सामाजिक न्याय
बच्चे और घरेलू श्रम
- 31 Jul 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:बाल श्रम, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 मेन्स के लिये:घरेलू कार्य में बाल श्रम के संभावित जोखिम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक परिवार द्वारा अपने 4 वर्ष के बेटे की देखभाल और घरेलू कामों के लिये रखी गई 10 वर्षीय बालिका को कथित तौर पर शारीरिक एवं मानसिक तौर पर प्रताड़ित किये जाने का मामला सामने आया है।
- यह घटना घरेलू कामकाज के जगहों पर बाल श्रम के मुद्दे पर प्रकाश डालती है।
बाल श्रम:
- घरेलू बाल श्रम:
- यदि कोई व्यक्ति अथवा नियोक्ता अपने अथवा किसी अन्य के घरेलू कार्यों को पूरा करने के लिये बच्चों को काम पर रखता है, ऐसे में इसे आम तौर पर घरेलु बाल श्रम कहा जाता है।
- घरेलू कार्य में बाल श्रम से तात्पर्य उन स्थितियों से है जहाँ घरेलू काम के लिये निर्दिष्ट न्यूनतम आयु से कम उम्र के बच्चे खतरनाक परिस्थितियों अथवा वातावरण में काम करते है।
- घरेलू बाल श्रम के खतरे:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) ने घरेलू कामगार के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील कई खतरों की पहचान की है, घरेलू कार्य में लगे बच्चों द्वारा सामना किये जाने वाले कुछ सबसे सामान्य जोखिमों इस प्रकार हैं:
- थकान भरे और लंबे काम के दिन; विषैले रसायनों का उपयोग; भारी वस्तुएँ उठाने का कार्य; चाकू तथा गर्म तवे जैसी खतरनाक वस्तुओं के उपयोग से संबंधित काम; अपर्याप्त भोजन और आवास आदि।
- यह जोखिम तब और बढ़ जाता है जब कोई बच्चा वही रह रहा होता जहाँ काम करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization- ILO) ने घरेलू कामगार के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील कई खतरों की पहचान की है, घरेलू कार्य में लगे बच्चों द्वारा सामना किये जाने वाले कुछ सबसे सामान्य जोखिमों इस प्रकार हैं:
- भारत में बाल श्रम की स्थिति:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट 2022 के अनुसार, वर्ष 2021 में बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत लगभग 982 मामले दर्ज किये गए, जिनमें सबसे अधिक मामले तेलंगाना राज्य में दर्ज किये गए, इसके पश्चात् असम का स्थान है।
- बाल श्रम के विरुद्ध अभियान के एक अध्ययन के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल 818 बच्चों में से कामकाजी बच्चों के अनुपात में 28.2% से 79.6% तक उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण कोविड-19 महामारी में विद्यालयों का बंद होना है।
- भारत में सबसे अधिक बाल श्रमिक नियोक्ता वाले राज्य- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र हैं।
भारत में घरेलू कार्यों में बाल श्रमिकों की संलग्नता का कारण:
- परिवारों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियाँ:
- भारत में घरेलू काम में बाल श्रम की वृद्धि के पीछे परिवारों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति, वयस्क श्रमिकों को पर्याप्त मज़दूरी सुनिश्चित करने वाली प्रभावी नीतियों की कमी और परिवार की आय के पूरक हेतु निर्धन परिवारों के बच्चों पर पड़ने वाला बोझ शामिल है।
- इस स्थिति के कारण अक्सर बच्चों को न्यूनतम वेतन दिया जाता है और उन्हें उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता से अधिक कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 24x7 घरेलू नौकर रोज़गार के रूप में गुलामी का एक व्यवस्थित जाल बन जाता है।
- सीमांत समुदाय आसान लक्ष्य होते हैं:
- कुछ समुदायों और परिवारों में अपने बच्चों को कृषि, कालीन बुनाई या घरेलू सेवा जैसे कुछ व्यवसायों में कार्य कराने की परंपरा है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लड़कियों के लिये शिक्षा महत्त्वपूर्ण या उपयुक्त नहीं है।
- भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जसे गरीब क्षेत्रों से बड़े शहरों में पलायन करने वाले जनजातीय लोगों एवं दलितों का आसानी से शोषण किया जा सकता है।
- विद्यालयों की खराब अवसंरचनात्मक स्थिति:
- भारत में कई स्कूलों में पर्याप्त सुविधाओं, शिक्षकों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी है। गरीब परिवार कुछ स्कूलों द्वारा ली जाने वाली फीस अथवा अन्य खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं।
- ये कुछ सामान्य कारक हैं जिस कारण माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं और अंततः उनके बच्चे स्कूल जाना बंद कर देते हैं।
- अप्रत्याशित व्यवधान/क्षति:
- प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों का समाज (विशेष रूप से बच्चों पर सबसे अधिक) के सामान्य कामकाज एवं व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- ऐसे में काफी बच्चे अपने माता-पिता को खो देते हैं, घर अथवा बुनियादी सेवाओं तक उनकी पहुँच कम हो जाती है। जीवित रहने के लिये उन्हें किसी भी प्रकार का काम करने के लिये बाध्य किया जा सकता है या फिर तस्करों और अन्य अपराधियों द्वारा उनका शोषण भी किया जा सकता है।
बाल श्रम के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव:
- मानव पूंजी संचय में कमी:
- बाल श्रम का बच्चों के कौशल और ज्ञान संचय क्षमता पर प्रभाव पड़ता है, इसके साथ ही यह उनकी भविष्य की उत्पादकता तथा आय पर भी प्रभाव डालता है।
- निर्धनता और बाल श्रम की स्थिति का बना रहना:
- बाल श्रम अकुशल नौकरियों की वजह से कम आय के चलते गरीबी और मौजूदा बाल श्रम के चक्र में फँस जाते हैं।
- तकनीकी प्रगति और आर्थिक विकास में बाधा:
- बाल श्रम तकनीकी प्रगति और नवाचार को बाधित करता है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि एवं विकास धीमा हो जाता है।
- अधिकारों और अवसरों का अभाव:
- बाल श्रम बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भागीदारी के उनके अधिकारों से वंचित करता है, जिससे उनके लिये भविष्य के अवसर तथा सामाजिक गतिशीलता सीमित हो जाती है।
- सामाजिक विकास और एकजुटता की कमी:
- बाल श्रम किसी देश के भीतर सामाजिक विकास और एकजुटता को कमज़ोर करता है, साथ ही यह सामाजिक स्थिरता एवं लोकतंत्र को प्रभावित करता है।
- स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव:
- बाल श्रम के कारण बच्चों को विभिन्न जोखिमों, शारीरिक चोटों, बीमारियों, दुर्व्यवहार और शोषण का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य, मृत्यु दर एवं जीवन प्रत्याशा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
भारत में बाल श्रम को रोकने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें:
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009):
- अनुच्छेद 24:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 24 किसी फैक्ट्री, खान अथवा अन्य संकटमय गतिविधियों तथा निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है। हालाँकि यह किसी नुकसान न पहुँचने वाले अथवा गैर-जोखिम युक्त कार्यों में नियोजन का प्रतिषेध नहीं करता है।
- बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम (1986):
- वर्ष 2016 में इस अधिनियम को बाल और किशोर श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के रूप में संशोधित किया गया। इसके अंतर्गत व्यवसायों एवं प्रक्रियाओं में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के रोज़गार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया।
- कारखाना अधिनियम (1948)
- राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987)
- पेंसिल (Platform for Effective Enforcement for No Child Labour- PENCIL) पोर्टल
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन पर अभिसमय को अनुसमर्थन प्रदान करना:
- ‘द मिनिमम एज कन्वेंशन’ (1973) – संख्या 138:
- ‘द वर्स्ट फॉर्म्स ऑफ चाइल्ड लेबर कन्वेंशन’ (1999) – संख्या 182:
आगे की राह
- सरकार को बाल श्रम को प्रतिबंधित एवं विनियमित करने वाले कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों एवं अभिसमयों के अनुरूप अधिनियमित एवं संशोधित करना चाहिये।
- सरकार को पर्याप्त संसाधन आवंटन, क्षमता, समन्वय, डेटा, जवाबदेही और राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि कानूनों को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित एवं प्रवर्तित किया जाए।
- सरकार को गरीब और कमज़ोर परिवारों को व्यापक सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिये ताकि उन्हें बाल श्रम का विवशतापूर्ण सहारा लेने से रोका जा सके।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और संविधान के अनुच्छेद 21A के अनुरूप सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु तक निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त हो।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (2018) (a) बाल श्रम उत्तर: (a) |
मेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डालिये। (वर्ष 2016) |