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शासन व्यवस्था

मिशन वात्सल्य

  • 09 Jul 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मिशन वात्सल्य, महिला और बाल विकास मंत्रालय, एकीकृत बाल संरक्षण योजना।

मेन्स के लिये:

मिशन वात्सल्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, बच्चों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने मिशन वात्सल्य बाल संरक्षण योजना को लेकर राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किये थे।

नए दिशा-निर्देश: 

  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा दी गई धनराशि तक पहुँच प्राप्त करने के लिये राज्य योजना का मूल नाम नहीं बदल सकते हैं।
  • राज्यों को फंड मिशन वात्सल्य परियोजना अनुमोदन बोर्ड (PAB) के माध्यम से अनुमोदित किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता WCD सचिव करेंगे, जो अनुदान जारी करने के लिये राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों से प्राप्त वार्षिक योजनाओं और वित्तीय प्रस्तावों की जाँच और अनुमोदन करेंगे।
  • इसे 60:40 के अनुपात में फंड-शेयरिंग पैटर्न के साथ राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के साथ साझेदारी में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जाएगा।
    • हालाँकि पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये केंद्र और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश का हिस्सा 90:10 में होगा।
  • MVS, राज्यों और ज़िलों के साथ साझेदारी में बच्चों के लिये 24×7 हेल्पलाइन सेवा को क्रियान्वित करेगा, जैसा कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत परिभाषित किया गया है।
  • यह राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसियों (SARA) का समर्थन करेगा जो देश में दत्तक ग्रहण को बढ़ावा देने और अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण को विनियमित करने में केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) का समर्थन करेगा।
    • SARA राज्य में दत्तक ग्रहण सहित गैर-संस्थागत देखभाल से संबंधित कार्यों का समन्वय, निगरानी और विकास करेगी।
  • मिशन की योजना परित्यक्त और अवैध व्यापार किये गए बच्चों को प्राप्त करने के लिये प्रत्येक क्षेत्र में कम-से-कम एक विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसी में पालना शिशु स्वागत केंद्र स्थापित करने की है।
  • देखभाल की आवश्यकता वाले बच्चों के साथ-साथ विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को लिंग (ट्रांसजेंडर बच्चों के लिये अलग घरों सहित) और उम्र के आधार पर अलग-अलग घरों में रखा जाएगा।
    • चूंँकि वे शारीरिक या मानसिक अक्षमताओं के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं, इसलिये ये संस्थान व्यावसायिक चिकित्सा, वाक् चिकित्सा, वर्बल थेरेपी और अन्य उपचारात्मक कक्षाएंँ प्रदान करने के लिये विशेष शिक्षक, चिकित्सक और नर्स प्रदान करेंगे।
    • इसके अलावा इन विशिष्ट प्रभागों के कर्मचारियों को सांकेतिक भाषा, ब्रेल और अन्य संबंधित भाषाओं में पारंगत होना चाहिये।
  • भागे हुए बच्चों, गुमशुदा बच्चों, तस्करी किये गये बच्चों, कामकाजी बच्चों, गली-मोहल्लों में रहने वाले बच्चों, बाल भिखारियों, मादक द्रव्यों के सेवन करने वाले बच्चों आदि की देखभाल के लिये राज्य सरकार द्वारा खुले आश्रयों की स्थापना का समर्थन किया जाएगा।
  • विस्तारित परिवारों के साथ रहने वाले या पालक देखभाल में कमज़ोर बच्चों के लिये शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य आवश्यकताओं का समर्थन करते हुए वित्तीय सहायता भी निर्धारित की गई है।

मिशन वात्सल्य:

  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
    • वर्ष 2009 से पहले महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों हेतु तीन योजनाओं को लागू किया:
      • देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के साथ-साथ बच्चों हेतु किशोर न्याय कार्यक्रम,
      • सड़क पर रहने वाले बच्चों हेतु एकीकृत कार्यक्रम,
      • बाल गृह सहायता योजना।
    • वर्ष 2010 में इन्हें एक ही योजना में मिला दिया गया जिसे एकीकृत बाल संरक्षण योजना के रूप में जाना जाता है।
    • वर्ष 2017 में इसका नाम बदलकर "बाल संरक्षण सेवा योजना" कर दिया गया और फिर वर्ष 2021-22 में मिशन वात्सल्य के रूप में नामित किया गया।
  • परिचय:
    • यह देश में बाल संरक्षण सेवाओं हेतु अम्ब्रेला योजना है।
    • मिशन वात्सल्य के तहत घटकों में सांविधिक निकायों के कामकाज में सुधार, सेवा वितरण संरचनाओं को मज़बूत करना, संपन्न संस्थागत देखभाल और सेवाएंँ, गैर-संस्थागत समुदाय-आधारित देखभाल को प्रोत्त्साहित करना, आपातकालीन पहुँच हेतु सेवाएंँ एवं प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण।
  • उद्देश्य:
    • देश के प्रत्येक बच्चे के लिये स्स्थ और खुशहाल बचपन सुनिश्चित करना।
    • बच्चों के विकास के लिये एक संवेदनशील, सहायक और समकालिक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के अधिदेश को वितरित करने में राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की सहायता करने हेतु उन्हें अपनी पूरी क्षमता प्राप्त करने व सभी प्रकार से पालन-पोषण में सहायता करने के अवसर सुनिश्चित करने के लिये सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करना।
  • यह अंतिम उपाय के रूप में बच्चों के ‘संस्थागतकरण के सिद्धांत’ के आधार पर कठिन परिस्थितियों में बच्चों की परिवार-आधारित गैर-संस्थागत देखभाल को बढ़ावा देता है।

आगे की राह

  • ये दिशा-निर्देश सही दिशा में हैं, क्योंकि हमारे देश में ऐसे बहुत से बच्चे हैं जो शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग हैं, इन सभी पहलों से उनका जीवन आसान हो जाएगा।
  • इन सभी पहलों को कुशलतापूर्वक और बेहतर गति से लागू करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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