भारत के कोयला एवं तापीय विद्युत संयंत्र

प्रिलिम्स के लिये:

NITI  आयोग का ऊर्जा डैशबोर्ड, भारत की कोयला आधारित विद्युत क्षमता, सौर ऊर्जा क्षमता, पवन ऊर्जा, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), को-बर्निंग बायोमास (कार्बनिक पदार्थ), केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA)

मेन्स के लिये:

भारत के विद्युत क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, भारतीय कोयले का ग्रेड, तापीय विद्युत संयंत्र से उत्सर्जन कम करने की तकनीकें, तापीय विद्युत संयंत्रों से संबंधित मौजूदा चुनौतियाँ एवं सरकार की पहल

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग के ऊर्जा डैशबोर्ड के आँकड़ों के अनुसार भारत की कोयला आधारित ताप विद्युत क्षमता वित्त वर्ष 2020 के 205 गीगावाट से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 218 गीगावाट हो गई है, जो 6% की वृद्धि को दर्शाती है। 

  • एक हालिया रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2014 में एक कंपनी ने निम्न-श्रेणी के इंडोनेशियाई कोयले को उच्च-गुणवत्ता के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत करते हुए इसे तमिलनाडु की एक सार्वजनिक विद्युत उत्पादन कंपनी को बेच दिया। 

भारत के विद्युत क्षेत्र की वर्तमान स्थिति:

  • पृष्ठभूमि: कोयला आधारित नवीन विद्युत संयंत्रों में कम उत्पादन तथा नवीकरणीय ऊर्जा हेतु प्रभावी भंडारण विकल्पों की कमी के कारण विद्युत बाज़ार में मांग-आपूर्ति असंतुलन में वृद्धि हो रही है। 
    • इससे बढ़ते तापमान के आलोक में विद्युत की बढ़ती मांग के कारण देश के ग्रिड प्रबंधकों पर दबाव पड़ा है। 
  • तापीय विद्युत संयंत्र: कोयला आधारित विद्युत उत्पादन का हिस्सा वित्त वर्ष 2019-20 के 71% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 75% हो गया है। 
    • कोयला आधारित तापीय विद्युत संयंत्रों का उत्पादन भी 960 बिलियन यूनिट (BU) से बढ़कर 1,290 BU हो गया है तथा औसत प्लांट लोड फैक्टर (PLF) 53% से बढ़कर 68% हो गया है। 
    • पिछले पाँच वर्षों में अतिरिक्त तापीय विद्युत क्षमता से संबंधित सरकार के लक्ष्यों में प्रतिवर्ष औसतन 54% की कमी देखी गई है, जिसमें नवीन तापीय विद्युत क्षमता में निजी क्षेत्र की केवल 7% हिस्सेदारी रही है। 
      • पिछले पाँच वर्षों में उत्पादित अतिरिक्त विद्युत में निजी क्षेत्र ने केवल 1.7 गीगावॉट (कुल तापीय विद्युत क्षमता में 7%) का योगदान दिया है। 
    • वर्ष 2032 तक 80 गीगावाट की नई ताप विद्युत क्षमता बढ़ाने के लक्ष्य के आलोक में निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए नवीन ताप विद्युत परियोजनाओं में निवेश पर बल दिया गया है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: भारत की सौर क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो दोगुनी होकर 81 गीगावाट हो गई है। पवन ऊर्जा क्षमता में भी प्रभावशाली वृद्धि देखी गई है, जो 22% बढ़कर 46 गीगावाट तक पहुँच गई है।
    • एक नया कोयला संयंत्र (प्रति मेगावाट 8.34 करोड़ रुपए) स्थापित करना जो सौर ऊर्जा संयंत्र (प्रति मेगावाट लागत बहुत कम) स्थापित करने की तुलना में काफी महँगा है। 

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भारत किस श्रेणी का कोयला उत्पादित करता है?

  • 'उच्च श्रेणी' बनाम 'निम्न श्रेणी' कोयला: सकल कैलोरी मान (GCV) कोयले के जलने से उत्पन्न होने वाली ऊष्मा या ऊर्जा की मात्रा के आधार पर कोयले के वर्गीकरण को निर्धारित करता है।
    • कोयला कार्बन, राख, नमी एवं अन्य अशुद्धियों का मिश्रण है। कोयले की एक इकाई में उपलब्ध कार्बन जितना अधिक होगा, उसकी गुणवत्ता या 'श्रेणी' उतनी ही उत्कृष्ट होगी।
    • कोयले का सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग ताप विद्युत संयंत्रों एवं इस्पात उत्पादन के लिये ब्लास्ट भट्टियों को बिजली आपूर्ति में होता है, जिनमें से प्रत्येक के लिये अलग-अलग प्रकार के कोयले की आवश्यकता होती है।
      • कोक के उत्पादन के लिये कोकिंग कोयले की आवश्यकता होती है, जो इस्पात निर्माण का एक आवश्यक घटक है तथा इसमें न्यूनतम राख की आवश्यकता होती है।
      • गैर-कोकिंग कोयले का उपयोग, उसकी राख की मात्रा के बावजूद, बॉयलरों तथा टर्बाइनों को चलाने हेतु उपयोगी ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये किया जा सकता है।
  • भारतीय कोयले की विशेषताएँ: ऐतिहासिक रूप से, आयातित कोयले की तुलना में भारतीय कोयले में राख की मात्रा अधिक तथा कैलोरी मान कम होता है।
    • घरेलू तापीय कोयले की GCV 3,500 से 4,000 किलोकैलोरी/किग्रा. तक होती है, लेकिन आयातित तापीय कोयले की GCV 6,000 किलोकैलोरी/किग्रा. से अधिक होती है।
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय कोयले में राख की मात्रा 40% से अधिक होती है, जबकि आयातित कोयले में यह मात्रा 10% से भी कम होती है। 
      • उच्च राख वाले कोयले को जलाने से उच्च कणिकीय पदार्थ, नाइट्रोजन एवं सल्फर डाइऑक्साइड उत्पन्न होता है।
      • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने वर्ष 2012 में सिफारिश की थी कि आयातित कोयले का लगभग 10-15% मिश्रण, निम्न-गुणवत्ता वाले भारतीय कोयले के लिये डिज़ाइन किये गए भारतीय विद्युत बॉयलरों में सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सकता है।
  • स्वच्छ कोयला: स्वच्छ कोयला कार्बन सामग्री को बढ़ाकर एवं राख सामग्री को कम करके प्राप्त किया जाता है।
    • यह कार्य कोयला संयंत्र स्थलों पर स्थित वाशिंग संयंत्रों के माध्यम से किया जा सकता है, जो राख को हटाने के लिये ब्लोअर या 'बाथ' का उपयोग करते हैं।
    • एक अन्य विधि कोयला गैसीकरण है, जिसमें भाप तथा गर्म दबावयुक्त वायु अथवा ऑक्सीजन का उपयोग करके कोयले को गैस में परिवर्तित किया जाता है।
      • इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न सिंथेटिक गैस को साफ किया जाता है और साथ ही गैस टरबाइन में जलाकर बिजली उत्पन्न की जाती है, जिससे कोयले की दक्षता बढ़ जाती है।
  • भारत में कोयले का भविष्य: वर्ष 2023-24 में भारत द्वारा 997 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11% की वृद्धि दर्शाता है। अधिकांश उत्पादन राज्य के स्वामित्व वाली कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी सहायक कंपनियों द्वारा किया गया।
    • जीवाश्म ईंधनों को त्यागने की प्रतिज्ञाओं के बावजूद, कोयला भारत का प्राथमिक ऊर्जा स्रोत बना हुआ है। 

ताप विद्युत संयंत्रों से उत्सर्जन कम करने की तकनीकें क्या हैं?

  • फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD): उत्सर्जन को वायुमंडल में छोड़े जाने से पहले, FGD प्रणालियों से निकलने वाली फ्लू गैस को आर्द्र या शुष्क स्क्रबिंग प्रक्रियाओं जैसी तकनीकों का उपयोग करके स्वच्छ किया जाता है, जो उत्सर्जन से SO2 को हटा देती हैं।
  • चयनात्मक उत्प्रेरक न्यूनीकरण (SCR): SCR प्रणालियाँ नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) को कम करती हैं, जो स्मॉग और अम्लीय वर्षा में योगदान देने वाले प्रदूषकों का एक अन्य समूह है।
    • SCR प्रक्रिया के दौरान, गर्म फ्लू गैस प्लैटिनम जैसी कीमती धातुओं से लेपित उत्प्रेरक से होकर गुज़रती है। इससे एक रासायनिक अभिक्रिया संपन्न होती है जो हानिकारक NOx को हानिरहित नाइट्रोजन गैस और जल वाष्प में परिवर्तित करता है।
  • इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ESP): यह पार्टिकुलेट मैटर (PM) को लक्षित करता है, जो श्वसन संबंधी व्याधियों से जुड़े लघु कण होते हैं।
    • ESP फ्लू गैस में कणों को आवेशित करने के लिये उच्च वोल्टेज बिजली का उपयोग करते हैं। ये आवेशित कण फिर कलेक्टर प्लेटों से चिपक जाते हैं, जिन्हें समय-समय पर साफ किया जाता है।
  • फैब्रिक फिल्टर (बैगहाउस): ESP की तरह, बैगहाउस पार्टिकुलेट मैटर को लक्षित करते हैं। इनका उपयोग ESP के साथ अथवा एक स्टैंडअलोन तकनीक के रूप में किया जा सकता है।
    • फ्लू गैस फैब्रिक फिल्टर बैग से होकर गुज़रती है, जो फैब्रिक की सतह पर PM को अवशोषित करती है। एकत्रित कणों को अवमुक्त करने के लिये इस बैग को समय-समय पर हिलाया जाता है।
  • कोल वॉशिंग: इस प्री-कम्बशन तकनीक का उद्देश्य कोयले की गुणवत्ता में सुधार करके उत्सर्जन को कम करना है।
    • राख और सल्फर जैसी अशुद्धियों को समाप्त करने के लिये कोयले को जल से धोया जाता है, जो जलने पर वायु प्रदूषण में योगदान कर सकते हैं।
  • बायोमास के साथ को-फायरिंग: इस विधि में कोयले के साथ बायोमास (कार्बनिक पदार्थ) को एक साथ दहन करना शामिल है।
    • संशोधित बायोमास नीति, 2023 वित्त वर्ष 2024-25 से तापीय विद्युत संयंत्र में 5% बायोमास को-फायरिंग को अनिवार्य बनाती है।

ताप विद्युत क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियाँ और सरकारी पहल क्या हैं?

आगे की राह

  • बड़े पैमाने पर बैटरी भंडारण जैसे ग्रिड एकीकरण समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सौर और पवन ऊर्जा के विकास में तेज़ी लाना।
  • मौजूदा कोयला संयंत्रों से उत्सर्जन को कम करने के लिये फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) और सेलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन (Selective Catalytic Reduction- SCR) जैसी तकनीकों का कार्यान्वयन।
  • निजी कंपनियों को स्वच्छ और अधिक कुशल बिजली उत्पादन तकनीकों में निवेश करने के लिये वित्तीय तथा विनियामक प्रोत्साहन प्रदान करना।
  • समग्र मांग को कम करने और ग्रिड पर दबाव कम करने के लिये ऊर्जा दक्षता उपायों को बढ़ावा देना।
  • परिवर्तनशील नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण को संभालने और समग्र दक्षता में सुधार करने के लिये ग्रिड बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करना।
  • ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिये स्वच्छ कोयला गैसीकरण, गुरुत्वाकर्षण बैटरी, समुद्री ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा (सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ) का उपयोग जैसे वैकल्पिक स्रोतों की खोज करना।

निष्कर्ष

भारत के बिजली क्षेत्र में परिवर्तन के लिये एक अच्छी तरह से परिभाषित रोडमैप की आवश्यकता है जो दीर्घकालिक स्थिरता लक्ष्यों के साथ तत्काल ऊर्जा आवश्यकताओं को संतुलित करता हो। नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों और ऊर्जा दक्षता पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये एक विश्वसनीय तथा सतत् बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के विद्युत क्षेत्र की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, ताप विद्युत क्षेत्र में मौजूदा चुनौतियों और सरकारी पहलों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किया गया था।
  2. वर्तमान में कोयला ब्लॉक का आवंटन लॉटरी के आधार पर किया जाता है।
  3. भारत हाल के समय तक घरेलू आपूर्ति की कमी को पूरा करने के लिये कोयले का आयात करता था, किंतु अब भारत कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013)

  1. उच्च भस्म अंश 
  2. निम्न सल्फर अंश 
  3. निम्न भस्म संगलन तापमान

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. ‘‘जलवायु समूह (दि क्लाइमेट ग्रुप)’’ एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है जो बड़े नेटवर्क बना कर जलवायु क्रिया को प्रेरित करता है और उन्हें चलाता है।
  2. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने जलवायु समूह की भागीदारी में एक वैश्विक पहल "EP100" प्रारंभ की।
  3. EP100, ऊर्जा दक्षता में नवप्रवर्तन को प्रेरित करने एवं उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध अग्रणी कंपनियों को साथ लाता है।
  4. कुछ भारतीय कंपनियाँ EP100 की सदस्य हैं।
  5. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ‘‘अंडर 2 कोएलिशन’’ का सचिवालय है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) 1, 2, 4 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)