नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


भारतीय राजनीति

भूमि अधिग्रहण पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

  • 07 Mar 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013

मेन्स के लिये:

भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया और इसके मुआवज़े से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया और इसके मुआवज़े के संदर्भ में वर्ष 2018 के अपने एक पूर्व निर्णय को पुनर्स्थापित करते हुए यह स्पष्ट किया कि भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के लिये दिये जाने वाले मुआवज़े के राजकोष (Treasury) में जमा होने के बाद भूमि अधिग्रहण को अवैध नहीं माना जाएगा।

मुख्य बिंदु:

  • 6 मार्च, 2020 के अपने फैसले के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय पीठ ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत भूमि अधिग्रहण की वैधता से संबंधित समयसीमा के संदर्भ में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) की व्याख्या को स्पष्ट किया है।
  • ध्यातव्य है कि 1 जनवरी, 2014 को लागू किया गया भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 ब्रिटिश काल के भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 को स्थानांतरित करता है।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) के अनुसार, इस अधिनियम के लागू होने की तिथि से पाँच वर्ष या इससे पूर्व के भूमि अधिग्रहण मामलों में यदि भूमि अधिग्रहण (भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत) के पाँच वर्ष के अंदर भूमि का उपयोग नहीं किया गया हो या मुआवज़े की राशि भू-मालिक को न प्रदान की गई हो, तो उस स्थिति में भूमि अधिग्रहण को अवैध माना जाएगा।
  • गौरतलब है कि हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय की अलग-अलग पीठों द्वारा भूमि-अधिग्रहण के कई मामलों में मुआवज़े के जारी होने और मुआवज़े की प्राप्ति के संदर्भ अधिनियम की धारा 24(2) की व्याख्या में मतभेद पाए गए थे।
  • हालिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि यदि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 से संबंधित मामलों में अधिग्रहण की तिथि से पाँच वर्षों के अंदर (सरकार या निजी संस्थान) द्वारा मुआवज़े की राशि को सरकारी राजकोष में जमा करा दिया गया हो तो ऐसी स्थिति में भूमि अधिग्रहण को अवैध नहीं माना जाएगा।

भूमि अधिग्रहण क्या है?

भूमि अधिग्रहण से आशय (भूमि खरीद की) उस प्रक्रिया से है, जिसके तहत केंद्र या राज्य सरकार सार्वजनिक हित से प्रेरित होकर क्षेत्र के बुनियादी विकास, औद्योगीकरण या अन्य गतिविधियों के लिये नियमानुसार नागरिकों की निजी संपत्ति का अधिग्रहण करती हैं। इसके साथ ही इस प्रक्रिया में प्रभावित लोगों को उनके भूमि के मूल्य के साथ ही उनके पुनर्वास के लिये मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।

भूमि अधिग्रहण के कानूनी प्रावधान:

  • भारत में भूमि अधिग्रहण से संबंधित कानून की अवधारणा ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
  • भूमि अधिग्रहण 1894 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग कर ब्रिटिश सरकार आसानी से भू-मालिकों की ज़मीन बिना उनकी अनुमति के ले सकती थी।
  • भारत में स्वतंत्रता के बाद भी कई अन्य महत्त्वपूर्ण कानूनों की तरह ही लंबे समय तक (भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 लागू होने से पहले तक) भूमि अधिग्रहण के लिये ब्रिटिश शासन के दौरान बने भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 का अनुसरण किया गया।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने तथा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिये विभिन्न समितियों के सुझावों के आधार पर भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 का मसौदा तैयार किया गया।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013:

  • इस अधिनियम को “भूमि अधिग्रहण, पुनरुद्धार, पुनर्वासन में उचित प्रतिकार तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013” (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) नाम से भी जाना जाता है।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के लाभ:

  • इस अधिनियम के अनुसार, भूमि अधिग्रहण के लिये निजी क्षेत्र की परियोजनाओं और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) परियोजना हेतु क्रमशः कम-से-कम 80% और 70% भू-मालिकों की सहमति को अनिवार्य कर दिया गया, जबकि वर्ष 1984 के अधिनियम में ऐसा नहीं था।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में भूमि अधिग्रहण के लिये ‘सार्वजनिक उद्देश्य’ की स्पष्ट व्याख्या की गई है, ताकि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाया जा सके।
  • इस अधिनियम में ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के अधिग्रहण के लिये बाज़ार मूल्य का चार गुना तथा शहरी क्षेत्र में बाज़ार मूल्य से दोगुनी कीमत अदा करने की व्यवस्था की गई।
  • अधिनियम के अनुसार, यदि 1 वर्ष के अंदर लाभार्थियों को मुआवज़े की राशि नहीं प्रदान की जाती है तो अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द हो जाएगी (धारा 25)।
  • इसके साथ ही इस अधिनियम में कृषि के महत्त्व को देखते हुए बहु-फसलीय (Multi-Crop) भूमि के अधिग्रहण को प्रोत्साहित नहीं किया गया है। अधिनियम की धारा-10 के अनुसार,बहु-फसलीय कृषि भूमि का अधिग्रहण केवल विशेष परिस्थितियों में और एक सीमा तक ही किया जा सकता है।

निष्कर्ष: भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 में भूमि अधिग्रहण से लेकर मुआवज़े तक की प्रक्रिया में स्पष्टता के अभाव में यह अधिनियम वर्षों से भू-मालिकों और सरकार के बीच तनाव का एक कारण बना रहा। भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 के माध्यम से जहाँ भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने में सफलता प्राप्त हुई थी, वहीं सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के बाद अधिनियम की धारा 24(2) की व्याख्या के संदर्भ में व्याप्त मतभेद दूर करने में सहायता प्राप्त होगी, जिससे देश के विभिन्न न्यायालयों में लंबित मामलों का निस्तारण किया जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow