जैव विविधता और पर्यावरण
2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया जाएगा
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, ग्लेशियर, भूमध्य रेखा, एंडीज, ग्रीनहाउस गैस, फाइटोप्लांकटन, जलीय खाद्य शृंखला, समुद्री जैव विविधता, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण, यूनेस्को, WMO, हिंदू कुश हिमालय, क्रायोस्फीयर, हिमनदीय झील विस्फोट बाढ़, संयुक्त राष्ट्र महासभा, जैव विविधता हॉटस्पॉट, तटीय क्षरण, चक्रवात, ध्रुवीय भंवर, जेट स्ट्रीम, उत्तरी समुद्री मार्ग, अग्रणी प्रजातियाँ, अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन, वैश्विक पर्यावरण सुविधा (JEF), स्थानीय और स्वदेशी ज्ञान प्रणाली (लिंक्स)। मेन्स के लिये:ग्लेशियरों के संरक्षण का महत्त्व, ग्लेशियरों से उत्पन्न खतरे। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष मानेगा, तथा वर्ष 2025 से प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व ग्लेशियर दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
ग्लेशियर क्या हैं?
- परिचय: सदियों से जमी बर्फ से धीरे-धीरे विशाल बर्फ के पिंडों का निर्माण होता है, जिन्हें ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: अधिकांश ग्लेशियर विशाल बर्फ की चादरों के रूप में पाए जाते हैं, जो हिमयुग (लगभग 10,000 वर्ष पूर्व) के दौरान पृथ्वी में पाई जाती थीं।
- पृथ्वी के इतिहास में कई ऐसे अन्तर-हिमनदी काल रहे हैं जब ग्लेशियर पिघले, तथा हिमयुग (जिन्हें हिमयुग भी कहा जाता है) का निर्माण हुआ।
- वैश्विक वितरण: अधिकांश ग्लेशियर ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे ग्रीनलैंड, कनाडा आर्कटिक और अंटार्कटिका में पाए जाते हैं, क्योंकि उच्च अक्षांशों पर सौर विकिरण कम होता है।
- उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर भूमध्य रेखा के पास पर्वत शृंखलाओं में मौजूद हैं, जैसे दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वतमाला बहुत ऊँचाई पर स्थित है।
- पृथ्वी का लगभग 2% जल ग्लेशियरों में संग्रहित है।
- ग्लेशियरों का पिघलना: बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने विशेष रूप से ध्रुवों पर तापमान बढ़ा दिया है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हो रही हैं।
- उत्सर्जन में बड़ी कटौती के बावजूद, 2100 तक विश्व के एक तिहाई से अधिक ग्लेशियर पिघल जायेंगे।
- महत्त्व:
- जल आपूर्ति: ग्लेशियर लाखों लोगों के लिये पीने के पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में।
- ग्रीष्म ऋतु के अंत में ग्लेशियर अमु दरिया की नदी के प्रवाह का 27% तक प्रदान करते हैं , जबकि ला पाज़ (बोलीविया की राजधानी) शुष्क अवधि के दौरान ग्लेशियरों के पिघले पानी पर निर्भर रहती है ।
- ग्रीष्म ऋतु के अंत में, ग्लेशियर अमु दरिया के नदी प्रवाह का 27% तक आपूर्ति करते हैं, जबकि शुष्क अवधि के दौरान, बोलीविया की राजधानी ला पाज़, ग्लेशियर के पिघलने पर निर्भर रहती है।
- भारत स्थित लद्दाख के कृत्रिम हिमनदों में, जिन्हें बर्फ स्तूप कहते हैं, शीत ऋतु में जल संग्रहीत होता है और वसंत ऋतु के दौरान शीत मरुस्थलीय क्षेत्रों की फसलों की सिंचाई की जलापूर्ति इससे की जाती है।
- जल आपूर्ति: ग्लेशियर लाखों लोगों के लिये पीने के पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में।
- पोषक चक्रण: हिमनदों से ऐसे पोषक तत्त्व निर्मुक्त होते हैं जो फाइटोप्लांकटन की वृद्धि में सहायक होते हैं, जो जलीय खाद्य शृंखलाओं का आधार हैं तथा समुद्री जैवविविधता और मत्स्य पालन को प्रभावित करते हैं।
- जलवायु नियंत्रण: ग्लेशियर सूर्य प्रकाश को परावर्तित कर (अल्बेडो प्रभाव) पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करने में भूमिका निभाते हैं, जिससे ग्रह का शीतलन करने में में मदद मिलती है।
- ऊर्जा उत्पादन: नॉर्वे, कनाडा और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में जलविद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिये हिमनदों के पिघले जल का उपयोग किया जाता है।
- पर्यटन: क्रायो जैवविविधता को बढ़ावा देने तथा अनुसंधान और शिक्षा के अवसरों के साथ हिमनदों से पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटक आकर्षित होते हैं।
हिमनदों की वर्तमान स्थिति क्या है?
- वैश्विक परिदृश्य: विश्व हिमनद अनुवीक्षण सर्विस (WGMS) जो 210,000 हिमनदों का अनुवीक्षण करती है, के अनुसार वर्ष 1976 से 2023 की अवधि में हाल के वर्षों में वृहद स्तर पर विहिमनदन (ग्लेशियरों का पिघलना) दर्ज किया गया है।
- WGMS समग्र विश्व में ग्लेशियरों की स्थिति की निगरानी और उनका आकलन करता है और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण, UNESCO और WMO के तत्त्वावधान में कार्य करता है।
- क्षेत्रीय ग्लेशियर: हिंदू कुश हिमालयी क्रायोस्फीयर का तापन वैश्विक औसत दर से दोगुनी गति से हो रहा है।
- यह क्षेत्र हिमनदीय झील बहिर्स्फोट बाढ़ जैसी हिम आपदाओं के प्रति सबसे अधिक सुभेद्य है।
- क्रायोस्फीयर का आशय पृथ्वी तंत्र के हिमशीतित जल वाले भाग से है, जिसमें वे सभी क्षेत्र शामिल हैं जहाँ जल ठोस अवस्था में मौजूद है।
- ग्लेशियरों का निवर्तन: विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक कई महत्त्वपूर्ण ग्लेशियर लुप्त हो जाएंगे तथा कई बड़े ग्लेशियर छोटे ग्लेशियरों में खंडित हो जाएंगे।
- उदाहरण के लिये, नेपाल की लांगटांग घाटी में याला ग्लेशियर और पश्चिमी कनाडा में पेयतो ग्लेशियर का निवर्तन हुआ।
- वेनेज़ुएला में हम्बोल्ट ग्लेशियर की सघनता अत्यंत कम हो गई है और अब इसे हिम क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- ग्लेशियरों के निवर्तन का अर्थ उनकी सघनता में कमी आना और उनका लोपन हो जाना है।
- उदाहरण के लिये, नेपाल की लांगटांग घाटी में याला ग्लेशियर और पश्चिमी कनाडा में पेयतो ग्लेशियर का निवर्तन हुआ।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: दिसंबर 2022 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ग्लेशियर के ह्रास की तात्कालिकता पर प्रकाश डालने और वैश्विक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये एक प्रस्ताव अपनाया।
- इसके संबंध में अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर वर्ष और विश्व ग्लेशियर दिवस जैसी पहल की गई हैं।
नोट: संपूर्ण विश्व में 275,000 से अधिक ग्लेशियर हैं, जो लगभग 700,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं।
- हिम परतों में विश्व के लगभग 70% अलवणीय जल का भंडारण है, जो वैश्विक जल आपूर्ति हेतु ग्लेशियरों के महत्त्व को उजागर करती है।
हिंदू कुश हिमालय
- हिंदू कुश हिमालय एक पर्वत शृंखला है जो 3500 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है और आठ देशों अर्थात् अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, नेपाल, म्याँमार और पाकिस्तान के अनुदिश है।
- इसमें विश्व के 7,000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले सभी शिखर मौजूद हैं।
- ग्लेशियर: आर्कटिक और अंटार्कटिका से इतर HKH ऐसा क्षेत्र है जहाँ हिमपात और हिम की मात्रा सर्वाधिक है, जिसके कारण इसे प्रायः तीसरा ध्रुव कहते हैं।
- एशिया का जल टॉवर: इसे 'एशिया का जल टॉवर' कहते हैं क्योंकि यह 10 प्रमुख (सीमापारिक) नदियों सहित 12 नदी घाटियों के लिये जल का महत्त्वपूर्ण स्रोत है:
- अमु दरिया, ब्रह्मपुत्र, गंगा, सिंधु, इरावदी, मेकांग, साल्विन, तारिम, यांग्त्से, और पीला (हुआंग हे)।
- ये एशिया के 16 देशों से होकर बहती हैं तथा HKH क्षेत्र में निवास कर रहे 240 मिलियन लोगों तथा निम्न क्षेत्रों में रहने वाले 1.65 बिलियन लोगों के लिये स्वच्छ जल के स्रोत हैं।
- पारिस्थितिकी: यहाँ 330 पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र पाए जाते हैं, जिसमें चार वैश्विक जैवविविधता हॉटस्पॉट शामिल हैं, अर्थात् हिमालय, इंडो-बर्मा, दक्षिण-पश्चिम चीन पर्वत और मध्य एशिया पर्वत।
पिघलते ग्लेशियरों के क्या प्रभाव हैं?
- नकारात्मक प्रभाव:
- समुद्र स्तर में वृद्धि: पिघलते ग्लेशियर (विशेष रूप से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका) से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होने से तटीय अपरदन के साथ अधिक तीव्र चक्रवात आते हैं।
- यदि सभी ग्लेशियर और बर्फ की चादरें पिघल जाएँ तो वैश्विक समुद्र का स्तर 195 फीट (60 मीटर) से अधिक बढ़ जाएगा।
- मौसम पैटर्न में व्यवधान: पिघलती बर्फ से मौसम पैटर्न के साथ सामान्य महासागरीय परिसंचरण बाधित होता है।
- इससे वैश्विक मौसम पैटर्न प्रभावित होता है, जिसमें ध्रुवीय भंवर और जेट स्ट्रीम में परिवर्तन शामिल है जिसके परिणामस्वरूप अधिक चरम मौसमी घटनाएँ होती हैं।
- मनुष्यों पर प्रभाव: महासागरों का उष्मण बढ़ने से मछलियों के प्रजनन पैटर्न में बदलाव आता है, जिससे स्वस्थ मत्स्य पालन पर निर्भर उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के साथ खाद्य सुरक्षा और आजीविका बाधित होती है।
- तटीय समुदाय बाढ़ और खारे जल के प्रवेश के प्रति संवेदनशील होते जा रहे हैं।
- वन्यजीव हानि: आर्कटिक क्षेत्र में समुद्री बर्फ पिघलने से वालरस और ध्रुवीय भालू जैसी प्रजातियाँ भूमि पर जाने को मज़बूर हो रही हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।
- आर्कटिक समुद्री बर्फ के पिघलने से वर्ष 2100 तक ध्रुवीय भालू विलुप्त हो सकते हैं।
- क्रायोस्फीयर से विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रों को सहारा मिलता है, जैसे आर्कटिक टुंड्रा (ध्रुवीय भालू, आर्कटिक लोमड़ी), अंटार्कटिक बर्फ की चादरें (पेंगुइन, सील) और अल्पाइन क्षेत्र ( हिम तेंदुए और शंकुधारी वृक्ष)।
- समुद्र स्तर में वृद्धि: पिघलते ग्लेशियर (विशेष रूप से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका) से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होने से तटीय अपरदन के साथ अधिक तीव्र चक्रवात आते हैं।
- सकारात्मक प्रभाव (अल्पकालिक):
- नवीन ऊर्जा स्रोत: ज्वालामुखीय गतिविधि वाले क्षेत्रों जैसे, कमचटका प्रायद्वीप में अधिक भूतापीय ऊर्जा स्रोतों की खोज हो सकती है।
- नौवहन मार्ग का विस्तार: पिघलती बर्फ से उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे मार्ग खुलने से यूरोप और एशिया के बीच की यात्रा अवधि काफी कम हो सकती है।
- नवीन जल एवं भूमि संसाधन: उन क्षेत्रों में नये जल स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं जहाँ पहले मीठे जल की आपूर्ति सीमित थी।
- साइबेरिया जैसे बर्फ से ढके क्षेत्र, खेती के लिये उपयुक्त हो सकते हैं।
- जैवविविधता की संभावना: ग्लेशियर के पिघलने से अग्रणी प्रजातियों के लिए नए आवास निर्मित हो सकते हैं जिससे समय के साथ अधिक विविध पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हो सकते हैं।
ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए प्रस्तावित प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?
- ग्लोबल आउटरीच: यह ग्लेशियरों के महत्त्व और उनके नुकसान के प्रभाव के बारे में जनता और हितधारकों को शिक्षित करने के लिए एक मीडिया अभियान है।
- इसमें आउटरीच प्रयासों को बढ़ाने के लिए युवा राजदूतों सहित वैश्विक हस्तियों के साथ कार्य करना शामिल है।
- इसके तहत ग्रीनहाउस गैसों, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) में कमी लाने के लिए अन्य वैश्विक निकायों के साथ समन्वय करना शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन: वर्ष 2025 का ताजिकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) का अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन (IWC11) 2025, ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए नवीन दृष्टिकोण पर केंद्रित है।
- क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों, नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों के लिए ग्लेशियर गतिशीलता एवं संरक्षण के सर्वोत्तम तरीकों की समझ में सुधार करने के क्रम में लक्षित क्षमता निर्माण कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- अनुसंधान एवं निगरानी: ग्लेशियर के पिघलने, वैश्विक क्रायोस्फीयर डेटा प्रणालियों के विकास और संवर्द्धन तथा निगरानी एवं निर्णय लेने में सुधार हेतु स्थानीय और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों (LINKS) को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- नीति एकीकरण: राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जलवायु रणनीतियों, जल प्रबंधन नीतियों एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) ढाँचे में ग्लेशियर संरक्षण को शामिल करने पर बल दिया गया है।
- वित्तपोषण पहल: ग्लेशियर निगरानी के साथ अनुसंधान और संरक्षण परियोजनाओं को समर्थन देने के क्रम में सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, निजी क्षेत्रों एवं परोपकारी संस्थाओं से वित्तपोषण प्राप्त करने पर बल दिया गया है।
संबंधित शब्दावलियाँ
- बर्फ की चादर (Ice Sheet): बर्फ की चादर का आशय भूमि पर स्थित हिमनद बर्फ से है जो 50,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित हो सकती है।
- वर्तमान में पृथ्वी पर केवल दो बर्फ की चादरें हैं, जिसमें से एक के द्वारा विश्व के सबसे बड़े द्वीप (ग्रीनलैंड) के अधिकांश हिस्से को कवर किया गया है और दूसरी अंटार्कटिक महाद्वीप पर विस्तारित है।
- आइस कैप: इसका आशय एक ऐसे गुंबदाकार ग्लेशियर से है जिसका क्षेत्रफल 50,000 वर्ग किलोमीटर से कम हो और जिसका सभी दिशाओं में प्रवाह हो।
- आइस कैप उच्च अक्षांशीय ध्रुवीय और उपध्रुवीय पर्वतीय क्षेत्रों में मिलती हैं।
- बर्फ क्षेत्र: यह कुछ हद तक आइस कैप के समान होता है लेकिन आमतौर पर छोटा होता है और इसमें गुंबद जैसी आकृति नहीं होती है।
- हिमखंड: हिमखंड बर्फ के बड़े तैरते हुए टुकड़े होते हैं, जो किसी ग्लेशियर से अलग होकर किसी झील या महासागर में प्रवाहित होते हैं।
- छोटे हिमखंडों को बर्गी, बिट्स और ग्रोलर्स के नाम से जाना जाता है।
निष्कर्ष
वैश्विक जल संसाधनों को बनाए रखने, जलवायु को विनियमित करने तथा जैवविविधता का समर्थन करने के लिए ग्लेशियरों का संरक्षण महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के कारण इनके तेज़ी से पिघलने से समुद्र के जल स्तर, पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानव आबादी के संबंध में जोखिम होता है, जिससे संरक्षण एवं धारणीय प्रबंधन हेतु अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: ग्लेशियर वैश्विक जल आपूर्ति और जलवायु विनियमन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। ग्लेशियरों के पिघलने के क्या प्रभाव हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से किस घटना ने जीवों के विकास को प्रभावित किया होगा? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. जब आप हिमालय में यात्रा करेंगे, तो आपको निम्नलिखित दिखाई देगा: (2012)
उपर्युक्त में से किसे हिमालय के युवा वलित पर्वत होने का प्रमाण कहा जा सकता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: D मेन्सप्रश्न. विश्व की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं के संरेखण का संक्षेप में उल्लेख कीजिये तथा उनके स्थानीय मौसम पर पड़े प्रभावों का सोदाहरण वर्णन कीजिये। (2021) प्रश्न. हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा? (2020) |
सामाजिक न्याय
वर्ष 2025 में बच्चों के लिये संभावनाएँ:यूनिसेफ रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र बाल कोष , विश्व बैंक , डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना , एकीकृत बाल विकास सेवा , मिशन वात्सल्य , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ , पीएम केयर्स फंड , ज्ञान साझा करने के लिये डिजिटल अवसंरचना मेन्स के लिये:वैश्विक एवं राष्ट्रीय बाल संरक्षण चुनौतियाँ, भारत में बाल कल्याण |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की रिपोर्ट "वर्ष 2025 में बच्चों के लिये संभावनाएँ: बच्चों के भविष्य के लिये लचीली प्रणालियों का निर्माण" में बढ़ते वैश्विक संकटों एवं बच्चों पर उनके संभावित प्रभाव की चेतावनी दी गई है।
- इसमें बच्चों की सुरक्षा एवं आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय प्रणालियों को मज़बूत करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
बच्चों की चुनौतियों पर यूनिसेफ रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- बच्चों पर संघर्ष का प्रभाव: वर्ष 2023 में, 473 मिलियन से अधिक बच्चे, या वैश्विक स्तर पर छह में से एक से अधिक, संघर्ष क्षेत्रों में रहते थे। संघर्ष से प्रभावित बच्चों का अनुपात वर्ष 1990 के दशक के 10% से लगभग दोगुना होकर 19% हो गया है।
- बच्चों को विस्थापन, भुखमरी, रोग और मनोवैज्ञानिक आघात जैसे संकटों का सामना करना पड़ता है ।
-
ऋण संकट और बच्चों पर इसका प्रभाव: लगभग 400 मिलियन बच्चे ऋणग्रस्त देशों में रहते हैं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सेवाओं में निवेश सीमित हो जाता है।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के लिये बाह्य ऋण में 5% की वृद्धि से शिक्षा पर होने वाले खर्च में 12.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आ सकती है। 15 अफ्रीकी देशों में, ऋण सेवा एवं शिक्षा पर होने वाले खर्च से अधिक है, जबकि 40 से अधिक निम्न आय वाले देश स्वास्थ्य की तुलना में ऋण पर अधिक खर्च करते हैं।
- ऋण भुगतान अब सामाजिक सुरक्षा से 11 गुना अधिक हो गया है, जिससे 1.8 अरब बच्चे आर्थिक संकटों एवं बढ़ती गरीबी के प्रति असुरक्षित हो गए हैं।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के लिये बाह्य ऋण में 5% की वृद्धि से शिक्षा पर होने वाले खर्च में 12.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आ सकती है। 15 अफ्रीकी देशों में, ऋण सेवा एवं शिक्षा पर होने वाले खर्च से अधिक है, जबकि 40 से अधिक निम्न आय वाले देश स्वास्थ्य की तुलना में ऋण पर अधिक खर्च करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वैश्विक जलवायु वित्त का केवल 2.4% ही बाल-संवेदनशील पहलों हेतु आवंटित किया जाता है, जिससे बच्चों के लिये महत्त्वपूर्ण सामाजिक सेवाएँ कमज़ोर हुई हैं।
- डिजिटल असमानता: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) के तहत सरकारों द्वारा बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के तरीकों में परिवर्तन लाया जा रहा है।
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हालाँकि, डिजिटल डिवाइड की व्यापकता बनी हुई है, जहाँ उच्च आय वाले देशों में युवा (15-24 वर्ष) अधिक इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं जबकि अफ्रीका में केवल 53% युवाओं के पास इंटरनेट की सुविधा (विशेष रूप से निम्न आय वाले देशों में) है।
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किशोर लड़कियाँ और विकलांग बच्चे इससे विशेष रूप से प्रभावित हैं, निम्न आय वाले देशों में 10 में से 9 किशोर लड़कियों की इंटरनेट तक पहुँच नहीं है।
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कार्रवाई हेतु सिफारिशें: इस रिपोर्ट में जलवायु सुधार प्रयासों के लिये अतिरिक्त वित्तपोषण की मांग की गई है, जिसमें जलवायु आपदाओं के दौरान बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और मनोवैज्ञानिक कल्याण हेतु सहायता शामिल है।
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ऐसी समावेशी, निष्पक्ष और ज़िम्मेदार प्रणालियाँ सुनिश्चित हों जिससे बच्चों के अधिकारों एवं आवश्यकताओं को प्राथमिकता मिले।
- असमानता के अंतराल को कम करने के लिये डिजिटल पहलों में बाल अधिकारों का बेहतर एकीकरण सुनिश्चित करना आवश्यक है।
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UNICEF के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: UNICEF एक अग्रणी वैश्विक संगठन है जो यह सुनिश्चित करने के लिये कार्य करता है कि हर बच्चा जीवित रहे, फले-फूले और अपनी क्षमता को पूरा करे, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो या वे कहीं भी रहते हों।
- UNICEF का कार्य निष्पक्ष, गैर-राजनीतिक और तटस्थ है। यह 190 से अधिक देशों और क्षेत्रों में कार्य करता है।
- स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन बच्चों की सहायता करने के लिये की गई थी, जिनका जीवन और भविष्य खतरे में था, चाहे उनके देश ने युद्ध में कोई भी भूमिका निभाई हो।
- UNICEF वर्ष 1953 में संयुक्त राष्ट्र का स्थायी हिस्सा बन गया।
- मुख्य गतिविधियाँ: शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण, बाल संरक्षण, स्वच्छ जल और स्वच्छता, जलवायु परिवर्तन तथा रोग।
- UNICEF बाल अधिकार कन्वेंशन, 1989 द्वारा निर्देशित है।
- मान्यता: वर्ष 1965 में “राष्ट्रों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने” के लिये शांति के लिये नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- UNICEF और भारत: UNICEF ने भारत में अपना कार्य वर्ष 1949 में शुरू किया। वर्तमान में यूनिसेफ का 17 राज्यों तक विस्तार है जिससे भारत की 90% बाल आबादी कवर होती है।
- यूनिसेफ-भारत की प्रमुख पहल:
- ICDS (1975): यूनिसेफ ने एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) में प्रमुख भूमिका निभाई है।
- पोलियो अभियान (2012): इसने पोलियो उन्मूलन में भारत की सफलता में योगदान दिया।
- मातृ एवं बाल पोषण (2013): इसके तहत राष्ट्रव्यापी अभियान के माध्यम से पोषण जागरूकता को बढ़ावा दिया गया है।
- यूनिसेफ ने मातृ मृत्यु दर (MMR) और शिशु मृत्यु दर (IMR) को कम करने में मदद की है।
- इंडिया न्यूबॉर्न एक्शन प्लान (2014): नवजात मृत्यु दर और मृत बच्चों के जन्म को कम करने के लिये इसने इंडिया न्यूबॉर्न एक्शन प्लान में सहायता की है।
- मार्गदर्शक रूपरेखा: यूनिसेफ द्वारा बाल अधिकार सम्मेलन, 1989 (भारत ने वर्ष 1992 में इस सम्मेलन की पुष्टि की) का अनुसरण किया जाता है, जिसका उद्देश्य बच्चों के अधिकारों को सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों एवं बच्चों के प्रति व्यवहार के वैश्विक मानकों के रूप में स्थापित करना है।
समकालीन भारत में बच्चों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- जलवायु और पर्यावरणीय खतरे: जलवायु से बच्चों के जोखिम सूचकांक में भारत 163 देशों में से 26 वें स्थान पर है, जहाँ बच्चों को अत्यधिक उष्णता, बाढ़ और वायु प्रदूषण से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
- 2000 के दशक की तुलना में हीटवेव के उद्भासन में आठ गुना वृद्धि होने की उम्मीद है। इस जलवायु संकट से बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा पर और अधिक दबाव बढ़ेगा, विशेषकर ग्रामीण और निम्न आय वाले क्षेत्रों में जहाँ स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का अभिगम पहले से ही सीमित है।
- बाल तस्करी: भारत में बृहद स्तर पर बाल तस्करी होती है, जहाँ बच्चों का श्रम, भीख माँगने, लैंगिक प्रयोजनों और चाइल्ड पोर्नोग्राफी के लिये शोषण किया जाता है।
- बाल श्रम: 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 259.6 मिलियन बच्चे (5-14 वर्ष) हैं, जिनमें से 10.1 मिलियन बच्चे अधिकतर कृषि, घरेलू काम और छोटे उद्योगों में कार्य करते हैं।
- बालक श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम (1986) जैसे कानूनों के बावजूद, जिसमें बालक श्रम को प्रतिबंधित करने के बजाय इसका विनियमन किया गया है, हाल के संशोधनों में बच्चों को पारिवारिक उद्यमों में कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई है, जिससे विशेषकर ग्रामीण और अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं में उनके संभावित शोषण को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- किशोर अपराध: भारत में वर्ष 2022 में नाबालिगों द्वारा कुल 30,555 अपराध कारित किये गए। इनके मूल कारणों में गरीबी और शिक्षा का अभाव जैसे कारक शामिल हैं।
- बाल विवाह: बाल विवाह के मामले में भारत दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान के बाद चौथे स्थान पर है।
- अल्प आयु में विवाह से न केवल कन्याओं के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य के अवसर सीमित हो जाते हैं, बल्कि गरीबी और असमानता का चक्र भी बना रहता है।
- लैंगिक असमानता: भारत में कन्याओं, विशेष रूप से निम्न आय या ग्रामीण पृष्ठभूमि की कन्याओं को स्कूल छोड़ने, अल्प आयु में विवाह होने और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल का अधिक जोखिम रहता है।
- सुविधावंचित बालक: ग्रामीण क्षेत्रों, मलिन बस्तियों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों तथा शहरी क्षेत्रों के गरीब परिवारों के बच्चे गरीबी, कुपोषण, स्कूल में कम उपस्थिति, अपर्याप्त स्वच्छता और स्वच्छ जल की अपर्याप्त पहुँच जैसे गंभीर अभाव का सामना करते हैं।
- जनसंख्या वृद्धि: वर्ष 2050 तक अनुमानित रूप से भारत में बच्चों की संख्या 350 मिलियन होगी, जो वैश्विक बाल जनसंख्या का 15% होगा। शहरीकरण के साथ, भारत की लगभग आधी जनसंख्या का निवास शहरों में होगा, जिसके लिये जलवायु-सहनीय, बाल-अनुकूल शहरी नियोजन की आवश्यकता होगी।
बाल कल्याण से संबंधित भारत की कौन-सी पहले हैं?
- सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0
- मिशन वात्सल्य
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- पीएम केयर्स फंड
- ज्ञान साझा करने हेतु डिजिटल बुनियादी ढाँचा (DIKSHA)
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
- बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम, 2016
- पेंसिल पोर्टल
- राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) योजना, 1988
- यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2019
- बाल दुर्व्यवहार रोकथाम और जांच इकाई
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- बाल शोषण रोकथाम एवं जाँच इकाई
- किशोर न्याय अधिनियम/देखभाल और संरक्षण अधिनियम, 2000
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023
आगे की राह:
- बच्चों के लिये सतत् भविष्य: जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को संबोधित करने के लिये स्वास्थ्य सेवा और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना। हाशिये पर पड़े बच्चों के लिये समावेशी स्थानों और बुनियादी ढाँचे के साथ बाल-अनुकूल शहरों का विकास करना।
- जलवायु रणनीतियों में बच्चों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना तथा स्थानीय नियोजन में अनुकूलता को एकीकृत करना।
- डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना और उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये अधिकार-आधारित शासन को लागू करना।
- गरीबी उन्मूलन: बाल कुपोषण को दूर करने और परिवारों को आय सुरक्षा प्रदान करने के लिये पीएम पोषण और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) जैसी योजनाओं को मज़बूत करना।
- ग्रामीण और शहरी गरीब समुदायों में किफायती स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- तस्करी के विरुद्ध सख्त प्रवर्तन: समुदाय-आधारित सतर्कता प्रणालियों के साथ तस्करी विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
- मानव तस्करी नेटवर्क को रोकने के लिये दंड में वृद्धि की जानी चाहिये तथा प्रणालीगत भ्रष्टाचार को दूर किया जाना चाहिये।
- बच्चों को खतरनाक व्यवसायों से निकालने और उन्हें शिक्षा प्रदान करने हेतु NCLP के प्रयासों का विस्तार करना।
- शिक्षा सुधार: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और दीक्षा मंच के माध्यम से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढाँचे और गुणवत्ता में सुधार करना।
- निजी स्कूलों की फीस संरचनाओं को विनियमित और नियंत्रित करना, वहनीयता सुनिश्चित करना तथा शोषण को रोकना।
- कानून से संघर्षरत किशोर: दंडात्मक उपायों के बजाय पुनर्वास कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना। बाल संरक्षण और पुनः एकीकरण सेवाओं के लिये अधिक संसाधन आवंटित करना।
- बाल विवाह उन्मूलन: बाल विवाह के खतरे से जूझ रही लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं उद्यमिता के अवसर प्रदान करना तथा बाल विवाह के दबाव को कम करने के लिये परिवारों को लघु ऋण उपलब्ध कराना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक संकटों का बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये। भारत समेत अन्य देश इन चुनौतियों का समाधान कैसे कर सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिकबाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का अधिकार है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D मेन्स:Q. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (वर्ष 2016) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ
प्रिलिम्स के लिये:महाभियोग, राष्ट्रपति, मार्शल लॉ , राष्ट्रीय आपातकाल, अनुच्छेद 34 मेन्स के लिये:भारत में मार्शल लॉ, मार्शल लॉ बनाम राष्ट्रीय आपातकाल, भारत और दक्षिण कोरिया संबंध |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
15 जनवरी 2025 को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक-योल को महाभियोग के तहत गिरफ़्तार किया गया। दिसंबर 2024 में मार्शल लॉ की उनकी घोषणा से देश में राजनीतिक उथल-पुथल को और बढ़ावा मिला।
- यद्यपि एक दिन बाद मार्शल लॉ हटा लिया गया लेकिन जन आक्रोश, बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और त्वरित विधायी कार्रवाई के कारण उन पर महाभियोग चलाया गया।
नोट: भारत के राष्ट्रपति पर संविधान का उल्लंघन करने के लिये महाभियोग लगाया जा सकता है जिसके लिये संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र का इतिहास
- उपनिवेशवाद और कोरिया का विभाजन (1910-1945):
- कोरिया ने वर्ष 1910 से 1945 तक जापान के अधीन क्रूर औपनिवेशिक शासन का सामना किया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, प्रायद्वीप को सोवियत-नियंत्रित उत्तर कोरिया और अमेरिका-नियंत्रित दक्षिण कोरिया के बीच 38वें समानांतर रेखा पर दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया था।
- री सिंगमैन की निरंकुशता (1948-1960): री सिंगमैन, अमेरिका द्वारा समर्थित, वर्ष 1948 में दक्षिण कोरिया के पहले राष्ट्रपति बने।
- उनका प्रशासन निरंकुशता और दमन से भरा हुआ था, जब तक कि अप्रैल, 1960 में छात्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह के कारण उन्हें इस्तीफा नहीं देना पड़ा।
- सैन्य शासन: कोरिया गणराज्य की स्थापना के बाद से अब तक 16 बार मार्शल लॉ घोषित किया जा चुका है। इसे आखिरी बार वर्ष 1980 में घोषित किया गया था।
- लोकतांत्रिक परिवर्तन (1987 के बाद): वर्ष 1987 में हुए चुनावों के परिणामस्वरूप रोह ताए-वू राष्ट्रपति बने।
- फरवरी, 1988 तक दक्षिण कोरिया ने उदार लोकतंत्र स्थापित करने पर बल दिया।
मार्शल लॉ में क्या शामिल है?
- मार्शल लॉ (सैन्य शासन) से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जहाँ नागरिक प्रशासन, सैन्य अधिकारियों द्वारा सामान्य कानून से इतर बनाए गए अपने स्वयं के नियमों और विनियमों के अनुसार संचालित होता है।
- इस प्रकार इसका तात्पर्य सैन्य अधिकरणों द्वारा सामान्य कानून एवं प्रशासन का निलंबित होना है।
- यह सशस्त्र बलों पर लागू सैन्य कानून से अलग है।
- मार्शल लॉ लागू करना: यह कानून तब लागू किया जाता है जब सरकार को व्यापक नागरिक अशांति, प्राकृतिक आपदाओं या आक्रमण के खतरों का सामना करना पड़ता है।
- कानून के तहत नियंत्रण का दायरा: जब मार्शल लॉ लागू किया जाता है तो सैन्य प्राधिकारी द्वारा सामान्य नागरिक कार्यों के साथ-साथ राज्य की सुरक्षा का नियंत्रण भी अपने हाथ में ले लिया जाता है।
- इसमें स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, कर्फ्यू और कानून प्रवर्तन एवं सार्वजनिक व्यवस्था में सैन्य भागीदारी भी शामिल है।
दक्षिण कोरिया का मार्शल लॉ भारत के मार्शल लॉ से किस प्रकार भिन्न है?
- दक्षिण कोरिया में मार्शल लॉ:
- घोषणा के लिये आवश्यक शर्तें: कोरिया गणराज्य के संविधान के अनुच्छेद 77 के अनुसार, युद्ध, सशस्त्र संघर्ष या इसी तरह की राष्ट्रीय आपात स्थिति के दौरान, जब सार्वजनिक सुरक्षा एवं व्यवस्था के लिये सैन्य बलों की आवश्यकता होती है, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति द्वारा मार्शल लॉ घोषित किया जा सकता है।
- इससे सैन्य आवश्यकताओं से निपटने या राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सैन्य बलों एकत्रित करने की अनुमति मिलती है।
- शक्तियों का दायरा: मार्शल लॉ वारंट, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस, सभा और संघ जैसे अधिकारों के संबंध में विशेष उपाय करने की अनुमति देता है।
- संविधान मार्शल लॉ के तहत नियमित न्यायिक और कार्यकारी शक्तियों के निलंबन या परिवर्तन की अनुमति प्रदान करता है।
- घोषणा के लिये आवश्यक शर्तें: कोरिया गणराज्य के संविधान के अनुच्छेद 77 के अनुसार, युद्ध, सशस्त्र संघर्ष या इसी तरह की राष्ट्रीय आपात स्थिति के दौरान, जब सार्वजनिक सुरक्षा एवं व्यवस्था के लिये सैन्य बलों की आवश्यकता होती है, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति द्वारा मार्शल लॉ घोषित किया जा सकता है।
- भारत में मार्शल लॉ:
- अनुच्छेद 34 के विषय में: भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू होने पर मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
- भारत में मार्शल लॉ की अवधारणा इंग्लिश कॉमन लॉ से लिया गया है। हालाँकि, संविधान में कहीं भी 'मार्शल लॉ' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
- अनुच्छेद 34 के तहत मार्शल लॉ की घोषणा अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा से भिन्न है।
- अनुच्छेद 34 के विषय में: भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू होने पर मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।
- मार्शल लॉ के दौरान की गई कार्रवाइयों के लिये क्षतिपूर्ति:
- अनुच्छेद 34 संसद को किसी सरकारी कर्मचारी या किसी अन्य व्यक्ति को किसी ऐसे क्षेत्र में, जहाँ मार्शल लॉ लागू हो, व्यवस्था बनाए रखने या बहाल करने के संबंध में उसके द्वारा किये गए किसी कार्य के लिये क्षतिपूर्ति देने का अधिकार देता है।
- संसद ऐसे क्षेत्र में मार्शल लॉ के तहत पारित किसी भी सजा, दिये गए दंड, जब्ती के आदेश या किये गए अन्य कार्य को भी वैध बना सकती है।
- संसद द्वारा पारित क्षतिपूर्ति अधिनियम को किसी भी मूल अधिकार के उल्लंघन के आधार पर किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- लागू करने की शर्तें:
- संविधान में ऐसा कोई विशिष्ट प्रावधान भी नहीं है जो कार्यपालिका को मार्शल लॉ घोषित करने का अधिकार देता हो।
- मार्शल लॉ युद्ध, आक्रमण, बगावत, विद्रोह या कानून के प्रति किसी भी हिंसक प्रतिरोध जैसी असाधारण परिस्थितियों में लगाया जा सकता है।
- शक्तियों का दायरा:
- मार्शल लॉ के दौरान, सैन्य अधिकारियों को सभी आवश्यक कदम उठाने के लिये असामान्य शक्तियाँ प्रदान की जाती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मार्शल लॉ की घोषणा से स्वतः ही बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट निलंबित नहीं हो जाती ।
मार्शल लॉ बनाम राष्ट्रीय आपातकाल
मार्शल लॉ |
राष्ट्रीय आपातकाल |
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भारत और कोरिया गणराज्य के संबंध कैसे रहे हैं?
- राजनयिक संबंध:
- भारत-कोरिया गणराज्य (ROK) के बीच राजनयिक संबंध वर्ष 1973 में स्थापित हुए । साथ ही वाणिज्य दूतावास संबंध वर्ष 1962 में स्थापित हुए।
- दोनों देशों ने वर्ष 2010 में एक “रणनीतिक साझेदारी” का गठन किया, जिसे वर्ष 2015 में “विशेष रणनीतिक साझेदारी” में परिवर्तित कर दिया गया।
- ऐतिहासिक संबंध:
- 13 वीं शताब्दी के कोरियाई ऐतिहासिक ग्रंथ के अनुसार राजकुमारी सुरीरत्ना (अयोध्या) ने राजा किम-सुरो से विवाह किया , जिससे कोरिया के साथ पैतृक संबंध स्थापित हुए।
- नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने 'लैंप ऑफ द ईस्ट' शीर्षक से एक लघु कविता की रचना की थी, जिसका कोरियाई लोग प्रेमपूर्वक स्मरण करते हैं और कोरिया के वियालयों की पाठ्यपुस्तकों में इसका उल्लेख मिलता है।
- कोरियाई युद्ध में भारत की भूमिका: 1945 में कोरिया की स्वतंत्रता के बाद भारत ने कोरियाई प्रायद्वीप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- पूर्व भारतीय राजनयिक श्री के.पी.एस. मेनन ने कोरिया में चुनावों की देखरेख के लिये 1947 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र (UN) आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- युद्ध के समय, भारत ने संघर्ष के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिये एक सेना चिकित्सा इकाई, 60वीं पैराशूट फील्ड एम्बुलेंस भेजी थी।
- इसके अतिरिक्त, दोनों युद्धरत पक्षों ने भारत द्वारा प्रायोजित संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को स्वीकार किया था, जिसके परिणामस्वरूप 1953 में युद्ध विराम की घोषणा हुई।
- भारत ने कोरिया में कस्टोडियन फोर्सेज़-इंडिया (CFI) नामक एक ब्रिगेड ग्रुप भेजा, जिसने युद्धबंदियों के मुद्दे का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आर्थिक संबंध:
- वर्ष 2010 में व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के कार्यान्वयन के बाद व्यापार और आर्थिक संबंधों में तेज़ी से सुधार हुआ।
- वर्ष 2023 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 24.4 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- भारत का आयात 17.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जबकि निर्यात 6.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- जून 2023 तक भारत में कोरिया गणराज्य का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 8.02 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- भारत और कोरिया गणराज्य ने भारत में कोरियाई निवेश को बढ़ावा देने और सुविधा प्रदान करने के लिये 'कोरिया प्लस' पहल की शुरुआत की।
- रक्षा:
- दोनों देशों के बीच वर्ष 2019 में रक्षा उद्योग सहयोग के लिये एक रोडमैप पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- पहली बार सियोल अंतर्राष्ट्रीय एयरोस्पेस और रक्षा प्रदर्शनी 2023 (ADEX-2023) में एक भारतीय मंडप स्थापित किया गया, जिसमें भारत की रक्षा विनिर्माण क्षमताओं का प्रदर्शन किया गया।
- सांस्कृतिक:
- भारत की सांस्कृतिक शाखा के रूप में वर्ष 2011 में कोरिया में एक भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (जिसे बाद में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (SVCC) नाम दिया गया) की स्थापना की गई।
- कोरिया में भारत का उत्सव SARANG हर वर्ष आयोजित किया जाता है, ताकि कोरिया गणराज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भारत की विविध कला और संगीत को प्रदर्शित किया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में सांविधानिक तंत्र के रूप में मार्शल लॉ और राष्ट्रीय आपात की तुलना कीजिये और इनका अंतर स्पष्ट कीजिये। |