कृषि
MSP को विधिसम्मत बनाने के लाभ और नुकसान
- 03 Dec 2024
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यह संपादकीय 28/11/2024 को ‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Unrest over minimum support prices” पर आधारित है। इस लेख में बढ़ते कृषि संकट का उल्लेख किया गया है क्योंकि किसान घटती आय और बढ़ते जोखिमों का मुकाबला करने के लिये MSP हेतु विधिक गारंटी की मांग कर रहे हैं। यह स्थिरता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कमी भुगतान एवं प्रत्यक्ष आय सहायता जैसे विकल्पों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:न्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि लागत और मूल्य आयोग, गेहूँ, शांता कुमार समिति, गन्ने के लिये FRP, WTO का पीस क्लॉज़, कृषि उपज बाज़ार समिति, e-NAM, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, शून्य बजट प्राकृतिक कृषि मेन्स के लिये:MSP को वैध बनाने के पक्ष और विपक्ष में तर्क, भारत में MSP प्रणाली को सुदृढ़ करने के उपाय |
भारत में कृषि संकट एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, किसान अपनी घटती आय, जलवायु परिवर्तन तथा उच्च इनपुट लागत से बढ़ते जोखिम को दूर करने के लिये 23 फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की विधिक गारंटी की मांग कर रहे हैं। कानूनी रूप से अनिवार्य MSP व्यवस्था के राजकोषीय और मुद्रास्फीति संबंधी निहितार्थ इसे अव्यवहारिक बनाते हैं, जिससे कमी मूल्य भुगतान (DPP) या प्रत्यक्ष आय सहायता जैसे विकल्पों की मांग की जाती है। इन मांगों को पूरा करने के लिये किसानों की आय को संधारणीय कृषि पद्धतियों और खाद्य सुरक्षा अनिवार्यताओं के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है?
- MSP: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली वर्ष 1965 में कृषि मूल्य आयोग (APC) की स्थापना के साथ शुरू की गई थी, जिसे बाद में कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) नाम दिया गया।
- यह प्रणाली राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा किसानों को मूल्य में भारी गिरावट से बचाने के लिये बाज़ार में हस्तक्षेप करने के लिये तैयार की गई थी।
- MSP गणना: CACP राज्य स्तर और राष्ट्रीय औसत दोनों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक फसल के लिये उत्पादन लागत की तीन श्रेणियों की गणना करता है।
- A2: इसमें किसान द्वारा वहन की जाने वाली सभी प्रत्यक्ष लागतें शामिल हैं, जैसे बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मज़दूरी की लागत, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि।
- A2+FL: इस श्रेणी में अवैतनिक पारिवारिक श्रम के अनुमानित मूल्य को A2 लागतों में जोड़ा जाता है।
- C2: यह अधिक व्यापक लागत गणना है, जिसमें A2+FL के अतिरिक्त स्वामित्व वाली भूमि, किराया और अचल पूंजीगत परिसंपत्तियों पर ब्याज की लागत भी शामिल होती है।
- सरकार का दावा है कि MSP अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत (CoP) का कम-से-कम 1.5 गुना निर्धारित किया गया है, लेकिन इसकी गणना A2+FL लागत के 1.5 गुना के आधार पर की जाती है।
- MSP के अंतर्गत आने वाली फसलें: MSP 23 अनिवार्य फसलों के लिये पूर्व-निर्धारित मूल्य की गारंटी देकर किसानों की सहायता करता है। तोरिया (रेपसीड और सरसों पर आधारित) और छिलका रहित नारियल (कोपरा पर आधारित) के लिये अतिरिक्त MSP तय किये गए हैं।
MSP को वैध बनाने के पक्ष में तर्क क्या हैं?
- बाज़ार की अस्थिरता से किसानों की सुरक्षा: MSP को वैध बनाने से यह सुनिश्चित होता है कि खुले बाज़ारों में अप्रत्याशित मूल्य उतार-चढ़ाव के बावजूद किसानों को उचित मुआवज़ा मिले, जिससे उन्हें अधिशेष उत्पादन या वैश्विक व्यापार गतिशीलता के कारण होने वाले नुकसान से सुरक्षा मिलती है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में आंध्र प्रदेश में टमाटर किसानों को मूल्य अस्थिरता/हानि के कारण संकटपूर्ण बिक्री का सामना करना पड़ा, विधिक MSP के साथ ऐसी असमानताओं से बचा जा सकता है।
- 85% से अधिक किसान या तो छोटे या सीमांत हैं, जिनके पास औसतन लगभग 0.36 हेक्टेयर भूमि है, जो मूल्य अस्थिरता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
- क्षेत्रीय और फसल समानता को बढ़ावा देना: MSP को वैधानिक बनाने से कम प्रतिनिधित्व वाले राज्यों में किसानों के लिये उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करके और दलहन व तिलहन जैसी गैर-अनाज फसलों की खेती को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय असमानताओं को दूर किया जा सकता है।
- बिहार और ओडिशा जैसे राज्य वर्तमान में पंजाब और हरियाणा के प्रति खरीद के पूर्वाग्रह के कारण हाशिये पर हैं।
- उदाहरण के लिये, सत्र 2021-22 में खरीदे गए गेहूँ का 80% तीन राज्यों: पंजाब, मध्य प्रदेश और हरियाणा से था। MSP को वैध बनाने से सभी क्षेत्रों में समान खरीद सुनिश्चित करके इस असमानता को कम करने में मदद मिलेगी।
- ग्रामीण संकट और किसानों की आत्म-क्षति को कम करना: दिसंबर, 2023 में जारी NCRB के आँकड़ों में बताया गया कि वर्ष 2022 में 6,083 कृषि मज़दूरों की आत्महत्या के परिणामस्वरूप मृत्यु हो गई।
- विधिक MSP किसानों को एक पूर्वानुमानित आय सुनिश्चित करके, ऋण पर निर्भरता कम करके तथा किसानों को होने वाले नुकसान की घटनाओं को कम करके ग्रामीण संकट को कम कर सकता है।
- कृषि निवेश को प्रोत्साहित करना: विधिक MSP के माध्यम से सुनिश्चित रिटर्न के साथ, किसान बेहतर बीज, प्रौद्योगिकियों और संधारणीय प्रथाओं में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित होंगे।
- उदाहरण के लिये, गन्ने के लिये FRP (सत्र 2023-24 की कीमत की तुलना में सत्र 2024-25 में 8% अधिक) ने लाभप्रदता सुनिश्चित की, इनपुट में निवेश को प्रोत्साहित किया और उत्पादकता में वृद्धि की।
- बिचौलियों द्वारा शोषण को कम करना: शांता कुमार समिति की वर्ष 2015 की रिपोर्ट से पता चलता है कि केवल 6% किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से लाभान्वित होते हैं, जिसका अर्थ है कि 94% किसानों को MSP का अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है।
- विधिक MSP से कृषि बाज़ारों पर हावी बिचौलियों की शोषणकारी प्रथाओं को दरकिनार किया जा सकता है।
- जलवायु-संचालित कृषि जोखिमों से निपटना: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की अनिश्चितता बढ़ रही है, ऐसे में विधिक MSP फसल हानि से प्रभावित किसानों के लिये आय स्थिरता सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिये, बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज़ हवाओं ने वर्ष 2023 में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में 5.23 लाख हेक्टेयर से अधिक गेहूँ की फसल को नुकसान पहुँचाया है, जिससे कटाई में चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं तथा उपज के महत्त्वपूर्ण नुकसान की चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- भारत के कृषि निर्यात को सुदृढ़ करना: विधिक MSP फ्रेमवर्क एक पूर्वानुमानित मूल्य निर्धारण व्यवस्था प्रदान करता है, जिससे उत्पादन को वैश्विक मांग के अनुरूप बनाने और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिये, सत्र 2022-23 में, देश का चावल निर्यात कुल 11 बिलियन डॉलर था, जिसमें बासमती चावल के निर्यात मूल्य में सत्र 2023-24 के लिये 21.9% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- ऐसे उपायों से व्यापार असंतुलन कम हो सकता है तथा भारत की वैश्विक कृषि प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ सकती है।
MSP को वैध बनाने के विपक्ष में तर्क क्या हैं?
- राजकोष पर राजकोषीय बोझ: सभी पात्र फसलों पर कानूनी रूप से अनिवार्य MSP लागू करने से सरकार के वित्त पर काफी दबाव पड़ेगा।
- क्रिसिल मार्केट इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्स ने अनुमान लगाया है कि कृषि विपणन वर्ष 2023 में सरकार के लिये MSP गारंटी की ‘वास्तविक लागत’ लगभग 21,000 करोड़ रुपए रही है।
- यह आँकड़ा भारत के कुल बजटीय व्यय का एक बड़ा हिस्सा दर्शाता है, जिससे राजकोषीय स्थिरता को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- अनियमित बाज़ारों में कार्यान्वयन चुनौतियाँ: कृषि लेन-देन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा विनियमित मंडियों के बाहर होता है, जिससे विधिक MSP का प्रवर्तन जटिल हो जाता है।
- महाराष्ट्र में वर्ष 2018 में MSP को अनिवार्य करने के प्रयास के कारण व्यापारियों ने बहिष्कार किया। यह विविध और अनौपचारिक बाज़ार चैनलों में MSP की निगरानी एवं उसे लागू करने में व्यावहारिक कठिनाइयों को उजागर करता है।
- मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: विधिक MSP के माध्यम से फसलों की उच्च कीमतें अनिवार्य करने से खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे उपभोक्ताओं, विशेषकर आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- अर्थशास्त्रियों का कहना है कि MSP में 1% की वृद्धि से मुद्रास्फीति में 15 आधार अंकों की वृद्धि हो सकती है, जिससे समग्र आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निहितार्थ: MSP को वैध बनाना कृषि सब्सिडी पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) के मानदंडों के साथ टकराव उत्पन्न कर सकता है, जिससे संभावित रूप से व्यापार विवाद उत्पन्न हो सकता है।
- भारत ने पहले भी चावल पर सब्सिडी सीमा को पार करने के लिये विश्व व्यापार संगठन (WTO) के पीस क्लॉज़ का सहारा लिया था, जो अंतर्राष्ट्रीय परिणामों से बचने के लिये सब्सिडी नीतियों में आवश्यक नाज़ुक संतुलन को दर्शाता है।
- अकुशल संसाधन आवंटन का जोखिम: विधिक MSP किसानों को चावल और गेहूँ जैसी MSP समर्थित फसलों को असंगत रूप से उगाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे भूजल की कमी और मृदा के क्षरण जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।
- पंजाब और हरियाणा ने वर्ष 2003 से 2020 के दौरान 17 वर्षों में 64.6 बिलियन क्यूबिक मीटर भूजल खो दिया है। विधिक MSP से इस अस्थिर संसाधन उपयोग के बढ़ने का खतरा है।
- नकारात्मक पर्यावरणीय परिणाम: MSP समर्थित एकल कृषि, विशेष रूप से धान और गन्ना जैसी अधिक जल खपत वाली फसलों की, जैवविविधता का ह्रास, मृदा लवणता तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से जुड़ी हुई है।
- उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र में गन्ने की कृषि में राज्य के सिंचाई जल का 70% खपत होता है। विधिक MSP अनजाने में ऐसे पर्यावरणीय मुद्दों को बढ़ा सकता है।
- सरकारी खरीद तंत्र पर अत्यधिक बोझ: MSP को वैध बनाने से सार्वभौमिक खरीद की आवश्यकता होगी, जिससे भंडारण क्षमता और वितरण प्रणाली पर अत्यधिक बोझ पड़ेगा।
- भारत का खाद्यान्न उत्पादन 311 MMT है, लेकिन भंडारण क्षमता केवल 145 MMT है, जिसके परिणामस्वरूप 166 MMT की कमी है। जबकि अन्य देशों में 131% अधिशेष भंडारण क्षमता है, भारत को 47% की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- विधिक MSP के माध्यम से खरीद बढ़ाने से पहले से ही तनावग्रस्त इन प्रणालियों पर और अधिक दबाव पड़ेगा।
- पूरक बाज़ार सुधारों का अभाव: कानूनी MSP कृषि बाज़ारों में गहन संरचनात्मक मुद्दों, जैसे अकुशल कृषि उपज बाज़ार समिति (APMC) प्रणालियों और प्रत्यक्ष किसान-बाज़ार संपर्कों की कमी की भरपाई किये बिना मूल्य गारंटी पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- APMC मंडियाँ कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं, जिससे विशाल क्षेत्र विनियमित बाज़ारों तक अभिगम से वंचित रह जाता है।
- उदाहरण के लिये, भारत में प्रत्येक 496 वर्ग किलोमीटर पर केवल एक मंडी है, जो कि राष्ट्रीय किसान आयोग की प्रत्येक 80 वर्ग किलोमीटर पर एक मंडी की अनुशंसा से बहुत कम है।
भारत में MSP प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- कमी मूल्य भुगतान (DPP) प्रणाली लागू करना: सरकार प्रत्यक्ष अंतरण तंत्र के माध्यम से किसानों को MSP और बाज़ार मूल्य के बीच के अंतर की भरपाई कर सकती है।
- इससे बड़े पैमाने पर खरीद से बचने के कारण राजकोषीय बोझ कम हो जाता है, साथ ही किसानों को उचित मुआवज़ा मिलना भी सुनिश्चित होता है।
- मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने भावांतर भुगतान योजना का प्रयोग करके इसकी व्यवहार्यता प्रदर्शित की है।
- रियल टाइम मूल्य ट्रैकिंग के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्मों के साथ संयुक्त रूप से DPP को देश भर में लागू करने से आय के अंतर को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है।
- विकेंद्रीकृत खरीद तंत्र को बढ़ावा देना: राज्य सरकारों और स्थानीय स्वयं सहायता समूहों को शामिल करने के लिये खरीद को विकेंद्रीकृत करना व्यापक भौगोलिक कवरेज तथा समान लाभ वितरण सुनिश्चित करता है।
- उदाहरण के लिये, छत्तीसगढ़ में धान की विकेंद्रीकृत खरीद स्थानीय किसानों को शामिल करने में सफल साबित हुई है।
- विकेंद्रीकरण से खरीद में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर किया जा सकता है, साथ ही केंद्रीय भंडारण प्रणालियों पर संभार-तंत्रीय दबाव को भी कम किया जा सकता है।
- APMC को बढ़ावा देना: कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC) का आधुनिकीकरण और उन्हें e-NAM (राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) के साथ एकीकृत करने से पारदर्शी एवं प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार का निर्माण हो सकता है, जो गुजरात के APMC सुधारों व मॉडल APMC अधिनियम पर आधारित होगा।
- APMC मंडियों की संख्या में वृद्धि, उनकी कार्यकुशलता में सुधार तथा किसानों को डिजिटल साक्षरता प्रदान करने से उन्हें बिचौलियों के शोषण को कम करते हुए बेहतर कीमतों पर मोलभाव करने में सशक्त बनाया जा सकता है।
- MSP प्रोत्साहन के माध्यम से फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना: दालों, तिलहन और कदन्न के लिये उच्च MSP से चावल एवं गन्ने जैसी अधिक जल खपत वाली फसलों से ध्यान हटाया जा सकता है।
- यह संधारणीय कृषि के लक्ष्यों के अनुरूप है तथा पर्यावरणीय क्षरण को कम करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय कदन्न वर्ष (2023) में कदन्न (पोषक अनाजों) को बढ़ावा देने वाले सरकारी कार्यक्रमों की सफलता विविधीकरण को प्रोत्साहित करने और कृषि पारिस्थितिकी के लिये समर्थन के अनुरूप MSP की क्षमता को उजागर करती है।
- जलवायु-अनुकूल समर्थन तंत्र: जलवायु-अनुकूल MSP लागू किया जाना चाहिये, जिसमें अनियमित वर्षा और कीटों के हमलों जैसे जोखिमों को ध्यान में रखा जाए।
- यह प्रणाली MSP निर्धारण को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) जैसी बीमा योजनाओं के साथ जोड़ सकती है, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील किसानों के लिये सुरक्षा कवच तैयार किया जा सके।
- सूखा सहिष्णु फसलों के लिये स्थानीय MSP स्थापित करने से जलवायु-संबंधित फसल विफलताओं के आर्थिक प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।
- किसान उत्पादक संगठनों को सुदृढ़ बनाना: FPO संसाधनों को एकत्रित करने तथा छोटे और सीमांत किसानों के लिये बेहतर बाज़ार अभिगम सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- FPO को MSP परिचालनों से जोड़ने से सामूहिक सौदाकारी शक्ति सुनिश्चित होती है, बिचौलियों पर निर्भरता कम होती है तथा प्रत्यक्ष बाज़ार संपर्क की सुविधा मिलती है।
- यह उपागम आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत 10,000 FPO गठन करने के सरकार के उद्देश्य के अनुरूप भी है।
- MSP के साथ संधारणीय प्रथाओं को एकीकृत करना: MSP को संधारणीय कृषि प्रथाओं जैसे कि कम रासायनिक उर्वरक प्रयोग, फसल चक्र और जैविक कृषि के पालन पर सशर्त बनाए जाने की आवश्यकता है।
- स्थिरता मापदंडों से जुड़े ‘हरित MSP’ के माध्यम से किसानों को प्रोत्साहित करने से पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान हो सकता है।
- आंध्र प्रदेश में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि (ZBNF) जैसे पायलट कार्यक्रम देशव्यापी कार्यान्वयन का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
- आधुनिक भंडारण एवं भंडारण क्षमता का विस्तार: सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से आधुनिक भंडारण अवसंरचना में निवेश करके अनाज संग्रहण की बहुत बड़ी कमी को दूर किया जा सकता है।
- शीघ्र खराब होने वाली फसलों के लिये शीत भंडारण शृंखलाओं का विस्तार करने से बागवानी उत्पादों के लिये MSP कवरेज सुनिश्चित होता है।
- उन्नत भंडारण सुविधाएँ फसल-उपरांत नुकसान को न्यूनतम करती हैं तथा किसानों के लिये बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित करती हैं।
- MSP को निर्यात रणनीतियों के साथ एकीकृत करना: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये MSP नीतियों को निर्यातोन्मुख उत्पादन के साथ संरेखित किये जाने चाहिये।
- MSP और गुणवत्ता प्रमाणीकरण द्वारा समर्थित बासमती चावल और कुछ तिलहन जैसी फसलों को प्रोत्साहित करने से कृषि निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
- इससे घरेलू खरीद का राजकोषीय बोझ कम होता है और भारत का कृषि व्यापार संतुलन सुदृढ़ होता है।
- फसल-विशिष्ट प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन इकाइयाँ विकसित करना: मूल्य संवर्द्धन बढ़ाने और बर्बादी को न्यूनतम करने के लिये MSP-खरीदी गई फसलों को कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों से जोड़ने की आवश्यकता है।
- उदाहरण के लिये, प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में दलहन प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित करने से किसानों के लिये आय उत्पन्न हो सकती है और ग्रामीण रोज़गार का सृजन हो सकता है।
- यह प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना जैसी योजनाओं के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य फसल-उपरांत बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करना है।
- रियल टाइम मूल्य निर्धारण के लिये तकनीकी समाधा: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तथा ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाकर ऐसे प्लेटफॉर्म विकसित किये जा सकते हैं जो रियल टाइम बाज़ार मूल्यों की निगरानी करें और MSP कार्यान्वयन में पारदर्शिता प्रदान करें।
- ये प्लेटफॉर्म मूल्य प्रवृत्तियों का पूर्वानुमान करने, किसानों को बेहतर फसल चयन में सहायता करने और बाज़ार शोषण को कम करने में भी मदद कर सकते हैं।
- गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिये श्रेणीबद्ध MSP प्रदान करना: फसल की गुणवत्ता के आधार पर एक स्तरीय MSP संरचना लागू करने के साथ ही किसानों को बेहतर बीजों और कटाई के बाद की देखभाल में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, प्रीमियम ग्रेड अनाज के लिये उच्च MSP निर्यात-गुणवत्ता वाली वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकता है।
- इनपुट सब्सिडी के स्थान पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) का विस्तार करना: इनपुट सब्सिडी (उर्वरक, बीज) को सीधे नकद अंतरण में शामिल करने से किसानों को सरकारी व्यय को कम करते हुए उत्पादन में लचीले ढंग से निवेश करने की सुविधा मिलती है।
- तेलंगाना की रयथु बंधु योजना में सफलतापूर्वक संचालित इस मॉडल को देश भर में लागू किया जा सकता है तथा आय समर्थन सुनिश्चित करने के लिये इसे MSP गारंटी के साथ जोड़ा जा सकता है।
- निगरानी और शिकायत निवारण तंत्र को बढ़ाना: कार्यान्वयन की निगरानी, किसानों की शिकायतों का समाधान एवं समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिये समर्पित MSP निगरानी समितियों की स्थापना की जानी चाहिये।
- कृषि बाज़ारों के लिये एक सुदृढ़ प्रणाली प्रक्रिया में जवाबदेही और पारदर्शिता ला सकती है।
- उभरते कृषि क्षेत्रों के लिये MSP को बढ़ावा देना: MSP कवरेज का विस्तार करके इसमें क्विनोआ, अलसी और औषधीय पौधों जैसी नई फसलें शामिल की जा सकती हैं, जो बदलती उपभोक्ता मांग एवं निर्यात क्षमता को प्रतिबिंबित करती है।
- इससे किसानों के आय स्रोतों में विविधता आएगी और भारत की कृषि रणनीति वैश्विक रुझानों के अनुरूप होगी।
निष्कर्ष:
MSP को विधिसम्मत बनाने पर बहस किसान कल्याण, राजकोषीय स्थिरता और खाद्य सुरक्षा के बीच जटिल अंतर्संबंध को उजागर करती है। DPP, विकेंद्रीकृत खरीद, बाज़ार सुधार और संधारणीय प्रथाओं सहित एक संतुलित उपागम किसानों तथा सरकार दोनों के लिये लाभ की स्थिति सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। बाज़ार की खामियों, जलवायु जोखिमों और कम आय के अंतर्निहित मुद्दों का समाधान करके, भारत एक सुदृढ़ तथा सतत् कृषि प्रणाली बना सकता है जो सभी हितधारकों को लाभान्वित करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के कृषि क्षेत्र के संदर्भ में MSP को विधिसम्मत बनाने के संभावित लाभों और चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये तथा इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं? (a) केवल एक उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय फंदे से किस प्रकार बचाव करेगा? (2018) |