सामाजिक न्याय
भारत में बाल श्रम और बंधुआ मज़दूर
- 16 Apr 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल के एक अध्ययन ने भारत में बाल श्रम और बंधुआ मजदूर की परिभाषाओं के बारे में अस्पष्टता का मुद्दा उठाया है, यह अध्ययन विशेष रूप से गन्ना उत्पादक राज्यों (बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश) में किया गया।
- इस अध्ययन का आयोजन संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और कोका-कोला कंपनी द्वारा किया गया था ।
प्रमुख बिंदु:
अध्ययन का परिणाम:
- अध्ययनकर्त्ताओं ने माता-पिता की सहायता करने वाले बच्चों को बाल श्रम की श्रेणी से बाहर रखा है ।
- इसी तरह प्रवासी श्रमिकों के अग्रिम भुगतान और बंधुआ मज़दूरों से संबंधित जोखिमों को लेकर भ्रम की स्थिति थी ।
- गन्ने के क्षेत्र में अधिकांश हस्तक्षेप या तो सरकारी अधिकारियों द्वारा या कंपनियों के कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) द्वारा किया गया। कृषि तकनीकों में सुधार केवल गन्ना उत्पादकता में वृद्धि सुनिश्चित करने पर केंद्रित थी।
बाल श्रम और बंधुआ मज़दूर (अर्थ):
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा बाल श्रम को ऐसे कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और गरिमा से वंचित करता है एवं जो उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक है।
- बंधुआ मज़दूर को "सभी काम या सेवा के रूप में परिभाषित किया है। दूसरे शब्दों में ऐसा व्यक्ति जो ऋण को चुकाने के बदले ऋणदाता के लिये श्रम करता है या सेवाएँ देता है, बंधुआ मज़दूर (Bounded Labour) कहलाता है।
- इसे ऋण बंधन या ऋण दासता, अनुबंध श्रमिक या बंधक मज़दूर भी कहा जाता है।
- बंधुआ मज़दूरी एक ऐसी प्रथा है जिसमें नियोक्ता द्वारा श्रमिकों को उच्च-ब्याज पर ऋण दिया जाता हैं और जो कम मज़दूरी पर उनसे काम कराते हैं तथा कर्ज का भुगतान प्राप्त करते हैं।
बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 के प्रमुख प्रावधान:
- अधिनियम के अनुसार, 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिये परिवार से जुड़े व्यवसाय को छोड़कर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने पर पूर्ण रोक का प्रावधान किया गया है
- इसके अनुसार 14 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिये नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक कार्यों में नियुक्त किया जाएगा।
- अधिनियम के अनुसार, बच्चे केवल स्कूल से आने के बाद या स्कूल की छुट्टियों के दौरान काम कर सकते हैं और बच्चों को परिवार के स्वामित्व वाले सुरक्षित क्षेत्रों में काम करने की अनुमति है।
- आलोचना:
- यह आलोचना की जाती है कि अधिनियम "परिवार या पारिवारिक उद्यमों" में बाल श्रम की अनुमति देता है या बच्चे को एक दृश्य-श्रव्य मनोरंजन उद्योग में एक कलाकार के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है ।
- यह असंगठित क्षेत्रों में परिश्रम करने वाले बच्चों के एक वर्ग को शामिल नहीं करता है, जो कृषि के साथ-साथ घरेलू कार्यों को भी करते है।
- अधिनियम कार्य के समय को परिभाषित नहीं करता है और यह बताता है कि बच्चे स्कूल से आने के बाद या छुट्टियों के दौरान काम कर सकते हैं।
- यह आलोचना की जाती है कि अधिनियम "परिवार या पारिवारिक उद्यमों" में बाल श्रम की अनुमति देता है या बच्चे को एक दृश्य-श्रव्य मनोरंजन उद्योग में एक कलाकार के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है ।
भारत में बंधुआ मज़दूर:
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, बंधुआ मज़दूरी प्रचलित बाज़ार मज़दूरी और कानूनी न्यूनतम मज़दूरी से कम है।
- भारत का संविधान अनुच्छेद 23 (मौलिक अधिकार) के अंतर्गत बंधुआ मज़दूरी पर प्रतिबंध लगाता है।
- अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध करता है।
- समाज में कमज़ोर आर्थिक और सामाजिक स्थिति होने के कारण अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को गाँवों के जमींदार या साहूकार नाममात्र के वेतन या बिना किसी वेतन के श्रम करने को मज़बूर करते हैं।
- वस्तुतः बंधुआ मज़दूरी केवल ग्रामीण कृषि के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों जैसे-खनन, माचिस फैक्ट्रियाँ और ईंट भट्ठे आदि में व्यापक रूप से प्रचलित है।दूसरे शब्दों में बंधुआ मज़दूरी मुख्यतः कृषि क्षेत्र तथा अनौपचारिक क्षेत्र, जैसे- सूती कपड़ा हथकरघा, ईंट भट्टे, विनिर्माण, पत्थर खदान, रेशमी साड़ियों का उत्पादन, चाँदी के आभूषण, सिंथेटिक रत्न आदि में प्रचलित है।
भारत में गन्ने की खेती
- यह एक उष्ण और उपोष्ण कटिबंधीय फसल है। इसके लिये 21°C से 27°C तापमान और 75 सेमी. से 100 सेमी. के बीच वार्षिक वर्षा के साथ गर्म और आर्द्र जलवायु अनुकूल मानी जाती है ।
- भारत में गन्नों की खेती मुख्य रूप से बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तर प्रदेश में की जाती है।
- इनमें से उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है और देश में उगाई जाने वाली नकदी फसल का लगभग 40% योगदान देता है, इसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान है, जिसका हिस्सा कुल घरेलू उत्पादन का क्रमश: 21% और 11% है।
भारत में अन्य बाल श्रम कानून / कार्यक्रम
- संविधान का अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को कारखाने या खान में काम करने के लिये नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य खतरनाक काम में नहीं लगाया जाएगा।
- बाल श्रम पर राष्ट्रीय नीति (1987): 1987 में बाल मज़दूरी के लिये विशेष नीति बनाई गई, जिसमें जोखिम भरे व्यवसाय एवं प्रक्रियाओं में लिप्त बच्चों के पुर्नवास पर ध्यान देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।
- किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015: इसमें आयु या व्यवसाय की सीमा के बिना देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों की श्रेणी में कामकाजी बच्चे शामिल हैं।
- राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) 2007: इस योजना के तहत 9-14 वर्ष की आयु के बच्चों को काम करने से रोका जाता है और उन्हें एनसीएलपी विशेष प्रशिक्षण केंद्रों में दाखिला दिया जाता है, जहाँ उन्हें प्रारंभिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, मध्याह्न भोजन, वजीफा, स्वास्थ्य देखभाल आदि मुख्यधारा से पहले औपचारिक शिक्षा प्रणाली, प्रदान की जाती है।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 ने राज्य के लिये यह सुनिश्चित करना अनिवार्य कर दिया है कि 6 से 14 साल की उम्र के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो।
- खान अधिनियम, 1952 18 वर्ष से कम आयु के बालक से किसी खदान में मज़दूरी कराने पर रोक लगाता है।
- पेंसिल पोर्टल, 2017 नो चाइल्ड लेबर हेतु प्रभावी प्रवर्तन मंच :
- पेंसिल पोर्टल नो चाइल्ड लेबर के प्रभावी प्रवर्तन के लिये एक मंच है, जो बाल श्रम को खत्म करने के लिये केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। यह एक इलेक्ट्रॉनिक पोर्टल है जिसका उद्देश्य केंद्र, राज्य, ज़िला, सरकारें, सिविल सोसाइटी और आम जनता को बाल श्रम संबंधी समाज के लक्ष्य को प्राप्त करने में शामिल करना है
- यह बाल श्रम अधिनियम और राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP) योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये शुरू किया गया है।
- हाल ही में भारत ने बाल श्रम पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दो समझौतों 138 (रोज़गार के लिये न्यूनतम आयु) और 182 (बाल श्रम के सबसे निकृष्टतम रूप) के तहत बाल श्रम को खत्म करने की पुष्टि की है।
बंधुआ मजदूर से संबंधित योजनाएँ / अधिनियम
बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976:
- इस अधिनियम का विस्तार संपूर्ण भारत में है लेकिन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा इसे लागू किया जाएगा।
- यह सतर्कता समितियों के रूप में ज़िला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र का प्रावधान करता है।
- सतर्कता समितियाँ जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को सलाह देती हैं कि इस अधिनियम के प्रावधानों को ठीक से लागू किया जाए।
- राज्य सरकारों / संघ राज्य क्षेत्र के एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिये प्रथम श्रेणी या द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
पुनर्वास के प्रयास- बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016
- इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।
आगे की राह:
- गरीबी और उसके प्रभावी चक्र को बेहतर ढंग से संबोधित किया जाए तो परिवारों के जीविकोपार्जन और बच्चों को स्कूल भेजने के लिये अन्य साधनों की पहचान की जा सकती है।
- कई NGOs जैसे- बचपन बचाओ आंदोलन, चाइल्ड फंड, केयर इंडिया, कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन आदि भारत में बाल श्रम को खत्म करने के लिये काम कर रहे हैं। बाल श्रम के प्रभाव से बचने के लिये राज्य स्तर के पदाधिकारियों के साथ सुव्यवस्थित प्रणाली की आवश्यकता है।
- बंधुआ बाल श्रमिकों को सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय समुदायों से तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
- एक बहुत ठोस, विश्वसनीय एवं सभ्य सामाजिक सुरक्षा पैकेज और प्रभावी कार्यान्वयन की आवश्यकता है।