आंतरिक सुरक्षा
BSF क्षेत्राधिकार का विस्तार
- 29 Jan 2024
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:सीमा सुरक्षा बल (BSF), सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC),1973, पासपोर्ट अधिनियम 1967, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920, मादक औषधियाँ (नारकोटिक ड्रग्स) और ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 मेन्स के लिये:BSF क्षेत्राधिकार का विस्तार, आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियाँ पैदा करने में बाहरी राज्य और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की भूमिका। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court - SC) पंजाब में सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force- BSF) के अधिकार क्षेत्र के विस्तार के विवाद पर सुनवाई करने के लिये तैयार है।
- गृह मंत्रालय द्वारा 2021 में, एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम को शामिल करने के लिये BSF के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया गया था, बाद में पंजाब सरकार द्वारा इसे चुनौती दी।
सीमा सुरक्षा बल (BSF) क्या है?
- BSF की स्थापना वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की गई थी।
- यह गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs - MHA) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत संघ के सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है।
- अन्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल हैं: असम राइफल्स (AR), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF), राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) और सशस्त्र सीमा बल (SSB)
- 2.65 लाख पुलिस बल पाकिस्तान और बांग्लादेश सीमा पर तैनात हैं।
- इसे भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा, भारत-बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय सेना के साथ तथा नक्सल विरोधी अभियानों में तैनात किया जाता है।
- BSF अपने जलयानों के अत्याधुनिक बेड़े के साथ अरब सागर में सर क्रीक और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन डेल्टा की रक्षा कर रहा है।
- यह प्रत्येक वर्ष अपनी प्रशिक्षित जनशक्ति की एक बड़ी टुकड़ी भेजकर संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में समर्पित सेवाओं का योगदान देता है।
BSF क्षेत्राधिकार क्यों बढ़ाया गया?
- BSF का क्षेत्राधिकार:
- BSF का उद्देश्य अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत की सीमाओं को सुरक्षित करना है और इसे कई कानूनों के तहत गिरफ्तार करने, तलाशी लेने तथा ज़ब्त करने का अधिकार है। जैसे कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC),1973, पासपोर्ट अधिनियम 1967, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920, और नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 आदि।
- BSF अधिनियम की धारा 139(1) केंद्र सरकार को एक आदेश के माध्यम से, "भारत की सीमाओं से सटे ऐसे क्षेत्र की स्थानीय सीमा के भीतर" एक क्षेत्र को नामित करने की अनुमति देती है, जहाँ BSF के सदस्य किसी भी अधिनियम के तहत अपराध को रोकने के लिये शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। जिसे केंद्र सरकार निर्दिष्ट कर सकती है।
- BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार:
- अक्टूबर 2021 में, जारी अधिसूचना से पहले BSF पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा के 15 किलोमीटर के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता था। केंद्र ने इसका विस्तार सीमा के 50 किलोमीटर के अंदर तक कर दिया है।
- अधिसूचना में कहा गया है कि 50 किलोमीटर के बड़े क्षेत्राधिकार के भीतर, BSF केवल CrPC, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
- अन्य केंद्रीय कानूनों के लिये, 15 किलोमीटर की सीमा बनी हुई है।
- मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख राज्यों में यह राज्य के पूरे क्षेत्र तक फैला हुआ है।
- अक्टूबर 2021 में, जारी अधिसूचना से पहले BSF पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में सीमा के 15 किलोमीटर के भीतर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता था। केंद्र ने इसका विस्तार सीमा के 50 किलोमीटर के अंदर तक कर दिया है।
- क्षेत्राधिकार के विस्तार के कारण:
- ड्रोन और UAV का उपयोग बढ़ा: BSF के अधिकार क्षेत्र का विस्तार, ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहनों (Unmanned Aerial Vehicles - UAV) के बढ़ते उपयोग के जवाब में किया गया था, जो लंबी दूरी तय करने की क्षमता रखते हैं और हथियारों तथा जाली मुद्रा की तस्करी के लिये उपयोग किये जाते हैं।
- मवेशी तस्करी: मवेशी तस्करी एक और मुद्दा है जिससे निपटना BSF का लक्ष्य है। क्षेत्राधिकार का विस्तार BSF को उन तस्करों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने में सहायता करता है जो इन सैन्य बलों के मूल क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों का लाभ उठाने का प्रयास कर सकते हैं।
- तस्कर प्रायः BSF के क्षेत्राधिकार से बाहर शरण लेते हैं।
- समान क्षेत्राधिकार: पंजाब, पश्चिम बंगाल और असम में BSF क्षेत्राधिकार का विस्तार 50 किलोमीटर की सीमा को मानकीकृत करके भारत के सभी राज्यों में BSF के अधिकार क्षेत्र में एकरूपता स्थापित करता है, जो पहले से ही राजस्थान में लागू थी।
- इसके अतिरिक्त, अधिसूचना ने गुजरात में क्षेत्राधिकार को 80 किलोमीटर से घटाकर 50 किलोमीटर कर दिया।
BSF क्षेत्राधिकार के विस्तार से संबंधित राज्यों द्वारा उठाए गए मुद्दे क्या हैं?
- राज्य की शक्तियों के संदर्भ में चिंताएँ:
- BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार पुलिस और लोक व्यवस्था से संबंधित मामलों पर कानून बनाने की राज्य की विशेष शक्तियों का अतिक्रमण कर सकता है।
- ये शक्तियाँ संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार राज्य सूची की प्रविष्टि 1 और 2 के तहत राज्यों को प्रदान की गई हैं।
- हालाँकि केंद्र सरकार के पास संघ सूची की प्रविष्टि 1 (भारत की रक्षा), 2 (सशस्त्र बल) और 2A (सशस्त्र बलों की तैनाती) के तहत निर्देश जारी करने की विधायी क्षमता भी है।
- BSF के क्षेत्राधिकार का विस्तार करके, केंद्र सरकार ने उन क्षेत्रों में कदम बढ़ा दिया है जहाँ पारंपरिक रूप से राज्यों का अधिकार है।
- असहयोगी संघवाद:
- कुछ राज्य BSF के क्षेत्राधिकार के विस्तार को संघवाद के सिद्धांतों के लिये एक चुनौती के रूप में देखते हैं, जो केंद्र सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण पर ज़ोर देता है।
- भौगोलिक अंतर:
- पंजाब में, बड़ी संख्या में शहर और कस्बे 50 किलोमीटर के क्षेत्राधिकार में आते हैं, जबकि गुजरात तथा राजस्थान में, अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्र बहुत कम आबादी वाले हैं, जिनमें मुख्य रूप से दलदली भूमि या रेगिस्तान शामिल हैं।
- यह भौगोलिक अंतर क्षेत्राधिकार विस्तार के प्रभाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक है।
राज्यों के क्षेत्राधिकार से समझौता किये बिना सीमा प्रबंधन हेतु क्या करने की आवश्यकता है?
- सहयोगात्मक दृष्टिकोण:
- सीमा सुरक्षा को संयुक्त रूप से प्रबंधित करने के लिये केंद्रीय और राज्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- विभिन्न सुरक्षा बलों के बीच सूचना साझा करने और समन्वय के लिये एक रूपरेखा स्थापित करने की आवश्यकता है।
- विशिष्ट सीमा क्षेत्रों के लिये केंद्रीय और राज्य पुलिस कर्मियों को शामिल करते हुए संयुक्त कार्य बल के गठन की आवश्यकता है।
- राज्य पुलिस की भागीदारी:
- BSF जैसे केंद्रीय बलों के प्रयासों को पूरा करने के लिये सीमा निगरानी में राज्य पुलिस की इकाइयों को शामिल करने की आवश्यकता है।
- तटरक्षक बल और भारतीय नौसेना द्वारा समुद्र में की गई व्यवस्था के समान एक मॉडल अपनाने की आवश्यकता है, जहाँ प्रत्येक बल के पास विशेष क्षेत्राधिकार तो हों लेकिन सभी पारस्परिक सतर्कता में संलग्न रहें।
- BSF जैसे केंद्रीय बलों के प्रयासों को पूरा करने के लिये सीमा निगरानी में राज्य पुलिस की इकाइयों को शामिल करने की आवश्यकता है।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण:
- सीमा पर निगरानी बढ़ाने के लिये ड्रोन, सेंसर और संचार प्रणालियों सहित उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियों में निवेश किया जाना चाहिये।
- एक केंद्रीकृत सूचना-साझाकरण प्लेटफॉर्म स्थापित किया जाना चाहिये जो रियल-टाइम एनालिसिस/वास्तविक समय विश्लेषण के लिये विभिन्न स्रोतों से डेटा को एकीकृत करता है।
- स्पष्ट कानूनी ढाँचा:
- एक स्पष्ट कानूनी ढाँचा विकसित किया जाना चाहिये जो सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रीय और राज्य बलों दोनों की भूमिकाओं, ज़िम्मेदारियों एवं क्षेत्राधिकार को रेखांकित करे।
- सीमा पार की घटनाओं से निपटने और आवश्यकता पड़ने पर संयुक्त जाँच करने के लिये प्रोटोकॉल स्थापित किया जाना चाहिये।
- नियमित परामर्श:
- सीमा प्रबंधन से संबंधित चिंताओं और चुनौतियों के समाधान के लिये केंद्र तथा राज्य अधिकारियों के बीच नियमित परामर्श एवं बैठक आयोजित करने की आवश्यकता है।
- उभरती सुरक्षा गतिशीलता के आधार पर रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिये निरंतर संवाद हेतु एक मंच स्थापित किया जाना चाहिये।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- सीमा सुरक्षा मामलों पर पड़ोसी देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिये राजनयिक पहल में संलग्न होने की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये पड़ोसी देशों के साथ संयुक्त पहल, सूचना साझाकरण और समन्वित गश्ती/सुरक्षा गतिविधि की आवश्यकता है।
राज्यों में सशस्त्र बलों की तैनाती से संबंधित सांविधानिक उपबंध क्या हैं?
- अनुच्छेद 355 के तहत केंद्र सरकार को किसी राज्य को "बाह्य आक्रमण तथा आंतरिक अशांति" से संरक्षा करने के लिये सेना तैनात करने का अधिकार है, इनमें वे मामले भी शामिल हैं जिनमें राज्य द्वारा केंद्र से सहायता का अनुरोध नहीं किया गया है एवं केंद्रीय बलों की सहायता प्राप्त करने में अनिच्छुक है।
- संघ के सशस्त्र बलों की तैनाती के लिये किसी राज्य के विरोध के मामले में केंद्र के लिये सही रास्ता पहले संबंधित राज्य को अनुच्छेद 355 के तहत निर्देश जारी करना है।
- राज्य द्वारा केंद्र सरकार के निर्देश का अनुपालन नहीं करने की स्थिति में केंद्र अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत आगे की कार्रवाई कर सकता है।
भारत में केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित सांविधानिक उपबंध क्या हैं?
- विधायी संबंध:
- संविधान के भाग-XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
- भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति के आलोक में यह क्षेत्र और विधि दोनों ही आधार पर केंद्र तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों को विभाजित करता है।
- विधायी विषयों का विभाजन (अनुच्छेद 246): भारतीय संविधान में सातवीं अनुसूची में तीन सूचियों: सूची- I (संघ), सूची- II (राज्य) और सूची- III (समवर्ती) के माध्यम से केंद्र तथा राज्यों के बीच विभिन्न विषयों के विभाजन का प्रावधान किया गया है।
- राज्य के क्षेत्राधिकार में संसदीय विधान (अनुच्छेद 249): असामान्य परिस्थिति में शक्तियों के इस विभाजन को संशोधित या निलंबित कर दिया जाता है।
- संविधान के भाग-XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
- प्रशासनिक संबंध (अनुच्छेद 256-263):
- संविधान के भाग XI में अनुच्छेद 256-263 तक केंद्र तथा राज्यों के प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है।
- वित्तीय संबंध (अनुच्छेद 256-291):
- संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
- चूँकि भारत एक संघीय देश है इसलिये जब कराधान के विषय में यह शक्तियों के विभाजन का अनुपालन करता है तथा राज्यों को धन आवंटित करना केंद्र का उत्तरदायित्व है।
- संविधान के भाग XII में अनुच्छेद 268 से 293 केंद्र-राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।
- अनुच्छेद-131: आरंभिक अधिकारिता:
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) (भारत के एक संघीय न्यायालय के रूप में) के पास भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों का निर्णय करने की आरंभिक अधिकारिता (Original Jurisdiction) है, जिनमें निम्नलिखित विवाद शामिल हैं:
- केंद्र तथा एक या अधिक संघ के राज्यों के बीच के विवाद।
- एक ओर केंद्र और किसी राज्य या राज्यों एवं दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच के विवाद।
- परस्पर दो या अधिक राज्यों के बीच का विवाद।
- उपर्युक्त मामलों के संबंध में SC के पास अनन्य आरंभिक अधिकारिता है, जिसका अर्थ है कि देश का कोई अन्य न्यायालय संबद्ध विवादों पर निर्णय नहीं कर सकता है एवं SC के पास ऐसे विवादों की प्रथमतः सुनवाई करने की शक्ति है जिसमें अपील की आवश्यकता नहीं होती।
- सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) (भारत के एक संघीय न्यायालय के रूप में) के पास भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों का निर्णय करने की आरंभिक अधिकारिता (Original Jurisdiction) है, जिनमें निम्नलिखित विवाद शामिल हैं:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008) (a) रक्षा मंत्रालय उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021) |