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जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व जल दिवस, 2024

  • 23 Mar 2024
  • 31 min read

यह एडिटोरियल 22/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Water, an instrument to build world peace” लेख पर आधारित है। इसमें जल सुरक्षा की वृद्धि, संवहनीय कृषि अभ्यास और पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व के परिप्रेक्ष्य में विश्व जल दिवस 2024 पर चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व जल सप्ताह, जल जीवन मिशन, त्वरित ग्रामीण जल आपूर्ति योजना, पंचायती राज संस्थान, हर घर जल कार्यक्रम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, संयुक्त राष्ट्र, सतत् विकास, जल सम्मेलन, जल क्रांति अभियान, राष्ट्रीय जल मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, नीति आयोग समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, जल शक्ति अभियान, अटल भूजल योजना

मेन्स के लिये:

वैश्विक जल स्तर में कमी से संबंधित मुद्दे तथा चुनौतियों से निपटने हेतु उठाए गए कदम।

प्रत्येक वर्ष  22 मार्च को मनाया जाने वाला विश्व जल दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित एक वैश्विक पहल है जो वर्ष 1993 से मनाया जा रहा है। इस दिवस के बहाने विभिन्न केंद्रीय विषयों या थीम के साथ मीठे जल के महत्त्व के बारे में हितधारकों के बीच जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया गया है। जैसा कि ज्ञात है, एक समय था जब कुओं, तालाबों, नालों, नदियों और अन्य जल स्रोतों में साफ जल उपलब्ध होता था, लेकिन अब स्थिति व्यापक रूप से बदल गई है। मात्रा या गुणवत्ता के संबंध में जल की उपलब्धता की समस्या उत्पन्न हुई है, जो जल की कमी या जल संकट के रूप में प्रकट होती है।

जल इतिहास के हर खंड में कुछ प्राचीनतम सभ्यताओं—जैसे सिंधु, नील, दज़ला और फरात नदी के आसपास विकसित हुई सभ्यताएँ—के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन रहा है। यह भी सच है कि इन सभ्यताओं में जल संसाधन के कारण संघर्ष भी उत्पन्न हुए, जैसे कि मेसोपोटामिया के लगश और उम्मा शहरों के बीच तनाव का स्पष्ट लिखित साक्ष्य प्राप्त होता है। यह संघर्ष, जो मानव इतिहास के सबसे पुराने ज्ञात युद्धों में से एक है, भूमि और जल संसाधनों के एक उर्वर खंड के आसपास केंद्रित था।

नोट

  • 22 मार्च 2024 को 31वाँ विश्व जल दिवस मनाया गया, जिसका थीम था- ‘शांति के लिये जल का लाभ उठाना’ (Leveraging water for peace)। उल्लेखनीय है कि ‘विश्व जल मूल्यांकन कार्यक्रम’ (World Water Assessment Programme) के तहत यूनेस्को ने ‘समृद्धि और शांति के लिये जल’ (Water for Prosperity and Peace) शीर्षक विश्व जल विकास रिपोर्ट के वर्ष 2024 के संस्करण के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई। यह रिपोर्ट यूएन-वाटर (UN Water) के एक भाग के रूप में तैयार की जाती है जो 35 यूएन निकायों के साथ ही 48 अन्य अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों का जल एवं स्वच्छता पर एक इंटर-एजेंसी समन्वय तंत्र है।

विश्व जल दिवस (World Water Day) क्या है?

  • लक्ष्य: यह दिवससतत् विकास लक्ष्य 6 : वर्ष 2030 तक सभी के लिये जल एवं स्वच्छता’ की प्राप्ति को समर्थन देने का लक्ष्य रखता है।
  • केंद्रीय विषय या थीम: वर्ष 2024 का थीम गई- ‘शांति के लिये जल’ (Water for Peace)
  • पृष्ठभूमि:
    • इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विचार वर्ष 1992 में सामने आया, जिस वर्ष रियो डी जनेरियो में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
    • उसी वर्ष, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव अंगीकृत किया जिसके द्वारा प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस घोषित किया गया, जिसे वर्ष 1993 से मनाया जाना था।
    • बाद में, इसके साथ अन्य उत्सव और कार्यक्रम जोड़े गए। उदाहरण के लिये, जल क्षेत्र में सहयोग का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2013 और सतत विकास के लिये जल पर कार्रवाई हेतु वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय दशक 2018-2028।
  • महत्त्व:
    • इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर के लोगों को जल से संबंधित मुद्दों के बारे में अधिक जानने और बदलाव लाने के लिये कार्रवाई करने हेतु प्रेरित करना है।
    • जबकि जल पृथ्वी के लगभग 70% हिस्से को कवर करता है, मीठे जल की मात्रा मात्र 3% है, जिसमें से दो-तिहाई जमे हुए रूप में या दुर्गम और उपयोग के लिये अनुपलब्ध है।
    • ऐसे प्रयास इस बात की पुष्टि करते हैं कि जल एवं स्वच्छता संबंधी उपाय गरीबी में कमी लाने, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संवहनीयता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण दिवस:

भारत में विद्यमान जल संकट के विभिन्न पहलू क्या हैं?

  • जल संकट के बहुआयामी अर्थ:
    • जल संकट को भौतिक या आर्थिक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जो तीव्र शहरीकरण, औद्योगीकरण, असंवहनीय कृषि पद्धतियाँ, जलवायु परिवर्तन, अप्रत्याशित वर्षा पैटर्न, अत्यधिक जल उपभोग सहित कई कारकों से उत्पन्न होता है।
    • इनके अलावा, अकुशल जल प्रबंधन, प्रदूषण, अपर्याप्तअवसंरचना, हितधारकों की भागीदारी की कमी और भारी वर्षा, मृदा के कटाव एवं तलछट के निर्माण से बढ़ा हुआ अपवाह भी उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। जल की कमी पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को बाधित करती है, खाद्य एवं जल सुरक्षा को खतरे में डालती है और अंततः शांति को प्रभावित करती है।
  • जल तनाव (water stress) के मुद्दे:
    • विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute) के अनुसार, 17 देश जल तनाव के ‘अत्यंत उच्च’ स्तर का सामना कर रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप लोगों के बीच संघर्ष, असंतोष और शांति का खतरा उत्पन्न कर सकता है। भारत भी इन समस्याओं से अछूता नहीं है।
      • भारत में जल की उपलब्धता पहले से ही इतनी कम है कि इसे जल संकट के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जबकि अनुमान किया जाता है इसमें और कमी आएगी और यह घटकर वर्ष 2025 तक 1341 घनमीटर तथा वर्ष 2050 तक 1140 घन मीटर रह जाएगा। इसके अलावा, कुल जल निकासी (भूजल या सतह जल से) का 72% कृषि में, 16% नगरपालिकाओं द्वारा घरों एवं सेवाओं के लिये और 12% उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है।
  • भूजल स्तर में गिरावट:
    • भारत के लगभग प्रत्येक राज्य और मुख्य शहरों में भूजल स्तर में कमी आ रही है। बेंगलुरु इसका प्रमुख उदाहरण है। पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा में भूजल उपभोग एवं उपलब्धता का अनुपात क्रमशः 172%, 137%, 137% और 133% है, जो चिंताजनक है। 
      • इसके विपरीत, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में यह क्रमशः 77%, 74%, 67%, 57%, और 53% है। अधिकांश बारहमासी नदियों/धाराओं के प्रवाह में कमी आई है या वे सूख गई हैं। अप्रैल-मई माह के बाद अधिकांश क्षेत्रों में पेय और अन्य उपयोग के लिये जल की उपलब्धता कम हो जाती है।
  • जलाशयों और आर्द्रभूमियों में गाद जमा होना:
    • भारत के पहाड़ी इलाकों में झरने लगभग सूख चुके हैं। भारत में जल निकायों की कुल संख्या 5,56,601 है जिनकी सिंचाई क्षमता 62,71,180 हेक्टेयर है। लेकिन, जलग्रहण उपचार उपायों की कमी या अनुचित, अकुशल डिज़ाइन एवं जल निकायों के खराब रखरखाव के कारण, अधिकांश जलाशयों/जल निकायों/आर्द्रभूमियों में गाद जमा हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप इनकी भंडारण क्षमता एवं प्रभावकारिता घट गई है।
  • एक संसाधन के रूप में जल का कुप्रबंधन:
    • अधिकांश क्षेत्रों में ट्यूबवेल घनत्व और नेटवर्क में वृद्धि हुई है। भूजल पुनर्भरण की तुलना में भूजल निर्वहन अब अधिक हो गया है। सीवरेज जल और अन्य स्रोतों के गंदे जल को जल निकायों और नदियों में छोड़े जाने से जल की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।
      • उपयुक्त सतही जल एवं भूजल प्रबंधन का अभाव है। भारत में वर्षा-सिंचित क्षेत्र, जिसमें 48% से अधिक भूमि शामिल है, सकल कृषि उत्पाद के लगभग 45% का उत्पादन करते हैं।
  • घरेलू और कृषि क्षेत्रों में सुव्यवस्थित दृष्टिकोण का अभाव:
    • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), वाटरशेड प्रबंधन, मिशन अमृत सरोवर और जल शक्ति अभियान जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के तहत प्रति बूंद अधिक फसल, ‘गाँव का जल गाँव में’, ‘खेत का जल खेत में’, ‘हर मेड़ पर पेड़’ पर सरकार द्वारा बल दिया जा रहा है जहाँ जल के घरेलू एवं उपयोगों के संबंध में एक साइलो दृष्टिकोण (siloed approach) अपनाया गया है।
      • इस परिदृश्य में, विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यापक एवं समकालिक स्थानीय हस्तक्षेप को अपनाना अनिवार्य है जो जल के उपयोग एवं संरक्षण के सभी पहलुओं पर समान बल देता है।
  • मौसम संबंधी चरम स्थितियों का अनुभव:
    • वर्तमान में विश्व अनगिनत मौसम संबंधी चरम स्थितियों का भी सामना कर रहा है जिसमें तीव्र ग्रीष्म लहरों से लेकर प्रचंड बाढ़ तक शामिल हैं, जो जलवायु संकट के साथ-साथ जल असुरक्षा पर इसके निरंतर प्रभाव के बारे में चिंताओं की वृद्धि करते हैं।
      • उदाहरण के लिये, भारत में पिछले कुछ वर्षों में मानसून अनियमित हो गया है और कृषि के लिये (जो भारत की 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के केंद्र में है) बड़ी अनिश्चितताओं का कारण बना है।
  • जल भेदभाव में विद्यमान मुद्दे:
    • साफ जल तक पहुँच के मामले में आयु और लिंग भेदभाव के सबसे प्रमुख कारण हैं। महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित आबादी हैं। वस्तुतः गंदे जल के कारण बच्चे बीमारियों की चपेट में अधिक आते हैं।
    • जल भेदभाव के अन्य कारणों में मूलवंश, जातीयता, धर्म, जन्म, जाति, भाषा और राष्ट्रीयता शामिल हैं। कुछ लोग निःशक्तता, आयु, स्वास्थ्य और आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति के कारण विशेष रूप से वंचना के शिकार होते हैं।
      • पर्यावरणीय क्षरण, जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, संघर्ष, बलपूर्वक विस्थापन एवं प्रवासन भी कुछ ऐसे कारण हैं जिनके कारण समाज के हाशिये पर स्थित समूह अधिक पीड़ित हैं।
  • जलग्रहण क्षेत्रों का निरंतर अतिक्रमण:
    • झील, तालाब और नदियों जैसे छोटे जल निकाय (small water bodies- SWMs) उनके जलग्रहण क्षेत्रों के अतिक्रमण के कारण लगातार खतरे का सामना कर रहे हैं। जैसे-जैसे शहरीकरण का विस्तार हो रहा है, लोग इन जल निकायों के जलग्रहण क्षेत्रों में और उसके आसपास घर, वाणिज्यिक भवन और अन्य अवसंरचना का निर्माण कर रहे हैं।
      • 1990 के दशक से उभरे शहरी समुच्चय ने SWMs को गंभीर रूप से प्रभावित किया है और उनमें से कई को ‘डंपिंग ग्राउंड’ या कूड़ा-स्थल में बदल दिया है। जल संसाधन पर स्थायी समिति (2012-13) ने अपनी 16वीं रिपोर्ट में रेखांकित किया कि देश के अधिकांश जल निकायों पर स्वयं राज्य एजेंसियों द्वारा अतिक्रमण किया गया था।

जल संकट को कम करने के लिये आवश्यक विभिन्न कदम क्या होंगे?

  • पारंपरिक और नई प्रौद्योगिकियों के विवेकपूर्ण मिश्रण को अपनाना:
    • भारत में खाद्यान्न की बड़ी मात्रा वर्षा-सिंचित क्षेत्र से प्राप्त होती है। सरकार ‘मृदा स्वास्थ्य में सुधार और जल के संरक्षण के लिये पारंपरिक स्वदेशी और नई प्रौद्योगिकियों के विवेकपूर्ण मिश्रण’ पर बल देती है और जल की प्रत्येक बूँद के कुशल उपयोग पर ज़ोर देती है। इसलिये इन बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
  • गुणवत्ता और मात्रा, दोनों पर बल देना:
    • मात्रा और गुणवत्ता दोनों के संदर्भ में जल की उपलब्धता बढ़ाना और नीले जल (सतह जल एवं भूजल) एवं हरे जल (मृदा में नमी) दोनों संसाधनों पर विचार करना महत्त्वपूर्ण है। ऐसा इसलिये है क्योंकि जल केवल बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा और भी बहुत कुछ के लिये आवश्यक है। जल शांति-निर्माण का एक साधन भी है और जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाता है। संवहनीय कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना, जल सुरक्षा सुनिश्चित करना और पर्यावरणीय अखंडता बनाए रखना तेज़ी से महत्त्वपूर्ण मुद्दे बनते जा रहे हैं।
  • विभिन्न संसाधन संरक्षण उपायों को अपनाना:
    • सामान्य रूप से विभिन्न संसाधन संरक्षण उपायों और वर्षा जल संचयन (स्व-स्थाने एवं बाह्य-स्थाने) को अपनाकर तथा विशेष रूप से छत के ऊपर वर्षा जल संचयन सुनिश्चित कर जल संकट का शमन संभव बनाया जा सकता है।
    • वर्षा जल संचयन (Rain water harvesting- RWH) पुनर्भरण को बढ़ाकर और सिंचाई में सहायता कर जल की कमी एवं सूखे के विरुद्ध प्रत्यास्थता को सक्षम बनाता है। बड़े पैमाने के RWH संरचनाओं द्वारा सतह जल का इष्टतम उपयोग, भूजल के साथ संयुक्त उपयोग और अपशिष्ट जल का सुरक्षित पुन: उपयोग खाद्यान्न उत्पादन के वर्तमान स्तर को बढ़ावा देने तथा इसे बनाए रखने के लिये एकमात्र व्यवहार्य समाधान हैं।
  • जल निकायों के पुनरुद्धार के लिये एक प्रोटोकॉल की आवश्यकता:
    • तालाबों/जलस्रोतों के पुनरुद्धार के लिये एक प्रोटोकॉल की आवश्यकता है। इन सभी समस्याओं से निपटने के लिये प्रत्येक जलाशय की स्थिति, उसकी जल की उपलब्धता, जल की गुणवत्ता और उसके द्वारा समर्थित पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की स्थिति का अध्ययन करने की महती आवश्यकता है। प्रत्येक जल निकाय के जलग्रहण-भंडारण-कमांड क्षेत्र पर ध्यान देकर प्रत्येक गाँव में और अधिक जल निकायों का निर्माण करने तथा पहले से मौजूद जल निकायों का पुनरुद्धार करने की भी आवश्यकता है।
  • राष्ट्रों के बीच सहयोगात्मक शासन को बढ़ावा देना:
    • जलवायु परिवर्तन से संबंधित अतिरिक्त दबावों के बीच, दुनिया को जल-बँटवारे पर बेहतर सहयोग को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय जल कानून के लिये सार्वभौमिक सिद्धांतों को अपनाने की ज़रूरत है। विश्व साझा जल के उपयोग को नियंत्रित कर और जल के निरंतर उपयोग को प्रोत्साहित कर बेहतर जल कूटनीति के लिये प्रयास कर सकता है जहाँ जल को शांति के लिये एक हथियार बनाया जा सकता है।
      • यह साझा मान्यता कि गुणवत्ता एवं उपलब्धता की सीमाओं के साथ जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, राष्ट्रों के बीच प्रभावी एवं न्यायसंगत जल आवंटन सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय स्थिरता एवं शांति को बढ़ावा देने और जल, जलवायु एवं अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता के बीच जटिल संबंधों की समझ सुनिश्चित करने के लिये सहयोगी शासन की आवश्यकता है। 
  • समावेशी दृष्टिकोण अपनाना:
    • जल कूटनीति के लिये समावेशी दृष्टिकोण की भी आवश्यकता है, जहाँ स्वदेशी एवं स्थानीय समुदायों के व्यापक सीमा-पार नेटवर्क को चिह्नित करने के साथ-साथ नागरिक समाज एवं शैक्षिक जगत नेटवर्क को संलग्न करना शामिल है, जो जल संबंधी विवाद को रोकने, इसे कम करने और इसका समाधान करने के लिये राजनीतिक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 
  • ग्रामीण मुद्दों को संबोधित करना और निवेश को बढ़ावा देना:
    • भारत में, जहाँ कृषि आजीविका का प्रमुख स्रोत बनी हुई है, 70% ग्रामीण आबादी अपने भरण-पोषण के लिये जल पर निर्भर है। यह और भी अधिक चिंताजनक है क्योंकि हम जानते हैं कि विश्व स्तर पर मीठे जल के कुल उपयोग का 70% कृषि में व्यय होता है।
      • बेहतर जल पहुँच के साथ इन अंतरों को मिटाया जा सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों में जल निवेश में वृद्धि से स्वास्थ्य, शिक्षा एवं रोज़गार के क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने की संभावना है, जबकि बुनियादी मानवीय ज़रूरतों और गरिमा के लिये तो यह अनिवार्य है ही।
  • कृषि क्षेत्र के साथ प्रौद्योगिकी एकीकरण को बढ़ावा देना:
    • कृषि क्षेत्र में, जल के संरक्षण में उभरती कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकी का कुशल उपयोग—फसल और खाद्य नुकसान से निपटने से लेकर रसायनों एवं उर्वरकों का प्रयोग कम करने और जल की बचत करने तक—यह दिखाने लगा है कि इससे उत्पादक एवं संवहनीय आउटपुट को सक्षम किया जा सकता है।
  • सीमा-पार नदियों के मुद्दों का समाधान:
    • भारत सहित विश्व के मीठे जल के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा सीमा-पार जल से प्राप्त होता है। भारत के विशाल भूभाग के साथ यहाँ लंबी नदियों का एक नेटवर्क मौजूद है, जो न केवल देश की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है बल्कि इसके पड़ोसी देशों के साथ भी साझा होता है।
      • लेकिन दक्षिण एशियाई भूभाग में हाल के वर्षों में, विशेषकर मेघना, ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु नदियों में, जल प्रदूषण की स्थिति व्यापक रूप से बिगड़ गई है।
    • इन समस्याओं को हल करने के लिये, विश्व को सीमा-पार जल प्रशासन के एक परिष्कृत रूप की आवश्यकता है, जो जल संसाधनों को साझा करने वाले देशों के बीच प्रभावी एवं न्यायसंगत जल आवंटन को बढ़ावा दे।
  • छोटे जल निकायों का रखरखाव:
    • भारत में तालाबों, झीलों और जलकुंडों जैसे छोटे जल निकायों का एक विशाल नेटवर्क मौजूद है, जो भूजल के पुनर्भरण और सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 5वीं लघु सिंचाई गणना में उल्लेख किया गया है कि भारत में कुल 6.42 लाख छोटे जल निकाय मौजूद हैं। उचित रखरखाव के अभाव में इनकी भंडारण क्षमता में गिरावट आ रही है।
    • इसके परिणामस्वरूप, तालाबों/जलकुंडों द्वारा सिंचित क्षेत्र वर्ष 1960-61 में 45.61 लाख हेक्टेयर से तेज़ी से घटकर 2019-20 में 16.68 लाख हेक्टेयर रह गया है। भारत इन छोटे जल निकायों का पुनरुद्धार एवं रखरखाव सुनिश्चित कर जल संरक्षण में मदद कर सकता है और आस-पास के समुदायों के लिये जल की उपलब्धता की स्थिति में सुधार कर सकता है।
  • बहु-आयामी हस्तक्षेप अपनाना:
    • निम्नलिखित समाधानों से विश्व जल दिवस 2024 की ‘थीम’ को सशक्त किया जा सकता है और भारत जल सुरक्षित देश बन सकता है। संयुक्त राष्ट्र जल विकास रिपोर्ट 2024 के अनुसार ये अधिक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण के लिये भी आवश्यक कदम होंगे:
      • जल उपयोग का मूल्य निर्धारण;
      • चक्रीय जल अर्थव्यवस्था का निर्माण करना;
      • सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों और IOT आधारित स्वचालन के साथ जल संसाधनों को एकीकृत करने जैसी कुशल सिंचाई तकनीकों को सुनिश्चित करना; एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन का होना;
      • घरेलू उद्देश्यों के लिये जल के उपयोग को कम करने के लिये जल मीटर लगाना;
      • कोई मुफ़्त बिजली नहीं; लाइन विभागों का अभिसरण और लिंकेज;
      • सामुदायिक जागरूकता और लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देना, जल संरक्षण के बारे में जागरूकता अभियान;
      • भूजल उपयोग तटस्थता सुनिश्चित करना;
      • भूमि तटस्थता; जल की कम आवश्यकता रखने वाली फसलें उगाना;
      • एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल वाली इष्टतम फसल योजना;
      • जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रत्यास्थता का निर्माण और जल (जो कि एक सीमित संसाधन है) के प्रबंधन के लिये एक एकीकृत एवं समावेशी दृष्टिकोण अपनाकर बढ़ती आबादी की ज़रूरतों की पूर्ति करना;
      • जल वितरण प्रणालियों में होने वाली जल हानि को कम करना और सुरक्षित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग, अलवणीकरण एवं उचित जल आवंटन; ट्यूबवेल/बोरवेल का विकास सुनिश्चित करना;
      • विभिन्न उन्नत एवं नई प्रौद्योगिकियों को प्रवर्तित करने के लिये अनुसंधान, उद्योग एवं शिक्षा जगत के एकीकरण और सहयोग को सक्षम करना।

जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये कौन-सी पहलें की गई हैं?

निष्कर्ष:

प्राचीन काल से ही विश्व ने शांति को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है; हालाँकि, यदि मीठे जल की कमी हो जाती है तो यह हमारे सामूहिक हित एवं शांति के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है। यह 2030 एजेंडा और SDGs की प्राप्ति के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। विश्व जल के संवहनीय प्रबंधन पर सीमा-पार सहयोग एवं अन्य हस्तक्षेपों के माध्यम से स्वास्थ्य, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा, शिक्षा, बेहतर जीवन स्तर, रोज़गार, आर्थिक विकास और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में लाभ का अनुभव कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: जल संबंधी मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने में विश्व जल दिवस के महत्त्व की चर्चा कीजिये। जल संरक्षण प्रयासों में व्यक्तिगत स्तर पर किस प्रकार योगदान दिया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न 2.  'वाटर क्रेडिट' (WaterCredit) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)

  1. यह जल और स्वच्छता क्षेत्र में कार्य करने के लिये माइक्रोफाइनेंस टूल का इस्तेमाल करता है।
  2. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में शुरू की गई एक वैश्विक पहल है। 
  3. इसका उद्देश्य गरीब लोगों को सब्सिडी पर निर्भर हुए बिना उनकी जल की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही हैं?

 (a) केवल 1 और 2
 (b) केवल 2 और 3
 (c) केवल 1 और 3
 (d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

 प्रश्न 1 जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?  (वर्ष 2020)

प्रश्न 2. घटते जल-परिदृश्य को देखते हुए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ ताकि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके।  (वर्ष 2020)

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