शासन व्यवस्था
केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव
- 20 Nov 2023
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव का प्रभाव, सहकारी संघवाद, संविधान की अनुसूची VII, आर्थिक सुधार, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS), पीएम गति शक्ति मेन्स के लिये:केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव का प्रभाव, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में केंद्र और राज्यों के बीच विवादों की आवृत्ति एवं तीव्रता में वृद्धि हुई है, जिससे सहकारी संघवाद के स्तंभ कमज़ोर हो रहे हैं तथा इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ रहा है।
नोट: सहकारी संघवाद में केंद्र और राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक सार्वजनिक हित में "सहयोग" करते हैं।
- यह राष्ट्रीय नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में राज्यों की भागीदारी को सक्षम करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
- संघ और राज्य संविधान की अनुसूची VII में निर्दिष्ट मामलों पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिये संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।
केंद्र-राज्य संबंधों के मुद्दे क्या हैं?
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1991 से जारी आर्थिक सुधारों के कारण निवेश पर कई नियंत्रणों में ढील दी गई है, जिससे राज्यों को कुछ छूट मिली है, लेकिन सार्वजनिक व्यय नीतियों के संबंध में पूर्ण स्वायत्तता नहीं है क्योंकि राज्य सरकारें अपनी राजस्व प्राप्तियों के लिये केंद्र पर निर्भर हैं।
- हाल ही में कई राज्यों ने अपने कदम पीछे खींच लिये हैं, जिसके परिणामस्वरूप केंद्र और राज्यों के बीच आदान-प्रदान के समीकरण ने दोनों के रुख को और अधिक सख्त कर दिया है, जिससे बातचीत के लिये बहुत कम अवसर बचा है।
- तेज़ी से बढ़ते केंद्र-राज्य संबंधों ने सहकारी संघवाद को नुकसान पहुँचाया है।
- समसामयिक विवादों की जटिलताएँ:
- विवाद के क्षेत्रों में सामाजिक क्षेत्र की नीतियों का एकरूपीकरण, नियामक संस्थानों की कार्यप्रणाली और केंद्रीय एजेंसियों की शक्तियाँ शामिल हैं।
- आदर्श रूप से इन क्षेत्रों में अधिकांश नीतियाँ राज्यों के विवेक पर होनी चाहिये, जिसमें एक शीर्ष केंद्रीय निकाय संसाधन आवंटन की प्रक्रिया की देख-रेख करता है।
- हालाँकि शीर्ष निकायों ने अक्सर अपना प्रभाव बढ़ाने और राज्यों को उन दिशाओं में धकेलने का प्रयास किया है जो केंद्र के अधीन हैं।
भारत में केंद्र-राज्य संबंधों को लेकर संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- विधायी संबंध:
- संविधान के भाग- XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
- भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति के आलोक में यह क्षेत्र और कानून दोनों ही आधार पर केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को विभाजित करता है।
- विधायी विषयों का विभाजन (अनुच्छेद 246): भारतीय संविधान में सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों: सूची- I (संघ), सूची- II (राज्य) और सूची- III (समवर्ती) के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच विभिन्न विषयों के विभाजन का प्रावधान किया गया है।
- राज्य के क्षेत्राधिकार में संसदीय विधान (अनुच्छेद 249): असामान्य परिस्थिति में शक्तियों के इस विभाजन को संशोधित या निलंबित कर दिया जाता है।
- संविधान के भाग- XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
- प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256-263):
- संविधान के अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है।
- वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 256-291):
- संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
- चूँकि भारत एक संघीय देश है, इसलिये जब कराधान की बात आती है तो यह शक्तियों के विभाजन का पालन करता है और राज्यों को धन आवंटित करना केंद्र की ज़िम्मेदारी है।
- अनुसूची VII केंद्र और राज्यों की कर लगाने की क्षमता का वर्णन करती है।
- वस्तु एवं सेवा कर, एक दोहरी कर संरचन, वित्तीय केंद्र-राज्य संबंध का एक हालिया उदाहरण है।
- संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
हाल के समय में राजकोषीय संघवाद से कैसे समझौता किया गया है?
- केंद्र का प्रभुत्व और निवेश परिवर्तन:
- केंद्र की गतिविधियों का विस्तारित दायरा ऐसे परिदृश्य को जन्म दे सकता है जहाँ यह राज्यों के निवेश क्षेत्र का अतिक्रमण करेगा।
- उदाहरणतः केंद्र ने PM गति शक्ति लॉन्च की, जहाँ सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्बाध कार्यान्वयन के लिये राष्ट्रीय मास्टर प्लान के अनुरूप एक राज्य मास्टर प्लान तैयार करना एवं संचालित करना था।
- हालाँकि राष्ट्रीय मास्टर प्लान की योजना तथा कार्यान्वयन के केंद्रीकरण से अपने मास्टर प्लान को तैयार करने में राज्यों का लचीलापन कम हो जाता है, जिससे राज्यों द्वारा कम निवेश किया जाता है।
- परिणामस्वरूप राज्यों में सड़कों तथा पुलों पर पूंजीगत व्यय में गिरावट देखी गई, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का मात्र 0.58% रह गया।
- केंद्र की गतिविधियों का विस्तारित दायरा ऐसे परिदृश्य को जन्म दे सकता है जहाँ यह राज्यों के निवेश क्षेत्र का अतिक्रमण करेगा।
- विचित्र राजकोषीय प्रतिस्पर्द्धा:.
- संघीय व्यवस्था में आमतौर पर क्षेत्रों/राज्यों के बीच वित्तीय प्रतिस्पर्द्धा देखी जाती है किंतु भारत ने राज्यों को न केवल आपस में बल्कि केंद्र के साथ भी इस प्रतिस्पर्द्धा में उलझते देखा है।
- यह परिदृश्य केंद्र की संवर्द्धित राजकोषीय गुंज़ाइश के कारण उत्पन्न हुआ है, जिससे उसे अधिक खर्च करने की शक्ति मिलती है, जबकि राज्यों को गैर-कर राजस्व जुटाने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- इसके अतिरिक्त व्यय तीन सबसे बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में अधिक केंद्रित हो गया है, जो वर्ष 2021-22 तथा 2023-24 के बीच 16 राज्यों के व्यय का लगभग आधा है।
- इस असंतुलन के कारण राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता कम हो जाती है तथा कल्याण प्रावधान की गतिशीलता में कमी देखी जाती है।
- समानांतर नीतियों के कारण अक्षमताएँ:
- केंद्र और राज्यों के बीच संघीय मतभेदों के परिणामस्वरूप 'समानांतर नीतियों' का उदय हुआ है।
- उदाहरण के लिये राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) ने एक परिभाषित लाभ योजना से परिभाषित योगदान योजना में बदलाव की शुरुआत की।
- हालाँकि अधिकांश राज्यों ने शुरू में NPS को अपनाया, जबकि कुछ राज्य कथित वित्तीय प्रभावों के कारण पुरानी पेंशन योजना पर वापस लौट रहे हैं।
- संघीय प्रणाली के भीतर विश्वास की कमी राज्यों को नीतियों की नकल करने के लिये प्रेरित करती है, जिससे अक्षमता की स्थिति उत्पन्न होती है तथा अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक राजकोषीय प्रभाव पड़ता है।
- केंद्र और राज्यों के बीच संघीय मतभेदों के परिणामस्वरूप 'समानांतर नीतियों' का उदय हुआ है।
भारत में संघवाद को कैसे सशक्त किया जा सकता है?
- सहयोगात्मक संवाद:
- केंद्र एवं राज्यों के बीच खुले तथा पारदर्शी संचार को बढ़ावा देना। चिंताओं को दूर करने एवं दोनों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर सामान्य आधार खोजने के लिये नियमित बैठकों व चर्चाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- राज्यों को सशक्त बनाना:
- उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हुए राज्यों को अधिक निर्णय लेने की शक्तियाँ एवं संसाधन हस्तांतरित करना चाहिये। यह राज्यों को केवल केंद्र पर निर्भर हुए बिना अपने विकास एजेंडे का प्रभार लेने के लिये सशक्त बना सकता है।
- सहकारी नीतियाँ:
- सहकारी नीतियों को प्रोत्साहित करना जहाँ केंद्र और राज्य पहल तैयार करने तथा लागू करने हेतु मिलकर कार्य करते हैं। यह सहयोग संसाधनों का अनुकूलन कर सकता है और व्यापक विकास सुनिश्चित कर सकता है।
- भूमिकाओं में स्पष्टता:
- अतिव्यापी क्षेत्राधिकारों और संघर्षों को कम करने हेतु सरकार के दोनों स्तरों के लिये स्पष्ट भूमिकाएँ तथा ज़िम्मेदारियाँ परिभाषित करना। यह स्पष्टता संचालन को सुव्यवस्थित कर सकती है और नीति के दोहराव को रोक सकती है।
- विश्वास निर्माण:
- आपसी सम्मान और समझ के माध्यम से विश्वास तथा सहयोग की संस्कृति को बढ़ावा देना। विश्वास स्थापित करने से नीतियों और सुधारों के सुचारु कार्यान्वयन में सहायता मिल सकती है।
निष्कर्ष:
- एक अनुकूल आर्थिक माहौल के लिये संघीय व्यवस्था के अंदर केंद्र और राज्यों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध होना महत्त्वपूर्ण है।
- सहयोगात्मक और उत्पादक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये सहयोग, सशक्तीकरण, स्पष्टता एवं विश्वास आवश्यक घटक हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी एक भारतीय संघराज्य पद्धति की विशेषता नहीं है? (2017) (a) भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका है। उत्तर: (d) प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है।(2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज़्म) सशक्त केंद्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014) |