जैव विविधता और पर्यावरण
21वीं सदी में वैश्विक हिमनद परिवर्तन
- 07 Jan 2023
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये: पेरिस जलवायु समझौता, वैश्विक हिमनद परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन
मेन्स के लिये: 21वीं सदी में वैश्विक हिमनद परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में “ग्लोबल ग्लेशियर चेंज इन द 21st सेंचुरी: एवरी इनक्रीज़ इन टेम्परेचर मैटर्स” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पृथ्वी के आधे हिमनद वर्ष 2100 तक लुप्त हो सकते हैं।
- शोधकर्त्ताओं ने ग्रह के हिमनदों को पहले से कहीं अधिक सटीकता के साथ मापने के लिये दो दशकों के उपग्रह डेटा का उपयोग किया।
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र (UN) के अंतर-सरकारी पैनल की वर्ष 2022 में जारी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई थी कि हमारे पास 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिये समय कम है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- अभूतपूर्व दर से पिघल रहे हैं हिमनद:
- जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण हिमनद अभूतपूर्व दर से घट रहे हैं।
- वर्ष 1994 से वर्ष 2017 के बीच हिमनदों से पिघली बर्फ की मात्रा लगभग 30 ट्रिलियन टन थी और अब वे प्रत्येक वर्ष 1.2 ट्रिलियन टन की गति से पिघल रहे हैं।
- आल्प्स, आइसलैंड एवं अलास्का के ग्लेशियर उनमें से कुछ हैं जो सबसे तेज़ गति से पिघल रहे हैं।
- पृथ्वी के आधे हिमनद वर्ष 2100 तक लुप्त हो जाएंगे, भले ही हम वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्य का पालन करते रहें।
- अगले 30 वर्षों के भीतर कम-से-कम 50% नुकसान होगा। यदि ग्लोबल वार्मिंग अपनी वर्तमान 2.7 डिग्री सेल्सियस दर पर बना रहता है तो 68% ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
- यदि ऐसा होता है, तो अगली सदी के अंत तक मध्य यूरोप, पश्चिमी कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में वास्तव में कोई ग्लेशियर नहीं बचेगा।
- शोधकर्त्ताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करके इनमें से कुछ ग्लेशियरों को पिघलने से बचाया जा सकता है।
- ग्लेशियर, जिनमें पृथ्वी के ताज़े पानी का 70% हिस्सा मौजूद है, वर्तमान में यह पृथ्वी के भूमि क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा है।
- जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण हिमनद अभूतपूर्व दर से घट रहे हैं।
- आपदा के बढ़ते जोखिम:
- ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र का स्तर बहुत बढ़ जाता है, जिससे दो अरब लोगों की पानी तक पहुँच प्रभावित हो सकती है और प्राकृतिक आपदाओं तथा बाढ़ जैसी चरम जलवायु घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है।
- वर्ष 2000 और 2019 के बीच वैश्विक समुद्र स्तर में 21% की वृद्धि हुई। इसका प्रमुख कारण ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों का पिघलना था।
- अनुशंसाएँ:
- वैश्विक तापमान में 1.5C से अधिक की वृद्धि के साथ तेज़ी से बढ़ते ग्लेशियर एवं जन हानि इन पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों को संरक्षित करने के लिये अधिक महत्त्वाकांक्षी जलवायु प्रतिज्ञाएँ करने की आवश्यकता पर ज़ोर देती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न.3 'वैश्विक जलवायु परिवर्तन गठबंधन' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न 1. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के पक्षकारों के सम्मेलन (COP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (2021) प्रश्न 2. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। जलवायु परिवर्तन से भारत कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (2017) |