मिख़ाइल गोर्बाचेव - सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति
- 02 Sep, 2022 | अंकित कुमार साकेत
शीत युद्ध का शांतिपूर्ण अंत करने वाले पूर्व सोवियत राष्ट्रपति मिख़ाइल गोर्बाचेव का 30 अगस्त को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। गोर्बाचेव ने 1985 में सत्ता संभाली और सुधारों की शुरुआत की, साथ ही सोवियत संघ को दुनिया के लिए खोल दिया। लेकिन वह संघ के धीमे पतन को रोकने में असमर्थ रहे, और कई रूसियों ने उन्हें आने वाले वर्षों की उथल-पुथल के लिये दोषी ठहराया।
मिख़ाइल गोर्बाचेव के बारे में
मिख़ाइल सर्गेयेविच गोर्बाचेव एक रूसी और सोवियत राजनेता थे जिनका जन्म 2 मार्च 1931 को प्रिवोलनोय, स्टावरोपोल क्राय में रूसी और यूक्रेनी विरासत के एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। गोर्बाचेव ने 1953 में साथी छात्र रायसा टिटारेंको से विवाह किया और मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी से 1955 में विधि की डिग्री प्राप्त की।
वर्ष 1970 में गोर्बाचेव को स्टावरोपोल क्षेत्रीय समिति का प्रथम पार्टी सचिव नियुक्त किया गया था। वर्ष 1978 में वह पार्टी के केंद्रीय समिति के सचिव बने। सोवियत नेता लियोनिड ब्रेज़नेव की मृत्यु के बाद वर्ष 1985 में उन्हें सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएसयू) का महासचिव बनाया गया। वर्ष 1986 में कई असंतुष्ट राजनीतिक और धार्मिक नेताओं की रिहाई में गोर्बाचेव ने अहम भूमिका निभाई।
वर्ष 1987 में गोर्बाचेव और अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के बीच नाभिकीय हथियारों की कटौती के लिए समझौता हुआ। वर्ष 1991 में गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया।
शीत युद्ध
शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच तनाव की अवधि (1945-1991) को कहा जाता है। यह पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ के बीच वैचारिक युद्ध था। वर्ष 1991 में कई कारणों से सोवियत संघ का विघटन हो गया जिसने शीत युद्ध की समाप्ति को चिह्नित किया क्योंकि दो महाशक्तियों में से एक अब कमज़ोर पड़ गया था। गोर्बाचेव को शीत युद्ध को समाप्त करने में उनकी भूमिका के लिए वर्ष 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
गोर्बाचेव की नीतियाँ
गोर्बाचेव ने सोवियत संघ को राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से बाहर निकालने के लिए दो पहलों की शुरुआत की। इन नीतियों को सोवियत संघ के विघटन के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है।
1. ग्लास्नोस्त (खुलेपन की नीति)
2. पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन की नीति)
ग्लास्नोस्त (खुलेपन की नीति)
सोवियत संघ में लोगो को अपनी इच्छानुसार दल बनाने की स्वतंत्रता दी गई और साम्यवादी दल का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। रेडियो, टीवी, समाचार पत्र आदि संचार के साधनों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया और लोगों को विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता दी गई। सोवियत संघ में लोगों को निजी संपत्ति रखने का अधिकार दिया गया। अर्थव्यवस्था से सरकारी नियंत्रण समाप्त कर दिया गया। सोवियत संघ में निजी उद्योग स्थापित करने की स्वतंत्रता दी गई।
पेरेस्त्रोइका (पुनर्गठन की नीति)
सोवियत संघ में सम्मिलित राज्यों को वार्सा पैक्ट में बने रहने या अलग रहने की स्वतंत्रता दी गई। राज्यों को अपनी इच्छानुसार नीतियों का निर्माण करने का अधिकार दे दिया गया, यह संघवाद की ओर पहला कदम था। सोवियत संघ में सम्मिलित राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार दे दिया गया और यही कारण था कि सोवियत संघ का विघटन हुआ।
नीतियों का प्रभाव
गोर्बाचेव की नीतियों के कारण ही पूर्वी यूरोप में सोवियत वर्चस्व में कमी आई, शीत युद्ध की समाप्ति हुई। 25 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ से टूटकर 15 नए देश बने, जिसमें अज़रबैजान, आर्मीनिया, बेलारूस, कज़ाकिस्तान, जॉर्जिया, लातविया, मालदोवा, रूस, ताज़िकिस्तान, किर्गिस्तान, लिथुआनिया, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान शामिल थे। यह किसी और की नहीं बल्कि मिख़ाइल गोर्बाचेव की कमजोर नीतियां ही थीं, जिसने सोवियत संघ को तोड़ने का काम किया। यही कारण है कि पश्चिमी देश उनके प्रसंशक हैं जबकि अपने ही देश में उनकी आलोचना होती रही है। सोवियत संघ टूटने के कारण भारत को भी नुकसान हुआ और हम सोवियत संघ से क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी हासिल करने में नाकामयाब रहे।
भारत और सोवियत संघ के संबंध में गोर्बाचेव की भूमिका
गोर्बाचेव का भारत से विशेष नाता रहा। गोर्बाचेव ने वर्ष 1986 और वर्ष 1988 में भारत का दो बार दौरा किया। वर्ष 1986 में उनका उद्देश्य परमाणु निरस्त्रीकरण की उनकी पहल को यूरोप से एशिया तक ले जाना था। गोर्बाचेव ने कहा था कि इस काम के लिए भारत का सहयोग जरुरी है। इसी दौरे के दौरान गोर्बाचेव ने भारत की संसद को संबोधित भी किया था। गोर्बाचेव ने कहा था कि, हम हमारी विदेश नीति में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जो भारत के हितों को बाधित कर सके।
गोर्बाचेव 1988 में पुनः भारत दौरे पर आए। रक्षा, अंतरिक्ष और इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित कई अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई। गोर्बाचेव के कार्यकाल में भारत में हथियारों के निर्यात में वृद्धि हुई थी। राजीव गाँधी ने गोर्बाचेव को ‘शांति का योद्धा’ कहा था।
निष्कर्ष:
यदि हम गोर्बाचेव के जीवन पर नज़र डालें तो हम पाएंगे कि उन्हें दुनिया के सभी हिस्सों से प्रशंसा और पुरस्कार मिले, लेकिन उनके देश में उन्हें व्यापक स्तर पर निंदा झेलनी पड़ी। रूसियों ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के लिए उन्हें दोषी ठहराया। लेकिन वर्तमान समय में उनका मूल्यांकन करें तो हमें उनके कार्यों में शांति और सकारात्मकता का प्रयास दिखेगा।
अंकित कुमार साकेतअंकित कुमार साकेत मध्यप्रदेश के सतना जिले से हैं। वर्तमान में वे विधि अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अंकित हिंदी अनुवादन में कई वर्षों का अनुभव रखते हैं। उन्होंने अपने ब्लॉग लेखन की शुरुआत दृष्टि आईएएस के साथ की है । |