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मन्नार द्वीप समूह की खाड़ी में आक्रामक प्रजातियाँ

  • 08 Apr 2023
  • 6 min read

हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि मन्नार की खाड़ी में देशी वनस्पति और जैव विविधता को एक विदेशी आक्रामक पौधे, प्रोसोपिस चिलेंसिस (Prosopis Chilensis) से खतरा है।  

  • इसके अलावा औद्योगिक उद्देश्यों हेतु गैर-कानूनी होने के बावजूद प्रवाल भित्तियों को कई स्थानों पर नष्ट कर दिया गया है तथा मानव बस्तियों ने कुछ द्वीपों को प्रभावित किया है।

आक्रामक प्रजातियाँ:

  • परिचय:  
    • आक्रामक प्रजाति एक ऐसा जीव है जो किसी विशेष क्षेत्र के लिये स्थानिक या देशी प्रजातियों को क्षति पहुँचाता है। 
      • वे प्रजातियाँ स्थानिक पादपों और जीवों को विलुप्त करने, जैव विविधता को कम करने, सीमित संसाधनों के लिये देशी जीवों के साथ प्रतिस्पर्धा करने और पर्यावास को परिवर्तित करने में सक्षम हैं।
    • इन्हें जहाज़ के गिट्टी जल उपचार, आकस्मिक उत्सर्जन और अक्सर लोगों द्वारा एक क्षेत्र में प्रयुक्त किया जा सकता है। 
  • प्रोसोपिस चिलेंसिस के विषय में:  
    • चिली मेसकाइट [प्रोसोपिस चिलेंसिस (मोलिना) स्टंटज़] एक छोटे से मध्यम आकार के फलीदार पौधा है जिसकी जड़ें उथली और फैली हुई होती है। 
      • यह एक सामान्य मलबे या कूड़े पर उगने वाला खरपतवार है, जो या तो अकेले या समूह में उगता है। 
    • यह सतह के नीचे 3 से 10 मीटर के भूजल के साथ शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है।
      • यह दक्षिण अमेरिकी देशों अर्थात् अर्जेंटीना, बोलीविया, चिली और पेरू में पाया जाने वाला एक सूखा प्रतिरोधी पौधा है।
  • आक्रामक प्रजातियों पर अंतर्राष्ट्रीय साधन और कार्यक्रम:
    • जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD):
      • यह अभिसमय वर्ष 1992 में रियो डि ज़ेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन के दौरान अंगीकृत प्रमुख समझौतों में से एक है।
      • जैव विविधता पर रियो डी ज़ेनेरियो सम्मेलन (1992) में निवास स्थान के क्षरण के पीछे विदेशी/आक्रामक पौधों की प्रजातियों के जैविक आक्रमण को पर्यावरण के लिये दूसरे सबसे बुरे खतरे के रूप में स्वीकार किया गया था। 
    • प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS) या बॉन अभिसमय (1979):
      • यह एक अंतर-सरकारी संधि है, जिसका उद्देश्य स्थलीय, समुद्री और एवियन प्रवासी प्रजातियों को उनकी सीमा में संरक्षित करना है।
      • इसका उद्देश्य पहले से मौजूद आक्रामक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित करना या खत्म करना भी है।
    • वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES):
      • यह वर्ष 1975 में अपनाया गया एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वन्यजीवों और पौधों के प्रतिरूप को किसी भी प्रकार के खतरे से बचाना है तथा इनके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को रोकना है।
      • यह आक्रामक प्रजातियों से संबंधित उन समस्याओं पर भी विचार करता है जो जानवरों या पौधों के अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
    • रामसर अभिसमय, 1971:
      • यह अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के आर्द्रभूमि के संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
      • यह अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर आर्द्रभूमि पर आक्रामक प्रजातियों के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को भी संबोधित करता है तथा उनसे निपटने के लिये नियंत्रण और समाधान के तरीकों को भी खोजता है।
  • मन्नार की खाड़ी: 
    • मन्नार की खाड़ी (Gulf of Mannar) पूर्वी भारत और पश्चिमी श्रीलंका के बीच हिंद महासागर का एक प्रवेश-द्वार है।
    • यह उत्तर-पूर्व में रामेश्वरम द्वीप, एडम्स ब्रिज और मन्नार द्वीप से घिरी हुई है।
    • इसमें कई नदियाँ मिलती हैं जिसमें ताम्रपर्णी (भारत) और अरुवी (श्रीलंका) शामिल हैं।
    • यह खाड़ी मोतियों के भंडार और शंख के लिये प्रसिद्ध है। 
  • मन्नार की खाड़ी बायोस्फीयर रिज़र्व (GoMBR):  
    • GoMBR में कुल 21 द्वीप हैं जो आर्कटिक वृत्त तक पलायन करने वाले तटीय पक्षियों के आवास के रूप में काम करते हैं।
      • यह भारत का पहला समुद्री बायोस्फीयर रिज़र्व है। 
    • अधिकांश द्वीपों में समुद्र तट के किनारे रेत के टीले हैं, जिनमें लवण प्रधान पौधों की प्रजातियाँ प्रमुख हैं।
    • अधिकांश द्वीपों में लावन प्रधान पौधों की प्रजातियों के साथ रेत के टीले हैं। 
    • "प्रवाल, समुद्री घास और मैंग्रोव द्वीपों पर मौजूद तीन अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्रों में से हैं

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स्रोत: द हिंदू

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