शासन व्यवस्था
भारत में कुशल सार्वजनिक वितरण प्रणाली की ओर
- 11 Nov 2024
- 24 min read
यह संपादकीय 07/05/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Rationalizing leaky PDS” पर आधारित है। इस लेख में भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में अक्षमताओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें पॉइंट-ऑफ-सेल मशीनों से सुधार के बावजूद लाभार्थियों तक 28% खाद्य आवंटन विफल रहा है। यह व्यापक पोषण सुरक्षा की अनदेखी करते हुए चावल और गेहूँ पर PDS के संकीर्ण फोकस को भी उजागर करता है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013, उचित मूल्य की दुकानें, अतिनिर्धनता, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, भारतीय खाद्य निगम, न्यूनतम समर्थन मूल्य, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5, एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण। मेन्स के लिये:भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे, PDS प्रणाली की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये उपाय |
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का उद्देश्य कम आय वाले परिवारों को सहायता प्रदान करना है, लेकिन आवंटित खाद्यान्न का 28% हिस्सा उन तक कभी नहीं पहुँच पाता। इसका मतलब है कि प्रत्येक वर्ष खाद्यान्न का भारी नुकसान होता है जिसके सुधार की तत्काल आवश्यकता है। पॉइंट-ऑफ-सेल मशीनों के साथ लीकेज 46% से घटकर 28% हो गई है, लेकिन एक महत्त्वपूर्ण अंतर अभी भी बना हुआ है। इसके अलावा, PDS में केवल चावल और गेहूँ पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे पोषण सुरक्षा के व्यापक मुद्दे की अनदेखी होती है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के संदर्भ में: खाद्य की कमी को दूर करने के लिये सस्ती कीमतों पर खाद्यान्न वितरित करके सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना की गई थी।
- समय के साथ, यह भारत की खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिये एक प्रमुख नीतिगत उपागम बन गया है, हालाँकि यह लाभार्थियों की आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूरा करने के बजाय उनकी पूर्ति करता है।
- अब यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 द्वारा शासित है, जो वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- प्रबंधन: सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रबंधन केंद्र और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है।
- केंद्र सरकार, भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से, खाद्यान्नों की खरीद, भंडारण, परिवहन और राज्यों को बड़े पैमाने पर आवंटन के लिये ज़िम्मेदार है, जबकि राज्य सरकारें स्थानीय वितरण, पात्र परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करने तथा उचित मूल्य की दुकानों (FPS) के पर्यवेक्षण की देखरेख करती हैं।
- वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गेहूँ, चावल, चीनी और केरोसिन वितरित किया जाता है तथा कुछ राज्य दालें, खाद्य तेल एवं नमक जैसी अतिरिक्त वस्तुएँ भी उपलब्ध कराते हैं।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आवश्यकता क्यों है?
- खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन: विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2024 में लगभग 129 मिलियन भारतीय अतिनिर्धनता में रह रहे होंगे, जिनकी दैनिक आय 2.15 डॉलर (लगभग 181 रुपए) से भी कम होगी, जिससे उनके लिये खाद्यान्न तक पहुँच एक गंभीर चुनौती बन जाएगी।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) कमज़ोर आबादी को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराकर बुनियादी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है तथा आर्थिक झटकों और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है।
- यह विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान स्पष्ट हुआ जब प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 800 मिलियन लोगों को निशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया।
- मूल्य स्थिरीकरण और बाज़ार विनियमन: PDS बफर स्टॉक को बनाए रखने और आवश्यक वस्तुओं में बाज़ार की अस्थिरता को नियंत्रित करके एक महत्त्वपूर्ण मूल्य स्थिरीकरण तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- यह प्रणाली कमी के दौरान कृत्रिम मूल्य वृद्धि को रोकने में मदद करती है तथा उपभोक्ताओं को बाज़ार में हेरफेर और मुद्रास्फीति से बचाती है।
- वर्ष 2022-23 में, भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने बाज़ार में आपूर्ति बढ़ाने के लिये 34.82 लाख टन गेहूँ जारी किया, जिससे बाज़ार मूल्यों को नियंत्रित करने में मदद मिली।
- कृषि सहायता और कृषि आय: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) अपने खरीद तंत्र के माध्यम से किसानों को सुनिश्चित बाज़ार और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करती है, जिससे कृषि आजीविका तथा खाद्य उत्पादन को समर्थन मिलता है।
- कृषि विपणन वर्ष 2023-24 (अक्तूबर-सितंबर) में सरकार द्वारा 52.544 मिलियन टन चावल की खरीद की गई।
- इस व्यवस्थित खरीद से बाज़ार की अनिश्चितताओं के दौरान कृषि आय को बनाए रखने में मदद मिली।
- पोषण सुरक्षा और स्वास्थ्य परिणाम: बुनियादी खाद्य सुरक्षा के अलावा, PDS भारत की पोषण संबंधी चुनौतियों, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी के बीच, के समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- कुछ राज्यों में दालों, फोर्टिफाइड चावल (जैसे- तमिलनाडु) और अन्य पौष्टिक वस्तुओं को शामिल करने की प्रणाली के विकास से कुपोषण से लड़ने में मदद मिली है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के हालिया आँकड़ों से बाल पोषण संकेतकों में सुधार दिखता है, जिसमें शिशु वृद्धिरोधन (Stunting) 38.4% से घटकर 35.5% हो गया है।
- सामाजिक समानता और क्षेत्रीय संतुलन: सार्वजनिक वितरण प्रणाली भौगोलिक और सामाजिक बाधाओं के पार खाद्यान्न उपलब्धता सुनिश्चित करके सामाजिक समानता को बढ़ावा देती है, जिससे विशेष रूप से सीमांत समुदायों तथा दूर-दराज़ के क्षेत्रों को लाभ मिलता है।
- प्रणाली का लक्षित उपागम क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में मदद करता है और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों सहित कमज़ोर आबादी को सहायता प्रदान करता है।
- एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड के कार्यान्वयन से पोर्टेबिलिटी लेन-देन संभव हुआ है, जिससे प्रवासी श्रमिकों को सहायता मिली है।
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- रिसाव और डायवर्ज़न: सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित सबसे गंभीर मुद्दा अवैध डायवर्ज़न के माध्यम से खुले बाज़ार में खाद्यान्नों का बड़े पैमाने पर लीकेज है।
- हालिया घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 से पता चलता है कि आवंटित अनाज का लगभग 28%, जो 19.69 मिलियन मीट्रिक टन है, इच्छित लाभार्थियों तक पहुँचने में विफल रहता है।
- 90% उचित मूल्य की दुकानों में POS उपकरणों के कार्यान्वयन के बावजूद, राज्यवार (अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और गुजरात में सबसे अधिक डायवर्ज़न दर है) लीकेज दरें चिंताजनक बनी हुई हैं।
- फर्जी लाभार्थी और पहचान धोखाधड़ी: आधार लिंकेज प्रयासों के बावजूद, प्रणाली फर्जी लाभार्थियों और डुप्लीकेट राशन कार्डों से जूझ रही है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2021 में एक आर.टी.आई. के अनुसार, ओडिशा में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत 2 लाख से अधिक फर्जी लाभार्थी थे।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत शामिल किये गए लाभार्थियों के आधार कार्ड को जोड़ने के बाद वर्ष 2013 से 2021 के दौरान 47 मिलियन से अधिक फर्जी राशन कार्ड रद्द कर दिये गए हैं।
- यह समस्या विशेष रूप से उच्च प्रवास दर वाले राज्यों में बनी हुई है, जहाँ मृतक लाभार्थियों के कार्ड अभी भी सक्रिय हैं।
- गुणवत्ता में गिरावट और भंडारण हानि: निम्न स्तरीय भंडारण अवसंरचना के कारण खाद्यान्न की गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है और मात्रा में कमी आती है।
- भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 74 मिलियन टन खाद्यान्न नष्ट हो जाता है, जो खाद्यान्न उत्पादन का 22% अथवा कुल खाद्यान्न एवं उद्यान कृषि उत्पादन का 10% है।
- लक्ष्य निर्धारण में त्रुटियाँ और समावेशन-अपवर्ज़न संबंधी मुद्दे: गैर-गरीबों का समावेशन और वास्तविक लाभार्थियों का अपवर्ज़न, दोनों ही बहुत बड़ी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- विश्व बैंक (वर्ष 2022) के आँकड़ों से पता चलता है कि 12.9% भारतीय अतिनिर्धनता में रहते हैं, जबकि PMGKAY के तहत वर्तमान कवरेज आबादी का लगभग 57% है।
- नीति आयोग (वर्ष 2024) के अनुसार, बहुआयामी गरीबी में 9 वर्षों में 29.17% से 11.28% तक की तीव्र गिरावट आएगी।
- विश्व बैंक (वर्ष 2022) के आँकड़ों से पता चलता है कि 12.9% भारतीय अतिनिर्धनता में रहते हैं, जबकि PMGKAY के तहत वर्तमान कवरेज आबादी का लगभग 57% है।
- उचित मूल्य की दुकानों में भ्रष्टाचार: उचित मूल्य की दुकानों के संचालक प्रायः अवैध कामों में लिप्त रहते हैं, जैसे- कम वज़न की तौल, अधिक कीमत वसूली और अनियमित संचालन समय।
- TPDS (नियंत्रण) आदेश, 2015 का उल्लंघन आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अंतर्गत दंडनीय है, जो राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को उल्लंघनों के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार देता है।
- वर्ष 2018 और 2020 के दौरान राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा लगभग 19,410 कार्रवाई की गईं, जिनमें FPS लाइसेंसों के विरुद्ध निलंबन, निरस्तीकरण, कारण बताओ नोटिस और FIR शामिल हैं।
- बजट संबंधी बाधाएँ और आर्थिक बोझ: खाद्य सब्सिडी बिल में वृद्धि से सरकारी वित्त पर दबाव बढ़ रहा है, जबकि कार्यकुशलता कम बनी हुई है।
- सत्र 2024-25 के दौरान केंद्र सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिये 2,05,250 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं। सत्र 2023-24 में, अनंतिम वास्तविक आँकड़े बताते हैं कि खाद्य सब्सिडी खर्च बजट अनुमान से 7% अधिक था।
- पोषण अपर्याप्तता: वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली अनाज पर केंद्रित है, जो समग्र पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहती है।
- भारत कुपोषण के तिहरे बोझ: अल्पपोषण, मोटापा और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी का सामना कर रहा है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन की वर्ष 2019-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 224.3 मिलियन लोग कुपोषित हैं।
- इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष की रिपोर्ट में बताया गया है कि 80% से अधिक भारतीय किशोर ‘अंतर्निहित भूख’ का अनुभव करते हैं।
- घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 के आँकड़ों से पता चलता है कि सत्र 2011-12 की तुलना में सत्र 2022-23 में दालों और सब्ज़ियों पर खर्च में गिरावट आई है।
- भारत कुपोषण के तिहरे बोझ: अल्पपोषण, मोटापा और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी का सामना कर रहा है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- एंड-टू-एंड डिजिटलीकरण और रियल टाइम मॉनिटरिंग: ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी और IoT सेंसर का उपयोग करके खरीद से वितरण तक व्यापक डिजिटल ट्रैकिंग को लागू करने की आवश्यकता है।
- FCI गोदामों, परिवहन वाहनों और FPS को जोड़ने वाले एकीकृत प्लेटफॉर्म के माध्यम से रियल टाइम स्टॉक अपडेट को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- अनियमितताओं का पता लगाने और चोरी को रोकने के लिये प्रमुख भंडारण एवं वितरण बिंदुओं पर AI-संचालित विश्लेषण तैनात किया जाना चाहिये।
- स्मार्ट FPS रूपांतरण: उचित मूल्य की दुकानों को वितरण इकाइयों, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और इलेक्ट्रॉनिक वज़न तराजू के साथ डिजिटल-फर्स्ट ‘स्मार्ट दुकानों’ में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
- UPI सहित डिजिटल भुगतान प्रणालियों को एकीकृत करना और FPS स्तर पर ई-केवाईसी अपडेट सक्षम किया जाना चाहिये।
- प्रत्येक अनाज लॉट के लिये क्यूआर कोड-आधारित गुणवत्ता प्रमाणन प्रणाली लागू किया जाना चाहिये। नियमित अपडेट के साथ एक सार्वजनिक गुणवत्ता निगरानी डैशबोर्ड बनाए जाने चाहिये।
- पोर्टेबल लाभ और प्रवासन सहायता: बेहतर अंतर-राज्यीय समन्वय और मानकीकृत प्रोटोकॉल के माध्यम से ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ONORC)’ कार्यान्वयन को गति देने की आवश्यकता है।
- रियल टाइम प्रवासन ट्रैकिंग और स्वचालित लाभ अंतरण के साथ एक केंद्रीकृत लाभार्थी डेटाबेस बनाया जाना चाहिये।
- मौसमी प्रवासियों के लिये गंतव्य राज्यों में अस्थायी राशन कार्ड पंजीकरण सक्षम किया जाना चाहिये।
- भंडारण अवसंरचना का आधुनिकीकरण: पारंपरिक भंडारण को तापमान और आर्द्रता नियंत्रण प्रणालियों के साथ आधुनिक साइलो में उन्नत करने की आवश्यकता है।
- IoT सेंसर और AI एनालिटिक्स का प्रयोग करके स्वचालित अनाज गुणवत्ता निगरानी प्रणाली स्थापित किया जाना चाहिये।
- छोटे, तकनीक-सक्षम स्थानीय भंडारण इकाइयों के साथ ‘हब-एंड-स्पोक भंडारण मॉडल’ विकसित किया जाना चाहिये।
- आधुनिक भंडारण अवसंरचना विकास के लिये PPP अवसर सृजित किया जाना चाहिये।
- पोषण सुरक्षा एकीकरण: चुनिंदा FPS को पोषण केंद्रों में परिवर्तित करने की आवश्यकता है, जहाँ विविध खाद्य वस्तुएँ (दालें, तेल, फोर्टिफाइड उत्पाद) उपलब्ध कराई जाएँ।
- कमज़ोर समूहों (गर्भवती महिलाओं, बच्चों) के लिये ई-रुपी न्यूट्रीशन वाउचर लागू किया जाना चाहिये।
- पोषक तत्त्वों से भरपूर कदन्न को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करने से भारत में कुपोषण, मोटापे और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी से निपटने में मदद मिल सकती है।
- कर्नाटक और ओडिशा जैसे राज्यों ने कदन्न को सफलतापूर्वक शामिल किया है, ओडिशा का कदन्न मिशन (OMM) PDS के माध्यम से कदन्न की खपत को पुनर्जीवित करने के लिये एक मॉडल प्रदान करता है।
- संकट प्रतिक्रिया संवर्द्धन: पूर्वनिर्धारित स्टॉक के साथ स्वचालित आपदा प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- मोबाइल PDS इकाइयों का प्रयोग करके आपातकालीन वितरण नेटवर्क बनाया जाना चाहिये। महामारी जैसी स्थितियों के लिये विशेष प्रोटोकॉल लागू किया जाना चाहिये। सरलीकृत प्रक्रियाओं का उपयोग करके आपात स्थिति के दौरान लाभार्थियों का त्वरित सत्यापन सक्षम किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) कई सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs)— गरीबी उन्मूलन (SDG 1), भूखमरी उन्मूलन (SDG 2), अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण (SDG 3), एवं जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन (SDG 12) को प्राप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। लीकेज, अकुशलता और पोषण अपर्याप्तता के मुद्दों को हल करके तथा डिजिटलीकरण, बेहतर बुनियादी अवसंरचना एवं पोषण विविधता पर ध्यान केंद्रित करने जैसे सुधारों को लागू करके, भारत एक अधिक कुशल व प्रभावी PDS सुनिश्चित कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. “तकनीकी हस्तक्षेपों के बावजूद, भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) कुशलता सुनिश्चित करने और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना कर रही है।” इसे और अधिक कुशल बनाने के लिये व्यापक सुधारों पर चर्चा करते हुए सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न 2. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न 1. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) |