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सामाजिक न्याय

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस- 2020

  • 13 Jun 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व बाल श्रम निषेध दिवसबाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन,  ILO के आठ कोर कन्वेंशन 

मेन्स के लिये:

भारत में बाल श्रम 

चर्चा में क्यों?

‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ (World Day Against Child Labour) प्रतिवर्ष 12 जून को मनाया जाता है। इस वर्ष के ‘विश्व बाल श्रम निषेध दिवस’ को 'आभासी अभियान' (Virtual Campaign) के रूप में आयोजित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  •  विश्व बाल श्रम निषेध दिवस-2020, ‘COVID-19 महामारी का वैश्विक बाल श्रम पर प्रभाव’ विषय पर केंद्रित है।
  • बाल श्रम पर  'आभासी अभियान' का आयोजन ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organization- ILO) द्वारा 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर' तथा 'इंटरनेशनल पार्टनरशिप फॉर कोऑपरेशन इन चाइल्ड लेबर इन एग्रीकल्चर' के साथ मिलकर किया जा रहा है।

पृष्ठभूमि:

  • विश्व बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) द्वारा वर्ष 2002 में की गई थी।
  • इस दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य बाल श्रम की वैश्विक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करना तथा बाल श्रम को पूरी तरह से समाप्त करने के लिये आवश्यक प्रयास करना है।
  • प्रत्येक वर्ष 12 जून को विश्व में बाल श्रमिकों की दुर्दशा को उजागर करने के लिये सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिक संगठनों, नागरिक समाज के साथ-साथ दुनिया भर के लाखों लोगों को एक साथ लाने के लिये इस दिवस का आयोजन किया जाता है।

बाल श्रम की परिभाषा:

  • सामान्यत: बाल श्रम को ऐसे पेशे या कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चे के लिये खतरनाक तथा नुकसानदायक हो। जो कार्य बच्चों को स्कूली शिक्षा से वंचित करता है या जिस कार्य में बच्चों को स्कूली शिक्षा और काम के दोहरे बोझ को संभालने की आवश्यकता होती है।
    • इसमें वे बच्चे शामिल हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय कानून द्वारा परिभाषित न्यूनतम कानूनी उम्र से पहले  किसी व्यावसायिक कार्य में लगाया जाता है।
    • गुलामी (Slavery) या गुलामी के समान प्रथा, वेश्यावृत्ति या अवैध गतिविधियों के लिये बच्चे का उपयोग बाल श्रम के सबसे निकृष्टतम  रूप हैं।

कार्य जो बाल श्रम नहीं हैं:

  • ऐसे कार्य जो बच्चों या किशोरों के स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत विकास को प्रभावित नहीं करते हैं या जिन कार्यों का उनकी स्कूली शिक्षा पर कोई कुप्रभाव नही पड़ता हो।
    • स्कूल के समय के अलावा या स्कूल की छुट्टियों के दौरान पारिवारिक व्यवसाय में सहायता करना;
    • ऐसी गतिविधियाँ जो बच्चों के विकास में सहायक होती है तथा उनके वयस्क होने पर उन्हें समाज का उत्पादक सदस्य बनने के लिये तैयार होने में मदद करती हैं, यथा परंपरागत कौशल आधारित पेशा। 

'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन'

(UN Convention on the Rights of the Child- UNCRC):

  • 20 नवंबर, 1989 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 'बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन' (UNCRC) को अपनाया गया था, जो 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों की किसी भी प्रकार के व्यवसाय में लगाने पर प्रतिबंध आरोपित करती है। 
  • यह कन्वेंशन बच्चों को आर्थिक शोषण से बचाने के लिये उन कार्यों की पहचान करके मान्यता देती है जो बच्चों के लिये खतरनाक हो सकते हैं तथा जिनसे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो सकती है। 

भारत तथा UNCRC:

  • भारत द्वारा UNCRC को वर्ष 1992 में अनुमोदित किया गया था। हालाँकि भारत में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी प्रकार के कार्य करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है। भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में लगाने से प्रतिबंधित किया गया है। जबकि 14 से 18 वर्ष से किशोरों पर केवल ‘खतरनाक व्यवसायों’ (Hazardous Occupations) में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

बाल श्रम की वैश्विक स्थिति:

  • बाल श्रम में अनुमानित 152 मिलियन बच्चे कार्यरत हैं, जिनमें से 73 मिलियन बच्चे आजीविका के लिये खतरनाक उद्योगों में काम करते हैं।
  • बाल श्रम मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र (71%) में केंद्रित है - इसमें मछली पकड़ना, वानिकी, पशुधन पालन और जलीय कृषि शामिल है। सेवाओं में 17% और खनन सहित औद्योगिक क्षेत्र में 12% बाल श्रमिक संलग्न हैं। 

भारत में बाल श्रमिक:

  • राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष की आयु वर्ग की भारत में कुल जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है। इनमें से कुल बाल आबादी का लगभग 10 मिलियन (लगभग 4%) बाल श्रमिक हैं जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं।
  • 15-18 वर्ष की आयु के लगभग 23 मिलियन बच्चे विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं।

भारत सरकार की पहल:

  • गुरुपद्स्वामी समिति (Gurupadswamy committee) के निष्कर्षों तथा सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए, केंद्र सरकार द्वारा ‘बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम’ (Child Labour (Prohibition and Regulation) Act)- 1986 बनाया गया।
  • हाल ही में, भारत ने 'अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (International Labour Organization- ILO) के कन्वेंशन संख्या- 138 (रोज़गार के लिये न्यूनतम आयु) और कन्वेंशन संख्या- 182 (बाल श्रम के सबसे बुरे रूप) का अनुसमर्थन किया है।
    • इन दो प्रमुख ILO कन्वेंशनों के अनुसमर्थन के साथ ही भारत  ILO के आठ  प्रमुख कन्वेंशनों में से 6 का अनुसमर्थन कर चुका है। चार अन्य कन्वेंशन बलात श्रम उन्मूलन, 1930 (कन्वेंशन संख्या- 29), बलात श्रम उन्मूलन, 1957 (कन्वेंशन संख्या- 105), समान कार्य के लिये समान पारिश्रमिक, 1951 (कन्वेंशन संख्या- 100), रोजगार तथा भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) कन्वेंशन, 1958 (कन्वेंशन संख्या- 111) हैं।
  • बाल श्रम (निषेध और रोकथाम) संशोधन अधिनियम, (Child labour (Prohibition and Prevention) Amendment Act)- 2016 को लागू किया गया। 
    • यह अधिनियम 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों मे लगाने पर प्रतिबंध तथा  14 से 18 वर्ष के  किशोरों पर ‘खतरनाक व्यवसायों’ (Hazardous Occupations) में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाता है।
    • नए कानून में बच्चों के लिये रोज़गार की आयु को ‘अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ (Right to Education Act- RTE), 2009 के तहत अनिवार्य शिक्षा की उम्र से जोड़ा गया है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-23 मानव दुर्व्यापार, बेगार तथा  बंधुआ मज़दूरी की प्रथा का उन्मूलन करता है। जबकि अनुच्छेद-24 किसी फैक्ट्री, खान, अन्य संकटमय गतिविधियों यथा-निर्माण कार्य या रेलवे में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।

आगे की राह:

  • सरकार आम तौर पर बाल श्रमिकों के तत्काल बचाव पर ध्यान केंद्रित करती है न कि दीर्घकालिक स्थिति या रोकथाम के आयाम पर। अत: रोकथाम के आयाम पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। 
  • बाल श्रम को सामाजिक रूप से बड़े पैमाने पर स्वीकार किया जाता है अत: बच्चों का लगातार शोषण जारी रहता है। अत:बाल श्रम के प्रति समाज में 'शून्य सहिष्णुता' (Zero Tolerance) को अपनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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