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भारत के दवा क्षेत्र में कौशल विकास

  • 05 Apr 2023
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 03/04/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “Indian pharma sector needs a dose of upskilling and reskilling” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय फार्मा क्षेत्र से संबद्ध मुद्दों और इसे संबोधित करने के लिये आवश्यक उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारतीय दवा उद्योग सस्ती और उच्च गुणवत्तायुक्त जेनेरिक दवाओं के उत्पादन के साथ वैश्विक स्वास्थ्य की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान करता रहा है। फिर भी, मूल्य के संदर्भ में दुनिया के अग्रणी दवा उत्पादकों में से एक बनने के लिये उद्योग को अभी भी विभिन्न बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

  • भारतीय फार्मास्युटिकल या दवा उद्योग मात्रा के मामले में वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा दवा उद्योग है। वर्तमान में, भारतीय फार्मास्युटिकल बाज़ार का मूल्य लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें से निर्यात बाज़ार लगभग 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी रखता है। घरेलू बाज़ार के वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जिसमें से 60% से अधिक हिस्सेदारी केवल निर्यात की होगी।
  • भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और उद्यमियों के लगातार बढ़ते पूल के साथ ही इसके जनसांख्यिकीय लाभ के बावजूद, कौशल निर्माण (skilling) के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में निवेश करना अत्यंत आवश्यक होगा। एक ऐसी दुनिया जो ‘VUCA’ (Volatile, Uncertain, Complex and Ambiguous) की प्रवृत्ति रखती है, अर्थात् अस्थिर, अनिश्चित, जटिल और अस्पष्ट है, वहाँ प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये ‘अपस्किलिंग’ (कौशल उन्नयन) और ‘रीस्किलिंग’ (पुनर्कौशल निर्माण) की मूलभूत आवश्यकता है।

फार्मा क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • विनियामक अनुपालन:
    • फार्मास्युटिकल उद्योग अत्यधिक विनियमित या नियंत्रित है और भारतीय कंपनियों को उन विभिन्न देशों के नियमों का पालन करना होता है जिन्हें वे अपने उत्पादों का निर्यात करते हैं।
    • हाल के वर्षों में भारतीय कंपनियों को कई नियामक बाधाओं का सामना करना पड़ा है, जिनमें गुणवत्ता नियंत्रण, डेटा अखंडता (Data Integrity) एवं विनिर्माण अभ्यासों से संबद्ध मुद्दे शामिल हैं और इनके कारण आयात प्रतिबंध एवं व्यापार की हानि की स्थिति बनी है।
  • बौद्धिक संपदा संबंधी मुद्दे:
    • बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights- IPR) फार्मास्युटिकल उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे सुनिश्चित होता है कि कंपनियाँ अपने आविष्कारों की रक्षा कर सकती हैं और अपने निवेश पर उचित प्रतिलाभ/रिटर्न अर्जित कर सकती हैं। हालाँकि, भारतीय कंपनियों पर IPR कानूनों के उल्लंघन के आरोप भी लगते रहे हैं और बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के साथ कानूनी संघर्ष भी करना पड़ा है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2014 में स्विस दवा कंपनी रॉश (Roche) ने भारतीय दवा निर्माता ‘सिप्ला’ (Cipla) पर इस आरोप के साथ मुक़दमा दायर किया कि सिप्ला ने उसकी कैंसर की दवा टरसीवा (Tarceva) के पेटेंट का उल्लंघन किया है। रॉश ने दावा किया कि सिप्ला द्वारा उनकी दवा के जेनेरिक संस्करण के निर्माण से उनके पेटेंट अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
      • यह मामला अदालत में पहुँचा और वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने रॉश के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि सिप्ला ने रॉश के पेटेंट का उल्लंघन किया है और उसे क्षतिपूर्ति देनी होगी।
  • मूल्य नियंत्रण:
    • भारत सरकार आवश्यक दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करती है, जिसके कारण दवा कंपनियों के लिये कम लाभ स्तर की स्थिति बनती है।
    • यह फिर कंपनियों के अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को प्रभावित करता है, क्योंकि उनके पास नवोन्मेषी उत्पादों में निवेश करने के लिये कम धन होता है।
  • नवाचार की कमी:
    • भारत में अधिकांश फार्मास्युटिकल कंपनियाँ जेनेरिक दवाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती हैं, न कि अनुसंधान एवं विकास पर।
    • उद्योग ने अभी तक नवोन्मेषी दवा खोज में एक सुदृढ़ आधार स्थापित नहीं किया है, जिससे बाज़ार में नई दवाओं की कमी की स्थिति है।
  • अवसंरचनात्मक चुनौतियाँ:
    • भारत में परिवहन, ऊर्जा और संचार सहित विभिन्न अवसंरचनात्मक कमियाँ उद्योग के लिये उल्लेखनीय चुनौतियाँ पेश करती है।
    • पर्याप्त परिवहन सुविधाओं की कमी उत्पादों की समय पर आपूर्ति को प्रभावित करती है, जबकि पावर आउटेज और कम्युनिकेशन ब्रेकडाउन से निर्माण प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
  • कुशल कार्यबल की कमी:
    • फार्मास्युटिकल उद्योग को अनुसंधान एवं विकास, निर्माण और गुणवत्ता नियंत्रण सहित विभिन्न क्षेत्रों में कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।
    • लेकिन इस उद्योग में कुशल पेशेवरों की कमी है, जिससे मांग और आपूर्ति के बीच अंतराल उत्पन्न होता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा:
    • भारतीय दवा उद्योग को चीन जैसे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जो निम्न उत्पादन लागत और उच्च उत्पादन क्षमता प्रदर्शित करते हैं।
  • चीन पर भारी निर्भरता:
    • विभिन्न देशों के लिये उच्च गुणवत्तायुक्त दवाओं का अग्रणी आपूर्तिकर्ता होने के बावजूद भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग दवा संबंधी कच्चे माल, अर्थात् सक्रिय दवा घटक (Active Pharmaceutical Ingredients- API) के लिये चीन पर अत्यधिक निर्भरता रखता है।
      • भारतीय दवा निर्माता अपनी कुल थोक दवा आवश्यकताओं का लगभग 70% चीन से आयात करते हैं।
      • ‘डेटा ब्रिज मार्केट रिसर्च’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, सक्रिय दवा घटक (API) बाज़ार का मूल्य वर्ष 2021 में 300.72 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था जो वर्ष 2029 तक 7.6% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ 540.33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है (वर्ष 2022 से 2029 की पूर्वानुमान अवधि के दौरान)।

संबंधित पहलें

  • फार्मास्युटिकल उद्योग के सुदृढ़ीकरण हेतु योजना (Strengthening Pharmaceuticals Industry Scheme):
    • यह योजना फार्मास्युटिकल उद्योग की MSME इकाइयों के प्रौद्योगिकीय उन्नयन के लिये क्रेडिट-लिंक्ड पूंजी और ब्याज सब्सिडी प्रदान करने के साथ ही फार्मा क्लस्टर्स में अनुसंधान केंद्रों, परीक्षण प्रयोगशालाओं और ETPs (Effluent Treatment Plant) सहित सामान्य सुविधाओं के लिये इनमें से प्रत्येक को 20 करोड़ रुपए तक का समर्थन प्रदान करती है।
  • बल्क ड्रग पार्क योजना का प्रसार (Promotion of Bulk Drug Parks Scheme):
    • भारत सरकार विभिन्न राज्यों के साथ साझेदारी में देश में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क विकसित करने का लक्ष्य रखती है ताकि देश में बल्क दवाओं की निर्माण लागत को कम किया जा सके और बल्क दवाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भरता कम हो सके।
    • यह योजना दवाओं की निरंतर आपूर्ति प्रदान करने और नागरिकों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में भी मदद करेगी।
  • प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना (Production Linked Incentive- PLI Scheme):
    • इस योजना का उद्देश्य देश में अत्यंत आवश्यक महत्त्वपूर्ण स्टार्टिंग सामग्री (Key Starting Materials- KSMs)/ड्रग इंटरमीडिएट्स और सक्रिय दवा घटक (API) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।

आगे की राह

  • अनुसंधान और नवाचार:
    • जीवन विज्ञान, अनुसंधान पद्धति और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)/मशीन लर्निंग (ML) एवं डेटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवरों का नवाचार क्षेत्र में होना आवश्यक है, जो वैश्विक बाज़ार में दो-तिहाई हिस्सेदारी रखता है।
  • उचित विनियमन सुनिश्चित करना:
    • भारतीय फार्मा क्षेत्र ‘दुनिया का दवाखाना’ (pharmacy of the world) होने की अपनी स्थिति को बनाए रखे, इसके लिये आवश्यक है कि गुणवत्ता नियंत्रण पेशेवर उन साधनों से सुसज्जित हों जो सुनिश्चित करे कि तैयार उत्पाद अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हैं।
  • ‘डिजिटल टेक’ का लाभ उठाना:
    • उत्पादकता, दक्षता और नवाचार में सुधार के लिये डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाना कंपनियों के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
    • उदाहरण के लिये:
      • नैदानिक परीक्षण (clinical trials) को अधिक दक्ष और प्रभावी बनाने के लिये डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
      • दवा की खोज और विकास में सुधार के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जा रहा है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग पैटर्न की पहचान करने और परिणामों का अनुमान लगाने के लिये बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करने हेतु किया जा सकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता:
    • बिक्री, विपणन और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में अपस्किलिंग/रीस्किलिंग की आवश्यकता है; साथ ही पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance- ESG) मानदंड/लक्ष्य एवं हरित प्रौद्योगिकी के अंगीकरण तथा क्रॉस-फंक्शनल कौशल में कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
  • फार्मा पेशेवरों का कौशल निर्माण:
    • फार्मा क्षेत्र वैज्ञानिक अनुसंधान, दवा विकास, नियामक अनुपालन, विपणन और बिक्री सहित विविध क्षेत्रों में कौशल संपन्न पेशेवरों की मांग रखता है।
    • इसलिये, शैक्षिक कार्यक्रमों को कौशल विकास पर ध्यान देना चाहिये, जो कार्यबल अधिक कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से अपनी भूमिका निभाने में मदद कर सकता है।
    • भारतीय संस्थानों द्वारा फार्माकोलॉजी (pharmacology) पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिये ताकि छात्र भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार हो सकें। उद्योग के सहयोग से LSSSDC और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) ने बी.फार्मा पाठ्यक्रम के लिये स्किलिंग मॉड्यूल विकसित किये हैं।
      • LSSSDC लघु और मध्यम उद्यमों में लगभग 7500 श्रमिकों के कौशल उन्नयन का लक्ष्य रखता है।
      • LSSSDC कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय के शासनादेश के तहत एक गैर-लाभकारी (not for profit), गैर-सांविधिक (non-statutory) प्रमाणन निकाय है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और वैश्विक बाज़ार में निरंतर विकास एवं प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने के लिये उन्हें कैसे संबोधित किया जा सकता है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मुख्य परीक्षा

Q. भारत सरकार दवा कंपनियों द्वारा दवा के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से कैसे बचाव कर रही है?  (वर्ष 2019)

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