भारतीय अर्थव्यवस्था
विशेष आर्थिक क्षेत्र
- 24 Jul 2021
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चर्चा में क्यों?
विगत तीन वर्षों में निर्यात, निवेश और रोज़गार में प्रदर्शन के मामले में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones- SEZ) ने नई ऊँचाइयों को छुआ है।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- SEZ किसी देश के भीतर ऐसे क्षेत्र हैं जो प्रायः शुल्क मुक्त (राजकोषीय रियायत) होते हैं और यहाँ मुख्य रूप से निवेश को प्रोत्साहित करने तथा रोज़गार पैदा करने के लिये अलग-अलग व्यापार और वाणिज्यिक कानून होते हैं।
- SEZ इन क्षेत्रों को बेहतर ढंग से संचालित करने के लिये भी बनाए गए हैं, जिससे व्यापार करने में आसानी होती है।
भारत में SEZ:
- एशिया का पहला निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (Export Processing Zones- EPZ) वर्ष 1965 में कांडला, गुजरात में स्थापित किया गया था।
- इन EPZs की संरचना SEZ के समान थी, सरकार ने वर्ष 2000 में EPZ की सफलता को सीमित करने वाली ढाँचागत और नौकरशाही चुनौतियों के निवारण के लिये विदेश व्यापार नीति के तहत SEZ की स्थापना शुरू की।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम वर्ष 2005 में पारित किया गया और वर्ष 2006 में SEZ नियमों के साथ लागू हुआ।
- हालाँकि SEZ की स्थापना का कार्य वर्ष 2000 से 2006 तक (विदेश व्यापार नीति के तहत) भारत में चालू था।
- भारत के SEZ को चीन के सफल मॉडल के साथ मिलकर संरचित किया गया था।
- वर्तमान में 379 SEZs अधिसूचित हैं, जिनमें से 265 चालू हैं। लगभग 64% SEZ पाँच राज्यों - तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं।
- अनुमोदन बोर्ड सर्वोच्च निकाय है और इसका नेतृत्व वाणिज्य विभाग (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) के सचिव द्वारा किया जाता है।
- भारत की मौजूदा SEZ नीति का अध्ययन करने के लिये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा बाबा कल्याणी के नेतृत्व वाली समिति का गठन किया गया था और नवंबर 2018 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं।
- इसे विश्व व्यापार संगठन (WTO) को अनुकूल बनाने और अधिकतम क्षमता का उपयोग करने तथा SEZs के संभावित उत्पादन को अधिकतम करने हेतु वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने की दिशा में SEZ नीति का मूल्यांकन करने के व्यापक उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया था।
SEZ अधिनियम के उद्देश्य:
- अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियों के लिये।
- वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना।
- रोज़गार पैदा करने के लिये।
- घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा देना।
- बुनियादी सुविधाओं का विकास करना।
SEZ के लिये उपलब्ध प्रमुख प्रोत्साहन और सुविधाएँ:
- SEZ इकाइयों के विकास, संचालन और रखरखाव के लिये शुल्क मुक्त आयात/माल की घरेलू खरीद।
- आयकर, न्यूनतम वैकल्पिक कर आदि जैसे विभिन्न करों से छूट।
- मान्यता प्राप्त बैंकिंग के माध्यम से बिना किसी परिपक्वता प्रतिबंध के SEZ इकाइयों द्वारा एक वर्ष में 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक की बाहरी वाणिज्यिक उधारी।
- केंद्र और राज्य स्तर पर अनुमोदन के लिये एकल खिड़की मंज़ूरी।
अब तक का प्रदर्शन:
- निर्यात: यह 22,840 करोड़ रुपए (2005-06) से बढ़कर 7,59,524 करोड़ रुपए (2020-21) हो गया है।
- निवेश: यह 4,035.51 करोड़ रुपए (2005-06) से बढ़कर 6,17,499 करोड़ रुपए (2020-21) हो गया है।
- रोज़गार: कुल रोज़गार 1,34,704 (2005-06) से बढ़कर 23,58,136 (2020-21) हो गया है।
चुनौतियाँ :
- SEZ में अप्रयुक्त भूमि:
- SEZ क्षेत्रों की मांग में कमी और महामारी के कारण उत्पन्न हुए व्यवधान के परिणामस्वरूप SEZ के रूप में मौजूद अप्रयुक्त भूमि।
- बहु-मॉडलों का अस्तित्व:
- आर्थिक क्षेत्रों या प्रक्रम के अनेक मॉडल हैं जैसे- SEZ, तटीय आर्थिक क्षेत्र, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा, राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र, फूड पार्क तथा टेक्सटाइल पार्क जो विभिन्न मॉडलों को एकीकृत करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- आसियान देशों से प्रतिस्पर्द्धा:
- पिछले कुछ वर्षों में कई आसियान देशों ने अपने SEZ में निवेश करने के लिये वैश्विक निवेशकों या भागीदारों को आकर्षित करने हेतु नीतियों में परिवर्तन किया है तथा अपने कौशल अभियानों के विकासात्मक स्तर पर भी कार्य किया है।
- परिणामस्वरूप भारतीय SEZ ने वैश्विक स्तर पर अपने कुछ प्रतिस्पर्द्धी हितधारकों को खो दिया है, जिसके कारण उन्हें नई नीतियों की आवश्यकता पड़ी।
आगे की राह
- SEZ पर बाबा कल्याणी समिति की सिफारिशों केअनुसार, SEZ में MSME योजनाओं को जोड़कर तथा वैकल्पिक क्षेत्रों को क्षेत्र-विशिष्ट SEZ में निवेश करने की अनुमति देकर MSME निवेश को बढ़ावा देना है।
- इसके अतिरिक्त सक्षम और प्रक्रियात्मक छूट के साथ-साथ SEZ को अवसंरचनात्मक स्थिति प्रदान करने हेतु वित्त तक उनकी पहुँच में सुधार करके तथा दीर्घकालिक ऋण को सक्षम करने के लिये भी अग्रगामी कदम उठाए गए।