भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय विमानन उद्योग
- 12 May 2023
- 15 min read
यह एडिटोरियल 11/05/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘The troubles of India’s aviation industry’’ लेख पर आधारित है। इसमें उड्डयन क्षेत्र के समक्ष विद्यमान संकटों, उच्च परिचालन लागतों, उद्योग को प्रभावित कर रहे नीतिगत एवं नियामक कारकों आदि के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
कम-लागत हवाई वाहक ‘GoFirst’ द्वारा इन्सोल्वेंसी फ़ाइलिंग के बाद उड्डयन सुरक्षा नियामक ‘नागरिक उड्डयन महानिदेशालय’ (Directorate General of Civil Aviation- DGCA) द्वारा इस एयरलाइन को हवाई टिकटों की बिक्री तुरंत बंद करने का निर्देश दिया गया है।
- DGCA ने GoFirst (जिनसे दो वर्ष पूर्व ही स्वयं को रि-ब्रांड किया था) को ‘‘सुरक्षित, कुशल और विश्वसनीय तरीके से सेवा के संचालन को जारी रखने में विफलता’’ के लिये एक कारण-पृच्छा नोटिस भी जारी किया है। उल्लेखनीय है कि धीमे इंजन निर्माण और उच्च परिचालन लागत के कारण GoFirst के बेड़े को उड़ान से प्रतिबंधित किया गया है।
भारतीय उड्डयन क्षेत्र का आकार
- मार्च 2023 में घरेलू हवाई वाहकों ने 13 मिलियन यात्रियों को हवाई सेवा दी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अनुसार अकेले वित्त वर्ष 2024 में ही भारत में 140 मिलियन से अधिक यात्रियों का भार होगा।
- भारत को अगले 20 वर्षों में प्रति वर्ष 1.3 बिलियन से अधिक यात्रियों को संभालना है। वर्तमान में देश में 148 हवाई अड्डे हैं और सीट क्षमता के मामले में यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू बाज़ार है। मार्च 2023 तक की स्थिति के अनुसार, 56.8% बाज़ार हिस्सेदारी के साथ इंडिगो (IndiGo) घरेलू बाज़ार का अग्रणी हवाई वाहक है; उसके बाद विस्तारा/Vistara (8.9%) और एयर इंडिया (8.8%) का स्थान है।
क्या भारतीय उड्डयन क्षेत्र आर्थिक रूप से व्यवहार्य है?
- उच्च प्रतिस्पर्द्धा: विश्व में ‘सबसे तेज़ी से बढ़ते उड्डयन क्षेत्र’ के रूप में चिह्नित किये जाने के बावजूद, देश के एयरलाइनों को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी एवं कठोर उड्डयन उद्योग में अस्तित्व के लिये संघर्ष करना पड़ा है।
- महामारी के कारण हानि: वर्ष 2020-2021 में महामारी के कारण उन्हें भारी आर्थिक हानि (लगभग 15,000 करोड़ रुपए) उठानी पड़ी। वर्ष 2019-20 में इंडिगो लाभ अर्जित कर रहा एकमात्र एयरलाइन था, जबकि अन्य सभी एयरलाइन घाटे में चल रही थीं जिनमें एयर इंडिया (उस समय राज्य के स्वामित्व में संचालित) 4,600 करोड़ रुपए के घाटे के साथ सबसे आगे था।
- वित्तीय कठिनाइयाँ: घरेलू और क्षेत्रीय दोनों श्रेणी की 17 एयरलाइनें वित्तीय कठिनाइयों के कारण व्यवसाय से बाहर हो गई हैं। ऐसा मुख्य रूप से तरलता की कमी (liquidity crunch) और टिकट की कम कीमत के कारण हुआ।
- असंगत बाज़ार हिस्सेदारी: टाटा द्वारा एयर इंडिया और विस्तारा सहित चार हवाई वाहकों का समेकन किया गया है।
- समेकित एयर इंडिया और इंडिगो 75-80% बाज़ार पर कब्जा कर लेंगे, जिससे स्पाइसजेट (SpiceJet) और नवीनतम प्रवेशी अकासा (Akasa) जैसे खिलाड़ियों के लिये महज 20% बाज़ार उपलब्ध होगा।
भारतीय एयरलाइंस क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
- ATF लागत: भारत में हवाई किराया लाभ-अलाभ स्थिति (break-even point) से 15% नीचे है; भारी करयुक्त ATF (Aviation Turbine Fuel) वाहकों के लिये एकल सबसे बड़ा व्यय है जो परिचालन व्यय के 40-50% तक निर्माण करता है।
- ATF पर कर: कुछ भारतीय राज्य जेट ईंधन पर 30% तक कर लगाते हैं, जो छोटी एयरलाइनों के लिये छोटे उड़ान मार्गों को लाभहीन बना देता है। इंडिगो जैसी बड़ी एयरलाइंस इन मार्गों पर कम किराए की पेशकश करती हैं और लागत को कम करने के लिये अपने आकार का लाभ उठाती हैं।
- राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति में विद्यमान समस्या: यह नीति सभी खिलाड़ियों के लिये उचित नहीं रही है। वर्ष 2016 तक की स्थिति के अनुसार नई एयरलाइनों के लिये कम से कम पाँच वर्षों तक परिचालन में होने और उनके पास अंतर्राष्ट्रीय उड़ान के लिये 20 विमान होने की शर्त लगाई गई थी।
- वर्ष 2016 में राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (National Civil Aviation Policy) के साथ यह स्थिति बदली, लेकिन फिर भी घरेलू एयरलाइनों के लिये घरेलू परिचालन हेतु कम से कम 20 विमान रखने को अनिवार्य रखा गया।
- उच्च लीज़ लागत: भारत के वाणिज्यिक हवाई जहाज़ बेड़े के लगभग 80% लीज़ या पट्टे पर लिये गए हैं और इनके लिये एयरलाइंस 10,000 करोड़ रुपए के वार्षिक लीज़ किराए का भुगतान करती हैं, जो कि उनके राजस्व का लगभग 15% है।
- डॉलर-रुपए की अस्थिरता: यह परिचालन के लिये उच्च लागत का योगदान करता है क्योंकि पट्टे अमेरिकी डॉलर में अंकित हैं और भारतीय रुपए का मूल्यह्रास लागत को और बढ़ा देता है।
- भारत में लीज़िंग कंपनियाँ स्थापित करने की सरकार की योजना लागत कम करने में मदद कर सकती है।
- उच्च सेवा शुल्क और टिकट का कम मूल्य: एयरलाइंस को रनवे एवं टर्मिनलों जैसी सुविधाओं का उपयोग करने के लिये भी भुगतान करना पड़ता है और व्यावसायिक गतिविधियों में प्रतिस्पर्द्धी बढ़त के लिये टिकटों के कम मूल्य रखना आर्थिक व्यवहार्यता के विरुद्ध जाता है। हवाई अड्डों के निजीकरण ने शुल्क वृद्धि को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- चालक दल की उच्च प्रशिक्षण लागत: एयरलाइन चालक दल का प्रशिक्षण महँगा है और उड़ान प्रशिक्षण संगठनों की कमी के कारण पायलटों की कमी है।
उड्डयन क्षेत्र के लिये सरकार ने कौन-से कदम उठाए हैं?
- घरेलू रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सेवाओं के लिये वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर 18% से घटाकर 5% कर दी गई है।
- आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) 3.0 के तहत प्रदत्त लाभों को नागरिक उड्डयन क्षेत्र तक विस्तारित किया गया है।
- क्षेत्रीय संपर्क योजना-उड़ान (UDAN- UdeDeshKaAamNagrik/उड़े देश का आम नागरिक): PPP मार्ग से मौजूदा और नए हवाई अड्डों में निजी निवेश को बढ़ावा दिया गया है।
- कुशल हवाई क्षेत्र प्रबंधन, छोटे मार्गों और कम ईंधन खपत के लिये भारतीय वायु सेना के समन्वय में भारतीय हवाई क्षेत्र में मार्ग युक्तिकरण।
- आरसीएस-उड़ान (RCS-UDAN) को क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करने और नागरिकों को सस्ती हवाई यात्रा प्रदान करने के लिये टियर-II और टियर-III शहरों में उपयोग नहीं किये गए और कम उपयोग किये गए हवाई अड्डों के लिये हवाई संपर्क को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
भारतीय उड्डयन क्षेत्र में विद्यमान अवसर
- अनुमान है कि वर्ष 2027 तक भारतीय हवाई वाहकों द्वारा अपने बेड़े का आकार बढ़ाकर 1,100 विमान तक कर लिया जाएगा।
- उड्डयन क्षेत्र में लगातार दोहरे अंकों की वृद्धि के कारण भारत में रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सेवा सुविधाओं की मांग बढ़ रही है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में उड्डयन उद्योग के विकास के लिये AAI गुवाहाटी को एक अंतर-क्षेत्रीय केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना बना रहा है।
- भारतीय हवाई अड्डे राजस्व बढ़ाने के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) एयरोट्रोपोलिस मॉडल का अनुकरण कर रहे हैं। यह मॉडल खुदरा, विज्ञापन, वाहन पार्किंग, सुरक्षा उपकरण और सेवाओं से राजस्व प्राप्त करने पर केंद्रित है।
- दिल्ली, हैदराबाद और बेंगलुरु में तीन सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के हवाई अड्डों ने वर्ष 2025 तक 30,000 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया है।
- भारत सरकार वर्ष 2030 तक भारत को शीर्ष एयर स्पोर्ट्स देशों में से एक बनाने का स्वप्न रखती है। लक्ष्य है भारत में एक सुरक्षित, सस्ता, सुलभ, सुखद और संवहनीय एयर स्पोर्ट्स पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करना।
- जेवर, उत्तर प्रदेश में अवस्थित नोएडा इंटरनेशनल ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट इस क्षेत्र में औद्योगिक अवसंरचना का चहुँमुखी विकास करेगा, रोज़गार के अवसर बढ़ाएगा और विनिर्माण एवं निर्यात को प्रोत्साहित करेगा।
आगे की राह
- उड्डयन अवसंरचना की वृद्धि करना
- ‘उड़ान’ पहल के तहत चल रही परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय उड़ान पहल (International UDAN initiative) के तहत अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की मौजूदा क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिये।
- विमान रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) सेवाओं के लिये भारत को एक ग्लोबल हब बनाने की सरकार की मंशा के परिणामस्वरूप लागत में बचत होगी और एयरलाइन कंपनियों के लिये तरलता पैदा होगी।
- इसके साथ ही, सिविल MROs और रक्षा क्षेत्र के बीच अभिसरण से आकारिक मितव्ययिता (economies of scale) और दीर्घकालिक लाभों का सृजन हो सकता है।
- उड्डयन प्रौद्योगिकियों में उन्नत अनुसंधान के लिये दीर्घकालिक योजना तैयार करने से देश में एक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने में मदद मिलेगी।
- कुशल जनशक्ति की कमी को दूर करना
- उड्डयन उद्योग में नवीनतम प्रौद्योगिकी और प्रबंधन अभ्यासों को आत्मसात करने के लिये मूल उपकरण निर्माताओं (Original Equipment Manufacturers- OEMs), उद्योग और शैक्षिक संस्थानों के बीच सहयोग एवं सहकार्यता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- वित्त की वृद्धि
- एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) के कराधान और मूल्य निर्धारण ढाँचे को GST के दायरे में लाने पर विचार कर इसे वैश्विक बेंचमार्क के साथ संगत किया जाना चाहिये।
- सभी प्रमुख केंद्रों में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के हवाई अड्डों के पास रिक्त पड़े रियल एस्टेट का मुद्रीकरण किया जा सकता है।
- भारत को ‘ट्रांसशिपमेंट हब’ बनाना
- भारत इस क्षेत्र में स्वयं को एक ‘ट्रांसशिपमेंट हब’ के रूप में स्थापित करके कई लाभ प्राप्त कर सकता है। यह एक सेवा प्रदाता के रूप में भारत की व्यापारिक क्षमता को बढ़ाएगा, देश एक विदेशी मुद्रा अर्जक के रूप में उभरेगा और इस क्षेत्र में बेहतर कनेक्टिविटी को सक्षम बनाएगा।
- ई-अनुबंध, ई-परिवहन मल्टीमॉडलिटी, ई-अनुपालन और एक ई-शिकायत निवारण मॉड्यूल जैसे डिजिटल बिज़नेस एनेबलर्स के विकास के द्वारा ऐसा किया जा सकता है।
इस संदर्भ में, राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति 2016 और राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन कार्यक्रम 2018 भारत को विश्व में एक प्रमुख नागरिक उड्डयन बाज़ार बनने में मदद कर सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: भारतीय उड्डयन उद्योग की वर्तमान स्थिति और इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा करें। इन चुनौतियों का समाधान करने और उद्योग में सुधार के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मुख्य परीक्षाप्र. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास की जाँच कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (वर्ष 2017) |