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भारतीय राजव्यवस्था

संसदीय समितियाँ

  • 08 Oct 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय समितियाँ, अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 118, अध्यक्ष, राज्यसभा, लोकसभा

मेन्स के लिये:

संसदीय समितियाँ और इनका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 22 स्थायी समितियों का पुनर्गठन हुआ।

संसदीय समितियाँ:

  • परिचय:
    • संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
    • समिति अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है और यह अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है।
    • संसदीय समितियों की उत्पत्ति ब्रिटिश संसद में हुई है।
    • वे अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 118 से अपना अधिकार प्राप्त करते हैं।
      • अनुच्छेद 105 सांसदों के विशेषाधिकारों से संबंधित है।
      • अनुच्छेद 118 संसद को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है।
  • आवश्यकता:
    • विधायी कार्य शुरू करने के लिये संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत किया जाता है लेकिन कानून बनाने की प्रक्रिया अक्सर जटिल होती है तथा संसद के पास विस्तृत चर्चा के लिये सीमित समय होता है।
    • साथ ही राजनीतिक ध्रुवीकरण और चर्चा हेतु सामंजस्य का अभाव संसद में तेज़ी से विद्वेषपूर्ण और अनिर्णायक बहसों को जन्म दे रहा है।
      • इन मुद्दों के कारण विधायी कार्य का एक बड़ा निर्णय संसद के बज़ाय संसदीय समितियों में होता है।

संसद की विभिन्न समितियाँ:

  • भारत की संसद में कई प्रकार की समितियाँ हैं। उन्हें उनके काम, उनकी सदस्यता और उनके कार्यकाल के आधार पर विभेदित किया जा सकता है।
  • तथापि मोटे तौर पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ।
    • स्थायी समितियाँ स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) होती हैं और निरंतर आधार पर काम करती हैं।
      • स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
        • वित्तीय समितियाँ
        • विभागीय स्थायी समितियाँ
        • जाँच हेतु समितियाँ
        • जाँच और नियंत्रण के लिये समितियाँ
        • सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्य से संबंधित समितियाँ
        • हाउस कीपिंग या सर्विस कमेटी
    • जबकि तदर्थ समितियाँ अस्थायी होती हैं और उन्हें सौंपे गए कार्य के पूरा होने पर उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
      • उन्हें आगे जाँच समितियों और सलाहकार समितियों में विभाजित किया गया है।
      • प्रमुख तदर्थ समितियाँ विधेयकों पर प्रवर और संयुक्त समितियाँ हैं।

 संसदीय समितियों का महत्त्व:

  • विधायी विशेषज्ञता प्रदान करना:
    • अधिकांश सांसद चर्चा किये जा रहे विषयों के विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं, जो जनता की समस्या को समझते हैं लेकिन निर्णय लेने से पूर्व विशेषज्ञों और हितधारकों की सलाह पर भरोसा करते हैं।
      • संसदीय समितियाँ सांसदों को विशेषज्ञता हासिल करने में मदद करती हैं और उन्हें मुद्दों पर विस्तार से सोचने का समय देती हैं।
  • लघु-संसद के रूप में कार्य करना:
    • ये समितियाँ एक लघु-संसद के रूप में कार्य करती हैं, क्योंकि उनके पास विभिन्न दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद होते हैं, जो संसद में उनकी ताकत के अनुपात में, एकल संक्रमणीय चुनाव प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं।
  • विस्तृत जाँच के लिये साधन:
    • जब इन समितियों को बिल भेजे जाते हैं, तो उनकी बारीकी से जाँच की जाती है और जनता सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से इनपुट मांगे जाते हैं।
  • सरकार पर नियंत्रण प्रदान करता है:
    • हालाँकि समिति की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन उनकी रिपोर्टें उन परामर्शों का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड बनाती हैं जो बहस योग्य प्रावधानों पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिये सरकार पर दबाव डालती हैं।
    • बंद दरवाजे और लोगों की नज़रों से दूर होने के कारण समिति की बैठकों में चर्चा भी अधिक सहयोगी होती है, जिसमें सांसद मीडिया दीर्घाओं के लिये कम दबाव महसूस करते हैं।

संसदीय समितियों को कम महत्त्व दिये जाने से संबद्ध मुद्दे:

  • सरकार की संसदीय प्रणाली का कमज़ोर होना:
    • संसदीय लोकतंत्र संसद और कार्यपालिका के बीच शक्तियों को समेकित करने के सिद्धांत पर काम करता है, लेकिन संसद से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह सरकार की ज़िम्मेदारी को बनाए रखने के साथ ही इसकी शक्तियों पर भी नियंत्रण बनाए रखे।
      • इस प्रकार महत्त्वपूर्ण विधानों को पारित करते समय संसदीय समितियों को महत्त्व न दिये जाने या उन्हें दरकिनार करने से लोकतंत्र के कमज़ोर होने का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
  • ब्रूट मेजोरिटी को लागू करना:
    • भारतीय प्रणाली में यह अनिवार्य नहीं है कि विधेयक समितियों को भेजे जाएँ। यह अध्यक्ष (लोकसभा में स्पीकर और राज्यसभा में सभापति) के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
      • अध्यक्ष को विवेकाधीन शक्ति प्रदान कर इस प्रणाली को विशेष तौर पर लोकसभा में जहाँ बहुमत सत्तारूढ़ दल के पास होता है, को कमज़ोर रूप में प्रस्तुत किया गया है।

आगे की राह

  • पारित किये गए महत्त्वपूर्ण विधेयकों की जाँच अनिवार्य रूप से विधायी प्रक्रिया में बाधा नहीं है, बल्कि कानून की गुणवत्ता और विस्तार से शासन की गुणवत्ता को बनाए रखना आवश्यक है।
  • इस प्रकार कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद की शुचिता सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत संसदीय समिति प्रणाली की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सी संसदीय समिति जाँच करती है और सदन को रिपोर्ट करती है कि संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों, उप-नियमों, उप-विधियों आदि को बनाने की शक्तियों का कार्यपालिका द्वारा प्रतिनिधिमंडल के दायरे में उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है

(a) सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति
(b) अधीनस्थ विधान संबंधी समिति
(c) नियम समिति
(d) कार्य मंत्रणा समिति

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • सरकारी आश्वासन संबंधी समिति: इस समिति का कार्य समय-समय पर मंत्रियों द्वारा दिये गए आश्वासनों, वादों और उपक्रमों आदि की सदन के पटल पर जाँच करना है। लोकसभा में इसके सदस्यों की संख्या 15 है, जबकि राज्यसभा में 10 सदस्य हैं।
  • अधीनस्थ विधान संबंधी समिति: इस समिति का कार्य इस बात की जाँच करना और सदन को रिपोर्ट करना है कि क्या संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्यायोजित विनियमों, नियमों एवं उप-नियमों, उप-विधियों आदि को बनाने की शक्तियों का ऐसे प्रतिनिधिमंडल के भीतर उचित रूप से प्रयोग किया जा रहा है। लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों के लिये यह 15 सदस्यीय निकाय है।
  • नियम समिति: इसका कार्य सदन में प्रक्रिया और कार्य संचालन के मामलों पर विचार करना और इन नियमों में किसी भी संशोधन या परिवर्धन की सिफारिश करना है जिसे आवश्यक समझा जा सकता है। लोकसभा के लिये यह 15 सदस्यीय निकाय है, जबकि राज्यसभा में 16 सदस्य हैं। समिति की अध्यक्षता राज्यसभा और लोकसभा के लिये क्रमश: सभापति या अध्यक्ष करते हैं।
  • इस समिति का कार्य यह सिफारिश करना है कि सरकार द्वारा लाए जाने वाले विधायी तथा अन्य कार्यों को निपटाने के लिए कितना समय नियत किया जाए।
  • कार्य मंत्रणा समिति: इस समिति का कार्य उस समय की सिफारिश करना है जो ऐसे सरकारी विधायी और अन्य कार्य की चर्चा के लिये आवंटित किया जाना चाहिये क्योंकि अध्यक्ष, सदन के नेता के परामर्श से, इसे समिति को भेजे जाने का निर्देश दे सकता है। यह लोकसभा में 15 सदस्यीय निकाय है जिसकी अध्यक्षता सदन के अध्यक्ष करते हैं। इसलिये विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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