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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग

  • 09 Jul 2024
  • 18 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) कानून, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना

मेन्स के लिये:

भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की स्थिति, भारत के फार्मा क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय औषधि नियामक द्वारा निरीक्षण की गई लगभग 36% औषधि निर्माण इकाइयों को दिसंबर 2022 से केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drug Standards Control Organisation - CDSCO) द्वारा जोखिम आधारित निरीक्षण के बाद गुणवत्ता मानकों का पालन न करने के कारण बंद कर दिया गया।

गुणवत्ता नियंत्रण विफलताओं को उजागर करने वाली घटनाएँ क्या हैं? 

  • भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस और मैकिन्से एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (US Food and Drug Administration- FDA) ने भारतीय सुविधाओं के 145 निरीक्षणों में से 13% को आधिकारिक कार्रवाई संकेत OAI के रूप में वर्गीकृत किया, जो कि 15% OAI के वैश्विक औसत से कम है।
    • डेटा अखंडता के मुद्दे प्रचलित थे, जिनमें गलत डेटा, अनुचित समूह वितरण, संदिग्ध नमूना पुनःविश्लेषण प्रथाएँ और खराब प्रणालीगत गुणवत्ता प्रबंधन शामिल थे।
  • अक्टूबर 2022 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत के मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के चार उत्पादों को तीव्र किडनी की चोट और गाम्बिया में ज़हरीले रसायनों डाइएथिलीन ग्लाइकॉल तथा एथिलीन ग्लाइकॉल के संदूषण के कारण 66 बच्चों की मौत से जोड़ते हुए एक चेतावनी जारी की।
  • दिसंबर 2022 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (CDSCO) ने उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत के संबंध में जाँच शुरू की जो कथित रूप से भारतीय फर्म मैरियन बायोटेक द्वारा निर्मित एक खाँसी की औषधि थी।
  • जनवरी 2020 में जम्मू में 12 बच्चों की दूषित औषधि खाने से मौत हो गई, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया था, जिससे किडनी में विषाक्तता हो गई थी।

भारत में औषधिओं का नियमन कैसे होता है?

  • औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940:
    • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 और नियम 1945 ने औषधियों एवं प्रसाधन सामग्री के विनियमन के लिये केंद्रीय एवं राज्य नियामकों को विभिन्न ज़िम्मेदारियाँ सौंपी हैं।
    • यह आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी औषधिओं के निर्माण के लिये लाइसेंस जारी करने के लिये नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO):
    • देश में औषधि, सौंदर्य प्रसाधनों, निदान और उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये मानक एवं उपाय निर्धारित करता है।
    • नई औषधि और नैदानिक ​​परीक्षण मानकों के बाज़ार प्राधिकरण को विनियमित करता है।
  • ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया: 
    • DCGI, भारत सरकार के CDSCO विभाग का प्रमुख है जो भारत में रक्त और रक्त उत्पादों, IV तरल पदार्थ, टीके एवं सीरम जैसी औषधिओं की निर्दिष्ट श्रेणियों के लाइसेंस के अनुमोदन के लिये ज़िम्मेदार है। 
    • DCGI भारत में औषधिओं के विनिर्माण, बिक्री, आयात और वितरण के लिये मानक भी निर्धारित करता है।

भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग की स्थिति क्या है?

  • वर्तमान परिदृश्य: 
    • भारत विश्व में कम लागत वाले टीकों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्त्ताओं में से एक है और साथ ही यह वैश्विक स्तर पर जेनेरिक औषधिओं का सबसे बड़ा प्रदाता भी है, जिसकी वैश्विक आपूर्ति में 20% हिस्सेदारी है।
      • वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में भारत का योगदान 60% है, जो इसे विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक बनाता है।
    • भारत में फार्मास्यूटिकल उद्योग मात्रा की दृष्टि से विश्व में तीसरा सबसे बड़ा तथा मूल्य की दृष्टि से 14वाँ सबसे बड़ा उद्योग है।
  • बाज़ार का आकार तथा निवेश: भारत विश्व भर में जैव प्रौद्योगिकी के शीर्ष 12 गंतव्यों में से एक है और एशिया प्रशांत क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के लिये तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य है।
    • भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग ने पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर विस्तार देखा है और साथ ही इसकी गुणवत्ता, सामर्थ्य एवं नवीनता को बढ़ाते हुए वैश्विक फार्मा बाज़ार के आकार के लगभग 13% तक पहुँचने की आशा है।
    • ग्रीनफील्ड फार्मास्यूटिकल्स परियोजनाओं के लिये स्वचालित मार्गों के माध्यम से 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति प्रदान की गई है।
      • ब्राउनफील्ड फार्मास्यूटिकल्स परियोजनाओं के लिये स्वचालित मार्ग से 74% तक FDI की अनुमति है तथा इससे अधिक के लिये सरकारी अनुमोदन की आवश्यकता है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2030 के अंत तक भारतीय फार्मास्युटिकल बाज़ार का मूल्य 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
  • निर्यात: भारत में विदेशी निवेश के लिये फार्मास्यूटिकल शीर्ष दस आकर्षक क्षेत्रों में से एक है। फार्मास्यूटिकल निर्यात विश्व भर के 200 से अधिक देशों तक पहुँच गया है, जिसमें अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया के अत्यधिक विनियमित बाज़ार शामिल हैं।
    • वित्त वर्ष 2024 (अप्रैल-जनवरी) में भारत का औषधि और फार्मास्यूटिकल्स निर्यात 22.51 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो इस अवधि में वार्षिक रूप से 8.12% की वृद्धि को दर्शाता है।

ग्रीनफील्ड बनाम ब्राउनफील्ड निवेश

  • ग्रीनफील्ड परियोजना: इसका तात्पर्य किसी विनिर्माण, कार्यालय या अन्य भौतिक कंपनी-संबंधित संरचना या संरचनाओं के समूह में ऐसे क्षेत्र में निवेश से है जहाँ पहले कोई सुविधाएँ मौजूद नहीं हैं।
  • ब्राउनफील्ड निवेश: जिन परियोजनाओं को संशोधित या उन्नत किया जाता है उन्हें ब्राउनफील्ड परियोजनाएँ कहा जाता है। इस शब्द का उपयोग किसी नई उत्पादन गतिविधि को शुरू करने हेतु मौजूदा उत्पादन सुविधाओं को खरीदने या पट्टे पर देने के लिये किया जाता है।

भारत के फार्मा क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • IPR नियमों का उल्लंघन: भारतीय औषधि कंपनियों को बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights- IPR) कानूनों के उल्लंघन के आरोपों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप बहुराष्ट्रीय औषधि कंपनियों के साथ कानूनी विवाद हुए हैं।
  • रॉश ने सिप्ला पर औषधि के एक सामान्य संस्करण का उत्पादन करके कैंसर की औषधि टार्सेवा (Tarceva) के लिये अपने पेटेंट का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। विवाद बढ़ गया, जिससे दोनों कंपनियों के बीच न्यायालयी लड़ाई छिड़ गई, जिसमें सिप्ला को दोषी पाया गया और रॉश को मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया।
  • ऐसा ही एक मामला वर्ष 2014 में स्विस औषधि कंपनी रॉश और भारतीय औषधि निर्माता सिप्ला से जुड़ा था।
  • मूल्य निर्धारण और सामर्थ्य: भारत अपनी जेनेरिक औषधि निर्माण क्षमताओं के लिये जाना जाता है, जिसने विश्व स्तर पर सस्ती स्वास्थ्य सेवा में योगदान दिया है।
    • हालाँकि भारत में औषधियों की उपलब्धता सुनिश्चित करना तथा औषधि कंपनियों की लाभप्रदता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है।
    • इसके अतिरिक्त, जेनेरिक औषधिओं की गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ उद्योग की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती हैं, जो 90% से अधिक अमेरिकी नुस्खों की आपूर्ति करता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना और पहुँच: भारत के मज़बूत फार्मास्यूटिकल उद्योग के बावजूद आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से हेतु स्वास्थ्य सेवा की पहुँच चुनौती बनी हुई है।
    • अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना, स्वास्थ्य सुविधाओं का असमान वितरण और कम स्वास्थ्य बीमा कवरेज जैसे मुद्दे औषधिओं तक पहुँचने में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
  • आयात पर अत्यधिक निर्भरता: भारतीय फार्मा क्षेत्र सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients- API) के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जो औषधिओं हेतु कच्चा माल है। वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से कमी और कीमतों में वृद्धि हो सकती है।

आगे की राह

  • विधायी परिवर्तन और केंद्रीकृत डेटाबेस: औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम (1940) में संशोधन की आवश्यकता है और एक केंद्रीकृत औषधि डेटाबेस की स्थापना से निगरानी को बढ़ाया जा सकता है तथा सभी निर्माताओं पर प्रभावी विनियमन सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • विधायी परिवर्तन और केंद्रीकृत डेटाबेस: औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 को संशोधित करने की आवश्यकता है साथ ही एक केंद्रीकृत ड्रग्स डेटाबेस की निगरानी बढ़ा सकती है एवं सभी निर्माताओं हेतु प्रभावी विनियमन सुनिश्चित कर सकती है।
    • भारत में 36 क्षेत्रीय औषधि नियामक हैं, उन्हें एक इकाई में समेकित करने से विनियामक निगरानी एवं प्रभाव नेटवर्क के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • इसके अलावा उत्पाद की निरंतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये सभी राज्यों में समान गुणवत्ता मानकों को लागू करना आवश्यक है।
  • निरंतर सुधार कार्यक्रमों को बढ़ावा देना: फार्मास्युटिकल कंपनियों को स्वैच्छिक गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली और आत्म-सुधार पहलों को लागू करने के लिये प्रेरित करना। इसे उद्योग संघों तथा सरकारी प्रोत्साहनों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • पारदर्शिता और सार्वजनिक रिपोर्टिंग: नियामक कार्रवाइयों में पारदर्शिता और गुणवत्ता नियंत्रण विफलताओं की सार्वजनिक रिपोर्टिंग में वृद्धि। निरीक्षण रिपोर्ट और औषधि वापसी को साझा करने के लिये नामित सरकारी पोर्टल के माध्यम से इसे प्राप्त किया जा सकता है।
  • सतत् विनिर्माण प्रथाओं पर ध्यान: हरित रसायन, अपशिष्ट में कमी और ऊर्जा दक्षता सहित टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं पर बल, लागत को कम करते हुए क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता में वृद्धि कर सकता है।
    • पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने से सकारात्मक ब्रांड छवि में भी योगदान दिया जा सकता है और पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जा सकता है।
  • डिजिटल औषधि विनियामक प्रणाली (DDRS): डिजिटल औषधि विनियामक प्रणाली (डीडीआरएस), जो औषधि विनियमन से संबंधित सभी कार्यों के लिये एक केंद्रीय पोर्टल के रूप में काम करेगी, ने प्रस्ताव हेतु अनुरोध (RFP) जारी किया है।
    • सुगम पोर्टल को बेहतर बनाने के लिये उन्नत किया जा रहा है। यह नया संस्करण CDSCO की सभी गतिविधियों और कार्यों को एकीकृत करेगा। अंततः इसके दायरे में राज्य औषधि नियंत्रक और अन्य संबंधित अभिकरण ​​भी शामिल होंगे।
  • औषधि विनियामक संरचना और कार्यों को सुव्यवस्थित तथा तर्कसंगत बनाना: सरकार को पूरे फार्मा क्षेत्र को विनियमित करने और औषधि कानूनों तथा मानदंडों के प्रभावी प्रवर्तन एवं अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त शक्तियों, संसाधनों, विशेषज्ञता व स्वायत्तता के साथ एक एकल, केंद्रीय प्राधिकरण की स्थापना करनी चाहिये।
  • फार्माकोविजिलेंस का सुदृढ़ीकरण: प्रतिकूल प्रभावों की तुरंत पहचान करने और उन्हें संबोधित करने के लिये विपणन के बाद औषधि की निगरानी में सुधार करने की आवश्यकता है। यह गुणवत्ता नियंत्रण के कठोर उपायों के लिये की गई सिफारिशों के अनुरूप है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय फार्मा क्षेत्र के समक्ष विद्यमान मौजूदा चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर इन चुनौतियों के प्रभावों की विवेचना कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोज़ीशन) का होना। 
  2. रोगों के उपचार के लिये वैज्ञानिकों (एंटिबॉयोटिक्स) की गलत खुराकें लेना। 
  3. पशुधन फार्मिंग प्रतिजैविकों का इस्तेमाल करना। 
  4. कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1, 3 और 4  
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. भारत सरकार औषधि के पारंपरिक ज्ञान को औषधि कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

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