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डेली न्यूज़

  • 21 Dec, 2024
  • 79 min read
शासन व्यवस्था

भारत समुद्री विरासत सम्मेलन, 2024

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर, सिंधु घाटी सभ्यता, रॉयल इंडियन नेवी, नौसेना दिवस, सागर माला कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

भारत का समुद्री इतिहास एवं वैश्विक व्यापार में इसका योगदान, भारत के समुद्री क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत की समुद्री पहल 

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय द्वारा प्रथम भारत समुद्री विरासत सम्मेलन (IMHC 2024) का आयोजन किया गया, जिसमें भारत की समुद्री विरासत और वैश्विक व्यापार में इसके योगदान पर प्रकाश डालने के साथ भविष्य के नवाचारों पर चर्चा की गई।

IMHC 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • विषय: "वैश्विक समुद्री इतिहास में भारत की स्थिति को समझना।" 
    • यह वैश्विक समुद्री व्यापार, संस्कृति और नवाचार में भारत के ऐतिहासिक तथा समकालीन योगदान पर केंद्रित है।
  • मुख्य आकर्षण: इस सम्मेलन में भारत की समुद्री विरासत को प्रदर्शित किया गया, जिसमें प्राचीन पोत निर्माण तकनीकों तथा नौवहन उपकरणों का प्रदर्शन किया गया, जो वैश्विक व्यापार नेटवर्क के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध को दर्शाता है।
    • ग्रीस, इटली और यूनाइटेड किंगडम जैसे अग्रणी समुद्री राष्ट्रों ने इसमें भाग लिया तथा भारत की समुद्री विरासत के वैश्विक महत्त्व पर बल दिया।
    • मुख्य आकर्षण केंद्र लोथल में बनने वाला राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC) रहा, जिसमें पोत निर्माण तथा मनका निर्माण जैसी भारत की प्राचीन समुद्री तकनीकों का प्रदर्शन किया गया।

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राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (NMHC)

  • NMHC का निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत ऐतिहासिक सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) स्थल लोथल, गुजरात में किया जा रहा है।
    • इस परियोजना का लक्ष्य NMHC को विश्व के सबसे बड़े समुद्री परिसरों में से एक बनाना है जो अतीत, वर्तमान तथा भविष्य की समुद्री गतिविधियों को एक विश्व स्तरीय सुविधा में एकीकृत करेगा।
  • NMHC परियोजना में 14 गैलरी वाला एक संग्रहालय, लोथल टाउन, एक ओपन एक्वेटिक गैलरी, लाइटहाउस संग्रहालय, कोस्टल स्टेट पवेलियन, इको रिसॉर्ट, थीम पार्क तथा एक समुद्री अनुसंधान संस्थान आदि शामिल होंगे।                     

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भारत का समुद्री इतिहास क्या है?

  • प्राचीन भारत:
    • सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) (3300-1300 ई.पू.): भारत की समुद्री गतिविधियों को IVC से देखा जा सकता है। 
      • लोथल का ड्राई-डॉक (2400 ई.पू.) विश्व का पहला ज्ञात ड्राई-डॉक है, जो समुद्री क्षेत्र से संबंधित उन्नत ज्ञान का प्रतीक है।
      • यहाँ से मिले साक्ष्य सिंधु घाटी एवं मेसोपोटामिया के बीच मज़बूत व्यापार का संकेत देते हैं। 
        • मेसोपोटामिया में हड़प्पा की मुहरों तथा आभूषणों की खोज, इन दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच व्यापक आदान-प्रदान पर प्रकाश डालती है।
    • वैदिक काल (1500- 600 ई.पू.): ऋग्वेद सहित वैदिक साहित्य में नौकाओं तथा समुद्री यात्राओं का उल्लेख है, जिसमें समुद्र के देवता वरुण को समुद्री मार्गों का मार्गदर्शन करने के रूप में संदर्भित किया गया है।
      • रामायण और महाभारत में पोत निर्माण तथा समुद्री यात्रा का वर्णन मिलता है।
    • नंद और मौर्य (500 - 200 ईसा पूर्व): मगध साम्राज्य की नौसेना विश्व स्तर पर नौसेना का पहला दर्ज उदाहरण है।
      • प्रथम मौर्य सम्राट, चंद्रगुप्त मौर्य के सलाहकार चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में एक नवाध्यक्ष (जहाजों के अधीक्षक) के नेतृत्व वाले जलमार्ग विभाग का उल्लेख किया है।
      • सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को दक्षिण-पूर्व एशिया और श्रीलंका तक फैलाने के लिये समुद्री मार्गों का उपयोग किया, जिससे भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक प्रभाव और समृद्ध हुआ।
  • सातवाहन राजवंश (200 ई.पू.-220 ई.): सातवाहनों ने रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार करके भारत के पूर्वी तट पर नियंत्रण किया। 
    • वे जहाज़ों के चित्र वाले सिक्के जारी करने वाले पहले भारतीय शासक थे।
  • गुप्त साम्राज्य (320-550 ई.): गुप्त राजवंश ने भारत के स्वर्ण युग को चिह्नित किया, जिसमें समृद्धि, सांस्कृतिक विकास और खगोल विज्ञान तथा नेविगेशन में उन्नति हुई, जैसा कि चीनी यात्री फा-हियान एवं ह्वेन त्सांग ने उल्लेख किया है।
    • आर्यभट्ट और वराहमिहिर द्वारा की गई खगोलीय प्रगति ने समुद्री नौवहन को बेहतर बनाया, जिससे सटीक यात्राएँ संभव हुईं। विभिन्न बंदरगाहों के खुलने से यूरोप तथा अफ्रीका के साथ समुद्री व्यापार पुनः आरंभ हो गया।
  • दक्षिणी राजवंश:
    • चोल (तीसरी शताब्दी - 13वीं शताब्दी): सुमात्रा, जावा, थाईलैंड, चीन के साथ व्यापक समुद्री व्यापार। बंदरगाह, शिपयार्ड, लाइटहाउस बनवाए।
    • पांड्य: ये मोती की खेती पर नियंत्रण रखते थे तथा रोम एवं मिस्र के साथ व्यापार करते थे।
    • चेर (12 वीं शताब्दी):  ये यूनानियों और रोमनों के साथ व्यापार करते थे तथा मानसूनी पवनों का उपयोग करके टिंडिस (कोच्चि के पास) और मुजिरिस (कोच्चि के पास) से अरब बंदरगाहों तक यात्रा करते थे।
  • मध्यकालीन भारत: 
    • अरब:  8वीं शताब्दी तक अरब प्रमुख समुद्री व्यापारियों के रूप में उभरे, जो भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करते थे। 
    • पुर्तगाली: 16 वीं शताब्दी में वास्को-डी-गामा (1460-1524) ने पुर्तगाल से भारत तक एक समुद्री मार्ग की खोज की; इन्होंने अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप का चक्कर लगाते हुए मई 1498 में केरल के कालीकट तक का सफर तय किया।
    • भारतीय जल में यूरोपीय प्रतिस्पर्द्धा: 17वीं शताब्दी में भारतीय समुद्री व्यापार पर प्रभुत्व के लिये पुर्तगाली, डच, फ्राँसीसी और ब्रिटिश समेत यूरोपीय शक्तियों के बीच भयंकर प्रतिस्पर्द्धा देखी गई।
      • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारिक विशेषाधिकार प्राप्त करके तथा भारतीय जल पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिये नौसैनिक शक्ति का लाभ उठाकर धीरे-धीरे प्रभुत्व प्राप्त कर लिया।
  • स्वतंत्रता पूर्व:
    • मराठा नौसेना प्रतिरोध: शिवाजी महाराज ने पश्चिमी तट पर यूरोपीय और मुगलों का सामना करने के लिये एक मज़बूत नौसेना का निर्माण किया। सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग जैसे तटीय किलों ने समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ किया। 
    • ब्रिटिश राज के अधीन समुद्री भारत: रॉयल इंडियन मरीन (RIM) का गठन वर्ष 1892 में किया गया था, बाद में वर्ष 1934 में इसका नाम बदलकर रॉयल इंडियन नेवी (RIN) कर दिया गया।
    • प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, RIN ने मध्य पूर्व, बर्मा और भूमध्य सागर में अनुरक्षण मिशन, गश्त और संयुक्त अभियानों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • ब्रिटिश राज ने वर्ष 1934 में औपचारिक रूप से नौसेना बल का नाम बदलकर रॉयल इंडियन नेवी कर दिया, जिससे स्वतंत्रता के बाद इसके परिवर्तन की नींव रखी गई।
    • स्वातंत्र्योत्तर काल (वर्ष 1947 - वर्तमान): स्वतंत्रता के साथ रॉयल इंडियन नेवी भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित हो गई। वर्ष 1950 में उपसर्ग "रॉयल" हटा दिया गया, और भारतीय नौसेना की स्थापना अशोक के चिह्न के साथ की गई।
      • नौसेना का आदर्श वाक्य शं नो वरुणः (अर्थात् जल के देवता वरुण हमारे लिये मंगलकारी रहें) इसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को उजागर करता है।
      • वाइस एडमिरल आर.डी. कटारी वर्ष 1958 में पहले भारतीय नौसेना प्रमुख बने।
    • नौसेना ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1972 से 4 दिसंबर को ऑपरेशन ट्राइडेंट (1971 भारत-पाक युद्ध) की सफलता की स्मृति में नौसेना दिवस मनाया जाता है।
    • भारतीय नौसेना में तीन कमान हैं, जिनमें से प्रत्येक एक फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के नियंत्रण में है, अर्थात् पश्चिमी (मुख्यालय- मुंबई), पूर्वी (विशाखापत्तनम) और दक्षिणी नौसेना कमान (कोच्चि)। 
    • आधुनिकीकरण के प्रयासों से भारतीय नौसेना एक ऐसे समुद्री बल में परिणत हुआ है, जिसकी क्षमताएँ हिंद महासागर क्षेत्र से आगे विस्तृत हैं।

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भारत के समुद्री क्षेत्र का महत्त्व क्या है?

  • भारत के समुद्री क्षेत्र की स्थिति:
    • भारत विश्व में 16वाँ सबसे बड़ा समुद्री देश है।
    • भारत टन भार की दृष्टि से विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जहाज़ पुनर्चक्रणकर्ता है तथा शिपब्रेकिंग के क्षेत्र में वैश्विक बाज़ार में इसका योगदान 30% है एवं विश्व की सबसे बड़ी शिपब्रेकिंग की सुविधा गुजरात के अलंग में स्थित है।
  • आर्थिक महत्त्व: भारत का समुद्री क्षेत्र इसके व्यापार और वाणिज्य का आधार है, जहाँ से मात्रा की दृष्टि से देश का लगभग 95% व्यापार और मूल्य की दृष्टि से 70% व्यापार संपन्न होता है।
    • भारतीय बंदरगाहों से प्रतिवर्ष लगभग 1200 मिलियन टन माल का संचालन किया  जाता है, जो इस क्षेत्र के आर्थिक महत्त्व को रेखांकित करता है।
    • विश्व बैंक की वर्ष 2023 की लॉजिस्टिक परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) रिपोर्ट के अनुसार, भारत "अंतर्राष्ट्रीय शिपमेंट" श्रेणी में वैश्विक स्तर पर 22 वें स्थान पर है, जो वर्ष 2014 के 44वें स्थान में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
      • यह सुधार भारतीय बंदरगाहों के निष्पादन को रेखांकित करता है, जिनका कंटेनर टर्नअराउंड समय और ड्वेल समय जैसे परिचालन मापदंडों पर विश्व के अन्य प्रतिस्पर्द्धियों से बेहतर प्रदर्शन रहा।
    • बंदरगाह से निर्यात-आयात, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, तटीय शिपिंग और क्रूज़ शिपिंग संपन्न होता है।
    • वर्ष 2030 तक ग्लोबल ब्लू इकोनॉमी के 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की संभावना के साथ, भारत का समुद्री क्षेत्र विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में देश के उदय में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की ओर अग्रसर है।

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भारत के समुद्री क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पत्तन की क्षमता: भारत के बंदरगाहों की माल की बढ़ती मात्रा का वहन करने की क्षमता सीमित है। 
    • पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अनुसार 13 प्रमुख पत्तन और 200 से अधिक अप्रमुख पत्तन होने के बावजूद, इनमें से कई पोत की परिचालन क्षमता पूरी या उसके निकट है, जिसके कारण संकुलन और देरी की समस्या हो रही है।
  • जटिल विनियमन: समुद्री क्षेत्र को नौवहन महानिदेशालय, समुद्री राज्य विकास परिषद और संयुक्त राष्ट्र समुद्री विधि अभिसमय (UNCLOS) जैसे निकायों द्वारा क्रियान्वित किये गए विनियमनों के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे परिचालन दक्षता में बाधा उत्पन्न होती है।
    • इसके समक्ष विद्यमान चुनौतियों में अवैध मत्स्यन, संसाधनों का असंतुलित दोहन, तथा समुद्री आवासों और जैवविविधता की रक्षा के लिये बेहतर विनियामक कार्यान्वयन की आवश्यकता शामिल है।
  • नौसेना विस्तार और स्वदेशीकरण: हालाँकि भारत का लक्ष्य वर्ष 2035 तक नौसेना में 175 जहाज़ शामिल करने का है किंतु इसके निर्माण की गति, विशेष रूप से चीन के तेजी से जहाज निर्माण की तुलना में, और सीमित बजट रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।
    • प्रोजेक्ट 75-I जैसी परियोजनाओं में देरी तथा स्वदेशी परमाणु हमलावर पनडुब्बियों की आवश्यकता के साथ भारत में पनडुब्बियों की कमी है।
  • तटीय सुरक्षा: भारत की विशाल तटरेखा आतंकवादी संगठन विस्फोटक हथियारों के आवागमन और मादक पदार्थों की तस्करी प्रति संवेदनशील है। 
    • उल्लेखनीय मामलों में वर्ष 1993 के मुंबई विस्फोट और 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले शामिल हैं, जो महत्त्वपूर्ण सुरक्षा खामियों को उजागर करते हैं।

समुद्री क्षेत्र से संबंधित भारत की पहल:

आगे की राह:

  • समुद्री पर्यटन को बढ़ावा देना: पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत तटीय सर्किटों के विकास जैसी तटीय पर्यटन पहलों को विकसित करने से सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाया जा सकता है।
    • भारत आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये सतत् समुद्री संसाधनों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करके अपनी नीली अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहा है। 
  • कौशल विकास को बढ़ावा देना: समुद्री कौशल में प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करने से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाया जा सकता है तथा रोज़गार के अवसर उत्पन्न किये जा सकते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संस्थाओं के साथ सहयोग करने से ज्ञान हस्तांतरण और नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • हरित नौवहन प्रथाएँ: भारत सतत् समुद्री परिचालन के लिये समर्पित है, जिसका उदाहरण ग्रीन टग ट्रांज़िशन प्रोग्राम और प्रमुख बंदरगाहों पर ग्रीन हाइड्रोजन हब हैं।
  • स्मार्ट बंदरगाहों और पर्यावरण अनुकूल टगबोटों का विकास भारत के समुद्री दृष्टिकोण के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिससे दक्षता बढ़ेगी और उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: क्षमता एवं दक्षता को बढ़ाने के लिये बंदरगाहों और शिपिंग बुनियादी ढाँचे को उन्नत बनाने हेतु निवेश करना, साथ ही व्यापार को बढ़ाने के लिये तटीय क्षेत्रों और अंतर्देशीय बाज़ारों के बीच संपर्क में सुधार करना चाहिये।
    • दूरदर्शी सागरमाला कार्यक्रम बंदरगाहों को औद्योगिक समूहों के साथ एकीकृत कर रसद नेटवर्क को अनुकूलित करता है, तथा व्यापक तटीय विकास को बढ़ावा देता है।
  •  नीतिगत रूपरेखा: एकीकृत नीतियाँ तैयार करना जो समुद्री विरासत के संरक्षण को आर्थिक विकास उद्देश्यों के साथ जोड़ती हैं, साथ ही वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों और समझौतों का अनुपालन सुनिश्चित करती हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: भारत समुद्री विरासत सम्मेलन, 2024 में उजागर की गई भारत की समुद्री विरासत के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

 Q.1 निम्नलिखित में से कौन सा प्राचीन शहर बांधों की एक शृंखला बनाकर और उससे जुड़े जलाशयों में पानी को प्रवाहित करके जल संचयन और प्रबंधन की विस्तृत प्रणाली के लिये जाना जाता है?  (वर्ष 2021)

 (A) धोलावीरा
(B) कालीबंगन
(C) राखीगढ़ी
(D) रोपड़

 उत्तर: (A)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सिंधु सभ्यता के लोगों की विशेषता/विशेषताएँ है/हैं? (2013)

  1. उनके पास बड़े-बड़े महल और मंदिर थे।
  2.  वे देवी और देवताओं दोनों की पूजा करते थे।
  3.  उन्होंने युद्ध में घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथों का उपयोग किया।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही विकल्प चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त कोई भी कथन सही नहीं है

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा हड़प्पा स्थल नहीं है? (2019)

(a) चन्हुदड़ो
(b) कोट दिजी
(c) सोहगौरा
(d) देसलपुर

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न: दक्षिण चीन सागर के मामले 'में, समुद्री भूभागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करतें हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014)


सामाजिक न्याय

युवाओं में मादक पदार्थों का बढ़ता दुरुपयोग

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC), विश्व ड्रग रिपोर्ट 2024, कैनबिस, NDPC अधिनियम, NCB, मादक पदार्थों के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष, मादक पदार्थों की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना

मेन्स के लिये:

नशीली दवा: चुनौतियाँ, पहल, मादक पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या और संबंधित पहल।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने युवाओं में बढ़ती मादक पदार्थों की लत पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे एक पीढ़ीगत खतरा बताया है।

  • यह चिंता पाकिस्तान से जुड़े हेरोइन तस्करी मामले में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) की जाँच का समर्थन करने वाले फैसले के दौरान सामने आई।
  • न्यायालय ने मादक पदार्थों के दुरुपयोग के बढ़ते खतरे से निपटने के लिये परिवारों, समाज और राज्य प्राधिकारियों की ओर से तत्काल सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

विश्व में मादक पदार्थों के दुरुपयोग की स्थिति क्या है?

वैश्विक परिदृश्य:

  •  संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (UNODC) द्वारा जारी विश्व मादक पदार्थ रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, वैश्विक मादक पदार्थ उपयोग करने वाले लोगों की संख्या 292 मिलियन तक पहुँच गई है, जो पिछले दशक की तुलना में 20% की वृद्धि को दर्शाता है।
  • मादक पदार्थों की प्राथमिकताएँ: कैनबिस सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली दवा (228 मिलियन उपयोगकर्त्ता) है, इसके बाद ओपिओइड (60 मिलियन), ऐम्फिटेमिन (30 मिलियन), कोकीन (23 मिलियन) और एक्स्टसी (20 मिलियन) हैं।
  • उभरते खतरे: रिपोर्ट में सिंथेटिक ओपिओइड के एक नए वर्ग, नेटिज़ेंस को एक महत्त्वपूर्ण खतरे के रूप में चिह्नित किया गया है, जो फेंटेनाइल से भी अधिक शक्तिशाली है, जो विशेष रूप से उच्च आय वाले देशों में ओवरडोज से होने वाली मौतों में वृद्धि में योगदान देता है।
    • फेंटेनाइल एक ओपिओइड दवा है जिसका उपयोग एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) और एनेस्थेटिक के रूप में किया जाता है
    • उपचार अंतराल: 64 मिलियन मादक पदार्थों के उपयोग संबंधी विकारों वाले 11 में से केवल 1 व्यक्ति को ही उपचार मिलता है।
    • महिलाओं को अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, मादक पदार्थों के उपयोग से संबंधित विकारों से पीड़ित 18 में से केवल 1 महिला, जबकि 7 में से 1 पुरुष को ही उपचार मिल पाता है।

भारत में मादक पदार्थों का प्रचलन:

  • मादक पदार्थों की लत:
    • मादक पदार्थों की लत बढ़ रही है, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के अनुसार भारत में लगभग 100 मिलियन लोग विभिन्न नशीले पदार्थों से प्रभावित हैं।
      • उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में वर्ष 2019 और 2021 के बीच नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत सबसे अधिक FIR दर्ज की गईं।
    • ऐल्कहॉलिज़म एक दीर्घकालिक बीमारी है जिसके कारण लोगों को शराब पीने की तीव्र इच्छा होती है और वे शराब पीने पर नियंत्रण नहीं रख पाते।
    • भांग: लगभग 3.1 करोड़ लोग (2.8%) भांग का सेवन करते हैं, जिनमें से 72 लाख (0.66%) भांग से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
    • ओपिओइड का उपयोग: 2.06% जनसंख्या ओपिओइड का उपयोग करती है, और लगभग 0.55% (60 लाख) को ओपिओइड निर्भरता के लिये उपचार सेवाओं की आवश्यकता है।
    • सीडेटिव: 1.18 करोड़ (1.08%) व्यक्ति गैर-चिकित्सीय प्रयोजनों के लिये सीडेटिव का उपयोग करते हैं।
    • इनहेलेंट: इनहेलेंट का दुरुपयोग 1.7% बच्चों और किशोरों को प्रभावित करता है, जो वयस्कों में 0.58% की व्यापकता से काफी अधिक है। लगभग 18 लाख बच्चों को इनहेलेंट के दुरुपयोग की रोकथाम हेतु सहायता की आवश्यकता है।
    • इंजेक्शन द्वारा मादक द्रव्यों का प्रयोग: लगभग 8.5 लाख लोग मादक द्रव्यों का इंजेक्शन द्वारा प्रयोग करते हैं, जिन्हें पीपुल हू इंजेक्ट ड्रग्स (PWID) कहा जाता है।
    • शराब: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के भारत में मादक द्रव्यों के सेवन की सीमा और पैटर्न पर 2019 के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, 10 से 75 वर्ष की आयु के 16 करोड़ लोग (14.6%) वर्तमान में शराब का सेवन करते हैं। उनमें से 5.2% शराब पर निर्भरता से पीड़ित (ऐल्कहॉलिज़म) हैं।

प्रमुख मादक द्रव्य उत्पादक क्षेत्र:

  • गोल्डन क्रीसेंट: अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान से मिलकर बना यह क्षेत्र अफीम उत्पादन का प्राथमिक केंद्र बना हुआ है, जिसका प्रभाव जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे भारतीय राज्यों पर पड़ता है।
  • गोल्डन ट्राएंगल: लाओस, म्याँमार और थाईलैंड के इंटरसेक्शन पर स्थित यह क्षेत्र हेरोइन उत्पादन के लिये जाना जाता है जिसमें म्याँमार का विश्व के कुल हेरोइन उत्पादन में 80% का योगदान है। इसकी तस्करी के मार्ग लाओस, वियतनाम, थाईलैंड और भारत से होकर गुज़रते हैं।

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मादक द्रव्य और पदार्थ के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

प्रकार

अभिलक्षण 

उत्तेजक

  • उत्तेजक पदार्थ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करते हैं, जिससे सतर्कता और शारीरिक सक्रियता में वर्द्धन होता है। इनके कारण मूड स्विंग, अनिद्रा, अनियमित हृदय स्‍पंद और चिंता जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। 
  • उदाहरण: कोकीन, क्रैक, एम्फेटामाइन्स, तथा एमाइल या ब्यूटाइल नाइट्राइट्स जैसे इनहेलेंट्स।

अवसादक:

  • मद्य, बार्बिटुरेट्स और ट्रैंक्विलाइज़र जैसे अवसादक पदार्थ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को मंद कर देते हैं, जिससे शरीर शिथिल हो जाता है। 
  • मद्य के दुरुपयोग से बोलने में कठिनाई, स्मृति-लोप तथा गंभीर मामलों में अचेतनता या मृत्यु हो सकती है। 
  • उदाहरण: बार्बिटुरेट्स और ट्रैंक्विलाइज़र

हैलुसिनोजन

  • हैलुसिनोजन के उपयोग से मनुष्य की अनुभूति में परिवर्तन आता है, जिससे भावनात्मक उतार-चढ़ाव, व्यामोह, भ्रम और उलझन जैसी समस्याएँ होती हैं। हालाँकि ये शारीरिक रूप से व्यसनकारी नहीं हैं, लेकिन वे स्थायी मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुँचा सकती हैं।
  • उदाहरण: LSD, एक्स्टसी, साइलोसाइबिन (मैजिक मशरूम)।

वियोजनी औषधियाँ

  • वियोजनी औषधियाँ के उपयोग से शरीर और परिवेश से अलगाव की अनुभूति होती है जिससे गतिक कार्य बाधित होते हैं और भ्रम उत्पन्न होता है। 
  • उदाहरण: केटामाइन, डीएक्सएम (डेक्सट्रोमेथॉरफन).

ओपियोइड

  • ये अत्यधिक व्यसनकारी हैं और दर्द से राहत एवं सुखाभास में मदद करती हैं। 
  • उदाहरण: हेरोइन, अफीम, औषधीय दर्द निवारक (जैसे, कोडीन, मॉर्फिन)।

इनहेलेंट

  • इनहेलेंट से सिरदर्द, मतली, समन्वय लोप और गंभीर मामलों में श्वासरोध या मौत हो सकती है। उदाहरण: गैसोलीन, पेंट थिनर, एमाइल नाइट्राइट।

कैनबिस

  • Cannabis sativa पौधे से प्राप्त कैनाबिस का उपयोग प्रायः मारिजुआना, हशीश और हैश ऑयल जैसे रूपों में किया जाता है। 
  • इसका दुरुपयोग स्मृति, एकाग्रता को कम करता है और व्यामोह, व्यसन एवं दीर्घकालिक संज्ञानात्मक समस्याएँ हो सकती हैं। उदाहरण: मारिजुआना, हशीश, हैश ऑयल।

भारत में किन कारणों से मादक द्रव्यों का दुरुपयोग बढ़ रहा है?

  • साथियों का प्रभाव: दोस्तों के साथ घुलने-मिलने, विशेष रूप से हाई स्कूल और कॉलेज में, और सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करने की इच्छा से प्रायः मादक द्रव्यों का सेवन शुरू किया जाता है।
  • शैक्षणिक तनाव और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ: शैक्षणिक रूप से उत्कृष्टता प्राप्त करने का दबाव, उच्च प्रतिस्पर्द्धा के साथ मिलकर तनाव, चिंता और अवसाद का कारण बन सकता है। 
    • कुछ युवा इन दबावों से निपटने के लिये मादक द्रव्यों का उपयोग करते हैं।
  • सांस्कृतिक मानदंड और मीडिया का प्रभाव: मीडिया, फिल्मों और संगीत में मादक द्रव्यों के उपयोग को बढ़ावा देने से प्रायः युवा वर्ग के बीच मादक द्रव्यों के सेवन को सामान्य बना दिया जाता है, जिससे यह प्रचलन में आ जाता है या स्वीकार्य हो जाता है।
    • मादक पदार्थों के दुरुपयोग से निपटने में राज्य प्राधिकारियों और स्थानीय सरकारों की सीमित भूमिका से भारत में मादक पदार्थों का उपयोग बढ़ा है।
  • सामाजिक-आर्थिक कारक: गरीबी, बेरोज़गारी, शैक्षिक और मनोरंजक संसाधनों तक सीमित पहुँच के कारण मादक द्रव्यों के सेवन की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि युवा लोग बचने या इससे निपटने के लिये मादक पदार्थों का सहारा लेते हैं।
  • पारिवारिक वातावरण: अव्यवस्थित पारिवारिक गतिशीलता, माता-पिता द्वारा मादक द्रव्यों के सेवन का दुरुपयोग, तथा भावनात्मक समर्थन का अभाव प्रायः युवाओं में मादक पदार्थों के उपयोग की उच्च दर से संबंधित हैं। 
    • एक सहायक पारिवारिक वातावरण इन जोखिमों को कम कर सकता है।
  • विधिक व्यवस्था की खामियाँ: संगठित अपराध गिरोह विधिक व्यवस्था की खामियों का फायदा उठाते हैं, जैसे कि कमज़ोर सीमा नियंत्रण, ताकि वे मादक पदार्थ की तस्करी कर सकें। ये प्रायः अफ्रीका और दक्षिण एशिया से व्यापार मार्गों का दुरुपयोग करके मादक पदार्थ की तस्करी करते हैं। 
    • वर्ष 2023 में सीमा सुरक्षा बल ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर मादक पदार्थों की ज़ब्ती में 35% की वृद्धि की सूचना दी है, जो इन मार्गों के माध्यम से अवैध मादक पदार्थों के प्रवाह को नियंत्रित करने में चल रही चुनौतियों पर प्रकाश डालता है।
  • आसान उपलब्धता: मादक पदार्थों की आसान उपलब्धता, विशेषकर पंजाब में, व्यापक दुरुपयोग को जन्म देती है। 
    • पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) के वर्ष 2022 के अध्ययन के अनुसार पंजाब की लगभग 15.4% आबादी मादक पदार्थों का उपयोग करती है, और 3 मिलियन से अधिक लोग इससे प्रभावित हैं।
  • सख्त कानूनों का भय: NDPS अधिनियम जैसे सख्त कानून अभियोजन के भय से परिवारों को मादक पदार्थों के दुरुपयोग का खुलासा करने से हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे पुनर्वास के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 
    • इससे न केवल व्यक्तियों को सहायता लेने से रोका जाता है, बल्कि अवैध पदार्थों आपूर्ति शृंखला को भी जारी रहने दिया जाता है, जिससे भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग में वृद्धि होती है।

भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग से निपटने के लिये सरकार के क्या उपाय हैं?

  • विधायी उपाय:
  • संस्थागत उपाय:
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA): यह भारत में केंद्रीय आतंकवाद विरोधी कानून प्रवर्तन एजेंसी है।
      • यह मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेषकर जब इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता शामिल हो। 
      • यह अंतर-राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों वाले मामलों की जाँच करता है, जिसमें आतंकवाद से जुड़े मादक पदार्थों की तस्करी नेटवर्क, हथियारों की तस्करी और सीमापार से घुसपैठ शामिल हैं। 
      • यह अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थ व्यापार को बाधित करने, अवैध शिपमेंट को ज़ब्त करने और तस्करी में शामिल संगठित आपराधिक सिंडिकेट को नष्ट करने के लिये अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय करता है।
    • राष्ट्रीय नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो (NCB): 
      • NCB भारत की एक नोडल ड्रग कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसी है। यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय करती है, और सार्क ड्रग अपराध निगरानी डेस्क (SDOMD) जैसी पहलों में भाग लेती है।
    • अन्य प्रवर्तन एजेंसियाँ: राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI), सीमा शुल्क विभाग और विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ मादक पदार्थों की तस्करी पर अंकुश लगाने के लिये मिलकर काम करती हैं।
  • निवारक और पुनर्वास उपाय:
    • मादक पदार्थों की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPDDR): NAPDDR योजना जागरूकता अभियानों, क्षमता निर्माण कार्यक्रमों, नशामुक्ति और पुनर्वास सेवाओं के माध्यम से मादक पदार्थों की मांग को कम करने पर केंद्रित है।
    • नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA): NMBA को विशेष रूप से स्कूली बच्चों के बीच मादक पदार्थों के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये शुरू किया गया था।
    • निदान और NCORD पोर्टल: निदान और NCORD पोर्टल ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हैं, जो मादक पदार्थों के अपराधियों का विस्तृत डेटाबेस बनाए रखते हैं, और मादक पदार्थों से संबंधित अपराधों और प्रवृत्तियों पर नज़र रखने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता करते हैं।
  • विशिष्ट पहल:
    • प्रोजेक्ट सनराइज (वर्ष 2016): 
      • प्रोजेक्ट सनराइज पूर्वोत्तर राज्यों में मादक पदार्थों का इंजेक्शन लेने वाले लोगों में HIV के बढ़ते प्रसार की समस्या से निपट रहा है। 
    • नशा मुक्त भारत: 
      • नशा मुक्त भारत एक राष्ट्रव्यापी अभियान है, जो मादक पदार्थों के उपयोग और इसके सामाजिक परिणामों को रोकने के लिये सामुदायिक पहुँच पर केंद्रित है।
    • ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (SIMS): 
    • नशामुक्ति केंद्र: 
      • AIIMS में राष्ट्रीय नशा निर्भरता उपचार केंद्र (NDDTC) जैसी संस्थाओं के साथ राज्य द्वारा संचालित केंद्र (जो नशे के आदी लोगों के लिये परामर्श, चिकित्सा उपचार और सामाजिक पुनः एकीकरण की सुविधा प्रदान करते हैं) स्थापित किये गए हैं।

आगे की राह

  • वर्तमान कानूनों को मज़बूत करना: बेहतर प्रशिक्षण, संसाधनों एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से NDPS तथा PITNDPS अधिनियमों के कार्यान्वयन को मज़बूत बनाना चाहिये।
    • दंडात्मक उपायों के साथ-साथ पुनर्वास को एकीकृत करने, प्रवर्तन को मज़बूत करने एवं स्थानीय, राज्य तथा केंद्रीय अधिकारियों के बीच समन्वय में सुधार करने के लिये NDPS अधिनियम पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। 
  • एकीकृत नीति दृष्टिकोण: सरकार को एकीकृत नीतियाँ विकसित करनी चाहिये जिससे मादक पदार्थों के दुरुपयोग के मूल कारणों को हल किया जा सके जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्र शामिल हों। 
    • दवा प्रवृत्तियों एवं हस्तक्षेप कार्यक्रमों की प्रभावशीलता पर नजर रखने के लिये निरंतर अनुसंधान आवश्यक है, जिससे डेटा-आधारित नीति समायोजन संभव हो सके।
  • नशामुक्ति केंद्र और शिविर: ज़िला स्तर पर नशामुक्ति केंद्रों की स्थापना के साथ सरकारी एजेंसियों द्वारा पुनर्वास शिविरों के आयोजन से प्रभावित व्यक्तियों को सहायता मिल सकती है। 
    • दीर्घकालिक सुधार के साथ बीमारी के दोबारा होने की रोकथाम के लिये देखभाल के बाद परामर्श एवं पुनर्वास प्रयास आवश्यक हैं।
  • शिक्षा एवं जागरूकता: स्कूलों को अपने पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों के सेवन के बारे में शिक्षा को शामिल करना चाहिये तथा विद्यार्थियों को छोटी उम्र से ही मादक पदार्थों के सेवन के जोखिम एवं परिणामों के बारे में बताना चाहिये।
    • नागरिक समाज एवं धार्मिक नेता स्कूलों तथा समुदायों में जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से मादक पदार्थों के दुरुपयोग को रोकने, स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा देने तथा एथलीटों एवं अभिनेताओं जैसे रोल मॉडल को शामिल करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: प्रभावी सूचना साझाकरण एवं तस्करी विरोधी उपायों के लिये पड़ोसी देशों तथा UNODC और इंटरपोल जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: मादक पदार्थों की तस्करी के नेटवर्क पर नज़र रखने तथा अवैध मादक पदार्थों के उत्पादन वाले क्षेत्रों की निगरानी करने के लिये AI, बिग डेटा एवं ड्रोन का उपयोग करना चाहिये। मादक पदार्थों से संबंधित गतिविधियों के लिये ऑनलाइन रिपोर्टिंग सिस्टम स्थापित करना चाहिये।

निष्कर्ष

संविधान के अनुच्छेद 47 में लोक स्वास्थ्य में सुधार के क्रम में हानिकारक पदार्थों के निषेध का आह्वान किया गया है। मादक पदार्थों के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये भारत को मज़बूत विनियमन एवं उन्नत विधिक तंत्र के साथ राज्यों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। इसके साथ ही इसकी रोकथाम, इसमें शामिल लोगों के पुनर्वास तथा सख्त प्रवर्तन पर केंद्रित एक व्यापक राष्ट्रीय नीति तैयार करना आवश्यक है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग के मुद्दे पर चर्चा कीजिये। मादक पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या से निपटने हेतु कुछ उपाय बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

1. भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन [यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट करप्शन (UNCAC)] का ‘भूमि, समुद्र और वायुमार्ग से प्रवासियों की तस्करी के विरुद्ध एक प्रोटोकॉल’ होता है।
2. UNCAC अब तक का सबसे पहला विधित: बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार-निरोधी लिखत है।
3. राष्ट्र-पार संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन [यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनैशनल ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम (UNTOC)] की एक विशिष्टता ऐसे एक विशिष्ट अध्याय का समावेशन है, जिसका लक्ष्य उन संपत्तियों को उनके वैध स्वामियों को लौटाना है जिनसे वे अवैध तरीके से ले ली गई थीं।
4. मादक द्रव्य और अपराध विषयक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय [यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC)] संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा UNCAC और UNTOC दोनों के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिये अधिदेशित है।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स

Q. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उगाने वाले राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। मादक पदार्थों के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018)


कृषि

किसानों के कल्याण में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति, अनुदान की मांगें, न्यूनतम समर्थन मूल्य, पीएम-किसान योजना, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, कृषि श्रमिकों के जीवन निर्वाह हेतु न्यूनतम मज़दूरी पर राष्ट्रीय आयोग, खाद्य सुरक्षा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, नाबार्ड, लोकसभा में प्रक्रिया और व्यवसाय संचालन के नियम, मनरेगा, एमएस स्वामीनाथन आयोग

मेन्स के लिये:

कृषि संकट: कारण, प्रभाव और आगे की राह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में कृषि, पशुपालन एवं खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति (PSC) ने 18वीं लोकसभा में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की अनुदान मांगों (2024-25) पर अपनी पहली प्रस्तुत की है।

  • इसके द्वारा किसानों के कल्याण में सुधार के क्रम में कई सिफारिशें की गईं।

PSC द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • MSP की विधिक गारंटी: इसने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की विधिक गारंटी प्रदान करने की सिफारिश की।
    • MSP के विधिक कार्यान्वयन हेतु एक रोडमैप विकसित करने के साथ यह सुनिश्चित करने पर बल दिया कि केंद्र सरकार सुचारु परिवर्तन के लिये वित्तीय योजना बनाए।
    • सरकार द्वारा संसद में फसल-पश्चात ऐसा विवरण प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसमें MSP पर फसल बेचने वाले किसानों की संख्या तथा MSP और बाज़ार मूल्य के बीच अंतर का विवरण हो।
  • धान अपशिष्ट प्रबंधन: पराली जलाने से रोकने के लिये फसल अवशेषों के प्रबंधन एवं निपटान के लिये किसानों को मुआवज़ा प्रदान करना चाहिये।
    • पंजाब के उस प्रस्ताव पर विचार किया जाए जिसमें प्रति एकड़ 2,000 रुपए का बोनस (जिसे केंद्र और राज्य सरकार द्वारा मिलकर दिया जाएगा) देने का प्रावधान है।
  • पीएम-किसान योजना को बढ़ावा देना: पीएम-किसान योजना के अंतर्गत वार्षिक वित्तीय सहायता को 6,000 रुपए से बढ़ाकर 12,000 रुपए किया जाए।
    • इसे बँटाईदार किसानों एवं कृषि श्रमिकों तक भी बढ़ाया जा सकता है।
  • ऋण राहत: बढ़ते ऋण संकट के साथ आत्महत्याओं को कम करने के लिये किसानों तथा कृषि श्रमिकों के लिये ऋण माफी योजना शुरू की जाए।
    • ग्रामीण परिवारों में ऋण पर बढ़ती निर्भरता और बढ़ते बकाया ऋणों पर बारीकी से नज़र रखना।
  • बजटीय आवंटन: इसमें कुल केंद्रीय योजना के प्रतिशत के रूप में कृषि के लिये बजटीय आवंटन में निरंतर गिरावट की ओर इशारा किया गया है।
    • वर्ष 2021-22 से 2024-25 तक उच्च आवंटन के बावजूद, केंद्रीय योजना परिव्यय हिस्सा वर्ष 2020-21 में 3.53% से घटकर वर्ष 2024-25 में 2.54% हो गया।
  • सार्वभौमिक फसल बीमा: समिति ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) स्वास्थ्य बीमा योजना  के अनुरूप 2 एकड़ तक के छोटे किसानों के लिये अनिवार्य फसल बीमा का प्रस्ताव रखा है।
  • राष्ट्रीय कृषि मज़दूर आयोग: कृषि मज़दूरों के अधिकारों और कल्याण के लिये न्यूनतम जीवन निर्वाह मज़दूरी हेतु राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की जाएगी।
  • विभाग का नाम बदलना: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का नाम बदलकर कृषि, किसान और खेत मज़दूर कल्याण विभाग रखना ताकि कृषि मज़दूरों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।

नोट: उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने इस दावे को खारिज कर दिया कि उच्च MSP से मुद्रास्फीति बढ़ेगी, उन्होंने कहा, "हम किसानों को जो भी मूल्य देंगे, राष्ट्र को बिना किसी संदेह के पाँच गुना अधिक लाभ होगा।"

कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति

  • परिचय: कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर संसदीय स्थायी समिति संसद को कृषि, पशुपालन तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों से संबंधित नीतियों, कानूनों एवं मुद्दों की समीक्षा व  देख-रेख में सहायता करती है।
    • इसका गठन लोक सभा के प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 331C के अंतर्गत किया गया है।
  • अधिकार क्षेत्र: इसे भारत सरकार के निम्नलिखित मंत्रालयों/विभागों के कामकाज की जाँच और निगरानी का कार्य सौंपा गया है: 
    • कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
      • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग 
      • कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग
    • मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय 
      • पशुपालन और डेयरी विभाग 
      • मत्स्य विभाग
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय 
    • सहकारिता मंत्रालय  
  • संरचना: इसमें कुल 31 सदस्य होते हैं, जिसमे से लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित 21 सदस्य लोकसभा से तथा सभापति द्वारा नामित 10 राज्य सभा से होते हैं।
    • समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा समिति के सदस्यों में से की जाती है।
  • सदस्यों का कार्यकाल: समिति के सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष से अधिक नहीं होता है।

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किसानों के कल्याण पर PSC की सिफारिशों का क्या महत्त्व है?

  • वित्तीय स्थिरता: कानूनी रूप से बाध्यकारी MSP से किसानों के लिये वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित होगी, आत्महत्याओं में कमी आएगी, बाज़ार में अस्थिरता कम होगी, ऋण का बोझ कम होगा तथा किसानों के समग्र मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होगा।
  • खाद्य सुरक्षा: कानूनी रूप से गारंटीकृत MSP व्यापक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के साथ संरेखित है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि खाद्यान्न स्थिर मूल्यों पर उपलब्ध हों, जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सहायता मिलती है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता: पराली जलाने से निपटने के लिये उपकरण खरीदने हेतु किसानों को मुआवज़ा प्रदान करने से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • फसल अवशेष जलाने से उत्तरी भारत में शीतकाल में वायु प्रदूषण और भी बदतर हो जाता है, क्योंकि कई किसान प्रभावी फसल अवशेष प्रबंधन उपकरण खरीदने में असमर्थ हैं।
  • कल्याण में समावेशिता: कृषि विभाग का नाम बदलकर इसमें "कृषि मज़दूरों" को शामिल करना, न केवल भूमि-स्वामी किसानों बल्कि कृषि में समस्त हितधारकों के कल्याण पर व्यापक ध्यान को दर्शाता है।

अनुदान की मांगें

  • संवैधानिक आधार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-113 में यह प्रावधान है कि भारत की संचित निधि पर प्रभारित व्ययों को छोड़कर, भारत की संचित निधि से व्यय अनुमानों को अनुदानों की मांग के रूप में लोकसभा में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।
  • प्रभारित व्यय सूचनात्मक प्रयोजन के लिये प्रस्तुत किये जाते हैं, लेकिन उन पर मतदान नहीं होता।
  • उद्देश्य: विभिन्न सेवाओं पर व्यय के लिये अनुदानों की मांगों को लोकसभा द्वारा अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें राजस्व और पूंजीगत खाते (ऋण सहित) दोनों शामिल होते हैं।
  • प्रत्येक मंत्रालय/विभाग के लिये एक मांग: सामान्यतः प्रत्येक मंत्रालय/विभाग द्वारा एक मांग प्रस्तुत की जाती है।
    • हालाँकि, बड़े मंत्रालयों/विभागों के लिये एक से अधिक मांगें प्रस्तुत की जा सकती हैं।
  • भारित व्यय का समावेशन: यदि व्यय का कोई भाग संचित निधि पर 'भारित' है, तो उसे अनुदानों की मांग में स्पष्ट रूप से इटैलिक में दर्शाया जाता है। 
    • हालाँकि, इस भाग पर मतदान नहीं होता है।

किसानों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • MSP का अधूरा वादा: किसान उत्पादन की व्यापक लागत (C2+50%) का 1.5 गुना वैधानिक MSP की मांग कर रहे हैं, जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है।
    • अनुशंसित दर पर MSP की गारंटी के बिना, किसानों को वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे संकट और आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं।
  • उत्पादन की बढ़ती लागत: उर्वरकों, बीजों, कीटनाशकों, डीजल, पानी और बिज़ली की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिससे किसानों की लाभप्रदता पर दबाव पड़ रहा है।
  • ऋण बोझ: वर्ष 2022-23 की नाबार्ड ग्रामीण वित्तीय समावेशन के अनुसार ऋण लेने वाले ग्रामीण परिवारों का प्रतिशत 2016-17 में 47.4% था जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 52% हो गया।
    • इओसके साथ ही ग्रामीण परिवारों की आय में 57.6% (2016-22) की वृद्धि हुई लेकिन व्यय में 69.4% की वृद्धि हुई, जो दर्शाता है कि आय वृद्धि से अधिक व्यय में बढ़ोतरी हुई। 
  • सार्वजनिक निवेश में कमी: सिंचाई और बिजली में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में कटौती के कारण लागत में वृद्धि हुई है और परियोजनाएँ अधूरी रह गईं, जिससे किसानों की सिंचाई और वहनीय बिजली की पहुँच में बाधा उत्पन्न हो रही है।
    • इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) से किसानों की आवश्यकताओं की पर्याप्त रूप पूर्ति नहीं हो पाई है तथा कई राज्यों ने इससे अलग होने का निर्णय लिया है, क्योंकि कथित तौर पर यह किसानों की बजाय बीमा कम्पनियों को लाभ पहुँचाने पर केंद्रित है।
  • कृषि विकास में गिरावट: 2023-24 में कृषि की विकास दर (अनंतिम अनुमान) घटकर 1.4% रह गई, जो गत सात वर्षों में सबसे कम है जबकि गत चार वर्षों में औसत वार्षिक विकास दर 4.18% रही थी।
  • मनरेगा के लिये अपर्याप्त धनराशि: वर्तमान सरकार की मनरेगा के लिये अपर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने की आलोचना की गई है, जिसके कारण कार्य दिवसों की संख्या घटकर मात्र 42 रह गई है।
    • कृषीतर ऋतुओं के दौरान मनरेगा कार्य की अनुपलब्धता किसानों की आजीविका के लिये खतरा बन जाती है।
  • भूमि अधिग्रहण: "भूमि का स्वामित्व किसान के पास" से "भूमि का स्वामित्व कॉर्पोरेट के पास" की ओर स्थानांतरित होने को लेकर चिंता बढ़ रही है, जो भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 का उल्लंघन है।
    • खनन एवं अन्य उद्देश्यों के लिये जनजातीय समुदायों से बिना किसी प्रतिकर के उनकी भूमि पर अधिग्रहण किया जा रहा है।

आगे की राह 

  • C2+50% पर सांविधिक MSP: सरकार को एम.एस. स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित C2+50% पर सांविधिक MSP लागू करने के लिये स्पष्ट प्रतिबद्धता व्यक्त करनी चाहिये।
  • एकमुश्त ऋण संबंधी छूट: एकमुश्त ऋण अधित्यजन से किसानों को तत्काल राहत मिलेगी, आत्महत्याओं की रोकथाम होगी तथा कृषि में पुनर्निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
  • फसल बीमा में सुधार: नियमित सूखा, बाढ़, बेमौसम वर्षा और ओलावृष्टि को देखते हुए, PMFBY से अलग एक व्यापक फसल बीमा योजना होनी चाहिए।
  • मनरेगा का विस्तार: मनरेगा के लिये वित्त पोषण में वृद्धि, कार्यदिवसों की संख्या बढ़ाकर कम से कम 200 करना तथा दैनिक मजदूरी को 600 रुपए करना, ग्रामीण परिवारों को अनुपयुक्त कृषि अवधि के दौरान आय को स्थिर बनाए रखने में मदद करेगा।
  • प्रगतिशील कराधान: कृषि सुधारों के लिये आवश्यक संसाधन जुटाने हेतु आयकर स्लैब में संशोधन किया जाना चाहिये।
  • कृषि नीतियों की समीक्षा: सरकार को किसानों के बजाय कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को संशोधित करना चाहिये तथा किसानों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण समुदायों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

कृषि क्षेत्र में समावेशी विकास सुनिश्चित करने और किसानों की आत्महत्याओं की रोकथाम हेतु आवश्यक प्रमुख नीतिगत परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न.  निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2020)

  1. सभी अनाजों, दालों एवं तिलहनों का ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) पर प्रापण (खरीद) भारत के किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (यू.टी.) में असीमित होता है
  2.  अनाजों एवं दालों का MSP किसी भी राज्य/केंद्र-शासित प्रदेश में उस स्तर पर निर्धारित नहीं किया जाता है जिस स्तर पर बाज़ार मूल्य कभी नहीं पहुँच पाते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2018)

  1.  सुपारी
  2.   जौ
  3.   कॉफ़ी
  4.   रागी
  5.   मूंगफली
  6.   तिल
  7.   हल्दी

उपर्युक्त में से किनके न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने की है?

(a) 1, 2, 3 और 7
(b) केवल 2, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4, 5 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: धान-गेहूँ प्रणाली को सफल बनाने के लिये कौन-से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं? इस सफलता के बावजूद, यह प्रणाली भारत में अभिशाप कैसे बन गई है? (2020)

प्रश्न: न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय फंदे से किस प्रकार बचाव करेगा? (2018)

प्रश्न: राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आर्थिक सहायता व्यवस्था का उसके द्वारा उत्पन्न विकृतियों के संदर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013)


शासन व्यवस्था

वैश्विक आयुध निर्माताओं पर SIPRI की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड, गाज़ा, यूक्रेन, ब्रह्मोस, ASEAN, आकाश वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली, पिनाका, FDI, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) योजना, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), रक्षा औद्योगिक गलियारे

मेन्स के लिये:

भारत के रक्षा क्षेत्र का वैश्विक निष्पादन, भारत के रक्षा निर्यात के विकास चालक

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने विश्व के 100 शीर्ष आयुध निर्माताओं पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की, जिसमें शीर्ष वैश्विक आयुध निर्माताओं में तीन भारतीय कंपनियाँ शामिल हैं।

SIPRI की रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • वैश्विक आयुध राजस्व: विश्व का आयुध राजस्व 2023 में 632 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो युद्धों, क्षेत्रीय तनावों और पुनः शस्त्रीकरण के कारण 4.2% की हुई वृद्धि को दर्शाता है।

Total_Arms_Revenues

Top_Arms_Companies_2023

  • प्रमुख वैश्विक उत्पादक: 
    • अमेरिका: शीर्ष 100 में शामिल 41 अमेरिकी कंपनियों ने वर्ष 2023 में 317 बिलियन अमेरिकी डॉलर कमाए, जो वैश्विक शस्त्र राजस्व का आधा है, तथा शीर्ष पाँच उत्पादक अमेरिकी हैं।
    • चीन: शीर्ष 100 में शामिल नौ चीनी कंपनियों ने वर्ष 2023 में कुल 103 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व दर्ज किया।
    • रूस: जिन दो रूसी कंपनियों के बारे में आँकड़े उपलब्ध थे, उनका शस्त्र राजस्व ऑर्डर और उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के कारण 40% बढ़कर अनुमानतः 25.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

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  • क्षेत्रीय विशेषताएँ: विश्व के सभी क्षेत्रों में शस्त्रों से होने वाले राजस्व में वृद्धि देखी गई, विशेष रूप से रूस और मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) स्थित कंपनियों में तीव्र वृद्धि देखी गई।
  • शस्त्र राजस्व वृद्धि के कारण: गाज़ा और यूक्रेन में युद्ध, पूर्वी एशिया में बढ़ते तनाव और वैश्विक स्तर पर पुनःशस्त्रीकरण कार्यक्रमों के कारण मांग में वृद्धि हुई।
    • संघर्ष क्षेत्रों से बढ़ती मांग को पूरा करने में छोटे हथियार उत्पादक अधिक कुशल थे।
  • वर्ष 2024 के लिये आउटलुक: वर्ष 2023 में शस्त्रों से होने वाले राजस्व में वृद्धि हुई और वर्ष 2024 में इसके बढ़ने की उम्मीद है। कंपनियाँ अधिक भर्ती कर रही हैं, जिससे भविष्य की बिक्री को लेकर उम्मीद की किरण दिखाई दे रहा है।

नोट: शस्त्र राजस्व से तात्पर्य घरेलू और विदेशी सैन्य ग्राहकों को सैन्य वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री से प्राप्त राजस्व से है।

स्टॉकहोम अंतर्राष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान (SIPRI)

  • SIPRI एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो संघर्ष, शस्त्रास्त्र, शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण पर अनुसंधान के लिये समर्पित है। 
  • वर्ष 1966 में स्थापित SIPRI नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया और इच्छुक जनता को खुले स्रोतों पर आधारित डेटा, विश्लेषण और सिफारिशें प्रदान करता है।

भारत के रक्षा निर्यात में प्रमुख उपकरण क्या हैं?

  • ब्रह्मोस मिसाइलें: भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की पहली खेप सौंपी, जिसके लिये उसने तीन तट-आधारित, एंटी-शिप मिसाइल बैटरियों के लिये 375 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा किया था।
    • आसियान देश तथा कुछ खाड़ी देश ब्रह्मोस मिसाइलें हासिल करने में रुचि दिखा रहे हैं।
  • डोर्नियर-228 विमान: भारत विभिन्न देशों को डोर्नियर-228 विमान का निर्यात करता है, जो रक्षा एवं नागरिक अनुप्रयोगों हेतु एक बहुमुखी एवं विश्वसनीय विमान है।
  • सहायक विमान भाग: भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला एवं ऑफसेट प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में बोइंग तथा लॉकहीड मार्टिन जैसे रक्षा क्षेत्र के दिग्गजों को विमान के सहायक उपकरण निर्यात करता है।
  • सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: भारत रक्षा अनुप्रयोगों के लिये फ्राँस को सॉफ्टवेयर एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्यात करता है।
  • 155mm तोपें: भारत आर्मेनिया जैसे देशों को 155mm तोपें निर्यात कर रहा है, जिससे उन्नत तोपखाना प्रणालियों के उत्पादन में इसकी क्षमताओं पर प्रकाश पड़ता है।
  • आकाश मिसाइल प्रणाली: आकाश वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली (जिसमें इसका संस्करण आकाश-1S भी शामिल है) की निर्यात में प्रमुख भूमिका रही है, जिसका आर्मेनिया पहला अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक है। 
  • पिनाका: पिनाका बहु-प्रक्षेपण रॉकेट प्रणालियों के निर्यात में आर्मेनिया प्रमुख खरीदार है।

भारत की उपलब्धियाँ

  • आयुध उत्पादन: भारत का वार्षिक रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 24 में लगभग 1.27 ट्रिलियन रुपए के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो पिछले वर्ष के लगभग 1.09 ट्रिलियन रुपए के आँकड़े से 16.7% अधिक है। 
    • यह दर्शाता है कि भारत के रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा वित्त वर्ष 29 तक 3 ट्रिलियन रुपए के महत्त्वाकांक्षी वार्षिक रक्षा उत्पादन लक्ष्य का 40% से अधिक कवर कर लिया गया है।
  • आयुध उत्पादन का विस्तार: 16 रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों के अतिरिक्त, भारत का रक्षा-औद्योगिक आधार भी 430 से अधिक लाइसेंस प्राप्त कंपनियों तथा 16,000 सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों तक विस्तारित हो गया है।
    • आयुध उत्पादन क्षमता के इस विस्तार में निजी क्षेत्र का योगदान 21% है।
  • निर्यात गंतव्य: वर्तमान में भारत 100 से अधिक देशों को आयुध उपकरण निर्यात करता है। वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात के शीर्ष तीन गंतव्य संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस और आर्मेनिया हैं। 

रक्षा स्वदेशीकरण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भारत की क्या पहल हैं?

  • उदारीकृत FDI नीति: रक्षा क्षेत्र में FDI सीमा को वर्ष 2020 में नए रक्षा औद्योगिक लाइसेंस प्राप्त करने वाली कंपनियों के लिये स्वचालित मार्ग के माध्यम से 74% तक बढ़ा दिया गया तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी तक पहुँच की संभावना वाली कंपनियों के लिये सरकारी मार्ग के माध्यम से 100% तक बढ़ा दिया गया।
  • घरेलू खरीद को प्राथमिकता: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020 के तहत घरेलू स्रोतों से पूंजीगत वस्तुओं की खरीद पर ज़ोर दिया गया है।
  • सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ: 509 वस्तुओं वाली पाँच सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSUs) की 5,012 वस्तुओं वाली पाँच सूचियाँ जारी की गईं, जिनमें निर्दिष्ट समय-सीमा के बाद आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • इसके अतिरिक्त, MSMEs सहित भारतीय उद्योग द्वारा स्वदेशीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिये संयुक्त कार्रवाई के माध्यम से आत्मनिर्भर पहल (सृजन) पोर्टल का शुभारंभ किया गया।
  • iDEX योजना: रक्षा नवाचार में स्टार्टअप्स और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को शामिल करने के लिये रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) योजना शुरू की गई है।
  • सार्वजनिक खरीदी वरीयता: घरेलू निर्माताओं को समर्थन देने के लिये सार्वजनिक खरीदी (मेक इन इंडिया को वरीयता) आदेश 2017 का कार्यान्वयन।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे: रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना।
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को उद्योग और स्टार्टअप के लिये खोल दिया गया है ताकि नवाचार और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।

निष्कर्ष:

भारत के रक्षा क्षेत्र ने स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जिसमें प्रमुख पहलों ने उत्पादन और निर्यात में वृद्धि को बढ़ावा दिया है। वैश्विक स्तर पर हथियारों के राजस्व में वृद्धि, वैश्विक रक्षा बाज़ार में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ, आत्मनिर्भरता और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ाने के उद्देश्य से रणनीतिक नीतियों की सफलता को दर्शाती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:  स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न सरकारी पहलों को सूचीबद्ध कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-सा 'INS अस्त्रधारिणी' का सबसे अच्छा वर्णन है, जो हाल ही में समाचारों में था? (2016)

(a) उभयचर (एम्फिब) युद्ध जहाज़
(b) परमाणु संचालित पनडुब्बी
(c) टारपीडो लॉन्च और रिकवरी पोत
(d) परमाणु संचालित विमान वाहक

उत्तर: (c) 


मेन्स

Q. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)

Q. रक्षा क्षेत्रक में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ.डी.आई.) को अब उदारीकृत करने की तैयारी है। भारत की रक्षा और अर्थव्यवस्था पर अल्पकाल और दीर्घकाल में इसके क्या प्रभाव अपेक्षित हैं? (2014)


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