भूगोल
भारत का जल संकट और जलविद्युत
- 27 Jun 2024
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलविद्युत उत्पादन, जल तनाव, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँँ, GDP, विश्व बैंक, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जल शक्ति अभियान,कैच द रेन अभियान, अटल भूजल योजना मेन्स के लिये:जल संसाधन, संसाधनों का संरक्षण, भारत में जल की कमी के कारण और इसे दूर करने के उपाय। |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मूडीज़ रेटिंग्स ने चेतावनी दी है कि भारत में बढ़ती जल कमी, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्राकृतिक आपदाएँ कृषि उत्पादन एवं औद्योगिक परिचालन सहित कई क्षेत्रों को बाधित कर सकती हैं, जिससे देश की सॉवरेन क्रेडिट शक्ति कमज़ोर हो सकती है।
भारत में जलविद्युत उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- जलविद्युत उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
- भारत में जलविद्युत उत्पादन वित्त वर्ष 2023 में 162.05 बिलियन यूनिट से 17.33% घटकर वित्त वर्ष 2024 में 133.97 बिलियन यूनिट रह गया है।
- भारत में स्थापित वृहद पनबिजली जलविद्युत क्षमता वर्तमान में 46.92 गीगावाट है, जो देश की कुल जलविद्युत उत्पादन क्षमता 442.85 गीगावाट का लगभग 10% ही है।
- वित्त वर्ष 2024 में वृहद पनबिजली जलविद्युत परियोजनाओं की क्षमता वृद्धि में गिरावट देखी गई, वित्त वर्ष 2023 में 120 मेगावाट की तुलना में केवल 60 मेगावाट है।
- कम जलविद्युत उत्पादन के लिये ज़िम्मेदार कारक:
- विलंबित तथा अनियमित मानसून: इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून में विलंब हुआ है और अल-नीनो प्रभाव के कारण कम वर्षा और पिछले वर्ष लंबे समय तक सूखे के प्रभाव के कारण जलाशय सूख गए हैं।
- जलाशय का निम्नस्तर: भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में केवल 37.662 BCM का जल संग्रहण क्षमता थी, जो उनकी वर्तमान संग्रहण क्षमता का 21% जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 80% कम है।
- मध्य प्रदेश में इंदिरा सागर जलाशय, जो 1 गीगावाट की जलविद्युत क्षमता का समर्थन करता है, वर्तमान में इसका जलस्तर 17% है, जो पिछले वर्ष 2023 के जलस्तर से 24% कम है।
- इस बीच महाराष्ट्र में कोयना बाँध, जिसकी जल विद्युत 10% क्षमता के साथ 1.9 गीगावाट है, जो पिछले वर्ष के सामान्य स्तर से 15% कम है।
- जलविद्युत संयंत्रों का बंद होना: पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ एवं बादल फटने के प्रतिकूल प्रभाव के कारण कुछ पनबिजली जलविद्युत संयंत्र बंद कर दिये गए तथा इन संयंत्रों का अभी तक परिचालन आरंभ नहीं हुआ है।
- ऊर्जा क्षेत्र में जलविद्युत की कमी:
- तापीय विद्युत पर निर्भरता में वृद्धि: पिछले वर्ष की तुलना में पनबिजली जलविद्युत उत्पादन में गिरावट के कारण, कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों पर बढ़ती विद्युत मांग को पूरा करने का भार होगा।
- विद्युत की आपूर्ति में व्यवधान: इससे कोयला आधारित विद्युत संयंत्र और इस्पात निर्माता जैसे उच्च जल खपत वाले उद्योग, जल आपूर्ति की कमी से प्रभावित होंगे।
- इसके अतिरिक्त मानसून में और अधिक विलंब के कारण कई ताप विद्युत संयंत्रों में अपेक्षित रखरखाव नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण विद्युत आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
- पनबिजली जलविद्युत क्षमता में कमी: जल उपलब्धता की कमी से पनबिजली जलविद्युत उत्पादन की क्षमता और भी सीमित हो जाएगी जो भारत के नवीकरणीय ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
मूडीज़ रेटिंग्स द्वारा भारत के सॉवरेन क्रेडिट प्रोफाइल के लिये संभावित खतरे क्या हैं?
- मूडीज़ ने भारत में जल की कमी के कारण भारत की सॉवरेन क्रेडिट प्रोफाइल के लिये संभावित खतरे को उजागर किया है।
- मूडीज़ ने वर्तमान में भारत की रेटिंग को पूर्व की स्थिर BAA3 (निम्नतम निवेश-ग्रेड) पर बरकरार रखा है और साथ ही चेतावनी भी दी है कि जल की कमी तथा जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति एवं गंभीरता के कारण भारत की निम्न निवेश-ग्रेड क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड हो सकती है।
- यह विनिर्माण, कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों, इस्पात उत्पादन तथा कृषि जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के संबंध में चिंता का विषय है, जो इससे कारण सबसे अधिक प्रभावित होंगे। जिसके परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों पर मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ेगा, प्रभावित व्यवसायों एवं समुदायों की आय कम होगी और भारत की आर्थिक वृद्धि में अस्थिरता बढ़ेगी।
भारत में जल की वर्तमान स्थिति क्या है?
- जल की कमी: भारत की जनसंख्या अत्यधिक है (विश्व की कुल जनसंख्या का 18%) लेकिन स्वच्छ जल के संसाधन (विश्व की कुल जनसंख्या का केवल 4%) सीमित हैं। यह इसे जल-तनावग्रस्त देश में शामिल करता है।
- जल प्रदूषण: भारत की लगभग 50% नदियाँ संदूषित हैं, जिससे उनका जल पीने या सिंचाई के लिये असुरक्षित हो गया है।
- भूजल पर अत्यधिक निर्भरता: भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है, जिसके कारण इन संसाधनों का ह्रास हो रहा है।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने में भूजल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, तथा देश में लगभग 80% पेयजल आवश्यकताओं के साथ ही दो-तिहाई कृषि सिंचाई आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है।
- जलवायु संवेदनशीलता: भारत के लगभग तीन-चौथाई ज़िले सूखे तथा बाढ़ जैसी चरम मौसम संबंधी घटनाओं के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे जल उपलब्धता और अधिक बाधित हो सकती है।
नोट:
ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (Council on Energy, Environment and Water- CEEW) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 55% तहसीलों में विगत तीन दशकों की अपेक्षा विगत दशक के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून वर्षा में 10% से अधिक की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
भारत में जल संकट के क्या कारण हैं?
- तीव्र आर्थिक विकास और शहरीकरण: भारत की जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है जो वर्ष 1951 में 361 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2024 में 1.3 बिलियन से अधिक हो गई है।
- इससे घरेलू और औद्योगिक दोनों प्रकार के उपयोगों के लिये जल की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे संसाधनों पर भार और अधिक बढ़ गया है। विभिन्न उद्योग, जो कि जल के प्रमुख उपभोक्ता हैं, अपने अपशिष्टों से जल निकायों को प्रदूषित कर इस समस्या को और बढ़ा देते हैं।
- जल उपलब्धता में कमी: जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 2021 में पहले से ही कम 1,486 क्यूबिक मीटर से घटकर 2031 तक 1,367 क्यूबिक मीटर हो जाने की संभावना है।
- 1,700 घन मीटर से कम का स्तर जल तनाव/वाटर स्ट्रेस को दर्शाता है, तथा 1,000 घन मीटर जल-कमी की सीमा है।
- जलवायु परिवर्तन और कमज़ोर होते मानसून पैटर्न: 1950-2020 के दौरान हिंद महासागर प्रति शताब्दी 1.2 डिग्री सेल्सियस की दर से गर्म हो रहा है और 2020-2100 के दौरान इसके 1.7-3.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की उम्मीद है।
- इस गर्मी के कारण भूमि और समुद्र के तापमान के बीच का अंतर कम हो रहा है, मानसून परिसंचरण कमज़ोर हो रहा है और परिणामस्वरूप अधिक गंभीर और लगातार सूखे की स्थिति बन रही है।
- हिमालय में बदलते मौसम पैटर्न और पिघलते ग्लेशियरों के कारण जल संसाधनों की उपलब्धता और वितरण में परिवर्तन हो रहा है।
- कृषि पद्धतियाँ और अकुशल उपयोग: भारत के कुल जल उपयोग का 80% से अधिक हिस्सा कृषि में खर्च होता है।
- अकुशल सिंचाई तकनीकें, जैसे बाढ़ सिंचाई, जल-कमी वाले क्षेत्रों में चावल और गन्ने जैसी जल-गहन फसलों की खेती, जल संसाधनों पर और अधिक दबाव डालती हैं।
- भूजल ह्रास: केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिये अत्यधिक और अनियमित भूजल निष्कर्षण के कारण भारत के 54% भूजल संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है।
- खराब जल अवसंरचना और प्रबंधन: भारत की जल प्रबंधन प्रणाली अवसंरचना तथा प्रशासन में कमियों से ग्रस्त है। अपर्याप्त भंडारण, वितरण एवं उपचार सुविधाओं के कारण पानी की भारी हानि व अकुशलता होती है।
- इसके अतिरिक्त कमज़ोर जल प्रबंधन नीतियाँ, निगरानी और प्रवर्तन इन मुद्दों को तथा बदतर बनाते हैं।
- जल प्रदूषण: औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि अपवाह और घरेलू सीवेज ने भारत के कई सतही और भूजल संसाधनों को प्रदूषित कर दिया है। इससे विभिन्न प्रयोजनों के लिये स्वच्छ, उपयोग योग्य जल की उपलब्धता कम हो गई है।
भारत में जल की कमी के क्या परिणाम होंगे?
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: सुरक्षित पेयजल की कमी से निर्जलीकरण, संक्रमण और जलजनित रोग जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल अपर्याप्त जल आपूर्ति तथा संबंधित समस्याओं के कारण लगभग 200,000 लोगों की मृत्यु होती है।
- पारिस्थितिकीय क्षति: जल की कमी से वन्यजीवों और प्राकृतिक आवासों के लिये खतरा उत्पन्न हो जाता है, क्योंकि जानवरों को मानव बस्तियों में जाने हेतु मज़बूर होना पड़ता है, जिससे संघर्ष तथा संकट पैदा होता है।
- इसने जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को भी बाधित किया है।
- कृषि उत्पादकता में कमी: कृषि क्षेत्र, जो भारत के 85% जल संसाधनों का उपभोग करता है, पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जल की कमी के कारण फसल की पैदावार में कमी आई है, खाद्य सुरक्षा प्रभावित हुई है और किसानों में गरीबी बढ़ी है।
- आर्थिक नुकसान: जल की कमी औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित करके, ऊर्जा उत्पादन को कम करके और जल आपूर्ति तथा उपचार की लागत को बढ़ाकर भारत की आर्थिक वृद्धि और विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
- विश्व बैंक की 'जलवायु परिवर्तन, जल और अर्थव्यवस्था (Climate Change, Water and Economy)' रिपोर्ट (2016) में चेतावनी दी गई है कि जल की कमी वाले देशों को 2050 तक आर्थिक विकास में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत के जलवायु लक्ष्य पर प्रभाव: भारत ने 2030 तक अपनी 50% बिजली गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है तथा जल विद्युत उत्पादन में कमी के कारण जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपने संकल्प को पूरा करने के लिये उसे सौर और पवन ऊर्जा पर अधिक निर्भर होना पड़ेगा।
जल प्रबंधन से संबंधित पहल
आगे की राह
- सतत भूजल प्रबंधन: घरेलू स्तर पर भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन, सतही जल और भूजल के संयुक्त उपयोग तथा जलाशयों के विनियमन के लिये एक उचित तंत्र और ग्रामीण-शहरी एकीकृत परियोजनाएँ तैयार करने की आवश्यकता है।
- स्मार्ट कृषि: ड्रिप सिंचाई एक शक्तिशाली तकनीक है जो जल की खपत को 20-40% तक कम कर सकती है, जबकि फरो (बाढ़) सिंचाई की तुलना में फसल की उपज में 20-50% की वृद्धि कर सकती है।
- इसके अलावा, जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में दालों, बाजरा और तिलहन जैसी कम जल-प्रधान फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर: आधुनिक अवसंरचना नियोजन में हरे और नीले तत्त्वों को एक साथ जोड़ना, जलग्रहण प्रबंधन और पर्यावरण अनुकूल अवसंरचना के लिये एक स्थायी प्राकृतिक समाधान प्रदान करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
- हरा संकेत: उद्यान, पारगम्य फुटपाथ, हरित छतें।
- नीला संकेत: जल निकाय जैसे नदियाँ, नहरें, तालाब और आर्द्रभूमि।
- आधुनिक जल प्रबंधन तकनीकों का उपयोग: प्रबंधन और दक्षता बढ़ाने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी को जल-संबंधी डेटा प्रणालियों के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
- प्रौद्योगिकी में हाल की प्रगति ने पहले पीने के लिये अनुपयुक्त समझे जाने वाले पानी को शुद्ध करना संभव बना दिया है, जिससे वह स्वच्छ और सुरक्षित हो गया है।
- अधिक इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकों में इलेक्ट्रोडायलिसिस रिवर्सल (EDR), विलवणीकरण, नैनोफिल्ट्रेशन और सौर तथा यूवी फिल्ट्रेशन शामिल हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: जल संकट क्या है? भारत में जल प्रबंधन से जुड़ी मौजूदा चुनौतियों पर चर्चा कीजिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) प्रश्न. 'वाटर क्रेडिट' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न.1 जल संरक्षण और जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020) प्रश्न. 2 रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों सुझाइये। (2020) |