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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में कृषि ऋण माफी

  • 30 May 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि ऋण माफी, भारतीय स्टेट बैंक (SBI), नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, नाबार्ड, भारतीय रिज़र्व बैंक, मुद्रास्फीति, न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसान क्रेडिट कार्ड योजना। 

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, विकास और प्रगति, कृषि ऋण माफी और संबंधित मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

कृषि ऋण माफी भारतीय चुनावों के दौरान, विशेषकर कृषि प्रधान राज्यों में, एक प्रमुख राजनैतिक मुद्दा बन गया है।

  • ये ऋण राहत योजनाएँ, यद्यपि अस्थायी राहत प्रदान करती हैं, परन्तु कृषि संकट के मूल कारणों का समाधान करने में विफल रहती हैं।

कृषि ऋण माफी क्या है?

  • परिचय: कृषि ऋण माफी सरकार द्वारा लागू की गई वित्तीय राहत योजना है, जिसके तहत कुछ हद तक कृषि ऋणों को माफ कर दिया जाता है, जिससे किसानों को पुनर्भुगतान के बोझ से राहत मिलती है तथा उनको आर्थिक संकट कम होता है।
    • इन छूटों की घोषणा अक्सर चुनाव प्रचार के दौरान कृषक समुदाय से समर्थन प्राप्त करने के वादे के रूप में की जाती है।
    • कृषि ऋण माफी में सरकार द्वारा बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बजटीय आवंटन उपलब्ध कराकर किसानों के बकाया ऋण को वहन करना शामिल है।
    • किसानों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें विवादित भूमि जोत, कम होता भूजल, मृदा की खराब गुणवत्ता, बढ़ती लागत और निम्न फसल उत्पादकता शामिल हैं।
      • अपनी उपज के लिये सुनिश्चित पारिश्रमिक अभाव के कारण किसान अक्सर बैंकों या निजी ऋणदाताओं से उच्च ब्याज दरों पर धन उधार लेते हैं।
    • ऋण माफी से कर्ज़ में डूबे किसानों को अस्थायी राहत मिलती है, लेकिन यह कृषि संकट का दीर्घकालिक समाधान नहीं है।
  • छूट का कार्यान्वयन:
    • प्राकृतिक आपदाओं के समय, सरकार दंडात्मक ब्याज माफ कर सकती है, ऋणों का पुनर्निर्धारण कर सकती है या बकाया ऋणों को पूरी तरह से माफ कर सकती है।
    • सरकार का बजट वित्तीय दायित्वों का वहन करता है, बैंकों का नहीं।
    • ये माफी ऋण के प्रकार (अल्पकालिक, मध्यमकालिक, दीर्घकालिक), किसानों की श्रेणी या ऋण स्रोत जैसे कारकों के आधार पर चयनात्मक हो सकती है।  

कृषि ऋण: अनुसूचित बैंक व्यक्तिगत किसानों या कृषक समूहों को कृषि या संबद्ध गतिविधियों जैसे डेयरी, मत्स्य पालन, पशुपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन और रेशम उत्पादन के लिये कृषि ऋण प्रदान करते हैं।

  • अल्पावधि (18 महीने तक) ऋण दो मौसमों-  खरीफ और रबी, के दौरान फसल उगाने के लिये दिये जाते हैं, जबकि मध्यम अवधि (18 महीने से अधिक से 5 वर्ष तक) तथा दीर्घावधि (5 वर्ष से अधिक) ऋण कृषि मशीनरी खरीदने, सिंचाई एवं अन्य विकासात्मक गतिविधियों हेतु दिये जाते हैं।
  • इसके अंतर्गत फसल-पूर्व और फसल-पश्चात की गतिविधियों जैसे निराई, कटाई, छँटाई तथा कृषि उपज के परिवहन के लिये भी ऋण उपलब्ध हैं।
  • अधिकांश ऋणों को किश्तों में अदा करने अवधि पाँच वर्ष तक होती है तथा ब्याज दरें ऋण की प्रकृति और जारीकर्त्ता बैंक के आधार पर अलग-अलग होती हैं।

कृषि ऋण माफी के ऐतिहासिक उदाहरण:

  • पहली अखिल भारतीय कृषि ऋण माफी वर्ष 1990-91 में, कृषि और ग्रामीण ऋण राहत योजना (Agricultural and Rural Debt Relief Scheme- ARDRS) के माध्यम से शुरू की गई थी, जिसके तहत किसानों को चुनिंदा ऋणों पर 10,000 रुपए तक की राहत प्रदान की गई थी।
  • दूसरी बड़ी माफी वर्ष 2008 में घोषित कृषि ऋण माफी और ऋण राहत योजना (ADWDRS) द्वारा दी गई थी।
    • सरकार ने किसानों को राहत देने के लिये 60,000 करोड़ रुपए आवंटित किये। 2 हेक्टेयर से कम भूमि वाले छोटे किसानों की पूरी निर्धारित राशि माफ कर दी गई।
    • 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले अन्य किसानों को छूट के रूप में निर्धारित राशि का 25% एकमुश्त निपटान (One Time Settlement- OTS) देने की पेशकश की गई, बशर्ते वे शेष 75% का भुगतान कर दें।
  • भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India- SBI) के एक अध्ययन के अनुसार, 2014 से अब तक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और तमिलनाडु सहित विभिन्न राज्य सरकारों ने 2.52 लाख करोड़ रुपए की ऋण माफी की घोषणा की है।

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कृषि ऋण माफी से किसानों और सरकारों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

  • किसानों पर प्रभाव:
    • विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल नष्ट होने के कारण कर्ज़ से जूझ रहे किसानों को  ऋण माफी अल्पकालिक राहत प्रदान करती है।
    • आलोचकों का तर्क है कि ऋण माफी से गैर-भुगतान की प्रवत्ति को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे भविष्य में ऋण माफी की आशा की जा सकती है, जिससे कृषक समुदाय के बीच ऋण अनुशासन कमज़ोर हो सकता है।
      • ऋण माफी के बाद की अवधि में अक्सर ऋण प्राप्त करना कठिन हो जाता हैं, क्योंकि बैंक ऋण देने में संकोच करने लगते हैं, जिससे किसानों की अगले फसल चक्र में निवेश करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
    • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2008 की योजना से कई अपात्र किसानों को लाभ मिला, जबकि कई पात्र छोटे और सीमांत किसान इससे वंचित रह गए।
    • कार्यान्वयन चुनौतियाँ: वर्ष 2022 में SBI द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि वर्ष 2014 से राज्य सरकारों द्वारा घोषित 9 कृषि ऋण माफी के लाभार्थियों में से केवल आधों की ही वास्तव में ऋण माफी हुई है।
      • महाराष्ट्र में कार्यान्वयन दर अपेक्षाकृत अधिक थी। इसके विपरीत, तेलंगाना में कार्यान्वयन सर्वाधिक प्रभावित हुआ।
  • सरकारों पर प्रभाव:
    • नकारात्मक प्रभाव:
      • सबसे तात्कालिक प्रभाव सरकारी वित्त पर पड़ने वाला दबाव है। ऋण माफ करने का तात्पर्य है राजस्व की एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय कोष में शामिल न करना, जिसका उपयोग अन्य सामाजिक कार्यक्रमों या बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये किया जा सकता था।
        • नाबार्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 की ARDR योजना के कारण केंद्र सरकार को 7825 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। राज्यों को कर्ज़माफी की भरपाई के लिये RBI से अतिरिक्त ऋण लेने के लिये मजबूर होना पड़ा।
      • बड़े पैमाने पर ऋण माफी से सरकारी ऋण में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे ब्याज दरें और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है तथा आर्थिक स्थिरता कमज़ोर हो सकती है।
      • इसके अतिरिक्त, ऋण माफी अक्सर न्यूनतम फसल कीमतों और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसे प्रमुख कृषि मुद्दों से निपटने में विफल रहती है तथा केवल अल्पकालिक राहत ही प्रदान करती है।
    • सकारात्मक प्रभाव:
      • कृषि ऋण माफी से ऋण अदायगी से प्राप्त धन को अन्य क्षेत्रों में पुनर्निर्देशित किया जा सकता है। इससे किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिये बेहतर इनपुट क्रय करके कृषि में पुनः निवेश करने और अतिरिक्त आय उत्पन्न करने के लिये कुक्कुट पालन, डेयरी या बागवानी जैसी अन्य कृषि गतिविधियों में विविधता लाने का अवसर मिलता है।
      • ऋणमाफी लागू करने वाली सरकारें बड़ी कृषक जनसंख्या के बीच राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकती हैं। वर्ष 1987 से वर्ष 2020 तक नाबार्ड के एक अध्ययन में पाया गया कि 21 राज्य सरकारों ने राज्य चुनावों से पूर्व ऋणमाफी की घोषणा की, जिनमें केवल चार राज्यों में ही सरकारों हार हुई।

कृषि ऋण माफी के विकल्प:

  • कृषि के लिये सार्वजनिक निवेश में वृद्धि: कुल व्यय या सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में कृषि विकास हेतु बजटीय संसाधनों का अधिक हिस्सा आवंटित करना, जो प्रत्येक वर्ष कम हो रहा है। सिंचाई, विद्युत, भंडारण और परिवहन पर ध्यान केंद्रित करना।
    • बीज, उर्वरक और कीटनाशकों जैसे गुणवत्तापूर्ण, किफायती कृषि इनपुट तक सरल पहुँच सुनिश्चित करना। इन इनपुट के लिये आपूर्ति शृंखला और वितरण को मज़बूत करना।
    • सूखा प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों को विकसित करने, कृषि तकनीकों में सुधार लाने तथा स्थायी कृषि को बढ़ावा देने के लिये कृषि अनुसंधान में निवेश बढ़ाना।
    • आधुनिक कृषि पद्धतियों, नई प्रौद्योगिकियों एवं अनुसंधान निष्कर्षों को किसानों तक पहुँचाने के लिये कृषि विस्तार सेवाओं को, विशेष रूप से दूरदराज़ के क्षेत्रों में, मज़बूत और विस्तारित करना।
  • फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना: सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices- MSP) और खरीद आश्वासन के कारण किसान मुख्य रूप से गेहूँ तथा धान जैसी फसलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
    • तिलहन, दलहन, फल ​​एवं सब्ज़ियों को शामिल करने के लिये मूल्य समर्थन और खरीद का विस्तार करने से फसल विविधीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • सहायक नीतियों को लागू करने और स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल जल-दक्ष फसलों को बढ़ावा देने से स्थिरता बढ़ेगी।
    • उदाहरण के लिये: पंजाब में यूरिया के अत्यधिक उपयोग के कारण भूजल भंडार में अत्यधिक कमी आई है और मृदा का क्षरण हो रहा है। राज्य के किसान मुख्य रूप से गेहूँ व धान उगाते हैं, क्योंकि सरकारी खरीद के कारण ये ही एकमात्र व्यवहार्य फसलें हैं।
  • प्रत्यक्ष आय सहायता योजनाएँ: ऋण माफी के विकल्प के रूप में PM-KISAN और किसान क्रेडिट कार्ड योजना जैसी प्रत्यक्ष आय सहायता योजनाओं को लागू करना, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (Direct Benefit Transfers- DBT) एवं आधार-आधारित पहचान के माध्यम द्वारा कुशल निधि संवितरण सुनिश्चित करना।
  • बाज़ार सुधार और पहुँच: कृषि उपज विपणन समितियों (Agricultural Produce Marketing Committees- APMC) के कामकाज़ में सुधार से मध्यस्थों द्वारा किया जाने वाला शोषण कम हो सकता है और यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि किसानों को उपभोक्ता के धन का उचित भाग मिले।
    • इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) प्लेटफॉर्म को व्यापक रूप से अपनाने को प्रोत्साहित करने से ऑनलाइन व्यापार को सुविधाजनक बनाया जा सकता है और किसानों को सीधे उपभोक्ताओं से जोड़ा जा सकता है, जिससे अनावश्यक मध्यस्थों के हस्तक्षेप समाप्त किया जा सकता है।
  • किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organizations- FPO): सहकारी समितियाँ गठित करने वाले किसान बीज, उर्वरक और उपकरण थोक में खरीदकर लागत में कमी कर सकते हैं तथा बेहतर मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।
    • वे उचित मूल्य प्राप्त करने के लिये अपने उत्पादों के विपणन और बिक्री में भी सहयोग कर सकते हैं।
  • जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियाँ: किफायती और सुलभ फसल बीमा योजनाओं की प्रस्तुति किसानों को प्राकृतिक आपदाओं या अप्रत्याशित घटनाओं के कारण होने वाली वित्तीय हानि से बचा सकती है।
    • मौसम मापदंडों पर आधारित फसल बीमा अप्रत्याशित मौसम प्रतिरूप से होने वाले जोखिम को कम करने में सहायता करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. दीर्घकालिक कृषि संकट को दूर करने में कृषि ऋण माफी की प्रभावकारिता का आकलन कीजिये।

प्रश्न. सरकारों के वित्तीय स्वास्थ्य और समग्र अर्थव्यवस्था पर बार-बार दी जाने वाली कृषि ऋण माफी के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'किसान क्रेडिट कार्ड' योजना के अन्तर्गत, निम्नलिखित में से किन-किन उद्देश्यों के लिए कृषकों को अल्पकालीन ऋण समर्थन उपलब्ध कराया जाता है ? (2020)

  1. फार्म परिसंपत्तियों के रख-रखाव हेतु कार्यशील पूँजी के लिये
  2. कम्बाइन कटाई मशीनों, ट्रैक्टरों एवं मिनी ट्रकों के क्रय के लिये
  3. पर्म परिकरों की उपमोग
  4. फ़सल कटाई के बाद के खर्चों के लिये
  5. परिवार के लिये घर निर्माण तथा गाँव में शीतागार सुविधा की स्थापना के लिये

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1,2 और 5
(b) केवल 1,3 और 4
(c) केवल 2,3, 4 और 5
(d) 1,2,3,4 और 5

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी० एम० एफ० बी० वाइ०) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।(2016)

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