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शासन व्यवस्था

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम

  • 18 Nov 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

DILRMP, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, सार्वजनिक-निजी भागीदारी

मेन्स के लिये:

DILRMP का संक्षिप्त परिचय, DILRMP के घटक एवं लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 'भूमि संवाद' - डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) पर राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया।

  • मंत्रालय ने राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली (NGDRS) पोर्टल और डैशबोर्ड भी लॉन्च किया।

प्रमुख बिंदु

  • शुरुआत:
    • डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) को कैबिनेट ने 21 अगस्त, 2008 को मंज़ूरी दी थी।
    • देश में भूमि अभिलेख प्रणाली के आधुनिकीकरण के लिये एक संशोधित कार्यक्रम अर्थात् राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP) तैयार किया गया है जिसे अब डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) के नाम से जाना जाता है। 
    • भूमि अभिलेखों के कंप्यूटरीकरण (CLR) और राजस्व प्रशासन के सुदृढ़ीकरण तथा भूमि अभिलेखों के अद्यतन (SRA&ULR) की दो केंद्र प्रायोजित योजनाओं को मिला दिया गया।
  • परिचय:
    • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसे अपने मूल लक्ष्यों को पूरा करने के साथ-साथ कई नई योजनाओं के साथ अपने दायरे का विस्तार करने के लिये 2023-24 तक बढ़ा दिया गया है।
    • यह देश भर में एक उपयुक्त एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली (ILIMS) विकसित करने के लिये विभिन्न राज्यों में भूमि अभिलेखों के क्षेत्र में मौजूद समानता पर आधारित होगी, जिसमें अलग-अलग राज्य अपनी विशिष्ट ज़रूरतों के अनुसार प्रासंगिक और उचित चीज़ो को जोड़ सकेंगे।
      • ILIMS: इस प्रणाली में पार्सल स्वामित्व, भूमि उपयोग, कराधान, स्थलों की सीमाएँ, भूमि मूल्य, ऋणभार और कई अन्य जानकारियाँ शामिल हैं।
    • इसे भूमि संसाधन विभाग (ग्रामीण विकास मंत्रालय) द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • उदेश्य:
    • अद्यतन भूमि अभिलेखों, संचालित और स्वचालित उत्परिवर्तन, पाठ्य और स्थानिक अभिलेखों के बीच एकीकरण, राजस्व एवं पंजीकरण के बीच अंतर-संयोजन, वर्तमान विलेख पंजीकरण तथा प्रकल्पित शीर्षक प्रणाली को शीर्षक गारंटी के साथ निर्णायक शीर्षक के साथ बदलने के लिये एक प्रणाली की शुरुआत करना।
  • घटक:
    • भूमि अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण।
    • सर्वेक्षण/पुनः सर्वेक्षण।
    • पंजीकरण का कंप्यूटरीकरण।
    • तहसील/तालुका/सर्कल/ब्लॉक स्तर पर आधुनिक रिकॉर्ड रूम/भूमि अभिलेख प्रबंधन केंद्र।
    • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।
  • लाभ
    • इससे नागरिक को रियल-टाइम भूमि स्वामित्व रिकॉर्ड उपलब्ध होंगे।
    • रिकॉर्ड तक मुफ्त पहुँच नागरिक और सरकारी अधिकारियों के बीच इंटरफेस को कम करेगी, जिससे भ्रष्टाचार और उत्पीड़न में कमी आएगी।
      • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) बेहतर तरीके से सेवा वितरण सुनिश्चित करते हुए यह सरकारी तंत्र के साथ नागरिक इंटरफेस को और कम करेगा।
    • सिंगल-विंडो सेवा या वेब-सक्षम ‘एनीटाइम-एनीवेयर’ सुविधा नागरिक को RoRs (रिकॉर्ड ऑफ राइट्स) आदि को समय पर प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा।
    • स्वचालित होने के कारण इससे धोखाधड़ी वाले संपत्ति सौदों के दायरे में काफी कमी आएगी।
    • निर्णायक भूमि स्वामित्व से मुकदमेबाज़ी में भी काफी कमी आएगी।
    • कंप्यूटर के माध्यम से नागरिक को भूमि डेटा (जैसे- अधिवास, जाति, आय आदि) के आधार पर प्रमाण पत्र उपलब्ध होंगे।
    • यह पद्धति क्रेडिट सुविधाओं के लिये ई-लिंकेज की अनुमति देगी।
    • सरकारी कार्यक्रमों के लिये पात्रता की जानकारी आँकड़ों के आधार पर उपलब्ध होगी।
  • अन्य संबंधित पहलें
    • राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली:
      • यह मौजूदा मैनुअल पंजीकरण प्रणाली से बिक्री-खरीद और भूमि के हस्तांतरण में सभी लेन-देन के ऑनलाइन पंजीकरण की ओर एक बड़ा बदलाव है।
      • यह राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक बड़ा कदम है और 'वन नेशन वन सॉफ्टवेयर' को भी बढ़ावा देगा।
    • विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या
      • ULPIN को ‘भूमि की आधार संख्या’ के रूप में वर्णित किया जाता है। यह एक ऐसी संख्या है जो भूमि के उस प्रत्येक खंड की पहचान करेगी जिसका सर्वेक्षण हो चुका है,  विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, जहाँ सामान्यतः भूमि-अभिलेख काफी पुराने एवं  विवादित होते हैं। इससे भूमि संबंधी धोखाधड़ी पर रोक लगेगी।

स्रोत: पीआईबी

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