Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 जुलाई, 2021
नेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स दिवस
भारत में प्रतिवर्ष 01 जुलाई को ‘नेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य एक पारदर्शी अर्थव्यवस्था सुनिश्चित करने में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (CA) की भूमिका को रेखांकित करना है। इस दिवस का आयोजन ‘इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया’ (ICAI) की स्थापना के उपलक्ष्य में किया जाता है। ICAI भारत का राष्ट्रीय पेशेवर लेखा निकाय है और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा लेखा संगठन है। वर्तमान में ICAI के लगभग 2.5 लाख सदस्य और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं, जिन्हें सम्मानित करने के लिये इस दिवस का आयोजन किया जाता है। इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (ICAI) की स्थापना 01 जुलाई, 1949 को संसद में पारित एक अधिनियम के माध्यम से की गई थी। ध्यातव्य है कि ICAI भारत में वित्तीय ऑडिट और लेखा पेशे के लिये एकमात्र लाइसेंसिंग और नियामक निकाय है। एक पेशे के रूप में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स (CA) के इतिहास को ब्रिटिश काल से खोजा जा सकता है। ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम वर्ष 1913 में कंपनी अधिनियम पारित किया था, इसमें उन पुस्तकों की एक निर्धारित सूची थी, जिन्हें अधिनियम के तहत पंजीकृत प्रत्येक कंपनी को बनाए रखना अनिवार्य था। इसके अलावा अधिनियम में एक ऑडिटर की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया था, जिसके पास सभी पुस्तकों के निरीक्षण की शक्तियाँ थीं।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
देश के सबसे पुराने वाणिज्यिक बैंक ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ (SBI) ने 01 जुलाई, 2021 को अपनी 66वीं वर्षगाँठ मनाई। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) वर्तमान में भारत के सबसे बड़े बैंकों में से एक है। भारतीय स्टेट बैंक बहुराष्ट्रीय, सार्वजनिक क्षेत्र बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने वाला सांविधिक निकाय है, जिसका मुख्यालय मुंबई में है। भारतीय स्टेट बैंक का इतिहास 18वीं शताब्दी के पहले दशक से शुरू होता है, जब बैंक ऑफ कलकत्ता, जिसे बाद में बैंक ऑफ बंगाल का नाम दिया गया, को 2 जून, 1806 को स्थापित किया गया था। बैंक ऑफ बंगाल तीन प्रेसीडेंसी बैंकों में से एक था, अन्य दो थे- बैंक ऑफ बॉम्बे (15 अप्रैल, 1840 को स्थापित) और बैंक ऑफ मद्रास (1 जुलाई, 1843 को स्थापित)। तीनों प्रेसीडेंसी बैंकों को शाही चार्टर के माध्यम से संयुक्त स्टॉक कंपनियों के रूप में निगमित किया गया था। इन तीनों बैंकों को कागज़ी मुद्रा जारी करने का विशेष अधिकार भी प्राप्त था, हालाँकि वर्ष 1861 में कागज़ी मुद्रा अधिनियम के माध्यम से भारत सरकार द्वारा यह अधिकार ले लिया गया। 27 जनवरी, 1921 को प्रेसीडेंसी बैंकों का विलय कर दिया गया और पुनर्गठित बैंकिंग इकाई को ‘इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना गया। ‘इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया’ एक संयुक्त स्टॉक कंपनी बना रहा, लेकिन इसमें सरकार की भागीदारी नहीं थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम 1955 के प्रावधानों के अनुसार, भारतीय रिज़र्व बैंक, जो कि भारत का केंद्रीय बैंक है, ने ‘इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया’ का नियंत्रण हासिल कर लिया। 1 जुलाई, 1955 को ‘इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया’ का नाम बदलकर ‘भारतीय स्टेट बैंक’ कर दिया गया।
वित्तीय साक्षरता पाठ्यक्रम
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) ने छठी कक्षा के छात्रों के लिये वित्तीय साक्षरता पाठ्यक्रम शुरू करने हेतु सहयोग किया है। वित्तीय साक्षरता पाठ्यक्रम को नए वैकल्पिक 'वित्तीय साक्षरता' विषय के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया है जो छात्रों को उनकी शिक्षा के प्रारंभिक चरण में बुनियादी वित्तीय अवधारणाओं की समझ रखने में सक्षम बनाएगा। इस पाठ्यक्रम में मुद्रा, बैंकिंग, बचत और निवेश जैसी बुनियादी अवधारणाओं से लेकर IMPS, UPI, USSD, NACH, पॉइंट ऑफ सेल, mPoS, क्यूआर कोड और ATM जैसी उन्नत अवधारणाओं तक को शामिल किया गया है। इसमें बैंकिंग की उत्पत्ति, सिक्कों से कागज़ी मुद्रा में परिवर्तन, बैंकों के प्रकार और बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली प्रमुख संचालन सेवाओं को भी शामिल किया हैं। यह पाठ्यक्रम डिजिटल भुगतान को गति प्रदान करने में भारतीय रिज़र्व बैंक और भारत सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका को भी स्पष्ट करता है। इस पाठ्यक्रम को ‘केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड’ की वेबसाइट पर ऑनलाइन प्राप्त किया जा सकता है। यह सहयोग सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई नई शिक्षा नीति के अनुरूप है, जिसमें देश भर के छात्रों के बीच डिजिटल मानसिकता को पोषित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
कार्मिक प्रशासन और शासन सुधार संबंधी समझौता
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग तथा गाम्बिया गणराज्य के लोक सेवा आयोग के बीच कार्मिक प्रशासन एवं शासन में सुधारों के नवीनीकरण को लेकर समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करने को मंज़ूरी दे दी है। यह समझौता ज्ञापन दोनों देशों को एक-दूसरे के कार्मिक प्रशासन को समझने में मदद करेगा और कुछ सर्वोत्तम प्रथाओं तथा प्रक्रियाओं को अपनाने, अनुकूल बनाने और नवाचार के माध्यम से शासन प्रणाली में सुधार करने में सक्षम बनाएगा। इस समझौता ज्ञापन के तहत मुख्य तौर पर सरकार में प्रदर्शन प्रबंधन प्रणाली में सुधार, अंशदायी पेंशन योजना के कार्यान्वयन तथा सरकारी भर्ती हेतु ऑनलाइन प्रक्रिया (ई-भर्ती) आदि क्षेत्रों में सहयोग किया जाएगा, हालाँकि यह सहयोग केवल इन्हीं क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहेगा। समझौता ज्ञापन का मुख्य उद्देश्य कार्मिक प्रशासन एवं शासन सुधार के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को मज़बूत करना और बढ़ावा देना है। यह सहयोग एक कानूनी ढाँचा प्रदान करेगा, ताकि कार्मिक प्रशासन तथा शासन सुधार के क्षेत्र में प्रशासनिक अनुभवों को सीखने, साझा करने एवं आदान-प्रदान कर शासन की मौजूदा प्रणाली में सुधार किया जा सके और जवाबदेही व पारदर्शिता की भावना को भी मज़बूत किया जा सके।