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आंतरिक सुरक्षा

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण

  • 18 Apr 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मानव तस्करी, जाली मुद्रा या बैंक नोट, साइबर-आतंकवाद, NIA, सूचीबद्ध अपराध, आतंकवाद, LWE, उग्रवाद, कट्टरता, NIA अधिनियम 2008

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, इसका कार्य और क्षेत्राधिकार, कट्टरता- मुद्दा, चुनौतियाँ, समाधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) ने दो लोगों के खिलाफ एक प्राथमिकी/प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की है, जिन्हें कथित रूप से युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

नोट: कट्टरता वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति या समूह चरम विश्वासों और विचारधाराओं को अपनाता है जो मुख्यधारा के समाज के मूल्यों, मानदंडों एवं कानूनों को अस्वीकार या विरोध करते हैं। इसमें प्रायः प्रचार, प्रेरक बयानबाज़ी तथा प्रेरक व्यक्तियों या समूहों का जोखिम शामिल होता है जो चरमपंथी विचारों व विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण:

  • परिचय: 
    • NIA भारत सरकार की एक संघीय एजेंसी है जो आतंकवाद, उग्रवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से संबंधित अपराधों की जाँच एवं मुकदमा चलाने हेतु ज़िम्मेदार है।
      • किसी देश में संघीय एजेंसियों के पास विशेष रूप से उन मामलों पर अधिकार क्षेत्र होता है जो पूरे देश को प्रभावित करते हैं, न कि केवल अलग-अलग राज्यों या प्रांतों से संबंधित होते हैं।
    • वर्ष 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों के बाद राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण, 2008 के तहत इसकी स्थापना वर्ष 2009 में की गई थी, यह गृह मंत्रालय के तहत संचालित होती है।
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008 में बदलाव करते हुए राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2019 को जुलाई 2019 में पारित किया गया था।
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण के पास राज्य पुलिस बलों और अन्य एजेंसियों से प्राप्त आतंकवाद से संबंधित मामलों की जाँच करने की शक्ति है। इसके पास राज्य सरकारों से पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना राज्य की सीमाओं के मामलों की जाँच करने का भी अधिकार है। 
  • कार्य: 
    • आतंकवाद और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों से संबंधित खुफिया सूचनाओं का संग्रह, विश्लेषण और प्रसार करना।
    • आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों में भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय करना।
    • कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अन्य हितधारकों के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • जाँच क्षेत्र: 
    • NIA के जाँच के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं। NIA अधिनियम, 2008 की धारा 6 के तहत राज्य सरकार राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण जाँच के लिये केंद्र सरकार को सूचीबद्ध अपराधों से संबंधित मामलों का उल्लेख कर सकती है।
    • केंद्र सरकार NIA को अपने हिसाब से भारत के भीतर अथवा विदेश में किसी सूचीबद्ध अपराध की जाँच करने का निर्देश दे सकती है। 
    • UAPA तथा कुछ सूचीबद्ध अपराधों के तहत अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने के लिये एजेंसी को केंद्र सरकार की मंज़ूरी लेनी होती है।
    • वामपंथी उग्रवाद (LWE) के आतंकी वित्तपोषण से संबंधित मामलों से निपटने के लिये एक विशेष प्रकोष्ठ है। किसी सूचीबद्ध अपराध की जाँच के दौरान NIA उससे जुड़े किसी अन्य अपराध की भी जाँच कर सकती है। अंत में जाँच के बाद मामलों को NIA की विशेष अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत किये गए परिवर्तन:

  • भारत के बाहर अपराध: 
    • NIA के पास मूल रूप से भारत के भीतर अपराधों की जाँच करने की शक्ति थी, लेकिन संशोधित अधिनियम अब इसे भारत के बाहर किये गए अपराधों की जाँच करने की अनुमति देता है, जब तक कि यह अंतर्राष्ट्रीय संधियों और शामिल देशों के कानूनों का पालन करता है।
    • केंद्र सरकार का मानना है कि अगर कोई अपराध भारत के बाहर किया गया है, लेकिन अधिनियम के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो वह NIA को मामले की जाँच करने का निर्देश दे सकती है।
  • कानून का विस्तृत दायरा:
    • NIA अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध अपराधों की जाँच NIA कर सकती है।  
      • अनुसूची में मूल रूप से परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 और अपहरण-रोधी अधिनियम, 1982 जैसे अधिनियम शामिल थे। 
    • संशोधन के साथ NIA अब इससे संबंधित मामलों की भी जाँच कर सकती है: 
  • विशेष न्यायालय:
    • अधिनियम, 2008 ने अधिनियम के तहत मामलों की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना की। 
    • वर्ष 2019 का संशोधन केंद्र सरकार को अधिनियम के तहत सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई के लिये सत्र न्यायालयों को विशेष न्यायालयों के रूप में नामित करने की अनुमति देता है।
    • ऐसा करने से पहले केंद्र सरकार को संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना होगा। यदि एक क्षेत्र में कई विशेष न्यायालय मौजूद हैं, तो मामले को सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश द्वारा सौंपा जाएगा।
    • राज्य सरकारें सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई के लिये सत्र न्यायालयों को विशेष न्यायालयों के रूप में नामित कर सकती हैं।

सूचीबद्ध अपराध:

स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस

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