासनिक प्रक्रियाओं के स्वचालन और विस्तार या सलाहकार सेवाओं के संबंध में विस्तारित सरकारी सेवाओं के विकास को सक्षम बनाती हैं।
- भूमि अभिलेखों का रखरखाव:
- प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए बड़ी संख्या में जोत से संबंधित डेटा को उचित रूप से टैग और डिजिटाइज़ किया जा सकता है।
- यह न केवल बेहतर लक्ष्यीकरण में मदद करेगा बल्कि अदालतों में भूमि विवादों के मुकदमों की संख्या को भी कम करेगा।
- कृषि मशीनरी स्वचालन:
डिजिटल कृषि के लिये सरकार की पहल:
- एग्रीस्टैक:
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 'एग्रीस्टैक' के निर्माण की योजना बनाई है, जो कि कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेपों का एक संग्रह है। यह किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु एक एकीकृत मंच का निर्माण करेगा
- डिजिटल कृषि मिशन:
- कृषि क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ब्लॉक चेन, रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीक, ड्रोन व रोबोट के उपयोग जैसी नई तकनीकों पर आधारित परियोजनाओं को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा वर्ष 2021 से वर्ष 2025 तक के लिये यह पहल शुरू की गई है।
- एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP):
- यह कोर इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा, एप्लीकेशन और टूल्स का एक संयोजन है जो देश भर में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न सार्वजनिक और निजी आईटी प्रणालियों की निर्बाध अंतःक्रियाशीलता को सक्षम बनाता है।
- UFSP निम्नलिखित भूमिका निभाता है:
- यह कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में एक केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करता है (जैसे ई भुगतान में UPI)।
- सेवा प्रदाताओं (सार्वजनिक और निजी) तथा किसान सेवाओं के पंजीकरण को सक्षम बनाता है।
- सेवा वितरण प्रक्रिया के दौरान आवश्यक विभिन्न नियमों और मान्यताओं को लागू करता है।
- सभी लागू मानकों, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (Application Programming Interface- API) और प्रारूपों के भंडार के रूप में कार्य करता है।
- किसानों को व्यापक स्तर पर सेवाओं का वितरण सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न योजनाओं और सेवाओं के बीच डेटा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करना।
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A):
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, इस योजना को वर्ष 2010-11 में 7 राज्यों में प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य किसानों तक समय पर कृषि संबंधी जानकारी पहुँचाने के लिये सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उपयोग के माध्यम से भारत में तेज़ी से विकास को बढ़ावा देना है।
- वर्ष 2014-15 में इस योजना का विस्तार शेष सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया था।
- अन्य डिजिटल पहलें: किसान कॉल सेंटर, किसान सुविधा एप, कृषि बाज़ार एप, मृदा स्वास्थ्य कार्ड (SHC) पोर्टल आदि।
आगे की राह
- नीति निर्माताओं को संभावित लाभों, लागतों और जोखिमों पर विचार करने तथा बाज़ार की विफलता, प्रौद्योगिकी को प्रभावित करने वाले कारकों को समझने की आवश्यकता है ताकि हस्तक्षेप को लक्षित कर सार्वजनिक हितसुनिश्चित किया जा सके।
- यह समझना कि प्रौद्योगिकी नीति के विभिन्न घटकों में कैसे मदद कर सकती है ताकि सरकारी निकायों का कौशल विस्तार, प्रौद्योगिकी एवं प्रशिक्षण में निवेश या अन्य अभिकर्त्ताओं (सरकारी और गैर-सरकारी दोनों) के साथ साझेदारी को सक्षम बनाया जा सके।
- उपग्रह इमेजिंग, मृदा स्वास्थ्य सूचना, भूमि रिकॉर्ड, फसल प्रतिरूपण तथा आवृत्ति, बाज़ार डेटा तथा अन्य के लिये देश में मज़बूत डिजिटल बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है।
- डेटा दक्षता को डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM), डिजिटल स्थलाकृति, भूमि उपयोग और भूमि कवर, मृदा मानचित्र आदि के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)प्रश्न: जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |