शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति, 2023
- 01 May 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारत का चिकित्सा उपकरण क्षेत्र, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2021, प्रधानमंत्री गति शक्ति, PPP, PLI मेन्स के लिये:राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2023, भारत के चिकित्सा उपकरण क्षेत्र का परिदृश्य। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण (NMD) नीति, 2023 को मंज़ूरी दी है।
- यह नीति चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के त्वरित विकास के लिये एक रोडमैप निर्धारित करती है ताकि निम्नलिखित मिशनों, एक्सेस एवं सार्वभौमिकता, सामर्थ्य, गुणवत्ता, रोगी केंद्रित तथा गुणवत्तापूर्ण देखभाल, निवारक एवं प्रोत्साहक स्वास्थ्य, सुरक्षा, अनुसंधान और नवाचार एवं कुशल जनशक्ति को प्राप्त किया जा सके।
NMD नीति, 2023 की प्रमुख विशेषताएँ:
- नियामक संचालन: रोगी सुरक्षा और उत्पाद नवाचार को संतुलित करते हुए अनुसंधान तथा व्यवसाय को आसान बनाने के लिये चिकित्सा उपकरणों के लाइसेंस हेतु "सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम" बनाया जाएगा।
- इस प्रणाली में सभी प्रासंगिक विभाग और संगठन शामिल होंगे, जैसे- MeitY (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) तथा DAHD (पशुपालन और डेयरी विभाग)।
- अवसंरचना को सक्षम बनाना: आर्थिक क्षेत्रों के पास विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के साथ बड़े चिकित्सा उपकरण पार्क स्थापित किये जाएंगे।
- यह कार्य राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम और प्रस्तावित राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, 2021 के तहत प्रधानमंत्री गति शक्ति के दायरे में तथा चिकित्सा उपकरण उद्योग के साथ अभिसरण एवं एकीकरण में सुधार के लिये राज्य सरकारों और उद्योग के सहयोग से किया जाएगा।
- अनुसंधान एवं विकास और नवोन्मेष को सुगम बनाना: नीति का उद्देश्य भारत में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है, जो फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और नवोन्मेष पर प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति का पूरक है।
- इसका उद्देश्य अकादमिक और अनुसंधान संस्थानों, नवोन्मेष केंद्रों, 'प्लग एंड प्ले' बुनियादी ढाँचे में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना तथा स्टार्ट-अप को समर्थन देना है।
- निवेश बढ़ाना: यह नीति मेक इन इंडिया, आयुष्मान भारत कार्यक्रम, हील-इन-इंडिया और स्टार्ट-अप मिशन जैसी मौजूदा योजनाओं के पूरक के लिये निजी निवेश एवं सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करती है।
- मानव संसाधन विकास: नीति का उद्देश्य कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के माध्यम से कौशल, पुनर्कौशल और अपस्किलिंग कार्यक्रम प्रदान करके चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में एक कुशल कार्यबल सुनिश्चित करना है।
- यह भविष्य की प्रौद्योगिकियों, विनिर्माण और अनुसंधान के लिये कुशल जनशक्ति तैयार करने हेतु मौजूदा संस्थानों में चिकित्सा उपकरणों के लिये समर्पित बहु-विषयक पाठ्यक्रमों का भी समर्थन करेगा।
- ब्रांड पोज़िशनिंग और जागरूकता निर्माण: नीति विभाग के तहत क्षेत्र के लिये एक समर्पित निर्यात संवर्द्धन परिषद के निर्माण की परिकल्पना करती है जो विभिन्न बाज़ार पहुँच से जुड़े मुद्दों से निपटने में सक्षम होगी।
नीति का महत्त्व:
- इस नीति से चिकित्सा उपकरण उद्योग को एक प्रतिस्पर्द्धी, आत्मनिर्भर, सशक्त और अभिनव उद्योग के रूप में मज़बूत करने के लिये आवश्यक समर्थन एवं दिशा-निर्देश प्रदान किये जाने की उम्मीद है, जो न केवल भारत बल्कि दुनिया की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।
- इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरण क्षेत्र को रोगियों की बढ़ती स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ विकास के त्वरित पथ पर लाना है।
- इसका लक्ष्य रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ त्वरित विकास पथ और अगले 25 वर्षों में बढ़ते वैश्विक बाज़ार में 10-12 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल करके चिकित्सा उपकरणों के निर्माण एवं नवाचार में वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरना है।
- नई नीति के साथ केंद्र का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में भारत की आयात निर्भरता को लगभग 30% तक कम करना और शीर्ष पाँच वैश्विक विनिर्माण केंद्रों में से एक बनना है।
- इस नीति से वर्ष 2030 तक चिकित्सा उपकरण क्षेत्र को वर्तमान 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने में मदद मिलने की उम्मीद है।
भारतीय चिकित्सा उपकरण क्षेत्र का परिदृश्य:
- परिचय:
- भारत में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र एक उभरता क्षेत्र है और स्वास्थ्य सेवा उद्योग का एक महत्त्वपूर्ण घटक है जो तेज़ी से बढ़ रहा है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान यह क्षेत्र काफी तीव्र गति से विकसित हुआ जब भारत ने बड़े पैमाने पर चिकित्सा उपकरणों और वेंटिलेटर, RT-PCR किट तथा PPE किट जैसे नैदानिक किट का वृहत स्तर पर उत्पादन किया था।
- यह एक बहु-उत्पाद क्षेत्र है, इसका व्यापक वर्गीकरण इस प्रकार है:
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
- प्रत्यारोपण
- उपभोग्य और डिस्पोज़ेबल
- इन विट्रो डायग्नोस्टिक्स (IVD) अभिकर्मक
- सर्जिकल उपकरण
- केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) द्वारा चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 तैयार किये जाने तक यानी वर्ष 2017 तक यह क्षेत्र काफी हद तक अनियमित रहा।
- स्थिति:
- जापान, चीन और दक्षिण कोरिया के बाद भारत एशियाई चिकित्सा उपकरणों का चौथा सबसे बड़ा बाज़ार है तथा वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 चिकित्सा उपकरण बाज़ारों में से है।
- चिकित्सा उपकरण श्रेणी में वैश्विक स्तर पर भारत की वर्तमान बाज़ार हिस्सेदारी वर्ष 2020 में 1.5% के रूप में 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर (यानी 90,000 करोड़ रुपए) है।
- संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी 40%, जो कि सबसे अधिक है, इसके बाद यूरोप और जापान की हिस्सेदारी क्रमशः 25% और 15% है।
- सरकारी पहलें:
- चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना कार्यरत है। NMDP 2023 मौजूदा PLI योजनाओं के अतिरिक्त है।
- भारत सरकार ने पहले ही चिकित्सा उपकरणों के लिये PLI योजना का कार्यान्वयन शुरू कर दिया है और चार चिकित्सा उपकरण पार्कों, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश प्रत्येक में एक की स्थापना में योगदान दिया है।
- चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देने का उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है।
- जून 2021 में भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India- QCI) और चिकित्सा उपकरणों के भारतीय निर्माताओं के संघ (AiMeD) ने चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता, सुरक्षा एवं प्रभावकारिता का सत्यापन करने के लिये चिकित्सा उपकरणों के भारतीय प्रमाणन (Indian Certification of Medical Devices- ICMED) हेतु 13485 प्लस योजना शुरू की है।
- चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना कार्यरत है। NMDP 2023 मौजूदा PLI योजनाओं के अतिरिक्त है।
चिकित्सा उपकरण क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:
- असंगत विनियम:
- जटिल विनियामक वातावरण चिकित्सा उपकरण उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है।
- निर्माताओं को असंगत नियमों का पालन करना पड़ता है जो अलग-अलग मानकों और शब्दों का उपयोग करते हैं, जिससे आवश्यकताओं को समझना एवं उनका पालन करना मुश्किल हो जाता है।
- अनुसंधान और विकास संबंधी चुनौतियाँ:
- भारतीय चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्लाउड कंप्यूटिंग और रोबोटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग अभी भी सीमित है।
- इन तकनीकों को अपनाने से कंपनियों को अनुसंधान और विकास, उत्पादन एवं वितरण से संबंधित चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।
- आयात निर्भरता:
- भारत चिकित्सा उपकरणों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे उच्च आयात लागत और स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है। आयात निर्भरता को कम करने के लिये भारत को चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने तथा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- पूंजी तक सीमित पहुँच:
- भारत में चिकित्सा उपकरण स्टार्ट-अप्स हेतु वित्त की उपलब्धता गंभीर चुनौती है क्योंकि निवेशक प्रायः दीर्घकालिक और नियामक अनिश्चितताओं वाले क्षेत्र में निवेश करने से हिचकिचाकते हैं।
आगे की राह
- भारत में नीति निर्माताओं को चिकित्सा उपकरणों/प्रौद्योगिकी आयात पर देश की निर्भरता को कम करने हेतु कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता है।
- भारत को अपनी चिकित्सा उपकरण कंपनियों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों हेतु विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित करना चाहिये, स्वदेशी विनिर्माण के साथ संयोजन में भारत-आधारित नवाचार करना चाहिये, मेक इन इंडिया एवं इनोवेट इन इंडिया योजनाओं में सहयोग करना चाहिये, साथ ही छोटे घरेलू बाज़ारों को प्रोत्साहित करने के लिये निम्न से मध्यम प्रौद्योगिकी उत्पादों का उत्पादन करना चाहिये।