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कृषि

भारत में फसल विविधीकरण में तेज़ी लाना

  • 05 Apr 2024
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फसल विविधीकरण, गेहूँ की खेती, व्हीट ब्लास्ट रोग, केले की खेती, भारत में हरित क्रांति, दलहनी फसलें, जैव ईंधन, न्यूनतम समर्थन मूल्य

मेन्स के लिये:

भारत में फसल विविधीकरण की आवश्यकताएँ, फसल विविधीकरण से संबंधित चिंताएँ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में पश्चिम बंगाल, विशेष रूप से बांग्लादेश की सीमा से लगे ज़िलों में फसल विविधीकरण के माध्यम से कृषि परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला है।

  • यह बदलाव किसानों द्वारा पारंपरिक गेहूँ की खेती के विकल्पों के रूप में केले की खेती, दाल, मक्का जैसी अन्य फसलों की ओर बढ़ने की विशेषता को प्रदर्शित करता है।

गेहूँ उत्पादन में परिवर्तन के पीछे क्या कारण हैं? 

  • व्हीट ब्लास्ट रोग: वर्ष 2016 में बांग्लादेश में व्हीट ब्लास्ट रोग के फैलने के कारण पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और नादिया ज़िलों सहित सीमावर्ती क्षेत्रों में भी गेहूँ की खेती पर दो वर्ष का आधिकारिक प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसने वहाँ के किसानों को वैकल्पिक फसलें उगाने के लिये प्रेरित किया।
    • व्हीट ब्लास्ट रोग एक फंगल संक्रमण है जो मैग्नापोर्थे ओराइज़े ट्रिटिकम (MoT) कवक के कारण होता है, जो मुख्य रूप से गेहूँ की फसलों को प्रभावित करता है।
      • यह गेहूँ की बालियों, पत्तियों और तनों पर बड़े घावों के रूप में दिखाई देता है, जिससे उपज को गंभीर नुकसान होता है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता: किसानों ने केले जैसी वैकल्पिक फसलों की खेती के आर्थिक लाभों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।
    • व्यस्‍ततम अवधि (Peak Seasons) के दौरान केले जैसी फसलों की लाभप्रदता, गेहूँ की स्थिर कीमतों और जल की खपत से संबंधित चिंताओं ने फसलों के बदलाव में योगदान दिया है।
  • अधिक उत्पादन वाली फसलों की ओर बदलाव: क्षेत्र में मक्के की खेती में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसका उत्पादन वर्ष 2011 से 2023 तक लगभग आठ गुना बढ़ गया है।
    • जबकि मक्के की कीमतें गेहूँ की तुलना में प्रति क्विंटल कम हो सकती हैं, प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन, पोल्ट्री और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की मांग इसे एक आकर्षक विकल्प उपलब्ध कराती है।
    • इस क्षेत्र में दलहन और तिलहन उत्पादन में भी वृद्धि हुई है।

भारत को फसल विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता क्यों है?

  • परिचय: फसल विविधीकरण का तात्पर्य एक ही फसल पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय एक खेत में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने की प्रथा से है।
    • अधिक उपज देने वाली चावल और गेहूँ की किस्मों की शुरुआत के माध्यम से भारत में हरित क्रांति के परिणामस्वरूप खाद्य उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई, जिससे भूख एवं कुपोषण में प्रभावी रूप से कमी आई है।
      • हालाँकि इन फसलों की मोनोकल्चर (एकल कृषि) से फसल की विविधता में कमी आई, जिससे पारंपरिक, क्षेत्र-विशिष्ट उपभेदों में गिरावट हुई और साथ ही आनुवंशिक विविधता की हानि भी हुई।
      • उदाहरण के लिये, हरित क्रांति के प्रभाव के कारण 1970 के दशक से वर्तमान तक भारत से चावल की 100,000 से अधिक पारंपरिक किस्में विलुप्त हो गईं
    • इसलिये सतत् कृषि को बढ़ावा देने के लिये फसल विविधीकरण की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।
  • फसल विविधीकरण के लाभ:
    • जोखिम में कमी: सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में किसान सूखा-सहिष्णु फसलों (जैसे बाजरा या ज्वार) तथा जल-गहन फसलें (जैसे चावल या सब्ज़ियाँ) दोनों को उगाकर अपनी फसलों में विविधता ला सकते हैं।
      • यदि जल की कमी हो, तब भी  सूखा-सहिष्णु फसलें उगाई जा सकती हैं, जिससे प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद फसल उत्पादन सुनिश्चित हो सकता है।
    • मृदा स्वास्थ्य में सुधार: सोयाबीन या मूँगफली जैसी फलीदार फसलें उगाने से मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा स्थिर हो सकती है, जिससे मक्का या गेँहू जैसी बाद की फसलों को लाभ होगा, जिन्हें इष्टतम विकास के लिये नाइट्रोजन युक्त मृदा की आवश्यकता होती है।
    • विपणन में सहायता: फसलों में विविधता लाने से किसानों को विशिष्ट बाज़ारों या फसलों के नए रुझानों का लाभ उठाने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
      • उदाहरण के लिये जैविक उपज की बढ़ती मांग किसानों के लिये जैविक खेती में विविधता लाने का अवसर प्रस्तुत करती है, जिसकी कीमतें बाज़ार में अक्सर पारंपरिक रूप से उगाई गई फसलों की तुलना में अधिक होती हैं।
    • कीट एवं रोग प्रबंधन: अंतर-फसल या मिश्रित फसल, फसल विविधीकरण का एक रूप, कीटों और रोगों के प्रबंधन में सहायता कर सकता है।
      • उदाहरण के लिये सब्ज़ियों की फसलों के साथ गेंदे के फूल लगाने से कीटों को रोका जा सकता है, रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो सकती है और प्राकृतिक कीट नियंत्रण तंत्र को बढ़ावा भी मिल सकता है।
    • जैव ईंधन के स्रोत: जेट्रोफा (Jatropha) और पोंगामिया (Pongamia) जैसी फसलें जैव ईंधन उत्पादन के संभावित स्रोत हैं। इससे किसानों को अतिरिक्त आय के अवसर मिल सकते हैं और भारत की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान मिल सकता है।
  • चिंताएँ: 
    • बाज़ार जोखिम और सीमित अवसरः प्रायः किसान चावल और गेहूँ जैसी स्थापित फसलों (जिनके लिये MSP के माध्यम से सरकारी सहायता का आश्वासन दिया गया है) से कम ज्ञात फसलों की ओर स्विच करने में संकोच करते हैं।
      • इन विकल्पों में बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव या सीमित मांग हो सकती है, जिससे संभावित आय में हानि हो सकती है।  
    • वित्तीय बाधाएँ: फसलों में विविधता लाने के लिये बीजों, उपकरणों में अतिरिक्त निवेश और यहाँ तक कि कृषि प्रथाओं के बारे में नवीन ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है।
      • छोटे किसान, जो भारत के कृषि क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, उनके पास इन परिवर्तनों को सरलता से अपनाने के लिये वित्तीय संसाधन नहीं हो सकते हैं।
      • इसके अतिरिक्त ज्वार, रागी तथा बाज़रा जैसे कदन्न अपने उच्च पोषण मूल्य एवं सीमांत भूमि में उगने की क्षमता के कारण किसानों द्वारा आकर्षण प्राप्त कर रहे हैं। 
        • हालाँकि, एक मज़बूत बाज़ार के निर्माण हेतु प्रसंस्करण सुविधाओं में निवेश की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें खाने के लिये तैयार मिश्रण या नाश्ते के रूप में अनाज जैसे उपभोक्ता के अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित किया जा सके।
    • बुनियादी ढाँचे और भंडारण की कमीः खराब होने वाली विविध फसलों के लिये प्रायः विशेष भंडारण एवं परिवहन सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकती हैं।
      • उचित बुनियादी ढाँचे के बिना ये फसलें जल्दी खराब हो सकती हैं, जिससे उपज बर्बाद हो सकती है और आय में हानि हो सकती है।   
    • आहार संबंधी परंपराओं के साथ संघर्षः भारत में फसल विविधीकरण, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ चावल और गेहूँ की फसल को महत्त्वपूर्ण रूप से उगाया जाता है, इन क्षेत्रों में प्रचलित बाज़ार की गतिशीलता एवं खपत के पैटर्न को संभावित रूप से बाधित कर सकता है।

फसल विविधीकरण के संबंध में सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • फसल विविधीकरण कार्यक्रमः कृषि और किसान कल्याण विभाग (DA&FW) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) के भाग के रूप में वर्ष 2013-14 से फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP) को लागू कर रहा है, विशेषतः हरित क्रांति वाले राज्यों-हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लक्षित कर रहा है।
    • इस पहल का उद्देश्य जल-गहन धान की खेती से दलहन, तिलहन, मोटे अनाज, पोषक अनाज और कपास जैसी वैकल्पिक फसलों पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH): यह बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें फल, सब्ज़ियाँ, जड़ और कंद फसलें, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधे, नारियल, काजू, कोको तथा बाँस शामिल हैं।
  • खरीफ फसलों के लिये MSP में वृद्धिः आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने विपणन सीज़न वर्ष 2023-24 के लिये सभी अनिवार्य खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि को स्वीकृति प्रदान की है।
  • मेरा पानी-मेरी विरासत योजना (हरियाणा): यह धान की खेती से दलहन, तिलहन, बाज़रा और सब्ज़ियों जैसे जल-बचत विकल्पों की ओर बढ़ने वाले किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। 

आगे की राह

  • कृषि-पर्यटन तथा 'यू-पिक' फार्म: अनुभवात्मक पर्यटन लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। 'यू-पिक' फार्म बनाना जहाँ पर्यटक प्रत्यक्ष रूप से खेतों से अपने फल एवं सब्ज़ियों की उपज कर सकें, भारत के लिये यह लाभदायक हो सकता है।
    • यह किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करता है, और साथ ही यह उपभोक्ताओं एवं कृषि के बीच संबंध को बढ़ावा देता है तथा विविध फसलीकरण को बढ़ावा भी देता है।
  • जीन संपादन के माध्यम से बायोफोर्टिफिकेशन: CRISPR जैसी जीन संपादन तकनीकों का उपयोग उन्नत पोषण मूल्य वाली फसलें विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
    • इससे कुपोषण संबंधी चिंताओं को दूर किया जा सकता है और साथ ही बायोफोर्टिफाइड फसलों हेतु नए बाज़ार तैयार किये जा सकते हैं।
    • हालाँकि इससे  संबंधित नैतिक विचारों एवं कठोर नियमों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • सतत् विविधीकरण हेतु पुनर्योजी कृषि: अधिक सतत् एवं लचीली कृषि प्रणाली तैयार करने के लिये कवर क्रॉपिंग, कम्पोस्टिंग के साथ-साथ बिना जुताई वाली खेती जैसी पुनर्योजी कृषि प्रथाओं को विविध फसल चक्रों के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
    • इससे न केवल दीर्घकालिक फसल की उत्पादकता को लाभ होता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन को कम करते हुए कार्बन को भी सोख लिया जाता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत को फसल विविधीकरण में तीव्रता लाने, सतत् कृषि, किसानों की आजीविका के साथ ही खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु किन प्रमुख नवीन रणनीतियों पर कार्य करने की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. जल इंजीनियरी और कृषि-विज्ञान के क्षेत्रों में क्रमशः सर एम. विश्वेश्वरैया और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन के योगदानों से भारत को किस प्रकार लाभ पहुँचा था? (2019)

प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017)

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