भारतीय अर्थव्यवस्था
रक्षा औद्योगिक गलियारा
- 24 Sep 2021
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:मेक इन इंडिया, रक्षा औद्योगिक गलियारा, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस मेन्स के लिये:रक्षा औद्योगिक गलियारा : महत्त्व एवं विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने प्रस्तावित उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे के अलीगढ़ नोड के प्रदर्शनी मॉडल का अवलोकन किया।
- इसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में लखनऊ में यूपी इन्वेस्टर्स समिट के उद्घाटन के दौरान की थी।
- सरकार ने तमिलनाडु में एक और रक्षा औद्योगिक गलियारा स्थापित किया है।
प्रमुख बिंदु
- उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारा:
- यह एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जिसका उद्देश्य भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र की विदेशी निर्भरता को कम करना है।
- इसमें 6 नोड्स होंगे- अलीगढ़, आगरा, कानपुर, चित्रकूट, झाँसी और लखनऊ।
- उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (UPEIDA) को राज्य की विभिन्न एजेंसियों के साथ मिलकर इस परियोजना को निष्पादित करने के लिये नोडल एजेंसी बनाया गया था।
- इस कॉरिडोर/गलियारे का उद्देश्य राज्य को सबसे बड़े और उन्नत रक्षा विनिर्माण केंद्रों में से एक के रूप में स्थापित करना एवं विश्व मानचित्र पर लाना है।
- विशेषताएँ:
- निवेश मित्र के माध्यम से रक्षा और एयरोस्पेस (D&A) निर्माण इकाइयों को सिंगल विंडो अनुमोदन और मंज़ूरी देना।
- राज्य में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease Of Doing Business) को सरल बनाने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निवेश मित्र पोर्टल शुरू किया गया है।
- रोज़गार स्थितियों को आसान या लचीला बनाने के उद्देश्य से रक्षा और एयरोस्पेस (D&A) उद्योग के लिये लेबर परमिट।
- प्रोत्साहन और सब्सिडी की आसान प्रतिपूर्ति के साथ-साथ सरल प्रक्रियाएँ और युक्तिसंगत नियामक व्यवस्था।
- सुनिश्चित जल आपूर्ति और निर्बाध बिजली।
- 4-लेन हैवी-ड्यूटी हाईवे के साथ कनेक्टिविटी।
- निवेश मित्र के माध्यम से रक्षा और एयरोस्पेस (D&A) निर्माण इकाइयों को सिंगल विंडो अनुमोदन और मंज़ूरी देना।
- रक्षा गलियारे के लिये उत्तर प्रदेश को चुनने का कारण:
- उत्तर प्रदेश भारत का चौथा सबसे बड़ा राज्य है और देश के भीतर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- 200 मिलियन से अधिक की आबादी के साथ उत्तर प्रदेश में उपलब्ध श्रम बल की संख्या सबसे अधिक है और यह भारत के शीर्ष पाँच विनिर्माण राज्यों में से एक है।
- राज्य देश में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की संख्या के मामले में भी पहले स्थान पर है तथा ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (EoDB) में दूसरे स्थान पर है।
रक्षा गलियारा (Defence Corridor)
- परिचय:
- रक्षा गलियारा एक मार्ग या पथ को संदर्भित करता है जिसका उपयोग सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और एमएसएमई द्वारा रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन के साथ-साथ रक्षा बलों हेतु उपकरण/परिचालन क्षमता को बढ़ाने के लिये किया जाता है।
- महत्त्व:
- इससे रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने और 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी, जिससे हमारा आयात कम होगा और अन्य देशों के लिये इन वस्तुओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- यह प्रौद्योगिकियों के सहक्रियात्मक विकास के माध्यम से रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहन प्रदान करेगा, एमएसएमई और स्टार्ट-अप सहित निजी घरेलू निर्माताओं के विकास को बढ़ावा देगा।
- चुनौतियाँ:
- रक्षा क्षेत्र में तकनीकी विकास:
- प्रौद्योगिकी के विकास में पहली चुनौती उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स सामग्री की है, जो सभी कार्यक्षेत्रों में उर्ध्वाधर कटौती को प्रदर्शित करती है।
- दूसरी चुनौती सामग्री विज्ञान की सापेक्ष अपरिपक्वता है जिसमें हल्की और मज़बूत कृत्रिम सामग्री का उपयोग किया जाता है।
- उद्योग की अपेक्षाओं को पूरा करना:
- उद्योग की अपेक्षाओं को पूरा करना, जो न केवल ठिकानों को स्थापित करने या स्थानांतरित करने के लिये अपने प्रस्तावों की तेज़ी से मंज़ूरी चाहते हैं, बल्कि विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) में कर लाभ, तीव्र निर्णयन आदि कोई अन्य कर लाभ भी सरकार के लिये एक चुनौती है।
- प्राइवेट प्लेयर्स की कम या सीमित भागीदारी:
- सार्वजनिक क्षेत्र में ऑर्डर्स की अधिकता या संकेंद्रण है शायद ही किसी आर्डर को वास्तव में प्राइवेट प्लेयर्स के लिये संरक्षित किया जाता है।
- मानवीय संसाधन:
- प्रतिभाशाली मानव संसाधनों की अनुपलब्धता भी प्रमुख मुद्दों में से एक है।
- रक्षा क्षेत्र में तकनीकी विकास:
तमिलनाडु रक्षा औद्योगिक गलियारा
- इसमें चेन्नई, होसुर, सलेम, कोयंबटूर और तिरुचिरापल्ली शामिल हैं। यह नई रक्षा उत्पादन सुविधाओं का निर्माण करेगा और आवश्यक परीक्षण एवं प्रमाणन सुविधाओं, निर्यात सुविधा केंद्रों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा आदि को बढ़ावा देगा।
- इस कॉरिडोर का उद्घाटन वर्ष 2019 में हुआ था।
आगे की राह
- इसकी सफलता उद्योगों की समस्याओं का समाधान करने, निवेश आकर्षित करने, रोज़गार सृजन, समकालीन तकनीकों का निर्माण, विनिर्माण क्षेत्र के विकास में सहायता करने और भारत को आत्मनिर्भर बनाने में 'मेक इन इंडिया' की सफलता में निहित है।
- सही बुनियादी ढांँचा, एक जीवंत आपूर्ति शृंखला नेटवर्क, कौशल विकास, पूंजी और व्यवहार्य परियोजनाओं को स्थापित करने हेतु राष्ट्रीय एवं वैश्विक निवेशकों की भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- मौजूदा क्षमता, आवश्यकताओं, प्रौद्योगिकी, पूंजी और बुनियादी ढांँचे के विकास को ध्यान में रखते हुए अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक रोडमैप की पहचान करने की आवश्यकता है। यह अपने आस-पास के सहायक पारिस्थितिक तंत्र के साथ समूहों के विकास में भी मदद करने में सक्षम होगा।