आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रिलिम्स के लिये:आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, जैवविविधता, जलकुंभी, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, जैविक विविधता पर अभिसमय, प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय, वन्यजीवों और वनस्पतियों की संकटापन्न प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय मेन्स के लिये:बढ़ती आक्रामक प्रजातियों और उनके प्रभावों के लिये ज़िम्मेदार कारक |
चर्चा में क्यों?
इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज़ (IPBES) ने हाल ही में "आक्रामक विदेशी प्रजातियों और उनके नियंत्रण पर मूल्यांकन रिपोर्ट" जारी की है।
- यह व्यापक अध्ययन विश्व में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के खतरनाक प्रसार और वैश्विक जैवविविधता पर उनके विनाशकारी प्रभाव पर प्रकाश डालता है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- विदेशी प्रजातियों के आक्रमण की समस्या का पैमाना:
- रिपोर्ट विभिन्न क्षेत्रों और बायोम में मानवीय गतिविधियों द्वारा लाई गई लगभग 37,000 विदेशी प्रजातियों की उपस्थिति का खुलासा करती है।
- इनमें से 3,500 से अधिक को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करते हैं।
- लगभग 6% विदेशी पौधे, 22% विदेशी अकशेरुकी, 14% विदेशी कशेरुक और 11% विदेशी रोगाणु आक्रामक माने जाते हैं।
- अग्रणी आक्रामक प्रजातियाँ:
- जलकुंभी भूमि पर विश्व की सबसे व्यापक आक्रामक विदेशी प्रजाति के रूप में शामिल है।
- लैंटाना, एक फूलदार झाड़ी और काला चूहा वैश्विक आक्रमण पैमाने पर दूसरे तथा तीसरे स्थान पर हैं।
- भूरे चूहे और घरेलू चूहे भी व्यापक आक्रमणकारी होते हैं।
- अनुमानित लाभ बनाम नकारात्मक प्रभाव:
- कई आक्रामक विदेशी प्रजातियों को जान-बूझकर वानिकी, कृषि, बागवानी, जलीय कृषि और पालतू जानवरों जैसे क्षेत्रों में कथित लाभ के लिये पेश किया गया था।
- हालाँकि जैवविविधता और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर उनके नकारात्मक प्रभावों पर अक्सर विचार नहीं किया गया।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों ने 60% प्रलेखित वैश्विक पौधों और जंतुओं के विलुप्त होने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इन प्रजातियों को अब भूमि और समुद्री उपयोग परिवर्तन, जीवों के प्रत्यक्ष शोषण, जलवायु परिवर्तन तथा प्रदूषण के साथ-साथ जैवविविधता की हानि के पाँच प्राथमिक चालकों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।
- मनुष्यों पर प्रकृति के योगदान के मामले में आक्रामक प्रजातियों के लगभग 80% प्रलेखित प्रभाव नकारात्मक हैं।
- क्षेत्रीय वितरण: जैविक आक्रामक प्रजातियों के 34% प्रभाव अमेरिका से, 31% यूरोप एवं मध्य एशिया से, 25% एशिया तथा प्रशांत से और लगभग 7% अफ्रीका से रिपोर्ट किये गए।
- अधिकांश नकारात्मक प्रभाव भूमि पर, विशेषकर वनों, काष्ठभूमि और कृषि क्षेत्रों में होते हैं।
- द्वीपों पर आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ सबसे अधिक हानिकारक हैं। सभी द्वीपों में से 25% से अधिक पर विदेशी पौधों की संख्या अब स्थानीय पौधों से अधिक है।
- स्थानीय प्रजातियों पर जैविक आक्रमण के 85% प्रभाव नकारात्मक होते हैं।
आक्रामक/प्रवेशी विदेशी प्रजातियाँ:
- परिचय:
- आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ, जिन्हें आक्रामक बाह्य प्रजातियाँ या गैर-स्थानीय प्रजातियाँ भी कहा जाता है, उन जीवों को संदर्भित करती हैं जिन्हें उनकी मूल सीमा के बाहर के क्षेत्रों या पारिस्थितिक तंत्रों में लाया गया है और जिन्होंने स्व-निर्भर समष्टि स्थापित की है।
- ये प्रजातियाँ प्रायः देशी/स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करती हैं और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बाधित करती हैं, जिससे कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
- बढ़ती आक्रामक प्रजातियों के लिये ज़िम्मेदार कारक:
- व्यापार और यात्रा का वैश्वीकरण: बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और यात्रा ने सीमा पार/ बाह्य प्रजातियों के अनजाने प्रसार को उत्प्रेरित किया है।
- आक्रामक प्रजातियाँ मालवाहक जहाज़, हवाई जहाज़ और वाहनों द्वारा अनजाने में कार्गो के भीतर, जलमार्ग के माध्यम से या उनकी सतहों के साथ ले जाए जाते हैं, जिससे उनका अनजाने में प्रसार और भी आसान हो जाता है।
- 1800 के दशक के अंत में जहाज़ों और मोती उद्योग के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तुत किये गए ब्लैक रैट को IUCN द्वारा "विश्व की सबसे खराब" आक्रामक प्रजातियों में से एक माना जाता है।
- आक्रामक प्रजातियाँ मालवाहक जहाज़, हवाई जहाज़ और वाहनों द्वारा अनजाने में कार्गो के भीतर, जलमार्ग के माध्यम से या उनकी सतहों के साथ ले जाए जाते हैं, जिससे उनका अनजाने में प्रसार और भी आसान हो जाता है।
- जलवायु परिवर्तन: उच्च तापमान और वर्षा पैटर्न में बदलाव आक्रामक प्रजातियों के उपनिवेशीकरण एवं प्रसार के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देते हैं।
- ऋतुओं के समय में बदलाव देशी प्रजातियों के जीवन चक्र को बाधित कर सकता है, जिससे वे आक्रामक प्रतिस्पर्द्धियों और शिकारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
- विदेशी प्रजातियों का समावेश: बागवानी, भू-निर्माण और कीट नियंत्रण जैसे उद्देश्यों के लिये गैर-देशी प्रजातियों का जान-बूझकर समावेश, तब आक्रमण का कारण बन सकता है, जब ये प्रजातियाँ कृषि जुताई के दौरान बच जाती हैं।
- व्यापार और यात्रा का वैश्वीकरण: बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और यात्रा ने सीमा पार/ बाह्य प्रजातियों के अनजाने प्रसार को उत्प्रेरित किया है।
- आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रभाव:
- पारिस्थितिक प्रभाव: आक्रामक प्रजातियाँ भोजन, जल और आवास जैसे संसाधनों के लिये देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, जिससे देशी प्रजातियों में गिरावट आ सकती है या वे विलुप्त हो सकती हैं।
- कुछ देशी प्रजातियाँ आक्रामक प्रजातियों की शिकार बन सकती हैं, जिससे उनकी आबादी में गिरावट आ सकती है।
- इन व्यवधानों से पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और लचीलेपन पर दूरगामी परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
- आर्थिक प्रभाव: आक्रामक विदेशी प्रजातियों की वार्षिक लागत वर्ष 1970 के बाद से हर दशक में चौगुनी हो गई है। वर्ष 2019 में इन प्रजातियों की वैश्विक आर्थिक लागत वार्षिक रूप से 423 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई है।
- ज़ेबरा मसल्स जैसी प्रजातियाँ जल के पाइप और बुनियादी ढाँचे को अवरुद्ध कर सकती हैं, जिससे मरम्मत और रखरखाव महँगा हो जाता है।
- खाद्य आपूर्ति पर प्रभाव: खाद्य आपूर्ति में कमी विदेशी आक्रामक प्रजातियों का सबसे आम परिणाम है।
- उदाहरणतः इसमें केरल में मत्स्यपालन को हानि पहुँचाने वाला कैरेबियन फाल्स मसल्स शामिल है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: एडीज़ एल्बोपिक्टस(Aedes Albopictus) और एडीज़ एजिप्टी(Aedes Aegyptii) जैसी आक्रामक प्रजातियाँ मलेरिया, ज़ीका और वेस्ट नाइल फीवर जैसी बीमारियाँ फैलाती हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
- विक्टोरिया झील में जलकुंभी के कारण तिलापिया (मछली) की कमी हो गई, जिससे स्थानीय मत्स्यपालन प्रभावित हुआ है।
- पारिस्थितिक प्रभाव: आक्रामक प्रजातियाँ भोजन, जल और आवास जैसे संसाधनों के लिये देशी प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, जिससे देशी प्रजातियों में गिरावट आ सकती है या वे विलुप्त हो सकती हैं।
- आक्रामक प्रजातियों के लिये अंतर्राष्ट्रीय उपाय और कार्यक्रम:
- कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क (2022): सरकारें वर्ष 2030 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आगमन और प्रसार की दर को कम से कम 50% तक कम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- जैविक विविधता पर अभिसमय, 1992: इसे रियो डी जनेरियो में वर्ष 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अपनाया गया, इसके अनुसार आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ पर्यावरण के लिये बड़ा खतरा हैं।
- प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय 1979: इस अंतर-सरकारी संधि का उद्देश्य प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण करना है और इसमें पहले से मौजूद आक्रामक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित करने या खत्म करने के उपाय शामिल हैं।
- वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES - 1975): यह सुनिश्चित करता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से जंगली पशुओं और पौधों के अस्तित्व को खतरा न पहुँचे, यह इनके व्यापार में शामिल आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव पर भी विचार करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज़) (IUCN) तथा वन्यजीवों एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES) के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) |