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जैव विविधता और पर्यावरण

मानव-पशु संघर्ष

  • 13 Mar 2024
  • 14 min read

प्रीलिम्स:

मानव-पशु संघर्ष, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जैवविविधता अधिनियम, 2002

मेन्स:

मानव-पशु संघर्ष, मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे और समाधान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

पशुओं के हमलों से लगातार हो रही मौतों और उन पर बढ़ते गुस्से के बीच, केरल ने मानव-पशु संघर्ष को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित कर दिया है।

  • यह घोषणा एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है कि सरकार इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को कैसे संबोधित करती है, इसमें शामिल ज़िम्मेदारियों और अधिकारियों को बदल दिया जाता है।

राज्य-विशिष्ट आपदा के रूप में राज्य मानव-पशु संघर्ष को कैसे नियंत्रण करते हैं?

स्थिति 

वर्तमान प्रबंधन

प्रस्तावित परिवर्तन (राज्य विशिष्ट आपदा)

उत्तरदायित्व 


वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वन विभाग।

आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

निर्णयदाता अधिकारी

मुख्य वन्यजीव वार्डन


राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री)

ज़िला स्तरीय प्राधिकरण

ज़िला कलेक्टर कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में

ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में ज़िला कलेक्टर

हस्तक्षेप क्षमता

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम द्वारा सीमित

आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत निर्णायक कार्रवाई करने की शक्तियों में वृद्धि

न्यायिक निरीक्षण

वन्यजीव कानूनों के तहत निर्णयों पर न्यायालय  में प्रश्न उठाए जा सकते हैं

आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के कारण सीमित न्यायिक हस्तक्षेप

न्यायालयों का क्षेत्राधिकार

न्यायालय प्रासंगिक वन्यजीव कानूनों के तहत मुकदमों पर विचार कर सकती हैं

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2025 (धारा 71) के तहत कार्रवाई से संबंधित मुकदमों पर केवल उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय ही विचार कर सकता है।

मानदंडों को ओवरराइड करने की क्षमता

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत सीमित

घोषित आपदा अवधि के दौरान वन्यजीव कानूनों सहित अन्य मानदंडों को समाप्त करने का अधिकार (धारा 72 के तहत)

  • आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 71 के अनुसार, कोई  भी न्यायालय  (उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय को छोड़कर) को इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी भी शक्ति के अनुसरण में संबंधित अधिकारियों द्वारा किये गए किसी भी मामले के संबंध में किसी भी मुकदमे या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा
    • अधिनियम की धारा 72 में कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रावधानों का आपदा घोषित होने की विशिष्ट अवधि के दौरान किसी अन्य कानून पर अत्यधिक प्रभाव पड़ेगा
  • अन्य राज्य-विशिष्ट आपदाएँ:
    • वर्ष 2015 में ओडिशा ने सर्पदंश को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया।
    • वर्ष 2020 में केरल ने कोविड-19 को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित किया।
      • इसके अतिरिक्त वर्ष 2019 में हीट वेव, सनबर्न और सनस्ट्रोक, वर्ष 2017 में साॅइल पाइपिंग की परिघटना और वर्ष 2015 में आकाशीय बिजली/तड़ित तथा तटीय क्षरण को भी राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया गया।

मानव-पशु संघर्ष क्या है?

  • परिचय:
    • मानव-पशु संघर्ष उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहाँ मानव गतिविधियों, जैसे कि कृषि, बुनियादी ढाँचे का विकास अथवा संसाधन निष्कर्षण, में वन्य पशुओं के साथ संघर्ष की स्थिति होती हैं, इसकी वजह से मानव एवं पशुओं दोनों के लिये नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
  • प्रभाव:
    • आर्थिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष के परिणामस्वरूप लोगों, विशेष रूप से किसानों और पशुपालकों की आर्थिक क्षति हो सकती है। वन्य पशु फसलों को नष्ट कर सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा पशुधन को हानि पहुँचा सकते हैं जिससे वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
    • मानव सुरक्षा के लिये खतरा: जंगली जानवर मानव सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मानव और वन्यजीव सह-अस्तित्व में रहते हैं। शेर, बाघ और भालू जैसे बड़े शिकारियों के हमलों के परिणामस्वरूप गंभीर चोट या मृत्यु हो सकती है। 
    • पारिस्थितिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिये, यदि मानव शिकारी-पशुओं को मारते हैं तो शिकार-पशुओं की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकती है। 
    • संरक्षण चुनौतियाँ: मानव-पशु संघर्ष भी संरक्षण प्रयासों के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इससे वन्यजीवों की नकारात्मक धारणा हो सकती हैं तथा संरक्षण उपायों को लागू करना कठिन हो सकता है। 
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: मानव-पशु संघर्ष का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों पर जिन्होंने हमलों या संपत्ति के नुकसान का अनुभव किया है। यह भय, चिंता और आघात का कारण बन सकता है।

मानव-पशु संघर्ष की रोकथाम करने के लिये कौन-सी रणनीतियाँ लागू की जा सकती हैं?

  • पर्यावास प्रबंधन:
    • वन्यजीवों के लिये प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और बहाली से भोजन तथा आश्रय की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश करने की उनकी आवश्यकता कम हो सकती है।
    • इसमें वन्यजीव गलियारे निर्मित करना, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करना और सतत् भूमि-उपयोग प्रथाओं को लागू करना शामिल हो सकता है।
  • फसल सुरक्षा के उपाय:
    • बाड़ व्यवस्था, पशुओं को भयभीत करने वाले उपकरण और फसल विविधीकरण जैसी विधियों से फसलों को वन्यजीवों द्वारा की जाने वाली क्षति से बचाया जा सकता है जिससे किसानों का आर्थिक नुकसान कम हो सकता है।
  • त्वरित चेतावनी प्रणाली:
    • त्वरित चेतावनी प्रणालियों का विकास और कार्यान्वन जैसे समुदायों को निकटवर्ती वन्यजीवों की उपस्थिति के बारे में सचेत करना, मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम करने एवं मानव सुरक्षा के सम्मुख खतरों को कम करने में मदद कर सकता है।
  • सामुदायिक सहभागिता एवं शिक्षा:
    • स्थानीय समुदायों को वन्यजीवों के साथ सहअस्तित्व के बारे में शिक्षित करना, संरक्षण के महत्त्व के संबंध में जागरूकता बढ़ाना और संघर्ष समाधान तकनीकों में प्रशिक्षण प्रदान करने से वन्य पशुओं के प्रति अधिक समझ तथा सहिष्णुता को बढ़ावा मिल सकता है।
  • संघर्ष समाधान तंत्र:
    • वन्यजीव संघर्ष प्रतिक्रिया दल अथवा हॉटलाइन जैसे संघर्ष समाधान तंत्र स्थापित करने से समय पर निर्णय करने की सुविधा मिल सकती है और मनुष्यों एवं पशुओं के बीच संघर्ष को कम किया जा सकता है।

मानव-पशु संघर्ष से निपटने के लिये सरकारी उपाय क्या हैं?

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: यह अधिनियम गतिविधियों, शिकार पर प्रतिबंध, वन्यजीव आवासों की सुरक्षा और प्रबंधन तथा संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना आदि के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • जैविक विविधता अधिनियम, 2002: भारत, जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक हिस्सा है। यह सुनिश्चित करता है कि जैविक विविधता अधिनियम वनों और वन्यजीवों से संबंधित मौजूदा कानूनों का खंडन करने के बजाय पूरक है।
  • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016): यह संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क को मज़बूत करने और बढ़ाने, लुप्तप्राय वन्यजीवों तथा उनके आवासों के संरक्षण, वन्यजीव उत्पादों में व्यापार को नियंत्रित करने एवं अनुसंधान, शिक्षा व प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
  • प्रोजेक्ट टाइगर: प्रोजेक्ट टाइगर एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जो वर्ष 1973 में शुरू की गई थी। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों के लिये आश्रय प्रदान करती है।
  • हाथी परियोजना: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और हाथियों, उनके आवासों तथा गलियारों की सुरक्षा के लिये फरवरी 1992 में शुरू की गई थी।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: यह अपनी विकास योजनाओं और परियोजनाओं में आपदा की रोकथाम या इसके प्रभावों को कम करने के उपायों को एकीकृत करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों या विभागों द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड एनालिसिस ऑफ फौना एंड फ्लौरा इन कॉमर्स/TRAFFIC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. TRAFFIC, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत एक ब्यूरो है। 
  2. TRAFFIC का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पादपों और जंतुओं के व्यापार से प्रकृति के संरक्षण को खतरा न हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वाणिज्य में जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का व्यापार संबंधी विश्लेषण (ट्रैफिक), वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) तथा आईयूसीएन- इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर का एक संयुक्त कार्यक्रम है। इसकी स्थापना वर्ष 1976 में हुई थी। यह यू.एन.ई.पी. के तहत कार्यरत एक ब्यूरो नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • TRAFFIC यह सुनिश्चित करने के लिये कार्य करता है कि जंगली पौधों और जानवरों का व्यापार प्रकृति के संरक्षण के लिये खतरा नहीं है। अतः कथन 2 सही है।
  • TRAFFIC बाघ के अंगों, हाथी दाँत और गैंडे के सींग जैसे नवीनतम विश्व स्तर पर ज़रूरी प्रजातियों के व्यापार के मुद्दों पर संसाधनों, विशेषज्ञता एवं जागरूकता का लाभ उठाने पर केंद्रित है। लकड़ी तथा मत्स्यपालन उत्पादों जैसी वस्तुओं में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक व्यापार को भी संबोधित किया जाता है साथ ही तेज़ी से परिणाम प्राप्त करने एवं नीतिगत सुधार के कार्य से जोड़ दिया जाता है। इसलिये विकल्प (b) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020)

प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016)

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