नीतिशास्त्र
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की पहल एंव उपलब्धियाँ
- 26 Dec 2017
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चर्चा में क्यों?
आम लोगों तक सस्ता खाद्यान्न पहुँचाने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। यह कार्य केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की संयुक्त ज़िम्मेदारी से किया जाता है। भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली खाद्यान्न वितरण के संदर्भ में विश्व का सबसे बड़ा नेटवर्क है। केंद्र सरकार सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराती है और उसका वितरण स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा आवंटित उचित दर की दुकानों (राशन की दुकान) के द्वारा किया जाता है।
- संसद के शीतकालीन सत्र में वर्ष 2017 के दौरान खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की मुख्य गतिविधियों के विषय में संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत किया गया, जिसके कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
- समाज के अति-निर्धन वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्योदय अन्न योजना में इस कानून के तहत सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है।
- पूरे देश में यह कानून लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है।
- जुलाई 2016 तक वैध एनएफएसए के तहत निर्दिष्ट खाद्यान्नों की कीमत – चावल 3 रुपए प्रति किग्रा, गेहूँ 2 रुपए प्रति किग्रा और मोटा अनाज 1 रुपए प्रति किग्रा को जून 2018 तक जारी रखा गया है।
- वित्त वर्ष 2017-18 (13-12-2017 तक) के दौरान खाद्यान्नों के अंतर-राज्य आवागमन पर किये गए व्यय और उचित दर दुकानों के डीलरों के मार्जिन को पूरा करने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को केन्द्रीय सहायता के रूप में 2959.22 करोड़ रुपए जारी किये गए। एनएफएसए के अंतर्गत इस तरह की व्यवस्था पहली बार की गई है।
टीपीडीएस (Targeted Public Distribution System –TPDS) परिचालन का एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण
- राशन कार्ड/लाभार्थी रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के परिणामस्वरूप, वर्ष 2013 से 2017 (नवंबर 2017 तक) तक आधार लिंकिंग के कारण जाली कार्डों का समापन, हस्तांतरण/पलायन/मृत्यु, लाभार्थी की आर्थिक स्थिति में बदलाव और एनएफएसए के कार्यान्वयन के दौरान, कुल 2.75 करोड़ राशन कार्ड राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों द्वारा नष्ट/रद्द किये जा चुके हैं।
- इसके आधार पर सरकार करीब 17,500 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष की खाद्य सब्सिडी को उचित व्यक्ति तक पहुँचाने का लक्ष्य हासिल करने में सफल रही है।
- लक्षित सार्वजिनक वितरण प्रणाली के आधुनिकीकरण और उसमें पारदर्शिता लाने के लिये विभाग टीपीडीएस परिचालन के एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण योजना को करीब 884 करोड़ रुपए की लागत से राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों के साथ लागत साझा करने के आधार पर कार्यान्वित कर रहा है।
- यह योजना राशन कार्डों एवं लाभार्थियों के रिकॉर्ड एंव आपूर्ति श्रंखला प्रबंधन का कंप्यूटरीकरण तथा पारदर्शिता पोर्टल और शिकायत निपटान प्रणाली के गठन आदि की सुविधा प्रदान करती है।
- फर्जी/अयोग्य लाभार्थियों की पहचान करने और उन्हें निरस्त करने तथा उचित व्यक्ति तक खाद्यान्न सब्सिडी पहुँचाने की व्यवस्था को सक्षम बनाने के लिये राज्य/केन्द्र-शासित प्रदेशों द्वारा लाभार्थियों की आधार संख्या को उनके राशन-कार्डों के साथ जोड़ने का कार्य किया जा रहा है।
- वर्तमान में कुल राशन-कार्ड के 81.35 फीसदी कार्डों को आधार कार्ड के साथ जोड़ा जा चुका है।
- योजना के एक अंग के रूप में, खाद्यान्न आवंटन के लिये उचित दर दुकानों पर कुल बिक्री के लेन-देन का इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड रखने और प्रमाणीकरण के लिये इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल (ईपीओएस) उपकरण को लगाया जा रहा है।
- अभी तक, 23 राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों की कुल 5.27 लाख उचित दर दुकानों में से 2.83 लाख एफपीएस पर ईपीओएस उपकरणों को लगाया जा चुका है।
क्या है DBT?
- मूल रूप से यह योजना उस धन का दुरुपयोग रोकने के लिये है, जिसे किसी भी सरकारी योजना के लाभार्थी तक पहुँचने से पहले ही बिचौलिये तथा अन्य भ्रष्टाचारी हड़पने की जुगत में रहते हैं।
- प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से जुड़ी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी बिचौलिये का कोई काम नहीं है और यह योजना सरकार और लाभार्थियों के बीच सीधे चलाई जा रही है।
- इस योजना के तहत केंद्र सरकार लाभार्थियों को विभिन्न योजनाओं के तहत सब्सिडी का भुगतान सीधे उनके बैंक खाते में कर देती है। लाभार्थियों को भुगतान उनके आधार कार्ड के ज़रिये किया जा रहा है।
डीबीटी के हाइब्रिड मॉडल का शुभारंभ
- झारखंड के रांची ज़िले के नगरी ब्लॉक में अक्टूबर 2017 से “पहल” योजना की तर्ज़ पर डीबीटी की एक पायटल योजना की शुरुआत की गई।
- इस योजना के तहत, योग्य एनएफएसए लाभार्थियों को महीने की शुरुआत में अग्रिम धनराशि के रूप में सब्सिडी राशि का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में किया जाता है।
- सब्सिडी की राशि बैंक खाते में आने पर लाभार्थी अपने अधिकार के अनुसार पॉइंट ऑफ सेल उपकरण पर ऑथेंटिकेशन के बाद नाममात्र की लागत पर उचित दर दुकान से खाद्यान्न की खरीद कर सकता है।
- केन्द्रीय इश्यू दर लाभार्थी द्वारा दी जाती है। यह मॉडल एमएसपी दरों पर किसानों से खरीद की प्रक्रिया को लगातार समर्थन देता है।
राशन कार्डों की अंतःराज्य पोर्टेबिलिटीः
- पीडीएस लाभार्थियों को अपने अधिकृत अनाज को राज्य में ईपीओएस उपकरण वाली किसी भी उचित दर दुकान से लेने में सक्षम बनाने की सुविधा आंध्र प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ (750 एफपीएस) और तेलंगाना (2273 एफपीएस) में शुरू की जा चुकी है।
पीडीएस का एकीकृत प्रबंधन (आईएम-पीडीएस)
- पीडीएस परिचालन की राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टेबिलिटी, केन्द्रीय डाटा भंडार और केन्द्रीय निगरानी प्रणाली को कार्यान्वित करने की दिशा में सार्वजनिक वितरण प्रणाली नेटवर्क स्थापित करने के लिये वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 में एक नई केन्द्रीय स्तर की योजना को कार्यान्वयन किये जाने के लिये मज़ूरी दी जा चुकी है।
ईपीओएस लेन-देन पोर्टल का शुभारंभः
- लाभार्थियों को सब्सिडी आधारित खाद्यान्न वितरित करने के लिये ईपीओएस के ज़रिये इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन प्रदर्शित करने की दिशा में “अन्नवितरण पोर्टल (⦁www.annavitran.nic.in)” लागू किया गया।
- यह पोर्टल ज़िला स्तर पर आवंटित और वितरित खाद्यान्न के अलावा लाभार्थियों के आधार ऑथेंटिकेशन की वृहद् तस्वीर भी दर्शाता है।
किसानों को समर्थन
- 2016-17 केएमएस के दौरान 381.07 लाख मीट्रिक टन धान (चावल के मामले में) की रिकॉर्ड मात्रा खरीदी गई। 2015-16 केएमएस के दौरान यह 342.18 मीट्रिक टन थी।
- आरएमएस 2017-18 के दौरान 308.24 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की खरीद की गई, जोकि पिछले पाँच वर्षों के दौरान सबसे अधिक है। 2016-17 में यह 229.61 लाख मीट्रिक टन थी।
खाद्य प्रबंधन में सुधार
- केएमएस 2017-18 से खरीदे गए धान की पैकेजिंग के लिये उपयोग शुल्क पर सभी राज्यों और एफसीआई से परामर्श के साथ नए दिशानिर्देश लागू किये गए हैं।
- ऐसा अनुमान है कि उपर्युक्त योजना से प्रत्येक सीज़न में करीब 600 करोड़ रुपए तक बचाया जा सकता है।
- एफसीआई द्वारा एक वर्ष में लगभग 40 मिलियन टन खाद्यान्न को देश भर से अपने गोदामों तक लाया जाता है। खाद्यान्न की आवाजाही रेल, रोड, समुद्र, तट और नदी व्यवस्था के माध्यम से की जाती है।
- वर्ष 2016-17 में 13 कंटेनर आधारित खाद्यान्न की आवाजाही हुई, जिससे करीब 44 लाख रुपए के मालभाड़े की बचत हुई।
- 2017-18 के दौरान एफसीआई ने 58 कंटेनर रेक्स (15.10.2017 तक) को स्थानांतरित किया है, जिससे लगभग 159 लाख रुपए के माल भाड़े की बचत हुई है।
भंडारण विकास और विनियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए)
- डब्ल्यूडीआरए के साथ भंडारण के लिये पंजीकरण प्रक्रिया को सरल किया गया है।
- नए नियम डब्ल्यूडीआरए के साथ भंडारण के तौर पर जुड़ने वालों की संख्या में बढ़ोतरी को प्रोत्साहित करेंगे।
- यह योग्य भंडारण रसीद (एनडब्ल्यूआर) प्रणाली को मज़बूत करेगा। इस वर्ष के दौरान अब तक करीब 90.35 करोड़ ऋण की सुविधा एनडब्ल्यूआर के तहत ली जा चुकी है।
- भंडारण की पंजीकरण प्रक्रिया में बदलाव लाने और पेपर आधारित एनडब्ल्यूआर की जगह ईएनडब्ल्यूआर जारी करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक बातचीत आधारित भंडारण रसीद (ईएनडब्ल्यूआर) प्रणाली और डब्ल्यूडीआरए पोर्टल शुरू किया गया। यह अधिक विश्वसनीय वित्तीय उपकरण साबित होगा।
चीनी क्षेत्र
- पिछले पाँच सालों के दौरान चीनी स्टॉक की निरंतर अधिकता के कारण 15-04-2015 तक 2014-15 के लिये गन्ना मूल्य बकाया संपूर्ण भारत के स्तर पर 21837 करोड़ रूपए पर पहुँच गया।
- गन्ने की कीमतों के बकाए को निपटाने के क्रम में केन्द्र सरकार ने 4305 करोड़ रुपए का सॉफ्ट ऋण मुहैया कराना, कच्ची चीनी निर्यात प्रोत्साहन योजना के ज़रिये 425 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान करना, 539 करोड़ रुपए की उत्पादन सब्सिडी देना और 2015-16 सीज़न के लिये किसानों को गन्ने की फसल की बकाया राशि का समय पर भुगतान आदि कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।
- उन उपायों के परिणामस्वरूप 2014-15 सीज़न के लिये किसानों के बकाया का 99.33 फीसदी भुगतान और 2015-16 के लिये किसानों के बकाया का 99.77 (उचित और लाभकारी मूल्य आधार पर) फीसदी भुगतान किया जा चुका है।
- चीनी सीज़न 2016-17 के संबंध में उचित और लाभकारी मूल्य आधार पर गन्ने का करीब 99.47 फीसदी बकाया भी निपटाया जा चुका है।
- चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाने और चुनिंदा क्षेत्रों में ही चीनी आयात की अनुमति देने सहित विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप देश भर में इस वर्ष गन्ने का कम उत्पादन होने के बावजूद चीनी की कीमतें स्थिर बनी रही।
- इन नीतियों ने न केवल स्थिर कीमतें सुनिश्चित की, बल्कि घरेलू उत्पादन में भी बाधा नहीं डाली। इसके साथ ही इन नीतियों ने समय पर किसान के बकाया का भुगतान करने में सरकारों को सक्षम बनाया।