विशेष/इन-डेप्थ: ड्रोन युग (Drone Era) में कैसी है दुनिया?
संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
ड्रोन का नाम सुनते ही मन में जिस चीज़ की छवि सबसे पहले उभरती है, वह है पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर आतंकियों के सफाए के किए उनके ठिकानों पर की जाने वाली अमेरिकी ड्रोन बमबारी। इसी ने आम भारत वासी का परिचय ड्रोन से कराया। हाल ही में भारत ने 25 फरवरी को स्वदेश निर्मित ड्रोन रुस्तम-2 का सफल परीक्षण किया। इसे अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन की तर्ज पर सैन्य निगरानी एवं टोह लेने के उद्देश्य से विकसित किया जा रहा है। वर्तमान युग को ड्रोन युग कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है, जिसमें इनका उपयोग नहीं किया जा रहा हो।
क्या है ड्रोन?
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ड्रोन का क्रमिक विकास
ड्रोन की स्पष्ट व्याख्या 1935 में तब सामने आई जब ब्रिटेन की रॉयल एयरफोर्स ने रेडियो तरंगों से संचालित और निर्देशित पायलट रहित हवाई विमान तैयार किया था, जिसे नाम दिया गया ‘द क्वीन बी’। इस प्रकार के रेडियो नियंत्रित विमानों को ड्रोन कहा जाने लगा, जिन्हें मुख्य तौर पर सेना टोह लेने के लिये इस्तेमाल करती थी। वैसे ड्रोन जैसे विमानों का पहली बार उपयोग प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान आस्ट्रिया ने वेनिस पर बम बरसाने के लिये किया था।
ड्रोन के विभिन्न उपयोग
ड्रोन का उपयोग कई तरह के कार्यों के लिये किया जा सकता है और आज कठिन लगने वाले प्रत्येक कार्य को सरल बनाने के लिये लगभग प्रत्येक क्षेत्र में इनका इस्तेमाल किया जाने लगा है। जैसे-शहरों में ज़मीन का सर्वे और अतिक्रमण के बारे में जानकारी, वनों और वन्य जीवों की निगरानी, ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं की डिलीवरी, रेल तथा सड़क मार्गों का सर्वेक्षण, सीमाओं की निगरानी, कृषि कार्यों, पुरातत्व सर्वेक्षण, पुलिस और सेना के लिये निगरानी, वेयरहाउस में सामान की गिनती और टैगिंग, ऊँचे टावरों और गहरी सुरंगों के भीतर जाकर हालात का पता लगाना, खदानों के भीतर जाकर विषाक्त गैस आदि का पता लगाना, फोटोग्राफी और फिल्मों की शूटिंग, खेलों की रिपोर्टिंग, लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण, जंगल की आग बुझाने, तेल पाइपलाइनों पर निगरानी, खिलौने के तौर पर...और यहाँ तक कि युद्ध में बम बरसाने वाले हथियार के तौर पर ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
- अमेरिका में ई-कॉमर्स, ऑनलाइन शॉपिंग और रिटेल सेक्टर की ज़्यादातर कंपनियाँ लॉजिस्टिक्स के लिये ड्रोन और रोबोट का इस्तेमाल कर रही हैं। वे पैकिंग करते हैं, सामान को सलीके से रखते हैं और हर सामान का हिसाब भी रखते हैं।
- अमेरिकी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट के ढाई लाख से ज़्यादा गोदाम हैं और छोटे-से-छोटा गोदाम भी 17 फुटबॉल के मैदान के बराबर है। ऐसे विशाल वेयरहाउस में आजकल रोबॉट और ड्रोन ही अधिकांश कामकाज निपटाते हैं।
डॉक्यूमेंटेशन में आसानी
इसके अलावा किसी भी चीज़ का डॉक्यूमेंटेशन करते समय पारंपरिक लेज़र स्कैनिंग में रिजोल्यूशन की सीमाएँ सामने आती हैं, जबकि ड्रोन इस कमी को पूरा करता है। ड्रोन सर्वेक्षण और संरक्षण कार्य के लिये अन्य आँकड़ों का चित्र भी लेता है और इन कार्यों के लिये ड्रोन के उपयोग का दूसरा बड़ा लाभ लागत एवं समय की बचत है। आमतौर पर, एक हेक्टेयर क्षेत्र का सर्वेक्षण करने के लिये ड्रोन सेवा प्रदाताओं द्वारा 1500-2000 रुपए लिये जाते हैं, जबकि लेज़र तकनीक के उपयोग से उतने ही कार्य की लागत कम-से-कम तीन से चार गुना अधिक होती है। इसके अलावा, जिस कार्य के लिये पहले 6-8 महीने लगते थे, उसी कार्य को ड्रोन के माध्यम से एक सप्ताह से कम समय में किया जा सकता है।
कानून व्यवस्था में उपयोग
- आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिये देश में बड़े महानगरों में छतों की तलाशी और बड़े जुलूसों पर निगाह रखने के लिये ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
- वाहनों के बोझ तले कराह रही देश की राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक नियंत्रण करने में भी इसकी सहायता ली जा रही है।
- दंगों या अशांति के दौरान की स्थिति पर निगरानी रखने के लिये देश के कई राज्यों में इसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
भारत में ड्रोन उड़ाने के प्रस्तावित विनियम
भारत में ड्रोन रखने और उसके संचालन के लिये नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने विनियमों का प्रारूप तैयार किया है, लेकिन ये अभी तक लागू नहीं हो सके हैं, इसलिये देश में बिना इजाज़त लिये किसी भी प्रकार के ड्रोन को उड़ाने की अनुमति नहीं है। देश में ड्रोन को अधिकतम वज़न ले जाने के आधार पर निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया गया है:
वैश्विक स्तर पर भी ड्रोन के वायु क्षेत्र के इस्तेमाल को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं हैं, लेकिन जापान, कनाडा, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने सिविल ड्रोनों के संचालन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर नियम बना लिये हैं। वर्तमान में ड्रोन प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों, अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून एवं किसी ज़िम्मेदार देश के व्यवहार के अन्य स्थापित नियमों के अनुरूप किया जाता है। (टीम दृष्टि इनपुट) |
ड्रोन और रोज़गार
- देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो इस नए आइडिया को लेकर काम करना चाहते हैं। ड्रोन से जुड़े कई स्टार्टअप लांच हो चुके हैं, लेकिन इसमें जो तेज़ी देखने को मिलनी चाहिये, वह नियम-विनियमों के अभाव में नदारद है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले समय में ड्रोन पायलट, सिस्टम इंजीनियर, ड्रोन के डिज़ाइन और निर्माण का काम करने वालों, सेंसर ऑपरेटर, तकनीशियनों, फ़ोटोग्राफ़रों आदि की मांग बढ़ेगी.
- ड्रोन के इस्तेमाल से रोज़गार के नए अवसर पैदा हुए हैं। यदि हम इनकी पूरी क्षमता का दोहन कर सकें तो ड्रोन हज़ारों नए रोज़गार देने में सक्षम है।
- आज ऐसे ड्रोन भी मौजूद हैं, जो स्मार्टफोन से भी चलाए जा सकते हैं, लेकिन पेशेवर क्वालिटी के ड्रोन की कीमत कम-से-कम 1000 डॉलर होती है। उच्च गुणवत्ता के ड्रोन की कीमत लाखों में हो सकती है।
- अमेरिका में व्यावसायिक ड्रोन उद्योग के 2025 तक वहाँ की अर्थव्यवस्था में 82 अरब डॉलर का योगदान करने और लगभग एक लाख रोज़गार उत्पन्न करने का अनुमान लगाया गया है।
- एक अनुमान के अनुसार दुनियाभर में ड्रोन का बाज़ार 2022 तक लगभग चार अरब यूरो वार्षिक हो जाएगा।
- विश्व बाज़ार के 25% फ़ीसदी ड्रोन यूरोप में होंगे और इनके इस्तेमाल से 2050 तक डेढ़ लाख रोज़गार मिलेंगे।
- चीन की डीजेटी टेक्नोलॉजी दुनिया की सबसे बड़ी उपभोक्ता ड्रोन निर्माता है। इसके फैंटम और इंस्पायर ब्रांड प्रसिद्ध हैं और भारत में दमकल तथा वन विभागों द्वारा इनका प्रयोग किया जाता है।
ड्रोन पायलट का प्रशिक्षण
- मानवरहित प्रणालियाँ बहुत अलग नहीं होतीं, लेकिन नियंत्रण कक्ष में तकनीकी रूप से दक्ष लोगों की ज़रूरत फिर भी पड़ती है।
- जिनके पास ड्रोन पायलट या सिस्टम इंजीनियर जैसा विशेष प्रशिक्षण है, उनके लिये आने वाले 40-50 वर्षों में रोज़गार की गारंटी है।
- आज अमेरिका में ड्रोन पायलट 80 हज़ार से एक लाख डॉलर वार्षिक तक कमा रहे हैं।
- अमेरिका में स्कूल-कॉलेजों ने मानवरहित प्रशिक्षण कार्यक्रम को अपने पाठ्यक्रम में जोड़ा है
- इसे कॉलेजों में मानवरहित प्रणालियों या उड़ान प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में शामिल किया जा गया है।
- भारत में फिलहाल 40 हज़ार ड्रोन हैं, जिन्हें प्रशिक्षित ड्रोन पायलट संचालित करते हैं। इन ड्रोन पायलटों को प्रतिमाह 30 से 40 हज़ार रुपए वेतन मिलता है।
- भारत में ड्रोन पायलट की आयु 18 साल से कम नहीं होनी चाहिये और उनका प्रशिक्षण प्राइवेट पायलट लाइसेंसधारकों की तरह होना चाहिये। उन्हें ड्रोन संचालन में दक्षता प्राप्त होनी चाहिये।
सुरक्षा की चुनौती सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था के लिये ज़िम्मेदार एजेंसियों के अनुसार, अपराधी और चरमपंथी ड्रोन के ज़रिये बड़ी वारदातों को अंजाम दे सकते हैं। जैसे कि किसी सुरक्षित इलाके में विस्फोटक गिराए जा सकते हैं या जेल के भीतर अवैध और प्रतिबंधित चीज़ें पहुँचाई जा सकती हैं या घनी आबादी वाले इलाक़ों में जैविक हथियारों से हमले किये जा सकते हैं। आज चीन में बने ड्रोन बेहद कम कीमत पर दुनियाभर में उपलब्ध हैं और इन्हें दूर सुरक्षित जगह पर बैठकर उड़ाया जा सकता है। अब अपराधी को जुर्म करने के लिये मौके पर मौजूद रहने की आवश्यकता नहीं है, वह मोबाइल और रिमोट की मदद से ड्रोन के ज़रिये ऐसा कर सकता है। ऐसे में दुनियाभर की सुरक्षा एजेंसियों के लिये यह तकनीक एक नई और बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है। (टीम दृष्टि इनपुट) |
ड्रोन की सैन्य उपयोगिता
- आने वाले एक दशक में भारत को अपनी सामरिक चुनौतियों का सामना करने के लिये 400 ड्रोन की आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा भारतीय सेना और नौसेना को 30 से अधिक दूरस्थ युद्धक विमानों की ज़रूरत है जिन्हें बिना पायलट के उड़ाया जा सके।
- सैन्य बलों को कम और लंबी दूरी के 30 हज़ार फीट की ऊँचाई पर उड़ान भरने की क्षमता वाले रिमोट पायलट एयरक्राफ्ट सिस्टम की भी आवश्यकता है।
- ड्रोन में ऐसी क्षमता भी होनी चाहिये कि ज़मीन या समुद्र से 20 किमी. की दूरी तक निशाना साध सके।
- भारत में बने पहले ड्रोन का नाम लक्ष्य है जिसका इस्तेमाल भारतीय सेना हवाई हमलों के लिये करती है।
- इसके अलावा रुस्तम, कपोथका जैसे ड्रोन भी काम कर रहे हैं और निशांत तथा ऑरा के विकास पर काम चल रहा है।
देश की सीमाओं की निगरानी के लिये रुस्तम-2 हाल ही में स्वदेश निर्मित ड्रोन रुस्तम-2 का सफल परीक्षण किया गया। इसके प्रथम संस्करण रुस्तम-1 का सफल परीक्षण नवंबर 2009 में हुआ था। भारतीय सेना के आग्रह पर इसका विकास DRDO की अनुषंगी इकाई वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (Aeronautical Development Establishment-ADE) ने किया है, जिसमें भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स भी शामिल हैं।
फिलहाल भारतीय सेना के पास 200 से अधिक बेहद उन्नत ड्रोन हैं, जो अमेरिका और इज़राइल से खरीदे गए हैं। विश्व में अमेरिका और इज़राइल ड्रोन तकनीक के विशेषज्ञ के तौर पर जाने जाते हैं। (टीम दृष्टि इनपुट) |
नियमन के लिये डिजिटल स्पेस की अवधारणा
- ड्रोनों के नागरिक इस्तेमाल के नियमन के लिये सरकार ‘डिजिटल स्पेस’ की अवधारणा पर विचार कर रही है।
- इससे ऑपरेटर पहले से तय सीमा और फ्लाइट प्लान के अनुरूप ही उनका परिचालन कर सकेंगे। दुनिया के अन्य कई देश भी इस अवधारणा पर काम कर रहे हैं।
- डिजिटल स्पेस ड्रोन के इस्तेमाल के लिये खुला वायु क्षेत्र वस्तुतः डिजिटल त्रिआयामी चित्र है, जिसका हर बिंदु डिजिटल माध्यम पर पहले से ही अंकित होगा।
- जब ऑपरेटर फ्लाइट DGCA के पास जमा कराएगा तो उसे बताना होगा कि उसका ड्रोन इनमें से किन बिंदुओं से होता हुआ गुज़रेगा।
- सॉफ्टवेयर और जमीन पर स्थित राडारों से इस बात पर नज़र रखी जा सकेगी कि ड्रोन डिजिटल स्पेस में फ्लाइट प्लान में बताए गए मार्ग से गुज़र रहा है या नहीं।
निष्कर्ष: आमिर खान की सुपरहिट फिल्म '3 ईडियट्स' की सफलता में ड्रोन का भी बड़ा हाथ था। उस ड्रोन को आईआईटी के इंजीनियर अंकित मेहता ने तैयार किया था। वह पिछले पाँच वर्षों में विभिन्न सरकारी एजेंसियों को 150 ड्रोन की आपूर्ति कर चुके हैं जिनमें पुलिस और अर्द्ध-सैन्यबल भी शामिल हैं। इनमें कोई भी निजी उपयोगकर्त्ता नहीं है। लेकिन आज ड्रोन को उड्डयन उद्योग का नया अध्याय कहा जा रहा है, जहाँ रोज़गार और नागरिक उद्देश्यों के लिये इसके उपयोग की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। यानी अपनी Eye in the Sky वाली छवि से कहीं आगे निकल आया है ड्रोन।
आज ड्रोन मनुष्य की अनेकानेक ज़रूरतें पूरी करने में मददगार साबित हो रहे हैं, लेकिन ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है, अन्यथा इसके दुरुपयोग की पर्याप्त संभावनाएं हैं। अंतरराष्ट्रीय वायु परिवहन एसोसिएशन ने इन्हें वायु क्षेत्र के लिये खतरा बताते हुए सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये व्यापक विचार-विमर्श की सलाह दी है।
भारत जैसे देश के लिये ड्रोन देश के विकास का वाहक हो सकता है और ड्रोन पर सवार होकर हम तेज़ी से विकास कर सकते हैं। ड्रोन विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के लिये ड्रोन एक वरदान साबित हो सकता है, विशेषकर आपदा की स्थिति में।